शरणागति के लिए जीव को किन बातों की आवश्यकता होती है ?

शरणागति के लिए जीव को किन बातों की आवश्यकता होती है ?

असल बात शरणागति तभी होती है जब हम अपने को किसी योग्य नहीं समझते, जब अर्जुन जी आज्ञा करते हैं, चलो दोनों सेनाओं के मध्य में रथ को खड़ा करो, अब भगवान् कहते है, देख, ज्यों भगवान् ने कहा, देख, तो सब भाई बंधू नाते रिश्तेदार, अब अर्जुन कांपने लगे.

जब अपने को पता चल गया कि मैं किसी योग्य नहीं हूँ. जब जीव देख लेता है हम किसी योग्य नहीं तो भगवान् की शरण में आ जाता है.

विभीषण जी और सुग्रीव जी की शरणागति

जब रावण ने लात मारी, विभीषण का कोई सहयोगी नहीं कोई सहारा नहीं, तो विभीषण जी की भगवान् कि शरणागति हो गई. सुग्रीव जी को बाली ने बहुत मारा, सुग्रीव जी का कोई सहारा नहीं था, जब हनुमान जी ने सुग्रीव को मिलाया तब उनके हृदय में पक्की शरणागति हो गई. अगर हमे किसी बल का सहारा है, तो शरणागत होना बहुत कठिन होता है.

आदमी कब करता है सरेंडर

देखो ना कोई आदमी सरकार के सामने सरेंडर तभी होता जब उसके पास ना कोई गोली रह जाती है और जब उसे पता चल जाता है कि हम मारे गए. ऐसे में शरणागति भगवान असलियत में करवाते हैं जब किसी काम का नहीं रह जाता.

अभी तो ऐसे ही वाचिक शरणागति है. बहुत-बहुत हुआ तो क्रियात्मक.

भगवान् के सामने रोये

क्रियात्मक भी कोई विवेक पुरुष ही कर सकता है, नहीं तो हम लोग अपने मनोरंजन के लिए विमुख चेष्टाएं भी करते रहते है, स्वयं से शरणागति होना बहुत बड़ी बात है. जैसे ही स्वयं से शरणाग होती होगी तो निश्चित हो जाएगा जीव निशोक हो जाएगा. यह स्थिति तभी आएगी जब हम भगवान से रोएंगे और प्रार्थना करेंगे कि हे नाथ मुझे अपनी शरण में ले ले और नाम जप करो. नाम जप से हृदय द्रवित होता चला जाएगा. हमारा हृदय निर्मल होगा. पाप और पाप की प्रवृत्तियों का नाश होगा तो पक्की शरणागति हो जाएगी. नाम जप करो और कभी-कभी रो-रो के पुकारो.

हमको तो एक ही रास्ता समझ में आया है, सब नियम संयम भगवान ने तो बताये ही हैं. भगवान से एकांत में प्रार्थना करना. प्रार्थना से भगवान का अवतार हो गया, ”जय जय सुरनायक जन सुखदायक” जो प्रार्थना हुई ना भगवान का अवतार हो गया. सब संत महात्मा ऋषि मुनि मिलकर भगवान आदि जब शंकर जी आदि प्रार्थना किये तो सच्चिदानंद भगवान का अवतरण हो गया.

भगवान् से ऐसे करे प्रार्थना

हम प्रार्थना करें एकांत में भगवान से. हे प्रभु जो सद्गुण आपके प्रिय है वह हमारे में दे दीजिए, जो आचरण हमारे आपको अपने लगते हैं, हे नाथ मुझे समर्थ दो कि मैं उनका त्याग करूं. ”श्रीकृष्ण अनुकूलन प्रतिकूल स्पर्श विसर्जन” श्री कृष्ण के अनुकूल आचरण हो, प्रतिकूलता का त्याग हो, पूर्ण रूप से त्याग हो, यह भरोसा दृढ हो कि भगवान मेरे है.

भगवान का नाम जप के बिना भगवान के भोग लगे कोई पदार्थ मत पाओ, पानी भी क्यों ना हो, किसी की निंदा मत करो किसी से द्वेष मत करो अभी शरणागति आने लग जाएगी इसको सुनना इसको कई बार सुना तब समझ में आएगा।

माया ने आपको घेरा या आपने माया को

जो लोग कहते हैं कि हमें चारों तरफ से माया घेरी रहती है. हम उनको यही कहते हैं कि आज तक हमने माया नहीं देखी हमें अपनी वासनाएं अच्छी लगती हैं, उसी को तुम माया कहते हो.

अच्छा बताओ क्या माया है. हमें यह बताओ अब हम तुम्हें माया बता रहे हैं. यह शरीर माया है, यह रसेंद्री माया है, यह क्या तुम्हारे विरोध में है. माया का पक्ष अगर देखा जाए तो यह तुम्हें आनंद प्रदान करने वाली माया है. यह रसेंद्री है. भगवान का भोग लगाकर प्रसाद पाते हैं. संतान उत्पत्ति के लिए गृहस्थ में अगर आप काम आदि करते हैं तो यह धर्मत: का ही स्वरुप है. जब हम अपनी वासना से प्रेरित होकर गलत ढंग से शास्त्र प्रमाण से अलग चलते हैं तब वही फिर हमारे लिए माया हो गई जैसे आप समझे यह हमारा पुलिस डिपार्टमेंट है अगर हम अनुकूल चलते हैं कानून के तो हमारा सहयोग करते हैं अगर हमको वहां तक जाने में दर लगता है तो वह हमारी व्यवस्था करते हैं और अगर हम कानून के खिलाफ है तो वही लोग डंडा चलाएंगे, अगर आप भगवान के अनुकूल है तो सब आपके अनुकूल हो जाएंगे, जहां पर कृपा राम की हुई तब कृपा आप पर हुई . हमारी वासना ही असल माया है. इच्छा रहित पुरुष माया मुक्त है. इच्छा ही माया है, कामना ही माया है, वासना ही माया है जब कामना की पूर्ति नहीं होती तो क्रोध आ जाता है, कामना की पूर्ति होती है तो लोभ आ जाता है और दोनों बुद्धि को भ्रष्ट कर देते हैं.

ये काम करो

भगवान् का आश्रय लो, नाम जप करो, सत्संग सुनते रहो और जो अन्दर में जलन होती है उसे सहते रहो, ठीक है.

महाराज जी के इस सम्बन्ध में अनमोल प्रवचन सुनने के लिए विडियो लिंक में क्लिक करे.

https://youtu.be/OdeH_3JSWzo?si=Ds5FQdmEJNreVKRm

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