जब भक्त पर एक महिला ने लगाया आरोप और कटवा दिए हाथ || जगन्नाथ जी का प्रेम | सदन कसाई जी की अद्भुत कथा (EN)

सदन कसाई और शालिग्राम की कथा: संपूर्ण विवरण

सदन जी की पृष्ठभूमि और भक्ति

सदन जी का जन्म कसाई परिवार में हुआ था। वे जीविका के लिए मांस बेचते थे, लेकिन उनके मन में गहन भक्ति थी। वे हरिकीर्तन, नाम जप और प्रभु के गुणगान में तल्लीन रहते थे। एक बार घर में रिश्तेदार आये, पिता एक छोटा बछड़ा लाये, क्योंकि वहां तो कटते ही रहते थे. पिता ने कहा, इसके ज्यादा मांस नहीं है, लेकिन पैरो में मांस है. सदन जी बछड़े के गले में लिपट गए और पिता की बात बताई. बछड़ा रोने लगा. सदन जी को एहसास हुआ कि जीव को भी कष्ट का पता होता है. बछड़े ने सदन जी को कहा कि अपने पिता को कहना कि सबसे पहले उसका गला काटे, क्योंकि जब वह मनुष्य था और तुम्हारे पिता पशु ठी, मैंने उनकी गर्दन उड़ाई थी. इस घटना से सदन जी को समझ आ गया कि जिव को अपने पूर्व कर्म का फल भुगतना पड़ता है. संत की टोली वहां से जा रही थी, वह संतों के सामने लोट गए, उन्होंने पुछा कि जीव् को हर कर्म का फल भोगना पड़ता है. उन्होंने सवाल किया कि क्या ऐसा कोई साधन है जिससे कर्म का फल भोगना ना पड़े और जीव मुक्त हो जाए. संतों ने कहा, निरंतर नाम जाप करो और स्वंय किसी को कष्ट ना दे और संतो का संग करे, तो जीवन मुक्त हो जायेगा. बस छोटे से बालक सदन जी के मन में यह बात बैठ गई. बस अन्दर से वह श्री हरी श्री हरी करते थे पिता जी जब तक रहे उन्होंने जीव का वध किया, लेकिन सदन जी ने कभी किसी का वध नहीं किया. पिता जी के बाद वह स्वयं पशु नहीं मारते थे, बल्कि दूसरों से मांस खरीदकर बेचकर पोषण करते थे.

शालिग्राम का मिलना और मांस तौलना

एक दिन उन्हें शालीग्राम मिले. वह मांस तौलने के लिए जिस पत्थर का उपयोग करते थे, वह कोई साधारण पत्थर नहीं, बल्कि स्वयं भगवान शालिग्राम थे। सदन जी को इस बात का ज्ञान नहीं था। वे शालिग्राम से ही मांस तौलते रहते, और उसी समय उनकी आंखों से आंसू बहते, वे प्रभु का नाम जपते रहते।

संत का आगमन और शालिग्राम का स्थानांतरण

एक दिन एक संत सदन जी की दुकान के सामने से गुजरे। उन्होंने देखा कि तराजू के पलड़े पर शालिग्राम रखा है। संत को क्रोध आया और उन्होंने सदन जी से शालिग्राम मांग लिया। सदन जी ने क्षमा मांगते हुए शालिग्राम संत को दे दिया। संत ने विधिपूर्वक शालिग्राम की पूजा शुरू की, उन्हें स्नान कराया, भोग लगाया, और सिंहासन पर विराजमान किया।

भगवान का प्रकट होना और संत को निर्देश

रात को भगवान शालिग्राम ने संत को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा—

“हमें सदन कसाई के पास वापस ले जाओ। जब वह तराजू पर तौलते हैं और कीर्तन करते हैं, हमें उसमें आनंद आता है। उनका प्रेम निष्कलंक है, हमें वही रहना है।”

भगवान ने स्पष्ट किया कि उन्हें विधि-विधान या भोग की आवश्यकता नहीं, वे केवल सच्चे प्रेम के भूखे हैं, जो सदन जी से उन्हें मिलता था।

शालिग्राम की वापसी और सदन जी का पश्चाताप

संत ने प्रातःकाल शालिग्राम सदन जी को लौटा दिए और पूरी घटना सुनाई। सदन जी को गहरा पश्चाताप हुआ कि वे अनजाने में भगवान को अपवित्र स्थान पर रखते रहे। संत ने समझाया कि भगवान को केवल प्रेम चाहिए, न कि बाहरी शुद्धता या विधि-विधान।

सदन जी का घर त्यागना और भ्रमण

भगवान के प्रति प्रेम और पश्चाताप में सदन जी ने अपना घर-बार, व्यवसाय सब त्याग दिया और संत जीवन अपना लिया। वे भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पुरी की यात्रा पर निकल पड़े। समाज में कसाई होने के कारण उन्हें जगन्नाथ पुरी के तीर्थयात्रियों के समूह से अलग कर दिया गया3

एक महिला के घर भोजन माँगना और घटना

यात्रा के दौरान वे एक गाँव में एक महिला के घर भोजन माँगने गए। महिला ने सदन जी को देखकर आकर्षित भाव से भोजन के लिए आमंत्रित किया। सदन जी ने उसकी श्रद्धा देखकर उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया, जो संतों के नियम के विरुद्ध था (संत को घर के अंदर नहीं जाना चाहिए)4

रात में महिला ने सदन जी के प्रति कामभावना प्रकट की। सदन जी ने उसे समझाया कि उसका पति जीवित है, ऐसे विचार अनुचित हैं। महिला ने इस बात का अर्थ निकाला कि यदि पति न रहे तो उसकी इच्छा पूरी हो सकती है, और उसने अपने पति की हत्या कर दी।

झूठा आरोप, दंड और चमत्कार

महिला ने गाँववालों को बुलाकर झूठा आरोप लगाया कि सदन जी ने उसके पति की हत्या कर उसके साथ दुष्कर्म का प्रयास किया। गाँववालों ने सदन जी को पीटा और राजा के सामने पेश किया। राजा ने दंडस्वरूप उनके दोनों हाथ कटवा दिए।

सदन जी ने इसे भी प्रभु की लीला मानकर स्वीकार किया और पुरी की ओर बढ़ गए। जब वे भगवान जगन्नाथ के मंदिर पहुँचे, तो प्रणाम करने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाए, उनके कटे हुए हाथ पुनः प्रकट हो गए। उनका शरीर स्वस्थ, तेजस्वी और दिव्य हो गया।

भगवान जगन्नाथ का संवाद

रात में भगवान जगन्नाथ ने सदन जी को स्वप्न में दर्शन दिए और पूछा—“क्या तुम मुझसे नाराज हो कि मैंने तुम्हें बिना अपराध के दंड दिलवाया?” सदन जी ने उत्तर दिया—“प्रभु, आपकी हर लीला में मुझे केवल प्रेम ही दिखता है। आपके हर कार्य में आपकी कृपा है।”

भगवान ने बताया कि यह सब पिछले जन्म के कर्मों का परिणाम था, जिससे सदन जी का शुद्धिकरण हुआ3

कथा का सार

  • सदन जी कसाई थे, लेकिन सच्चे भक्त थे।

  • शालिग्राम से मांस तौलते थे, अज्ञानी थे कि वह भगवान हैं।

  • संत ने शालिग्राम ले जाकर पूजा की, लेकिन भगवान ने स्वप्न में कहा—मुझे सदन के पास वापस ले जाओ।

  • सदन जी को पश्चाताप हुआ, उन्होंने घर छोड़ दिया।

  • भ्रमण के दौरान एक महिला के घर भोजन माँगा, महिला ने झूठा आरोप लगाया।

  • राजा ने दोनों हाथ कटवा दिए।

  • भगवान जगन्नाथ के मंदिर में हाथ पुनः प्रकट हो गए।

  • भगवान ने स्वप्न में दर्शन देकर पूरी लीला का रहस्य बताया।

संदेश

इस कथा का मुख्य संदेश है—भगवान को बाहरी शुद्धता, विधि-विधान या जाति-पाति की परवाह नहीं, वे केवल निष्कलंक प्रेम के भूखे हैं। सच्ची भक्ति और समर्पण से भगवान स्वयं प्रकट होते हैं, चाहे भक्त किसी भी स्थिति या जाति में क्यों न हो1342

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