शुभंशु शुक्ला लखनऊ से स्पेस तक की पूरी जिन्दगी आपके बच्चे में जोश भर देगी

शुभंशु शुक्ला कि कहानी बहुत रोमांचक है, इसे पढ़कर आपमें जोश बरेगा और आप देश के लिए कुछ करेंगे.

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6/28/20251 मिनट पढ़ें

शुभांशु शुक्ला कौन हैं?

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला भारतीय वायु सेना के टेस्ट पायलट, एयरोस्पेस इंजीनियर और ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) के अंतरिक्ष यात्री हैं। जून 2025 में, वे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर जाने वाले पहले भारतीय बने और 1984 के बाद अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय (राकेश शर्मा के बाद) बने।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

शुभांशु शुक्ला का जन्म 10 अक्टूबर 1985 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। उनके पिता शंभू दयाल शुक्ला सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी हैं और माँ आशा शुक्ला गृहिणी हैं।
उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सिटी मॉन्टेसरी स्कूल, अलीगंज, लखनऊ से की। 1999 के कारगिल युद्ध से प्रेरित होकर, उन्होंने सैन्य करियर चुना और नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) की परीक्षा पास की। 2005 में उन्होंने कंप्यूटर साइंस में स्नातक डिग्री प्राप्त की।
इसके बाद, उन्होंने भारतीय वायु सेना अकादमी में उड़ान प्रशिक्षण लिया और जून 2006 में फाइटर पायलट के रूप में कमीशन प्राप्त किया। बाद में, उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc), बेंगलुरु से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री प्राप्त की।

सैन्य और अंतरिक्ष करियर

शुभांशु शुक्ला के पास लगभग 2,000 घंटे की उड़ान का अनुभव है, जिसमें उन्होंने Su-30 MKI, MiG-21, MiG-29, Jaguar, Hawk, Dornier, An-32 जैसे कई विमानों को उड़ाया है23
2019 में उन्हें गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन के लिए चार अंतरिक्ष यात्री नामांकितों में चुना गया।
2020 में उन्होंने रूस के यूरी गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में कठोर प्रशिक्षण प्राप्त किया, फिर ISRO के बेंगलुरु स्थित ट्रेनिंग सेंटर में उन्नत प्रशिक्षण लिया। मार्च 2024 में उन्हें ग्रुप कैप्टन पद पर पदोन्नत किया गया।

ऐक्सिओम मिशन 4 (Ax-4) और ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा

शुभांशु शुक्ला को नासा, स्पेसएक्स, ISRO और ऐक्सिओम स्पेस के सहयोग से चलने वाले ऐक्सिओम मिशन 4 के लिए मिशन पायलट चुना गया1। यह मिशन 25 जून 2025 को फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च हुआ और अगले दिन ISS से जुड़ा।
शुक्ला अंतरिक्ष में जाने वाले 634वें अंतरिक्ष यात्री बने और पहले भारतीय बने जिन्होंने ISS में प्रवेश किया34
मिशन के दौरान, उन्होंने वैज्ञानिक प्रयोग किए और भारत का प्रतिनिधित्व किया। उनका पहला संदेश हिंदी में था, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय गौरव और भारत के बढ़ते अंतरिक्ष सफर की प्रेरणा साझा की।

"नमस्कार, मेरे प्यारे देशवासियों! क्या सवारी थी! हम 41 साल बाद फिर से अंतरिक्ष में हैं... मेरे कंधे पर अंकित तिरंगा मुझे बताता है कि मैं आप सभी के साथ हूं। यह यात्रा... सिर्फ अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की नहीं, बल्कि भारत के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत है। जय हिंद! जय भारत!"
— शुभांशु शुक्ला, अंतरिक्ष से

व्यक्तिगत जीवन

शुभांशु शुक्ला की पत्नी कामना, पेशे से डेंटिस्ट हैं और उनकी बचपन की मित्र भी हैं। उनका एक बेटा है। शुक्ला अपने अनुशासन, शांत स्वभाव, नॉन-फिक्शन पढ़ने के शौक, फिटनेस और मजबूत इच्छाशक्ति के लिए जाने जाते हैं।

विरासत और प्रभाव

शुक्ला का मिशन भारत के अंतरिक्ष सफर में मील का पत्थर माना जा रहा है, जिससे गगनयान मिशन और भविष्य की पीढ़ियों को विज्ञान, तकनीक और अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए प्रेरणा मिली है। उनकी उपलब्धि को देशभर में सराहा गया है।

शुभांशु शुक्ला की यात्रा लखनऊ से ISS तक भारत की बढ़ती अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का प्रतीक है.

  • परिवार और बचपन:
    शुभांशु का बचपन लखनऊ के त्रिवेणी नगर में बीता। उनके पिता शंभू दयाल शुक्ला एक साधारण परिवार से थे और चाहते थे कि उनका बेटा सिविल सेवा में जाए, लेकिन शुभांशु का झुकाव शुरू से ही कुछ अलग करने की ओर था। उनकी मां आशा शुक्ला के अनुसार, वे बचपन से ही मेहनती और संतोषी स्वभाव के थे।

  • शिक्षा:
    शुभांशु ने अपनी शुरुआती पढ़ाई लखनऊ के सिटी मॉन्टेसरी स्कूल (CMS), अलीगंज ब्रांच से की। स्कूल में वे एक औसत लेकिन मेहनती छात्र थे और बचपन से ही अनुशासन और मेहनत की आदत डाली।

  • प्रेरणा और करियर की शुरुआत:
    परिवार को लगता था कि वे भविष्य में वायुसेना में कोई बड़ा अधिकारी बनेंगे, लेकिन उन्होंने खुद अपने दम पर 16 साल की उम्र में NDA (नेशनल डिफेंस एकेडमी) की परीक्षा पास की। एनडीए में चयन की खबर भी परिवार को उनके दोस्त से मिली थी। इसके बाद शुभांशु ने NDA में ट्रेनिंग ली और भारतीय वायुसेना में फाइटर पायलट के रूप में कमीशन प्राप्त किया।

  • व्यक्तित्व:
    शुभांशु बचपन से ही शांत, मेहनती और आत्मनिर्भर रहे हैं। वे अपनी योजनाएं अक्सर परिवार से छुपाकर रखते थे और हमेशा अपने लक्ष्य की ओर मेहनत से बढ़ते रहे.

  • उन्होंने सिटी मॉन्टेसरी स्कूल, अलीगंज, लखनऊ से पढ़ाई की। 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने NDA (नेशनल डिफेंस एकेडमी) की परीक्षा अपने दम पर पास की और सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह उनके जीवन का पहला बड़ा मोड़ था, जिसने उन्हें भारतीय वायुसेना में प्रवेश दिलाया।

    भारतीय वायुसेना में उत्कृष्टता:
    2006 में वे फाइटर पायलट के रूप में भारतीय वायुसेना में कमीशन हुए। उन्होंने Su-30 MKI, MiG-21, MiG-29, Jaguar, Hawk, Dornier, An-32 जैसे विमानों पर 2,000 घंटे से अधिक उड़ान का अनुभव प्राप्त किया। उनकी सटीकता, नेतृत्व क्षमता और तकनीकी दक्षता ने उन्हें टेस्ट पायलट और ग्रुप कैप्टन के पद तक पहुँचाया342

    उच्च शिक्षा और तकनीकी विशेषज्ञता:
    उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स किया, जिससे उन्हें तकनीकी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी मजबूती मिली34

    अंतरिक्ष यात्री चयन और कठोर प्रशिक्षण:
    2019 में, उन्हें ISRO के मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम (गगनयान मिशन) के लिए चार चुने गए अंतरिक्ष यात्रियों में शामिल किया गया। इसके बाद उन्होंने रूस के यूरी गगारिन कोस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में एक साल तक कठोर प्रशिक्षण लिया, फिर ISRO के बेंगलुरु केंद्र में मिशन-विशिष्ट ट्रेनिंग पूरी की।

    . ऐक्सिओम मिशन 4 (Ax-4) के लिए चयन:
    2024 में ISRO और भारत सरकार ने उन्हें Axiom Mission 4 (Ax-4) के मिशन पायलट के रूप में नामित किया। यह मिशन NASA, SpaceX और ISRO के सहयोग से हुआ, जिसमें शुभांशु शुक्ला ने 2025 में ISS (अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन) तक सफल यात्रा की और भारत के पहले ऐसे अंतरिक्ष यात्री बने।

    अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व:
    Ax-4 मिशन के दौरान उन्होंने न केवल वैज्ञानिक प्रयोग किए, बल्कि भारत की ओर से अंतरराष्ट्रीय सहयोग और नेतृत्व का भी परिचय दिया। उनकी यह उपलब्धि भारत के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए ऐतिहासिक साबित हुई।

    सारांश:
    शुभांशु शुक्ला के जीवन में प्रेरणादायक बचपन, NDA में चयन, वायुसेना में उत्कृष्टता, तकनीकी शिक्षा, अंतरिक्ष यात्री चयन के लिए कठोर प्रशिक्षण और अंततः ऐक्सिओम मिशन 4 में भारत का प्रतिनिधित्व—ये सभी महत्वपूर्ण मोड़ हैं जिन्होंने उन्हें अंतरिक्ष यात्री बनने के मुकाम तक पहुँचाया