
प्रश्न:”महाराज जी, श्री रामचरितमानस में लिखा है कि जब शत्रूपा जी और मनु जी ने तपस्या की थी, तो ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों आए थे। मनु जी ने पूछा कि आप तीनों में से बड़ी कोई सत्ता नहीं है जो आप तीनों को चलाती हो? तो क्या वह परम शक्ति प्रभु राम जी थे?”उत्तर (श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज):
“हाँ, भगवान के एक अंश से ही त्रिगुणात्मक भगवान का स्वरूप प्रकट हुआ है, जो त्रिगुणात्मक माया का संचालन करने के लिए रजोगुण ब्रह्मा, सतोगुण विष्णु, तमोगुण भगवान शिव – ये तीन गुणों का विकास हुआ। रजोगुण सृजन, सतोगुण पालन, तमोगुण विनाश। लेकिन इन तीनों से परे जो अवतारी हैं, जो सबके अंशी हैं, वही भगवान श्री राम हैं, वही भगवान श्री कृष्ण हैं। ये अंश रूप में तीनों देवता अपना-अपना कार्य करते हैं – ब्रह्मा, विष्णु और महेश। जब उन्होंने (शत्रूपा जी और मनु जी ) इनको स्वीकार नहीं किया, इनसे कोई वरदान नहीं चाहा, जब भगवान प्रकट हुए, तब (शत्रूपा जी और मनु जी ने) कहा – ‘मैं आप जैसा पुत्र चाहता हूँ।’ तो कहा – ‘मेरे जैसा तो मैं ही हूँ।’ भगवान ने उत्तर भी दिया कि ‘मेरे जैसा तो सिर्फ मैं हूँ, तो मैं ही तुम्हारा पुत्र बनकर प्रकट होऊँगा।’तो वही अरूप, वही निराकार, विप्रधेनु, सुर, संत हित लीन मनुज अवतार – वही निराकार आकार धारण करता है, वही अरूप रूप धारण करता है, और बाल स्वरूप होकर के कौशल्या जी की गोद में, जो समस्त सृजनकर्ताओं का सृजन करता है, वो प्रभु है, वो सच्चिदानंद भगवान राम, वो सच्चिदानंद भगवान श्री कृष्ण हैं।”









