
रिश्तेदारों से त्योहारों में पैसे लेना – महाराज जी के विचार
रिश्तेदारों से त्योहारों में पैसे लेना भारतीय परंपरा का अहम हिस्सा है। जब त्योहार आता है, तो चाचा, मामा, जीजा, भाई, बहन जैसे रिश्तेदारों से पैसे या उपहार लेना सामान्य तौर पर माना जाता है। इस विषय पर श्री हित प्रेमानंद जी महाराज का दृष्टिकोण अत्यंत प्रेरणादायक है। महाराज जी कहते हैं कि रिश्तेदारों से त्योहारों में पैसे लेना केवल एक लेन-देन नहीं, बल्कि भगवद भाव से किया गया कार्य होना चाहिए।youtube
त्योहारों में भगवद भाव का महत्व
महाराज जी बताते हैं कि अगर रिश्तेदारों से त्योहारों में पैसे लेना है, तो हर संबंध में भगवान को देखना चाहिए। उनके अनुसार, पैसा लेने और देने में भगवान का प्रसाद मानना चाहिए। जब रिश्तेदारों से त्योहारों में पैसे लेना भगवद भाव से किया जाये, तो वह कर्म बंधन नहीं बनता। बल्कि वह सीधा भगवत सेवा बन जाता है। यही वजह है कि त्योहारों में, चाहे जीजा हो, चाचा हो या कोई अन्य रिश्तेदार – उनको भगवान का अंश मानकर ही व्यवहार करना चाहिए।
मानसिक और भावनात्मक दृष्टिकोण
हमारे समाज में “रिश्तेदारों से त्योहारों में पैसे लेना” कई बार भावनाओं को जन्म देता है। कई लोग सोचते हैं कि इसमें कर्ज, बोझ या दिखावा है। मगर महाराज जी कहते हैं कि जब भाव सही हो, तो रिश्तेदारों से त्योहारों में पैसे लेना नेक कार्य है। इसमें कोई बंधन या बोझ नहीं रहता। हमें हर रिश्तेदार में भगवान का अंश देखना है, और जो कुछ मिले, उसे भगवान का प्रसाद समझकर स्वीकार करना है।
शास्त्रीय और आध्यात्मिक सोच
त्योहारों का असली महत्व अध्यात्म है। महाराज जी के अनुसार, जब रिश्तेदारों से त्योहारों में पैसे लेना भगवद भावना से होता है, तो वह पुण्य का कारण नहीं बनता, बल्कि भगवत प्राप्ति में सहायक बनता है। “रिश्तेदारों से त्योहारों में पैसे लेना” तभी सही है जब वह सेवा, प्रेम और आस्था से जुड़ा हो। प्रत्येक रिश्ते में भगवान का स्वरूप देखना ही महाराज जी का मूल मंत्र है।
व्यवहारिक और पारिवारिक सुझाव
रिश्तेदारों से त्योहारों में पैसे लेना अगर जरुरी है, तो हमेशा उसकी स्पष्टता रखनी चाहिए। महाराज जी बताते हैं – जब रिश्तेदारों से त्योहारों में पैसे लेना मजबूरी हो, तब भगवान का नाम जपते हुए अपनी भावनाओं को शुद्ध रखें। किसी भी लेन-देन को भगवान की सेवा समझें, तो कोई विवाद, चिंता या बोझ नहीं रहेगा।
सही तरीका क्या है?
श्री हित प्रेमानंद जी महाराज का मत है कि हर पैसे के लेन-देन में भगवान की स्मृति रखो। जिस भी रूप में पैसा मिले, मन में मान लो कि भगवान स्वयं तुम्हें दे रहे हैं। यह भाव पैदा करते ही रिश्तेदारों से त्योहारों में पैसे लेना सिर्फ लेन-देन नहीं, बल्कि आध्यात्मिक साधना बन जाता है। त्योहारों में रिश्तेदारों से पैसे लेना भगवान की सेवा का माध्यम भी बन सकता है।
नतीजा – महाराज जी की प्रेरणा
आखिरकार, रिश्तेदारों से त्योहारों में पैसे लेना भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। श्री हित प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, जब हर रिश्ते, हर व्यवहार, हर लेन-देन में भगवान का भाव जुड़ जाता है, तो जीवन में कोई बोझ, चिंता या अशुद्धता नहीं रह जाती। त्योहारों में, रिश्तेदारों से पैसे लेना अगर भगवद भाव से किया जाये, तो वह सच्ची सेवा है – यही महाराज जी का सिखाया मार्ग है।, india
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