हमारे अच्छे व्यवहार के बाद भी रिश्तों में समस्या क्यों आ जाती है? Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj (EN)

प्रश्न- महाराज जी, हमारे अच्छे व्यवहार के बावजूद हमें कुछ लोगों के साथ समस्या आने लगती है, ऐसा क्यों होता है?

महाराज जी का उत्तर- 

पूर्व का पापकर्म दे रहा है क्लेश 

हमारा कोई पूर्व का जो पाप कर्म है, वह हमको क्लेश दे रहा है।
जैसे कभी-कभी होता है कि हम आपके साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं, लेकिन आप हमारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते, तो वो हमारा कर्म आपकी बुद्धि में बैठ के हमको कष्ट देगा।
तो हमें चुपचाप भोग लेना चाहिए, क्योंकि हमने अच्छा कर्म किया है, हमने बुरा किया नहीं।

गलत व्यवहार करने वाला बेचारा है 

सामने वाला हमारे साथ जो बर्ताव नहीं करना चाहिए, वह कर रहा है, तो वह बेचारा है।
हमारा कर्म उसकी बुद्धि में बैठकर के हमको कष्ट दिलाना चाहता है।दुःख देने वाले व्यक्ति पर हमारा कर्म सवार शास्त्री, शास्त्री ज्ञान, अध्यात्म विद्या, अध्यात्म विद्या ऐसा कहती है—
‘को न काऊ के सुख दुख कर दाता, निज कृत कर्म भोग सुन भ्राता।’
कोई किसी के सुख-दुख देने वाला नहीं, हमारा कर्म ही हमको सुख और दुख देता है।

चुपचाप सहन करे 

तो यह मानकर कि इस व्यक्ति के सिर पर अब इस समय हमारा कर्म सवार है, जो हमको दुख देगा,इसलिए चुपचाप सहन कर लेना चाहिए।

एक अन्य प्रश्न 

महाराज जी, राहुल सिंह का प्रश्न है—
प्रश्न है कि यह कह रहे हैं, कि हम किसी से निस्वार्थ भाव से किसी की सेवा किया, परंतु काम नहीं हो पाया किसी उससे, तो सामने वाला व्यक्ति हमें गलत मान लेता। तो ऐसे में महाराज जी, फिर लोग भी भड़काते हैं उसे, और उस उससे वार्तालाप करके उसे समझाना चाहिए या राधा रानी पे छोड़ देना चाहिए?
राधा रानी पे छोड़ दो।

महाराज जी का उत्तर 
एक बार तो समझाना चाहिए, एक बार समझाना चाहिए, अपनी बात प्रस्तुत कर देनी चाहिए,
फिर राधा रानी पे छोड़ दो।

ठीक हो तो कोई बाल बांका नहीं कर सकता 
और अगर आप निष्काम हो, सत्य मार्ग से चल रहे हो, तो आपको कोई बाल बांका नहीं कर सकता। यह भी बात समझो, आपको कोई नीचा नहीं दिखा सकता। वो नीचा दिखाने आने का प्रयास होगा, लेकिन आपको नीचा नहीं दिखा देगा।
यदि आप निष्काम भाव से, सत्य भाव में चल रहे हो, तो फिर परास्त नहीं हो सकते। आप संकट में आ सकते हैं,

प्रश्नकर्ता – लोग  भड़काते रहते हैं, तो चीजें रुक जाती हैं, जो अच्छा कार्य कर रहे हैं वो भी रुक जाती हैं।

महाराज जी का उत्तर 
हाँ, अपनी पेशगी कर देनी चाहिए, अपनी सफाई एक बार पेश कर देना चाहिए,
इसके बाद भगवान पे छोड़ देना चाहिए।”

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Source:

[Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj, Bhajan Marg, 27-06-2025, 02:35–04:40]

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