Office में लोग बहुत परेशान करते हैं अब सहन नहीं होता क्या करूँ ?

प्रस्तावना: आधुनिक ऑफिस जीवन और आंतरिक संघर्ष

आज के दौर में सरकारी या निजी दफ्तरों में काम करने वाला व्यक्ति सिर्फ फाइलों और प्रोजेक्ट्स से नहीं जूझ रहा, बल्कि रिश्तों, राजनीति, ईगो, आलोचना, उपहास और कई प्रकार के मानसिक दबावों से भी जूझ रहा है। अक्सर ऐसा होता है कि इंसान अपने काम में ईमानदार होते हुए भी आसपास के माहौल से इतना आहत हो जाता है कि उसे लगता है अब और सहन नहीं होता, अब क्या करूँ।youtube​

इसी तरह की एक साधक बहन का प्रश्न है कि वह केंद्र सरकार के एक विभाग में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं, और कार्यस्थल पर अपमान, अवहेलना, तिरस्कार, निंदा और उपहास की स्थितियों से गुजरते-गुजरते थक चुकी हैं। वे भजन मार्ग से जुड़ी हैं, जीवन का सही उद्देश्य समझ चुकी हैं, परन्तु ऑफिस की विषम परिस्थितियाँ उन्हें भीतर से तोड़ने लगती हैं, और यही द्वंद्व इस प्रवचन का मूल विषय बन जाता है।youtube​

कर्तव्य-पालन: सच्चाई के साथ उत्साहपूर्वक काम

महाराज जी का पहला और सबसे मूल संदेश है – “खूब उत्साहपूर्वक काम करो, गलत मत बनो।” उनका स्पष्ट कहना है कि जब भगवान ने तुम्हें कोई पद, कोई जिम्मेदारी दी है, तो उस पद के अनुरूप अपने काम को शुद्ध, त्रुटिहीन और ईमानदारी से निभाना ही पहला धर्म है।youtube​

वे यह बतलाते हैं कि:

  • आपके कार्यक्षेत्र में किसी भी प्रकार की गलती, लापरवाही या भ्रष्ट आचरण की जगह नहीं होनी चाहिए।youtube​
  • किसी भय, लालच या प्रलोभन के कारण हमें गलत काम का सहयोग नहीं करना चाहिए।youtube​
  • चाहे आपका विभाग कोई भी हो, आपको अपने हिस्से के काम को पवित्र भाव से, निष्ठा और पूर्णता के साथ करना है।youtube​

जब इंसान अंदर से साफ होता है, कर्म के स्तर पर ईमानदार होता है, तब बाहरी निंदा या उपहास का असर धीरे-धीरे कम होने लगता है, क्योंकि उसे भीतर से विश्वास रहता है कि “मैं गलत नहीं हूँ।” यदि गलती हो जाए तो सुधार लेना चाहिए, लेकिन अगर गलती नहीं है, तो दूसरों की बातों में आकर खुद को ही दोषी महसूस करते रहना उचित नहीं।youtube​

अपमान, निंदा और उपहास को कैसे देखें

प्रश्नकर्ता का सबसे बड़ा दर्द यही है कि:

  • ऑफिस में अपमान होता है।
  • अवहेलना और तिरस्कार मिलता है।
  • वार्तालाप में उपहास, आलोचना और निंदा का सामना करना पड़ता है।youtube​

ऐसे में महाराज जी कहते हैं कि:

  • यदि आप गलत नहीं हैं, तो आपको लोगों की गालियों, उपहास या निंदा की परवाह नहीं करनी चाहिए।youtube​
  • आपको “मस्त” रहना सीखना होगा – यानी अपना मन भगवान में, अपने कर्तव्य में और अपनी साधना में टिकाकर चलना।youtube​

वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि:

  • यदि आपसे वास्तव में कोई गलती हुई है, तो उसे स्वीकार कर सुधार लें।youtube​
  • परंतु अगर आप सही हैं, तो बार-बार लोगों की बातों को दिल पर लेकर रोते रहना, खुद को तोड़ना, यह अपने ही मन के साथ अन्याय है।youtube​

यहाँ एक गहरा आध्यात्मिक संदेश है – बाहर की परिस्थितियों से अधिक महत्व इस बात को है कि “मैं भीतर से कैसा हूँ, मेरा लक्ष्य क्या है और मैं भगवान के सामने कितना सत्यनिष्ठ हूँ।”youtube​

सहनशीलता और नाम जप: आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत

जब प्रश्नकर्ता कहती हैं कि “कभी-कभी सहन नहीं हो पाता,” तब महाराज जी उपाय बताते हैं – “नाम जप करो, इससे सहनशीलता बढ़ेगी।” यह बात केवल धार्मिक उपदेश नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत गहरी है।youtube​

वे समझाते हैं कि:

  • सच्चा भक्त वही है जो सब कुछ सहन कर सके।youtube​
  • नाम-जप (जैसे राधा नाम, भगवान के किसी भी प्रिय नाम का स्मरण) से भीतर एक ऐसी शक्ति उत्पन्न होती है जो परिस्थितियों को नहीं, बल्कि उन परिस्थितियों को झेलने की हमारी क्षमता को बदल देती है।youtube​

यहाँ सहनशीलता का अर्थ सिर्फ अंदर-अंदर घुटते रहना नहीं है। महाराज जी स्पष्ट करते हैं कि:youtube​

  • यदि भीतर विवेक है, तो वही विवेक अंदर जमा हुए विषाद और नकारात्मकता को काट देगा।youtube​
  • सिर्फ दबाते रहना, बिना समझ के सहते रहना, यह भी उचित नहीं क्योंकि इससे व्यक्ति डिप्रेशन में जा सकता है।youtube​

लेकिन वे कहते हैं कि सच्चा भजन करने वाला व्यक्ति डिप्रेशन में नहीं जाता, क्योंकि भगवान का नाम ठीक वैसे है जैसे जलती आग पर डाला गया ठंडा जल – वह मन की गर्मी, क्रोध और अशांति को शांत कर देता है।youtube​

सहनशीलता का सही अर्थ: दबाव नहीं, जागा हुआ विवेक

एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है – “सहनशीलता की परिभाषा क्या है? क्या सिर्फ अंदर-ही-अंदर सहते रहना ही सहनशीलता है?” महाराज जी कहते हैं – नहीं। यदि भीतर विवेक जाग्रत है, तो वह स्थिति को सही ढंग से समझकर निर्णय लेने की क्षमता देता है और एक क्षण में आपकी भ्रमित भावनाओं को काट सकता है।youtube​

वे समझाते हैं:

  • केवल दबाव में आकर सहते-सहते व्यक्ति टूट जाए, डिप्रेशन में चला जाए, यह आध्यात्मिक सहनशीलता नहीं है।youtube​
  • सहनशीलता का अर्थ है – भगवान के नाम से, सत्संग से, विवेक से भीतर इतनी मजबूती आ जाना कि वही परिस्थितियाँ अब आपको अन्दर से तोड़ न सकें।youtube​

जब नाम-जप निरंतर चलता है, तो वह बुद्धि को शांत करता है, मन में स्पष्टता लाता है और अहंकार को धीरे-धीरे भगवान के चरणों में समर्पित कर देता है। तब निंदा, अपमान या तिरस्कार पहले जितना चोट नहीं पहुंचाते, क्योंकि भीतर की “मैं-भाव” ढीली पड़ने लगती है।youtube​

“कब तक सहन करें?” – जीवन भर की साधना

बहुत स्वाभाविक प्रश्न उभरता है – “आखिर कब तक सहन करें?” महाराज जी का उत्तर कठोर भी है और करुणामय भी – “हमें बराबर जीवन भर सहन करना पड़ेगा; जो सहन कर गया वही महात्मा, जो टूट गया वही संसारी।”youtube​

इसका अर्थ यह नहीं कि अन्याय स्वीकार ही करना है, बल्कि:

  • संसार में हर स्थान पर माया, स्वार्थ, ईर्ष्या, आलोचना, गलतफहमी, प्रतियोगिता बनी रहेगी। इनसे भागकर कहीं शांति नहीं मिलेगी।youtube​
  • महात्मा वह है जो इन्हीं परिस्थितियों में अपने मन को भगवान से जोड़े रखता है, कर्तव्य निष्ठा नहीं छोड़ता और फिर भी हृदय में करुणा और प्रसन्नता को बचाए रखता है।youtube​

जो व्यक्ति हर चोट पर टूट जाता है, मन खट्टा कर लेता है, द्वेष भर लेता है, वह सांसारिक भाव में अटक जाता है। जो व्यक्ति चोट खाकर भी प्रेम, भक्ति, लक्ष्य और सकारात्मक कर्म को नहीं छोड़ता, वही धीरे-धीरे “महात्मा” के मार्ग की ओर बढ़ता है।youtube​

परिस्थिति बदलने की मांग या हृदय की परिपक्वता?

एक और गहरा आध्यात्मिक बिंदु महाराज जी रखते हैं – “क्या परिस्थिति बदलने के लिए भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए?” उनका उत्तर है कि:youtube​

  • भगवान ने परिस्थिति हमारे हृदय को परिपक्व करने के लिए बनाई है।youtube​
  • जो स्थिति अभी हमें मिली है, वह हमारे आंतरिक विकास, हमारे आध्यात्मिक परिपक्वता और हमारे विवेक को मजबूत करने का साधन है।youtube​

इसलिए:

  • बार-बार परिस्थिति बदलने की मांग करना, भागने की मानसिकता को बढ़ा सकता है।youtube​
  • उसकी बजाय भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि “हे प्रभु, मुझे इस परिस्थिति का सामना करने की शक्ति दो, मुझे डटकर खड़े रहने का साहस दो, मेरी विवेक शक्ति बढ़ाओ।”youtube​

वे बताते हैं कि भगवान बहुत सोच-समझकर ही हमें किसी वातावरण, कार्यालय, परिवार या रिश्तों के बीच रखते हैं। उस व्यवस्था के पीछे कोई न कोई दिव्य योजना होती है – हमारे भीतर से दुर्बलता निकालकर शक्ति उत्पन्न करना, अहंकार तोड़ना, करुणा, विनम्रता और सहनशीलता को जगाना।youtube​

जब सहनशीलता बढ़ती है तो “बुरा लगना” खत्म हो जाता है

महाराज जी कहते हैं कि जब व्यक्ति वास्तव में सहनशील बन जाता है, तो उसे अपमान, ताना, कटाक्ष – ये सब “बुरा लगना” ही बंद हो जाता है। शुरू में व्यक्ति पूछता है – “कब तक सहन करूँ?” लेकिन जब सच्चा भजन और नाम-जप बढ़ता है, तो स्थिति उलट जाती है – उसे “सहन करना” नहीं पड़ता, क्योंकि भीतर ही भीतर चोट लगना बंद हो जाती है।youtube​

वे बताते हैं:

  • बुरा तब तक लगता है, जब तक अहंकार है।youtube​
  • जैसे ही अहंकार भगवान के चरणों में समर्पित होने लगता है, निंदा सुनकर भी भीतर हंसी आ सकती है, क्योंकि मन समझने लगता है कि सामने वाला अज्ञान या अपनी माया में उलझा हुआ है।youtube​

महाराज जी एक सरल उदाहरण देते हैं – यदि कोई पागल व्यक्ति गलत शब्द बोल दे, तो सामान्य व्यक्ति को भीतर से दुख नहीं होता, क्योंकि उसे पता है कि वह स्वस्थ विवेक में नहीं है। वैसे ही, जो लोग माया, अहंकार, ईर्ष्या या अज्ञान से प्रेरित होकर दूसरों का अपमान करते हैं, उन्हें भी मन में “बीमार” समझकर छोड़ देना चाहिए। मुस्कुराकर आगे बढ़ जाना चाहिए, न कि उनके शब्दों को अपने हृदय में गहरे उतार लेना चाहिए।youtube​

ऑफिस में भजन कैसे संभव है?

एक व्यावहारिक प्रश्न यह है कि “दिन का अधिकतर समय तो कार्यालय में ही बीतता है, तो भजन कैसे हो?” अक्सर साधक सोचते हैं कि भजन का मतलब केवल माला लेकर शांत कमरे में बैठना है। महाराज जी इस भ्रम को दूर करते हुए कहते हैं कि अभ्यास से भजन और नौकरी दोनों साथ चल सकते हैं।youtube​

वे सुझाते हैं:

  • कार्यालय में भी, जब आप बाहरी रूप से काम कर रहे हों, भीतर-ही-भीतर “राधा राधा” या प्रभु का नाम स्मरण किया जा सकता है, विशेषकर जब कार्य ऑटोमैटिक या कम ध्यान वाला हो।youtube​
  • जब थोड़ा खाली समय मिले, बैठकों के बीच, यात्रा के समय, लंच के बाद का शांत समय – इन क्षणों को नाम-जप से जोड़ने का अभ्यास करें।youtube​

सबसे महत्त्वपूर्ण बात वे यह बताते हैं कि पहले मन में स्पष्ट लक्ष्य बनाइए – “मेरा जीवन-लक्ष्य भजन है।” यदि लक्ष्य स्पष्ट नहीं होगा, तो:youtube​

  • व्यक्ति एकांत में बैठकर भी माला घुमाएगा, लेकिन दिमाग संसार और प्रपंच में घूमता रहेगा।youtube​
  • माला अंगुली में घूमेगी, परंतु मन ऑफिस की राजनीति, परिवार की चिंताओं या भविष्य की योजनाओं में खोया रहेगा।youtube​

लेकिन यदि लक्ष्य स्पष्ट हो जाए कि “मुझे भजन करना ही है,” तब:

  • प्रपंच (दुनिया) के बीच रहते हुए भी मन श्रीजी (भगवान/राधा-कृष्ण) में लगना शुरू हो जाता है।youtube​
  • परिस्थितियाँ वही रहती हैं, परंतु भीतर की दिशा बदल जाती है – प्रतिक्रियाएँ बदल जाती हैं, चोट से सीख बनने लगती है।youtube​

काम को भगवान को समर्पित करना: सेवा और सुमिरन का संगम

महाराज जी एक अत्यंत सुंदर साधना-बिंदु बताते हैं – “यदि आप लैपटॉप पर काम कर रहे हैं या किसी ऑफिस कार्य में लगे हैं, तो उस कार्य को भगवान को समर्पित कर दो।” इसका अर्थ है कि:youtube​

  • अपने ऑफिस का काम केवल वेतन कमाने का साधन न समझकर, भगवान की सेवा के रूप में देखने का अभ्यास शुरू करें।youtube​
  • “हे प्रभु, यह फाइल, यह रिपोर्ट, यह मेल, यह मीटिंग – सब आप को समर्पित सेवा है; मैं इसे आपकी प्रसन्नता के लिए ठीक से करूँ” – ऐसा भाव मन में लाएँ।youtube​

शेष समय में, जब प्रत्यक्ष कार्य न हो या मन थोड़ा खाली हो, नाम-जप (जैसे “राधा राधा”) करते रहें। इस प्रकार:youtube​

  • सुमिरन (नाम-जप, स्मरण) और सेवा (कर्तव्य, नौकरी, परिवार की जिम्मेदारियाँ) दोनों के संयुक्त प्रभाव से “भगवत मार्ग” प्रकाशित और पुष्ट होता है।youtube​
  • फिर ऑफिस भी साधना-भूमि बन सकता है, और कठिन सहकर्मी भी आपकी सहनशीलता और भजन को मजबूत करने वाले “अदृश्य गुरु” बन जाते हैं।youtube​

निष्कर्ष: व्यावहारिक जीवन में भजन मार्ग की सार्थकता

इस पूरे प्रवचन का मूल सार यह है कि:

  • संसार से भागकर नहीं, बल्कि संसार के बीच रहते हुए भजन करना ही सच्चा मार्ग है।youtube​
  • ऑफिस की चुनौतियाँ, अपमान, निंदा और तिरस्कार – ये सब हमारे भीतर के अहंकार, कमजोरी और अधूरी भक्ति को उजागर कर, उसे परिपक्व बनाने में मदद करते हैं।youtube​

यदि आप भी ऐसी ही स्थितियों से गुजर रहे हैं, तो:

  • अपने काम को ईमानदारी से, पूरी निष्ठा और पवित्रता के साथ करें।youtube​
  • अनावश्यक निंदा, उपहास और अपमान को जितना हो सके, हंसी और करुणा के साथ छोड़ते जाएँ।youtube​
  • निरंतर नाम-जप और सत्संग से विवेक और सहनशीलता बढ़ाते रहें, ताकि “कब तक सहन करूँ” वाला प्रश्न धीरे-धीरे “अब तो बुरा लगना ही बंद हो गया” में बदल जाए।youtube​

इस प्रकार, भजन मार्ग केवल मंदिर या आश्रम तक सीमित नहीं, बल्कि ऑफिस की कुर्सी, सरकारी फाइलों, मीटिंग रूम और कंप्यूटर स्क्रीन तक फैला हुआ एक जीता-जागता मार्ग बन सकता है – जहाँ हर क्षण, कर्तव्य, सहनशीलता और नाम-जप मिलकर मनुष्य को भीतर से भगवान के और निकट ले जाते हैं।youtube​

  1. https://www.youtube.com/watch?v=TgFfAmteqY0

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