भगवान् पापी, नीच के भी उद्धारक हैं
आदरणीय परम पूज्य श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी की लाभदायक पुस्तक ‘सत्संग के बिखरे मोती ‘
४१-भगवान् पापी, नीचके भी उद्धारक हैं, यह विश्वास करके केवल जीभ से भगवान्के नामका उच्चारण करते रहो।
४२-भगवान् तो अपनी कृपासे ही स्वीकार कर लेते हैं। उन्होंने कहा है-
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् । साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥ निगच्छति । प्रणश्यति ॥ क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं कौन्तेय प्रति जानीहि न मे भक्तः
(गीता ९। ३०-३१)
‘महान् पापी भी यदि मुझको ही अपना एकमात्र आश्रयदाता मानकर पक्का निश्चय करके मुझे भजता है तो उसे साधु ही मानना चाहिये। वह तुरन्त ही धर्मात्मा बन जाता है और शाश्वती शान्तिको प्राप्त होता है। बस, ऐसा निश्चय करके मेरा भक्त बन जाय, फिर उसका पतन होता ही नहीं।’
इतनी सीधी-सी बात सभी कर सकते हैं। अपने पुरुषार्थसे पाप
नहीं छूटते, न सही; बस, भगवान्के पतितपावन विरदपर विश्वास करो, श्रद्धा करो-यह होगा, अवश्य होगा।
४३-सकल अंग पद बिमुख नाथ मुख नामकी ओट लई है। है तुलसी परतीति एक प्रभु मूरति कृपामई है।
– बस, विश्वास कर लो कि ‘प्रभु मूरति कृपामई है।’ और जीभसे नामका उच्चारण करते रहो।
४४-यदि हम जीभसे भगवन्नाम लेंगे तो सभी अंग पुष्ट हो जायेंगे।
४५-विश्वास करो-माँके समान भगवान्की कृपा सर्वत्र हमारी रक्षा करेगी।
४६-श्रीकृष्णकी अनन्त कृपा हमारे ऊपर है, ऐसा विश्वास करके नाम लेते रहो।
४७-हो सके तो यह करो – भगवान्की कृपापर अपने-आपको छोड़ दो। हमारा क्या होगा, कब होगा, कैसे होगा – इस बातकी चिन्ता ही छोड़ दो।
४८-जैसे माता अपने बच्चेके कल्याणके लिये, रोग मिटानेके लिये कड़वी दवा देती है, वैसे ही भगवान् जागतिक कष्ट, दारिद्रय, अपमान और व्याधियाँ आदि भेजते हैं। वे देखनेमें कठोर हैं, पर वस्तुतः हैं भगवान्के आशीर्वाद। वे शुद्ध करनेके लिये – निर्मल बनानेके लिये ही आते हैं।
४९-मुझपर भगवान्की कृपा कम है, ऐसा माननेवाला भूल करता है। भगवान्की कृपा तो सबपर है और अनन्त है।