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काम वासना की असहनीय वृत्तियाँ: समाधान, साधना और संतुलन
काम वासना (sexual urges) मनुष्य के जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा है, लेकिन जब यह असहनीय हो जाए, तो व्यक्ति मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्तर पर परेशान हो सकता है। इस विषय पर संतों, मनोवैज्ञानिकों और योगाचार्यों ने गहन मार्गदर्शन दिया है। प्रस्तुत लेख में हम श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन, योगिक विधियों और आधुनिक दृष्टिकोणों के आधार पर काम वासना की असहनीय वृत्तियों को नियंत्रित करने के व्यावहारिक उपायों का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।
काम वासना क्यों होती है?
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मनुष्य की शारीरिक रचना और जैविक संरचना ऐसी है कि उसमें काम वासना के बीज मौजूद हैं। यह प्राकृतिक है, लेकिन इसका असंतुलन मानसिक अशांति, अपराधबोध, और सामाजिक समस्याओं का कारण बन सकता है6।
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जब व्यक्ति का खानपान, संगति, दिनचर्या और विचार शुद्ध नहीं होते, तब काम वासना की वृत्तियाँ अधिक प्रबल हो जाती हैं1।
असहनीय काम वासना के प्रमुख कारण
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गलत खानपान: तामसिक और असात्विक भोजन वासना को बढ़ाता है।
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कुसंग: अश्लील सामग्री, बुरी संगति और अनुचित विचारों का प्रभाव।
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भजन और साधना में कमी: जब मन भगवान के नाम में नहीं लगता, तो खाली समय में वासना का प्रभाव बढ़ जाता है।
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आंतरिक कनेक्शन: मन में कोई गुप्त आकर्षण या विचार बार-बार लौटकर आते हैं1।
समाधान: संतों की दृष्टि से
1. कनेक्शन को पहचानें और तोड़ें
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महाराज जी के अनुसार, जब तक मन का कनेक्शन किसी गलत वस्तु, व्यक्ति या विचार से है, तब तक वासना शांत नहीं होती। सबसे पहले अपने भीतर झाँककर यह जानें कि वह कौन-सा कनेक्शन है, और उसे पूरी दृढ़ता से तोड़ दें1।
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अगर मन में कोई गंदा चिंतन या फंतासी बार-बार आती है, तो उसे तुरंत रोकें और मन को नाम जप या किसी सकारात्मक कार्य में लगाएँ।
2. संगति और वातावरण बदलें
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बाहर की कुसंग (गलत संगति) और भीतर की कुसंग (गंदे विचार) दोनों से बचना आवश्यक है1।
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सत्संग, अच्छे लोगों का साथ, और पवित्र वातावरण वासना की वृत्तियों को शांत करने में सहायक है।
3. खानपान शुद्ध करें
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भोजन को भगवान को अर्पित करके ही ग्रहण करें। इससे भोजन प्रसाद बनकर हृदय को पवित्र करता है और पाप बुद्धि का नाश करता है1।
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तामसिक भोजन, नशा, और उत्तेजक पदार्थों से बचें।
4. भजन और नाम जप बढ़ाएँ
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जितना अधिक नाम जप, भजन, और ध्यान करेंगे, उतना मन पवित्र और नियंत्रित रहेगा1।
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समय का अपव्यय न करें; जैसे निर्धन व्यक्ति धन कमाने के लिए अतिरिक्त परिश्रम करता है, वैसे ही साधक को भजन में ओवरटाइम करना चाहिए।
5. भाव परिवर्तन करें
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सभी स्त्रियों में माँ, बहन, या बेटी का भाव विकसित करें। जैसे अपनी बहन या बेटी से गले लगने पर वासना नहीं आती, वैसे ही संसार की सभी स्त्रियों में मातृत्व या बहनत्व का भाव रखें1।
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यह भावनात्मक परिवर्तन वासना को निष्क्रिय कर देता है।
6. परिणाम का विचार करें
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गलत आचरण के दूरगामी परिणाम (जैसे सामाजिक कलंक, जेल, जीवनभर की परेशानी) को मन में बार-बार दोहराएँ। इससे मन में भय उत्पन्न होगा और वह गलत दिशा में नहीं जाएगा12।
योग, ध्यान और आधुनिक उपाय
1. प्राणायाम और ध्यान
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प्राणायाम और ध्यान से मन की चंचलता कम होती है और ब्रह्मचर्य की सिद्धि सहज हो जाती है23।
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जब वासना का वेग बढ़े, तो पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर गहरी साँस लें और दृष्टि को नासिका के अग्रभाग पर केंद्रित करें। यह योगिक मुद्रा वासना की तीव्रता को शांत करती है3।
2. ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग
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अपनी ऊर्जा को किसी रचनात्मक कार्य, सेवा, या बड़े प्रोजेक्ट में लगाएँ। जब मन व्यस्त और उद्देश्यपूर्ण रहता है, तो वासना का वेग अपने आप कम हो जाता है6।
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खाली समय, आलस्य, और निष्क्रियता वासना को बढ़ाते हैं।
3. वासना को दबाएँ नहीं, दिशा दें
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काम वासना को दबाने की बजाय, उसे रचनात्मक और सकारात्मक दिशा दें4।
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कला, संगीत, खेल, अध्ययन, सेवा आदि में मन को लगाएँ।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
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वासना का दमन (repression) मानसिक तनाव, अपराधबोध, और विकृतियों का कारण बन सकता है4।
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सही मार्ग यह है कि विवेक और आत्म-नियंत्रण से वासना को परिष्कृत करें, उसका सदुपयोग करें, और उसे जीवन के उत्साह, साहस, और कौशल में बदलें।
प्रेरक उदाहरण और संतों के अनुभव
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संतों ने भी प्रारंभ में वासना का अनुभव किया, लेकिन भगवत भजन, सत्संग, और साधना से उस पर विजय पाई15।
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गिरना स्वाभाविक है, लेकिन बार-बार प्रयास करने से एक दिन निश्चित ही विजय प्राप्त होती है5।
सारांश: व्यावहारिक कदम
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सत्संग और भजन में समय बिताएँ।
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खानपान शुद्ध और सात्विक रखें।
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संगति और वातावरण को पवित्र बनाएँ।
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सभी स्त्रियों में मातृत्व/बहनत्व का भाव विकसित करें।
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योग, प्राणायाम, और ध्यान का नियमित अभ्यास करें।
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वासना के परिणामों का गहराई से विचार करें।
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ऊर्जा को रचनात्मक कार्यों में लगाएँ।
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गिरने पर अपराधबोध में न डूबें, बार-बार प्रयास करते रहें।