कार्तिक मास में तुलसी के समक्ष दीपक जलाने का अद्भुत फल

यहाँ प्रस्तुत है श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के दिव्य प्रवचन “कार्तिक मास में तुलसी के समक्ष दीपक जलाने का अद्भुत फल” विषय पर आधारित 2000 शब्दों का विस्तृत हिन्दी लेख, जिसमें उनके कथन, आध्यात्मिक सिद्धांत, उपदेश और तुलसी माता के महत्व को विस्तार से समझाया गया है।


श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के विचार: कार्तिक मास और तुलसी पूजा का महान महत्व

परिचय

श्रीमद् भागवत कथा के सुप्रसिद्ध व्यास, श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज, अपने भक्तों को सनातन सत्य और अध्यात्मिक शिक्षाओं का मार्ग दिखाते हैं। उनके द्वारा किए गए प्रवचन न केवल लोगों के जीवन में भक्ति और शांति का संचार करते हैं, बल्कि वह हर श्रोता को धर्म और नीति का पालन करने की प्रेरणा भी देते हैं। प्रस्तुत प्रवचन कार्तिक मास में तुलसी पूजा के गूढ़ रहस्य और उनकी अतुलनीय कृपा के विषय में है।


1. कार्तिक मास और तुलसी महिमा की भूमिका

श्री देवकीनंदन ठाकुर जी कहते हैं कि कार्तिक मास हिन्दू धर्मानुसार अत्यंत पावन और पुण्य प्रदान करने वाला महीना है। इस मास में तुलसी माता की पूजा और उनके समक्ष दीपक प्रज्ज्वलित करने से अद्भुत पुण्य एवं आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। तुलसी माता के विषय में उन्होंने स्पष्ट किया कि वे साधारण पौधा नहीं हैं; वे स्वयं देवी के स्वरूप में पूजनीय हैं।

उन्हें तुलसी महराज़ी कहकर पुकारा जाता है, और समस्त वैष्णव परंपरा में उनका विशेष स्थान है। कार्तिक मास का समय ब्रह्ममुहूर्त जैसा शुभ होता है, जब किया गया छोटा सा भी सत्कर्म हजार गुना फल देता है। यही कारण है कि इस माह में हिन्दू परिवार तुलसी के समक्ष दीपक जलाते हैं।


2. केवल महिलाओं/बच्चों का ही अधिकार क्यों?

ठाकुर जी ने एक रोचक सामाजिक स्थिति का उल्लेख किया, जिसमें प्रायः महिलाएँ और माताएँ ही तुलसी के नीचे दीपक जलाती हैं, जबकि पुरुष इस अभ्यास से वंचित रहते हैं। वे कहते हैं, “आप यह आदत अपने बच्चों को भी डालें”। भक्तों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को भी इस पुण्य कार्य के लिए प्रोत्साहित करें, जिससे भावी पीढ़ी में भी धर्म का बीज मजबूत हो।


3. तुलसी के चमत्कारी प्रभाव की कथा—चोर की मुक्ति

श्री महाराज जी ने कार्तिक मास में तुलसी पूजा के अभूतपूर्व फल पर एक प्रेरणादायक कथा सुनाई। किसी गाँव में एक चोर था, जिसने जीवनभर चोरी की थी। एक दिन राजा के खजाने में चोरी करते हुए पकड़े जाने के डर से रात में भागते हुए वह एक मंदिर में छिप गया, जहाँ तुलसी के पौधे थे। ठंड के कारण उसने तुलसी की पत्तियाँ लेकर अपने शरीर पर लपेट लीं।

ठंड ज्यादा होने के कारण प्राण उसी रात निकल गए। चूंकि उस व्यक्ति ने जीवनभर कोई पुण्य नहीं किया था, यमराज के दूत उसे लेने आए। परंतु, चूँकि मरण के समय उसका शरीर तुलसी के पत्तों से स्पर्शित था, भगवान विष्णु के पार्षद प्रकट हो गए और यमदूतों को रोक दिया। विष्णु भक्त की मृत्युपरांत मुक्ति की ये शक्ति केवल तुलसी माता के प्रभाव से संभव हुई। इस कथा के माध्यम से ठाकुर जी समझाते हैं—तुलसी के निमित्त किया गया छोटा सा भी सत्कर्म, मुक्ति का मुख्य साधन बन सकता है


4. तीन आधार—तुलसी, तिलक और भगवान का नाम

श्री महाराज जी कहते हैं, “जिसके माथे पर चंदन का तिलक, गले में तुलसी की माला और मुख में भगवान का नाम होता है, उसे यमराज के दूत स्पर्श तक नहीं कर सकते।” वे तीन साधनों को परम आवश्यक बताते हैं—गले में तुलसी, मस्तक पर तिलक और मुख में श्री हरि का नाम। ये साधन न केवल पापों से रक्षा करते हैं, बल्कि मृत्यु के बाद भी मोक्ष का द्वार खोलते हैं।

गुरु की कृपा से दी गई यह तुलसी माला और श्रीहरि का नाम, साधक को हमेशा दिव्य सुरक्षा में रखता है। उन्होंने श्रोताओं का आह्वान किया कि, “गुरु के दिए हुए इन तीनों चीजों से प्राण निकल जाएओं, पर ये तीनों चीजें कभी भी जीवन से नहीं छूटनी चाहिए।”


5. स्नान और भोजन में तुलसी का महत्व

ठाकुर जी ने बताया कि जब व्यक्ति गले में तुलसी माला पहनकर स्नान करता है, तो जल भी तुलसी के स्पर्श से पवित्र होकर सम्पूर्ण तीर्थों के समान फलदायी हो जाता है। इसी प्रकार, जिसने तुलसी धारण की हो, उसका हर भोजन स्वाभाविक रूप से भगवान का प्रसाद बन जाता है। इसका अर्थ ये है कि साधक का जीवन हर क्षण प्रभु के निकट होता है, उसके सभी कर्म पावन होते हैं।


6. श्रीमद्भगवद्गीता का सार—कर्म योग

अक्सर लोगों के मन में प्रश्न आता है कि संसार में रहते हुए भगवान को कैसे पाया जाए? श्री देवकीनंदन ठाकुर जी ने गीता का उद्धरण देते हुए स्पष्ट किया:

“योग: कर्मसु कौशलम्
सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भाव: योग उच्यते।”

कर्म में योग का अर्थ है—आसनसिद्धि और विफलता में समभाव रखना। सफलता अथवा असफलता, जीवन के सुख अथवा दुःख में समान भाव से रहना ही सच्चा योग है। जो कर्म करते हुए परमात्मा का अर्पण भाव रखता है, वह कभी बंधन में नहीं पड़ता।

व्यक्ति को यह भाव रखना चाहिए—“मेरे द्वारा जो भी हो रहा है, वह प्रभु की प्रेरणा से हो रहा है, मैं तो केवल निमित्त हूँ।” यही भाव मनुष्य को समत्व एवं आंतरिक शांति दोनों देता है।


7. संसार में रहते हुए भक्ति और मुक्ति कैसे पाएं?

ठाकुर जी की शिक्षा यह है कि संसार में रहकर भी भगवान की भक्ति और मुक्ति संभव है, यदि व्यक्ति कर्म करते हुए आसक्ति छोड़कर, भगवान के नाम, तिलक और तुलसी से सदा जुड़ा रहे। संसार में रहते हुए भी जो व्यक्ति इन तीनों साधनों को अपनाता है, उसके लिए निवृत्ति (मुक्ति) अत्यंत सरल हो जाती है।

इसलिए भक्तों के लिए यह आवश्यक है कि वे नित्य तुलसी माता का पूजन करें, दीपक जलाएँ, और भगवान के नाम के जप तथा तिलक-धारण का अभ्यास अपनी दिनचर्या में शामिल करें।


8. आध्यात्मिक लाभ और समाज के लिए संदेश

श्री महाराज जी ने कहा कि तुलसी माता का पूजन युगों-युगों से सनातन धर्म की परंपरा रही है। यह नारी और पुरुष दोनों के लिए कल्याणकारी है, अतः समाज को चाहिए कि इन छिपी हुई आध्यात्मिक शक्तियों का लाभ उठाए। बच्चों में भी धार्मिक संस्कारों का सिंचन करें, जो आगे चलकर उनकी आत्मिक उन्नति का आधार बनेंगे।

वह कहते हैं—“एक क्षण भी तुलसी गले से उतरे न, यह साधना जीवन में सदा बनी रहे तो न केवल आत्मा पवित्र रहती है, मृत्यु के समय भी परमगति सरल हो जाती है।”


निष्कर्ष

श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी महाराज के इस प्रवचन का सार यही है कि—कार्तिक मास में तुलसी पूजा का महत्व केवल पुण्य प्राप्ति तक सीमित नहीं है, अपितु वह शाश्वत मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है। यह निम्न साधन हर व्यक्ति के लिए आवश्यक हैं:

  • गले में तुलसी माला
  • माथे पर चन्दन तिलक
  • मुख में भगवान का नाम

इन त्रयी के साथ किया गया कोई भी कर्म बन्धन का कारण नहीं बनता, वरन् मुक्ति की राह खोलता है। संसार में रहते हुए भी अध्यात्म के प्रकाश में अपने जीवन को आलोकित करें, भगवान का नाम जपें, तुलसी का पूजन करें, तिलक धारण करें, और शुद्ध आचरण अपनाएँ—यही श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज का संदेश है।


अंतिम प्रेरणा

  • तुलसी के समक्ष दीपदान करें, जन-जन में धर्म का जागरण करें।
  • अपने जीवन में सदैव भगवान का नाम, तिलक और तुलसी का स्थान बनाए रखें।
  • सफलता और विफलता को एक दृष्टि से देखें, सत्य योग का अनुसरण करें।
  • माता-पिता अपने बच्चों को धार्मिक संस्कारों की शिक्षा दें।
  • किसी भी हालत में भक्तिहीन न हों, क्योंकि भक्ति ही आत्मा का अंतिम लक्ष्य है।

राधे-राधे!


यह लेख श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के प्रेरक प्रवचन पर आधारित है, जो तुलसी माता की महिमा, कार्तिक मास की आध्यात्मिक शक्ति और सनातन धर्म के गूढ़ तत्त्वों पर प्रकाश डालता है। उम्मीद है, यह विस्तृत लेख आपके जीवन की साधना और आस्था को और प्रगाढ़ बनाएगा।

  1. https://www.youtube.com/watch?v=1fyCfAAVvd8

Related Posts

संसार में छल-कपट भरा हुआ है ऐसे में उन्ही के बीच कैसे रहें, कभी कभी सहन नहीं होता ?

​संसार में छल‑कपट क्यों दिखता है? महाराज जी कहते हैं कि कलियुग का प्रभाव ऐसा है कि यहां अधिकतर लोग स्वार्थ, वासना और अपने लाभ के लिए एक‑दूसरे से रिश्ता…

Continue reading
मेरे व्यापार में मुझे गाली देकर बात करनी पड़ती है ! Bhajan Marg

​​गाली देने की बुरी आदत आज के समय में गाली देना बहुत सामान्य सी बात मान ली गई है, लेकिन वास्तव में यह बहुत गंदी आदत है। कई लोग मजाक…

Continue reading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You Missed

संसार में छल-कपट भरा हुआ है ऐसे में उन्ही के बीच कैसे रहें, कभी कभी सहन नहीं होता ?

संसार में छल-कपट भरा हुआ है ऐसे में उन्ही के बीच कैसे रहें, कभी कभी सहन नहीं होता ?

सब चीज़ के लिए पैसे हैं, पर इसके लिए नहीं हैं

सब चीज़ के लिए पैसे हैं, पर इसके लिए नहीं हैं

बनारस में मेरी यात्रा का अनुभव आपकी यात्रा आसान कर सकता है

बनारस में मेरी यात्रा का अनुभव आपकी यात्रा आसान कर सकता है

महंगाई नहीं लाइफस्टाइल है असली डायन जो खाए जात है पर यह शख्स ही आपको बचा सकता है इस डायन से

महंगाई नहीं लाइफस्टाइल है असली डायन जो खाए जात है पर यह शख्स ही आपको बचा सकता है इस डायन से

मेरे व्यापार में मुझे गाली देकर बात करनी पड़ती है ! Bhajan Marg

मेरे व्यापार में मुझे गाली देकर बात करनी पड़ती है ! Bhajan Marg

एक्सटेंडेड वारंटी घाटे का सौदा क्यों? कंपनियों के लिए ‘चाँदी’ क्यों?

एक्सटेंडेड वारंटी घाटे का सौदा क्यों? कंपनियों के लिए ‘चाँदी’ क्यों?