इन कारणों से हो रहा है बच्चों का दिमाग खराब (EN)

इन कारणों से हो रहा है बच्चों का दिमाग खराब

शहरों और महानगरों में बच्चों का दिमाग सिर्फ मौज मस्ती में ही लगा रहता है। मां बाप भी अपने बच्चों को खुश करने के चक्कर में उनकी हर मांग के सामने घुटने टेक देते हैं।

मां बाप की चाहत

मां बाप को लगता है कि उनके बच्चे को किसी चीज की कमी ना हो और यह मां-बाप ऐसे हैं जिन्होंने अपना बचपन में अभाव की जिंदगी जी है और अब वह चाहते हैं कि उनके बच्चे मौज मस्ती में जिए और दुखी ना रहे।

बच्चों के सामने मां बाप बेबस

मां बाप अपने बच्चों को खुश करने के चक्कर में वह अपने बच्चों की हर जायज नाजायज मांग को पूरा करने लग जाते हैं जबकि जो मां-बाप अपने बच्चों की हर जायज नाजायज मांग नहीं मानते वे बच्चे दूसरे बच्चों के पास महंगे खिलौने और मोटी पॉकेट मनी देखकर अपने मां-बाप पर दबाव बनाते हैं कि वह भी उनकी मांगे पूरी करें।

कामकाजी मां-बाप

आजकल शहरी परिवारों में बच्चों के मां-बाप दोनों काम करते हैं. पेरेंट्स सुबह घर से निकलते हैं और शाम या रात में ही घर में घुसते हैं। ऐसे में बच्चे या तो अपने दादा-दादी नाना नानी आदि के साथ रहते हैं या फिर डे केयर में रहते हैं. कई बच्चे मेड के साथ रहते हैं या फिर कई तो अकेले भी रहते हैं. माँ बाप बाहर से ताला लगा के चले ऑफिस चले जाते है. घर के अंदर cctv कैमरे लगा के बच्चों की निगरानी करते हैं.

जिन बच्चों की माताएं नौकरी बिजनेस करती हैं। वह बच्चे अपने पिता के साथ इतना ज्यादा खुलकर बात नहीं कर पाते जितना वह अपनी मां के साथ कर सकते हैं लेकिन मां के घर पर नहीं रहने की वजह से वह अपनी बात बात नहीं पाती. मां शाम को थकी हारी घर पर आती है तो उसकी यह स्थिति नहीं होती कि वह बच्चे की हर बात धैर्य से सुने और उसका हल निकाले. वह बच्चों की समस्या को सुनकर या तो झल्ला देती है या फिर अनसुना कर देती है क्योंकि मां पर भी नौकरी और घर के काम का दोनों तरफ का प्रेशर रहता है इसलिए वह अपने बच्चे के पर्सनल डेवलपमेंट में ज्यादा योगदान नहीं दे पाती जबकि पिता भी ऑफिस या बिजनेस की प्रेशर की वजह से अपने बच्चे का ध्यान नहीं दे पाते। ऐसे में बच्चा अपना बेस्ट फ्रेंड मोबाइल या टीवी में कार्टून शो को बना लेता है।

भगवान से विमुख

शहरों में लोग इतने ज्यादा बिजी हैं कि उनके पास भगवान का याद करने का समय नहीं है. बहुत से लोग सुबह भगवान की पूजा करते हैं या फिर त्योहारों में भगवान को याद करते हैं. लोगों को अध्यात्म के बारे में दूर-दूर तक कुछ पता नहीं है. घर में धूप अगरबत्ती या फिर मंदिर में प्रसाद चढ़ाने को ही लोग खुद को धार्मिक मन कर खुश हो जाते हैं जबकि अध्यात्म बताता है कि मनुष्य को भगवान की शुद्ध भक्ति नियमपूर्कवक करनी चाहिए और इसके लिए सबसे पहले गुरु बनाना चाहिए। लेकिन ज्यादातर लोग ऐसा नहीं करते और उम्मीद करते हैं कि उन्हें ऐसे चमत्कारी बाबा मिले जो उन्हें जल्द से जल्द धन नाम और संपत्ति दिलवा दे, जिससे उनकी सब मुश्किलें हल हो जाए, जबकि अध्यात्म कहता है कि संत जन हमें जीवन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं इसका अभ्यास करवाते हैं और हमें भगवान की भक्ति करके विवेक पैदा होता है. अपने आराध्य का नाम जप, सत्संग और bhajan कीर्तन bhakti के शुरूआती मार्ग हैं. अब पेरेंट्स ही अध्यात्म से दूर है, तो बच्चे कैसे जुड़ेंगे. बच्चे, इन्स्टा ग्राम, यूटुब, नेट फ्लिक्स, हॉट स्टार, ओटीटी प्लेटफॉर्म को ही अपना आदर्श मानते हैं.

पुरुष क्यों करवाते हैं बीवियों से नौकरी

लडको को कामकाजी नौकरी वाली लडकियां शादी के लिए चाहिए. लडको को लगता है कि इससे उन पर घर चलाने का अकेले बोझ पड़ेगा. बीवी नौकरी करती होगी, तो ज्यादा टेंशन नहीं होगी. प्राइवेट नौकरी वालो को लगता है कि नौकरी छूट गई तो बीवी कि नौकरी होने से टेंशन नहीं होगी. यह हकीकत भी है कि एक की नौकरी चली जाए तो दूसरी की नौकरी होने से घर का खर्च तो चल ही जाता है, वरना बच्चों को दूध पिलाने के भी लाले पड़ जाए.

अब क्या करे, क्या है solution ?

प्राइवेट और बड़े स्कूल्स

दरअसल आजकल माँ बाप बड़े प्राइवेट स्कूल में बच्चो को पढ़ाना चाहते है. दयानंद सरस्वती dav जैसे मझोले स्कूल्स में बहुत कम माँ बाप अपने बच्चो को भेजना चाहते है. सब लोग ग्लोबल, इंटरनेशनल स्कूल्स में बच्चों को भेजना चाहते है. इसलिए प्राइवेट स्कूल्स भी भले दो कौड़ी का हो, लेकिंग पेरेंट्स को लुभाने के लिये नाम के आगे इंटरनेशनल या ग्लोबल लिख देता है. इससे पेरेंट्स का खर्च बढ़ जाता है. इसलिए नामी गिरामी स्कूल्स के चक्कर में ना पड़कर अच्छी अकेडमिक वाले स्कूल के बारे में पता कर बजट स्कूल्स में बच्चों को पढ़ाना चाहिए. इससे पैसे बचेंगे……

रेस्तरां और होटल का खाना

बीवी के नौकरी करने की वजह से घर में बाहर के खाने का चलन बढ़ जाता है. बच्चे पर इसका बुरा असर पड़ता है. उसको घर का खाना अच्छा नहीं लगता. वे रेस्तरा, होटल का खाना पसंद करता है. बच्चा क्या माँ बाप भी चटोरापन दिखाते हैं. अब बीवी नौकरी की बजाय घर में रहे तो अच्छा, अगर संभव नहीं है तो पति को भी खाना बनाना आना चाहिए, ताकि बच्चे को घर का साफ़ सुथरा, स्वादिष्ट भोजन मिल सके. या फिर घर में पति पत्नी के अलावा परिवार का कोई और सदस्य माँ आदि भोजन बना सके.

सेविंग, investing और अपने घर का मोह

पुरुषों और स्त्रियों दोनों को चाहिए जितना हो सके पैसे बचाए, शुरुआत यानी कम उम्र में ही फ्लैट मकान खरीदने के चक्कर में घर खरीदने के मोह में ना फंसे. शुरुआत में अपनी बचत को म्यूच्यूअल फण्ड सिप या फिर स्टॉक मार्किट में फाइनेंसियल एडवाइजर या खुद सीख कर इन्वेस्ट करे. पैसे ज्यादा आएँगे, तो बीवी को नौकरी करवाने का दबाव नहीं रहेगा. वो घर में रहकर बच्चे ध्यान रख सकती है. बच्चे में आध्यात्मिक गुण पैदा करके उसकी उन्नति कर सकती है.

ब्रांडेड और महंगे कपड़े

बहुत से पेरेंट्स भले कमाते कम हो, लेकिन ब्रांडेड और महंगे कपडे पहनने में अपनी शान मानते हैं. वही कई पेरेंट्स खुद के और बच्चो के भी जरुरत से ज्यादा कपडे खरीदते हैं. घर में अलमारी कपड़ो से भरी पड़ी है. लेकिन फिर भी वो नए कपडे खरीदने से बाज नहीं आते. ऐसे में उनकी सेविंग कुछ नहीं होती और घर पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. इसलिए पेरेंट्स को सादगीपन की और बढ़ना चाहिए. दूसरो को दिखाने की होड़ की गन्दी आदत को छोड़ना पड़ेगा. इससे बच्चे भी नकलीपन को छोडकर असलियत को समझ सकेंगे.

इन सभी विकारों का एक ही हल

इन सभी विकारों का एक ही हल है, तुरंत अध्यात्म से जुड़े.

एक आदर्श गुरु बनाये, इसके लिए आप महाराज जी का ये विडियो देख सकते है. इससे आपको मार्गदर्शन मिल जाएगा. https://youtu.be/7BwzkTJuVpA?si=_z8MUe8l8my3Scud

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