बहुत जोर की बात है एकांत में पढ़ा तो लगा आपको बताएं!

यह रहा Maharaj Ji के प्रवचन का पूर्ण word-to-word transcript जो वीडियो में कहा गया है:


आप सुनिएगा ध्यान से। बड़े महापुरुष का वचन है जो सिद्ध महापुरुष हैं। उन्होंने अपने किसी एक शिष्य के लिए लिखा श्री हरि शरणम पद बहुत जोर की बात है। हमने एकांत में पढ़ा तो लगा जो चीज जैसे अपने को मीठी लगे ना, तो फिर अपने जनों को परोसी जाती है। ऐसे हमको अच्छा लगा।

मनुष्य जीवन का चरम और परम एकमात्र उद्देश्य है मोक्ष, भगवत प्राप्ति या भगवत प्रेम प्राप्ति। तीन बातें रखी गई। मोक्ष प्राप्ति या भगवत प्राप्ति या भगवत प्रेम प्राप्ति यह मनुष्य जीवन का चरम और परम लक्ष्य है। जिस मनुष्य जीवन इस महान उद्देश्य की पूर्ति की साधना में लगा दिया गया। वही मनुष्य जीवन धन्य हुआ, सार्थक हुआ, अन्यथा बेकार गया।

मनुष्य जीवन में जो भी आपके पास मिला हुआ है प्रत्येक सामग्री जैसे बुद्धि, मन, इंद्रियां, धन, परिवार, समय, विद्या, विवेक … यह सब केवल भगवत प्राप्ति के लिए मिला है। मनुष्य जीवन में आपको जो कुछ भी मिला हुआ है वो केवल भगवत प्राप्ति के लिए मिला हुआ है। तो आपको पूरा प्रयत्न करके इन सबका प्रयोग भगवत प्राप्ति के लिए ही करना चाहिए। यही मनुष्य जीवन की सार्थकता है।

अब भगवत प्राप्ति के लिए इनका हम प्रयोग क्या करें? मन, बुद्धि धन, जो भी हमें मिला है तो बोले मन से निरंतर श्री भगवान के नाम का रूप का गुण का चिंतन करो, वाणी से भगवान के नाम का कीर्तन करो, भगवान की लीला कथा को कहो, गाओ और शरीर से जितने भी कार्य होते हैं जो भी कार्य होते हैं वह सब भगवान की हम पूजा कर रहे हैं। ऐसी भावना से उस कर्म को भगवान को समर्पित कर दो।

प्राणी मात्र में चाहे वह स्त्री हो या पुरुष हो, जड़ हो या चैतन्य हो सब में भगवान है। ऐसी भावना से अच्छी तरह जो तुम्हारे सामने आ जाए उसकी सेवा करो। जो तुम्हारे सामने आ जाए अच्छी तरह सेवा करो। जैसे कोई आपसे बात पूछ रहा है बहुत अच्छी तरह उत्तर दीजिए। कोई बीमार है हो सके तो आप उसकी अच्छी सेवा कीजिए। सब में भगवान विराजमान है। कोई प्यासा है पानी लाकर दे दिया। हम यात्रा में जा रहे हैं। बैठे हैं हम अपने सीट पर। रिजर्व सीट है। लेकिन कोई हमें वृद्ध दिखाई दे रहा है। हम खड़े हो जाते हैं। उसे बैठाल देते हैं। सब में भगवत भावना करके कि हमारे भगवान सब जीवों में विराजमान है। जहां जैसी जिसको आवश्यकता हो अच्छी तरह से सेवा करो।

समस्त जीवों में भगवान विराजमान है। ऐसी भावना करके यदि सेवा करोगे तो तुम्हारे हृदय में भगवान प्रकाशित हो जाएंगे। जब सबके हृदयों में भगवान देखा जाता है तो अपने हृदय में भगवान दिखाई देने लगते हैं। सदा सबकी यथा योग्य सेवा करनी चाहिए। पर किसी से अपनी सेवा नहीं करानी चाहिए। जब तक शरीर अपना काम करे तब तक अपनी किसी से सेवा नहीं करानी चाहिए। अपने पैर दबवाना, अपने कपड़े धुलवाना या अपने लिए कोई भी कार्य अपनी सेवा स्वयं करें और दूसरों की सेवा करने का उत्साह रखें। सदा सबकी यथा योग्य सेवा करनी चाहिए। अपनी सेवा नहीं करानी चाहिए। अगर भगवत प्राप्ति करना है तो मान देना चाहिए। दूसरों से मान लेना नहीं चाहिए। सत्कार करना चाहिए। दूसरे से सत्कार कराने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए।

अपने लिए जो कुछ प्राप्त हुआ है उसमें से दूसरों के लिए … जैसे अपने को ₹100 प्राप्त हुए हैं धर्म से प्राप्त हुए हैं तो हम ₹90 अपने परिवार और अपने लिए खर्च ₹1 हम कहीं गौ सेवा, संत सेवा, बीमारों की किसी की सेवा में लगा दे। दूसरों को उदारता पूर्वक अपनी वस्तु का प्रयोग कराना चाहिए। उदारता पूर्वक अपने पास चार रोटी है। एक रोटी ली, चिड़िया, गाय, कुत्ता किसी को दे दिया। यह रोज का नियम रखना चाहिए। अपने पास जो कुछ है सब भगवान का है। यह जान के भगवान ही मेरे सामने इस रूप में आए हैं और उनकी ही दी वस्तु उनको हम दे रहे हैं। इसमें मेरा कोई कहीं भी किंचिन मात्र अभिमान जागृत नहीं होना चाहिए कि मैंने किसी को वस्तु दी। भगवान की दी हुई वस्तु भगवान को ही दे। “त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये” , बहुत सुंदर बात है। अध्यात्म की है।

अगर हम दूसरों का उपकार करते हैं, दूसरों को वस्तु देते हैं, दूसरों की सेवा करते हैं तो हम में नम्रता बढ़नी चाहिए। अभिमान नहीं नम्रता बढ़नी चाहिए। अभिमान नहीं हमने उनको ये दिया, हमने वो सेवा की, हमने इतने बीमारों की सेवा एक तरह का अहम पुष्ट हो जाता है। इसमें भी तो कह रहे अभिमान नहीं आना चाहिए। नम्रता आनी चाहिए और हर समय प्रसन्नता बढ़नी चाहिए कि हमारा जीवन भगवान की तरफ जा रहा है।

किसी को कोई वस्तु देकर उसके बदले में लेने की कोई कामना नहीं होनी चाहिए। कुछ भी नहीं आपकी वस्तु थी। आपको दे दिया हमें। हे भगवान “त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये” , कुछ बदले में लेने की चाह नहीं होनी चाहिए। अपने लोगों की चाह होती है। इतनी तो होती है कि वो मुस्कुरा के हमको धन्यवाद कहे।

संसार के भोगों में सुख है। यह बात धीरे-धीरे मिटा दो। अगर भगवत प्रेम प्राप्त करना है, मोक्ष प्राप्त करना है या भगवत प्राप्ति करना है। यह धारणा जब तक नहीं मिटेगी तब तक संसार के भोग हमें आकर्षित करेंगे और वह क्रियाएं बनग जिससे भगवत विमुक्तता रहेगी ना भगवत प्राप्ति होगी ना मोक्ष। इसलिए संसार में सुख है ये धीरे धीरे धारणा हटाओ भगवान के नाम में सुख है भगवान की लीला में सुख है भगवान के गुणों में सुख है भगवान के धाम में सुख है।

ये संसार दुखालय है, ये भगवान ने कहा है. इसमें सुखों की लेवल लगा के दुख बिकता है, लगता है सुख है लेकिन होता दुख है. “सुखम दुखालय दुःख योन्या” यह शब्द संसार के लिए कहे गए असुखम इसमें सुख नहीं है दुखालयम यह दुख का आलय है दुख योनया इसमें जो भी भोग भोगोगे परिणाम में दुख ही प्राप्त होगा इस विचार से भगवान में सुख है। यह अंदर भावना बैठा लो। तभी भजन बनेगा। नहीं तो जिसका सुख बुद्धि संसार में होती है तो वही मन जाता है। वही चिंतन जाता है। भजन नहीं बनता।

दूसरों के अधिकार को मत छीनो। दूसरों के कर्तव्य की रक्षा करो। और अपने कर्तव्य का पालन करो। इंद्रियां बहिर्मुख मत रखो। अंतर्मुख रखो। सावधानी पूर्वक निरंतर भगवान का नाम जप करो। मन में प्रमाद मत लाओ। नाम जप करो। सदा उसको जबरदस्ती भगवत चिंतन में लगाए रखो। मन को मन के द्वारा जिसका भगवन नाम जप होता है, शरीर के द्वारा जिसकी भगवत सेवा होती है, वह निश्चित भगवत प्राप्त हो जाता है।

आसक्ति, कामना, ममता और अहंकार इसी से पाप और दुख बनते हैं। किसी भोग में आसक्ति, किसी व्यक्ति में आसक्ति, कोई भोग की कामना, किसी पद की कामना, धन की कामना, परिवार की ममता, शरीर का अहंकार, विद्या का अहंकार, धन का अहंकार इन्हीं से पाप बनते हैं। … बहुत सावधानी पूर्वक संसार की आसक्ति कामना ममता और अहंकार का भगवन नाम जप और सत्संग के द्वारा इनका नाश कर दो।

इनका नाश करने की साधना करनी चाहिए। हमारी कामना नष्ट हो जाए। हमारा अहंकार नष्ट हो जाए। हमारी ममता नष्ट हो जाए। हमारी आसक्ति नष्ट हो जाए। यह सब कुछ नष्ट हो जाएगा भगवान के नाम जप से।

कामना भगवत प्रेम की करो कि हे भगवान आपसे हमें प्रेम हो जाए। हे भगवान आप हमें मिल जाओ। ममता केवल भगवान के चरणों में करो। अहंकार इस बात का करो कि मैं भगवान का हूं। मैं भगवान का दास हूं। मैं भगवान का सखा हूं। भगवान मेरे पिता मैं उनका पुत्र हूं। भगवान मेरे स्वामी मैं उनका सेवक हूं।

ऐसी दूषित आसक्ति है, कामना है, ममता है, अहंकार है, जब तक इसका नाश नहीं होगा तब तक ना भगवत प्रेम प्राप्त होगा, ना मोक्ष प्राप्त होगा, ना भगवत प्राप्ति होगी। धन, पद, स्वास्थ्य, ऊंची जाति में जन्म लेना, विद्या लेना, विद्वान होना ये सब अहंकार पैदा करते हैं। जिनमें अहंकार ना हो और अपने को सबसे छोटा समझे। ये होने पर भी वो भगवत प्राप्त हो जाएगा।

किसी भी प्राणी से कभी द्वेष तो करो मति। तुमसे जो द्वेष करे उससे मित्रता का व्यवहार करो। बड़ा कठिन है भगवत प्राप्ति का मार्ग। किसी भी प्राणी से द्वेष करो मति। वह तुमसे द्वेष करे तो तुम मित्रता का व्यवहार करो। वह हमसे द्वेष कर रहा है और हम उससे मित्रता का व्यवहार करें। तभी भगवत प्राप्ति होगी। तभी भगवत प्रेम प्राप्त होगा। जब तुम्हें दुख दे यह बिल्कुल उल्टा है। जब तुम्हें कोई दुख दे तो करुणामय भगवान का मंगल विधान समझो हमारे पाप नष्ट हो रहे हैं।

और बन जाए तो उसको सुख देने की चेष्टा करो जो तुम्हें दुख दे रहा है। करत जे अनहन निंदक तिोप अनुग्रह कियो। देखो शरीर से प्राण कब चले जाए पता नहीं। इसलिए पूरी तैयारी कर लो जिससे इसी जन्म में जितना हमारा जीवन है इसी में भगवत प्राप्ति हो जाए। यदि भगवान की प्राप्ति नहीं हुई तो न जाने किस योनि में जाना पड़ेगा। न जाने कहां-कहां हमें घूमना पड़ेगा। नर्क स्वर्ग अपवर्ग कहां-कहां भागना पड़ेगा।

तुम्हें हम नियम बताते हैं। आवश्यक हो तो बोलना नहीं तो मौन रहना। भगवत प्राप्ति के लिए कभी किसी की निंदा हो रही हो तो कान में अंगुली डाल लेना। निंदा मत सुनना। तुम तो निंदा करना मत। पर दूसरा अगर कोई निंदा कर रहा हो तो कान में उंगली डाल ले। किसी की निंदा ना सुने। कटु भाषण मत बोलना। क्रोध मत करना। किसी का तिरस्कार करते हुए कोई आचरण मत ऐसा करना। अभिमान की भाषा में ना बोलना। जहां तक बने कम बोलो या मौन रहो। कम बोलो विचार के बोलो या मौन रहो। तुम्हारा व्यवहार नम्र होना चाहिए। यदि भगवत प्राप्ति करना है।

संसार से वैराग्य भगवान के चरणों में अनुराग ये दो बातें अभी उल्टा है हमारा भगवत चरणों में प्रेम तभी उत्पन्न होता है हम सावधानी पूर्वक अपने एक एक सेकंड समय को जो बहुत मूल्यवान है वह भगवान में लगाएं, प्राय एकांतिक में यही सब बातें होती है। एक एक सेकंड को भगवान को दें, पता नहीं मृत्यु कौन से सेकंड में आ जाए। पता नहीं कब हमारी मृत्यु और अगर हमारा भगवान का नाम चल रहा है तो हम भगवत प्राप्त हो जाएंगे।

अतः जीवन का एक क्षण भी प्रमाद आलस्य में प्रपंच की बातों में नहीं व्यतीत करना चाहिए। सावधानी पूर्वक नाम जप करना चाहिए। हमको जो बात जो व्यवहार बुरा लगता है वैसा बात वैसा व्यवहार कभी दूसरों के साथ हम ना करें। भगवान से सदैव मांगते रहो। यह प्रभु तुम्हारी जैसी इच्छा हो हमारे लिए वैसा विधान करो। पर इस जन्म में आप मिल जाओ। चाहे हमें दुख का विधान करो चाहे सुख का विधान करो। पर इस जन्म में आप मिल जाओ। प्रभु आपसे विलग होने वाली मैं कामना करूं तो कभी पूरी मत करना। आपसे मिलन वाली कामना पूर्ति हो जाए।

हमारा इतना ही काम अब केवल रह गया है। शरीर से जितनी चेष्टा करें वो भगवान के लिए मन से भगवान का चिंतन, मुख में भगवान का नाम जप बस इसी से सब कुछ हो जाएगा। संसार से वैराग्य हो जाएगा, भगवान में अनुराग हो जाएगा, भगवत प्राप्ति हो जाएगी। जीवन का अंतिम समय आते-आते पता नहीं कैसी स्थिति हो। कैंसर हो जाए कि किडनी फेल हो जाए क्या? आज स्वस्थ हैं। आज ही हम भगवान की प्राप्ति का नियम ले। वाणी से कम बोलेंगे। कान से किसी की निंदा नहीं सुनेंगे। शरीर से दूसरों की सेवा करेंगे। सब में भगवान ऐसी भावना करेंगे। निरंतर नाम जप करेंगे। इसी से हमें भगवत प्राप्ति, भगवत प्रेम और मोक्ष जो चाहेंगे वह प्राप्त हो जाएगा। जी


  1. https://www.youtube.com/watch?v=VwIn9ibuaYg

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