अगर मृत्यु के बाद दूसरा जन्म होता है तो मरने वाले व्यक्ति का श्राद्ध या तर्पण क्यों करें?


Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj: श्राद्ध-तर्पण, पुनर्जन्म और प्रभु की सर्वत्र उपस्थिति – सारगर्भित उपदेश

परमात्मा सर्वत्र क्यों, कैसे और कब?

संस्कृतियों, धार्मिक विश्वासों और भारतीय वेदांत में हमेशा यह प्रश्न रहा है—क्या मृत्यु के बाद जन्म होता है? मरने के बाद श्राद्ध और तर्पण करने की आवश्यकता क्यों है? क्या आत्मा को अगले जन्म में लाभ मिलता है? इन सभी जिज्ञासाओं का बेहद सहज, तर्कपूर्ण और व्यावहारिक समाधान Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj अपने प्रवचनों में देते हैं।

आत्मा का अगला जन्म और उसके कर्म

  • श्री महाराज जी बताते हैं कि मृत्यु के बाद आत्मा को उसके कर्मों के अनुसार नई योनियाँ प्राप्त होती हैं—कभी पशु, कभी मानव, कभी अन्य।
  • आत्मा अमर है और जन्म-मृत्यु शरीर की प्रकृति है। कर्म फलभोग को निर्धारित करता है।
  • जुड़ाव, श्राद्ध और तर्पण जैसी विधियाँ आत्मा को अगले जन्म में भी ऊर्जा और पुण्य प्रदान कराती हैं।
  • शास्त्रों के अनुसार किया गया संकल्प—’यह पुण्य अमुक आत्मा को मिले’—उसके अगले जन्म, किसी भी योनि में, लाभदायक होता है।

श्राद्ध एवं तर्पण का रहस्य

  • श्राद्ध मात्र रीति-रिवाज नहीं, बल्कि आत्मा की प्रगति व पुण्य संचय की माध्यम है।
  • महाराज जी कहते हैं, जैसे अभियास से किसी नए पथिक को मार्ग मिलता है वैसे ही श्राद्ध का पुण्य जिस आत्मा के लिए किया गया, वहाँ पहुँच जाता है।
  • यदि वह आत्मा अभी कुत्ते, बिल्ली, या अन्य किसी योनि में है, तो भी वह पुण्य उसके उत्थान के लिए मिलता है—जैसे कोई गली का कुत्ता घर का बन सके, जीवन बेहतर हो सके।
  • ‘जिसका भी नाम लेकर श्राद्ध, जप या तर्पण किया, उसे संकल्पित पुण्य खोज लेता है, चाहे योनि कोई भी हो।’

सेवा, जप-तप और श्रद्धा की शक्ति

  • महाराज जी ने बताया, माता-पिता यदि शरीर में नहीं तो भी साधक उनके लिए जप, तप, पुन्य कर्म करके उनको उत्थान दे सकता है।
  • भगवान के नाम का जप करने से, किए गए पुण्य कर्म से, वे जहाँ भी हों, लाभ मिलता है।
  • यदि अधिक जप, अधिक भक्ति करें तो उस आत्मा को भगवत-प्राप्ति भी संभव है।

जीवन, भजन और परमात्मा की व्यापकता

  • महाराज जी कहते हैं — “यह संसार माया है, पर यह भी ब्रह्म का स्वरूप है। वह परमात्मा सर्वत्र है; जो कहीं नहीं है, वहाँ भी है।”
  • ‘कौन है अपना, कौन पराया?’– जब सबमें परमात्मा ही है, तो हर रिश्ते की सीमा टूट जाती है, हर संबंध दिव्य बन जाता है।
  • ‘जिधर देखूं, तित श्याममई’ – भक्ति सच्चे भाव से हो तो साधक को हर स्वरूप में ईश्वर दिखते हैं।
  • ‘पुतरी राममई हो गई तो जिधर देखो राम, श्याममई हो गई तो जिधर देखो श्याम’ – सृष्टि जैसी दृष्टि, वैसे अनुभव।
  • ‘हर दिशा गोपाल की, सब समय भगवान है, सभी में वही परमात्मा समाया’।

दुःख, वियोग और परम शांति

  • जीवन में वियोग, अकेलापन, स्मृतियाँ और कठिनाइयों के बीच— यदि यह समझ ले कि ‘वह’ हमेशा पास है, सर्वत्र है तो अवसाद विलीन होने लगता है।
  • महाराज जी के अनुसार, शांति का सार: “भागना मत, सब में वही स्नेही भगवान है।”

मन की भूमिका और त्याग का अर्थ

  • जब तक साधक की दृष्टि ‘माया’ (भ्रम, कर्तापन, इच्छा) में फँसी है तो संसार कठिन लगता है।
  • धीरे-धीरे साधना से जब दृष्टि ‘भगवत भाव’ में ढलती है, तब हर ओर अनुपम आनंद और भगवत दर्शन होने लगते हैं।

परमात्मा से कैसे जुड़ें?

  • साधना केवल एकांत में बैठकर करने का नाम नहीं: ‘हर क्षण, हर व्यक्ति, हर अनुभव में, परमात्मा को जानो।’
  • शरणागति, सेवा, दया, क्षमा, शुभ संकल्प—इन सबका पालन करते हुए जीवन प्रभु को समर्पित कर दो।
  • भागने की ज़रूरत नहीं, भीतर-ही-भीतर दृष्टि बदलनी है।

सरल उपदेश, व्यावहारिक संकेत

  • Shraddh, Tarpan, Bhajan, Naam-Jap — ये साधक और दिवंगत आत्मा, दोनों के उत्थान के साधन हैं।
  • मृत्यु के बाद भी आत्मा अमर है, उसका उध्दार श्रद्धा व कर्म से संभव है।
  • हर व्यक्ति, हर योनि में परमात्मा समाया है — ‘जिसका भी भजन करो, सेवा संकल्प करो, आनंद सबको, सभी जगह पहुंचेगा।’

निष्कर्ष

Premanand Maharaj Ji समझाते हैं कि जीवन, मृत्यु, और परमात्मा के बीच कोई दूरी नहीं—सब एक ही परिप्रेक्ष्य के विस्तार हैं। श्राद्ध तर्पण केवल एक यांत्रिक प्रक्रिया नहीं, आत्मिक ऊर्जा का संचार है जो हर जन्म, हर योनि में—सर्वत्र परमात्मा की उपस्थिति के बीच—व्याप्त होता है। सच्चे भजन, सेवा, और श्रेष्ठ कर्म से दिवंगत आत्माओं की उन्नति की जा सकती है, जो अंततः सम्पूर्ण सृष्टि में करुणा, ऊर्जा, और शांति का संचार करती है।

Bhajan Marg की यह शिक्षा—एकता, प्रेम और सर्वव्यापी परमात्मा के भाव से प्रेरणा देती है: “सृष्टि कैसी, जैसी दृष्टि। सच्ची दृष्टि भगवत भाव को पाकर, हर ओर आनंद और शांति का अनुभव कराती है।”


Important:

यह लेख आध्यात्मिक अनुभव, धार्मिक विश्वास और श्रीमद्भगवद्गीता जैसे शास्त्रों की व्याख्या पर आधारित है। यह जीवन की व्यावहारिकता में शांति, मार्गदर्शन और सकारात्मक दृष्टिकोण लाने के लिए लिखा गया है।


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Shraddh Tarpan and Rebirth Teachings of Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj


  1. https://www.youtube.com/watch?v=ykkJpEitdro

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