हमें कब, कहां, कैसे और क्या करना चाहिए कैसे पता चलेगा ? (EN)

हमें कब, कहां, कैसे और क्या करना चाहिए कैसे पता चलेगा ?

शास्त्र और संतजन यह भगवान के द्वारा ही लिखित और प्रेरित होते है। संतों के हृदय में बैठकर भगवान सतसंग के रूप में उपदेश देते है और भगवान ने ऋषियों के हृदय में बैठकर शास्त्र लिखवाए है।

हमको क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए ? इसके लिए गीता में भगवान जी कहते है-तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ। शास्त्र वर्णन करते है-यह करो यह ना करो। अब जनसाधारण आदमी ने शास्त्र पढ़ा नहीं तो वह सतसंग सुने। अगर सतसंग भी नहीं सुन पा रहा तो आपके हृदय में बैठा भगवान जब तुम गलत करना चाहते हो तो वह प्रेरित करता है कि यह गलत है। सच्चाई से बताओ। किसी शास्त्र में पढ़ो या न पढ़ो। कहीं सुनो या न सुनो। हृदय में बैठा आपका गुरू (भगवान जी) प्रेरित करता है ना कि आप गलत कर रहे है। आप उसकी बात नहीं मानते हो और गलत कर बैठते हो।

भगवान बड़ी धीमी छीनी आवाज में कहते है कि ऐ यह गलत है। पर हमारी वासना इतनी प्रबल है कि हम सुनते नहीं है और गलत कर बैठते है, फिर दंड भोगते है।

कोई नहीं कह सकता कि मुझे पता नहीं था, गलत का सबको पता होता है। हमारी बहन को कोई देखे तो हमें बुरा लगेगा ना, तो हम किसी की बहन को बुरा क्यों देखे। हमारी कोई निंदा करें तो हमें बुरा लगेगा तो हम किसी की निंदा क्यों करें। जो मुझे प्रतिकूल (गंदा) लगता है वो मैं दूसरे के लिए नहीं करूंगा। मेरे शरीर को कोई पीढ़ा पहुंचाए मैं दूसरे के शरीर को कैसे पीढ़ा पहुंचा सकता हूं।

धर्म की कुछ सुक्ष्मताओं को लेकर व्यक्ति जरूर कह सकता है कि यह मुझे नहीं पता था लेकिन जो यह खुला पापाचरण है (दूसरे की मा बहन को बुरी दृष्टि से देखना, किसी जीव का मांस खाना, अधर्म बेईमानी से पैसा कमाना आदि) इसको लेकर कोई नहीं कह सकता कि मुझे पता नहीं था। अंदर से आवाज आती है यह गलत है, मत करना। अंदर से हम उसकी बात मान लें तो हम दिव्य हो जाएं। हम दिव्य हैं। हम भगवान के अंश हैं। दिव्य पार्थिव (सांसरिकता) में फंस गया इसलिए दुर्गति भोग रहा है।

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