EKANTIK VARTALAP : प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार धर्मपूर्वक धन कमाने का मार्ग BHAJAN MARG

प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार धर्मपूर्वक धन कमाने का मार्ग

पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने अपने प्रवचनों में बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया है कि धन कमाना बुरा नहीं है, लेकिन उसका तरीका और उद्देश्य शुद्ध, नैतिक और धर्मसम्मत होना चाहिए। उनका संदेश है कि हर व्यक्ति को अपने कर्तव्य का पालन पूरी ईमानदारी, समर्पण और निष्ठा से करना चाहिए, और अपने काम को भगवान की सेवा मानना चाहिए।

मुख्य विषय वस्तु:

1. कर्तव्यपालन और ईमानदारी

  • महाराज जी कहते हैं कि सबसे पहले अपने कर्तव्य के प्रति सजग रहें। चाहे आप डॉक्टर हों, दुकानदार हों, शिक्षक हों या कोई भी व्यवसाय करते हों, अपने काम में कभी भी छल, कपट या मिलावट न करें।

  • उदाहरण के लिए, यदि आप दवा बेचते हैं तो नकली दवाएँ न बेचें। यदि आप शिक्षक हैं तो विद्यार्थियों को पूरी लगन से पढ़ाएँ, न कि समय गपशप में बर्बाद करें।

  • हर व्यवसाय में ईमानदारी और नैतिकता सर्वोपरि है। अपने हर कर्तव्य को भगवान की सेवा समझें और काम करते समय भगवान का नाम जपें।

2. दूसरों को धोखा देने से बचें

  • महाराज जी स्पष्ट रूप से कहते हैं कि पैसे के लिए कभी भी किसी को धोखा न दें। नकली दवा, मिलावटी सामान, या झूठे वादे करके कमाया गया धन विनाश का कारण बनता है।

  • दूसरों को धोखा देकर कमाया गया पैसा तात्कालिक रूप से लाभदायक लग सकता है, लेकिन वह भविष्य में आपके और आपके परिवार के लिए दुखदाई सिद्ध होगा।

3. धर्मपूर्वक धन कमाने का सही तरीका

  • अपने कर्तव्य का पालन करें, उसे भगवान को समर्पित करें और भगवान का नाम जपते रहें।

  • यदि आप सुनार हैं, तो ग्राहक के सोने से बिना मिलावट के आभूषण बनाएं और उचित शुल्क लें, लेकिन मिलावट या धोखा न करें।

  • अपने उत्पाद या सेवा का उचित मूल्य लें, लेकिन छल-कपट से बचें। यदि आप अपना कर्तव्य सही से निभाते हैं, तो यही मार्ग आपको भगवान तक पहुँचाएगा और भगवान की कृपा प्राप्त होगी।

4. अनैतिकता और धोखे के दुष्परिणाम

  • महाराज जी बताते हैं कि आजकल समाज में मिलावट, धोखाधड़ी और झूठ आम हो गया है। लेकिन ऐसे धन का कोई स्थायी सुख नहीं है।

  • मिलावटी या धोखे से कमाया गया धन न तो आपको शांति देगा, न ही आपके परिवार को सुखी रखेगा। यह धन हमेशा विनाश का कारण बनता है।

  • तात्कालिक लाभ के बजाय दीर्घकालिक और स्थायी सुख को प्राथमिकता दें। अधर्म से प्राप्त धन अंततः दुख और बर्बादी लाता है।

5. धन का सदुपयोग

  • महाराज जी सलाह देते हैं कि धन का दुरुपयोग न करें। नशा, जुआ, मांसाहार, या अन्य अनुचित कार्यों में धन खर्च करना आपके जीवन और परिवार के लिए हानिकारक है।

  • धन को बचाएं और उसे परिवार, समाज और धर्म के कार्यों में लगाएं। यही सच्चा सुख और संतोष देगा।

  • जुए या गलत साधनों से कभी भी स्थायी सुख या शांति नहीं मिल सकती। उदाहरण के लिए, महाभारत में युधिष्ठिर ने जुए के कारण अपना सब कुछ खो दिया था।

6. फल की इच्छा से मुक्त होकर कर्म करें

  • प्रेमानंद महाराज जी गीता का संदर्भ देते हुए कहते हैं कि “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” – अर्थात् हमें केवल अपने कर्म पर अधिकार है, फल पर नहीं।

  • जब हम अपने कर्तव्य को भगवान को समर्पित करके निष्काम भाव से करते हैं, तो फल की चिंता स्वतः समाप्त हो जाती है और मन में शांति आती है।

  • महाराज जी समझाते हैं कि यदि आप अच्छे कर्म करेंगे, तो फल अवश्य मिलेगा, लेकिन फल की इच्छा में बंधकर कर्म करने से निराशा और दुख मिलता है।

7. जीवन में संतुलन और धैर्य

  • महाराज जी कहते हैं कि जीवन में सुख-दुख, लाभ-हानि, विजय-पराजय – ये सब आते-जाते रहते हैं। हमें इनसे ऊपर उठकर अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।

  • धैर्य और संतुलन बनाए रखें। कभी भी निराश न हों, क्योंकि समय बदलता रहता है। भगवान पर विश्वास रखें और अपने कर्म में लगे रहें।

निष्कर्ष

पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का संदेश स्पष्ट है:धन कमाना गलत नहीं, लेकिन उसका तरीका धर्मपूर्वक, ईमानदारी और निष्ठा से होना चाहिए। दूसरों को धोखा देकर, मिलावट या छल से कमाया गया धन कभी सुख नहीं देता। अपने कर्तव्य को भगवान की सेवा मानें, निष्काम भाव से कर्म करें, और धन का सदुपयोग करें। यही सच्चा धर्म है और यही आपको स्थायी सुख, शांति और भगवान की कृपा दिलाएगा।

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