गाली देने की बुरी आदत
आज के समय में गाली देना बहुत सामान्य सी बात मान ली गई है, लेकिन वास्तव में यह बहुत गंदी आदत है। कई लोग मजाक में, गुस्से में या दबाव बनाने के लिए गालियां देते हैं, पर सोचते नहीं कि इससे अपनी ही वाणी, स्वभाव और चरित्र कितना गिर जाता है। गाली से सामने वाले का दिल दुखता है, रिश्ते खराब होते हैं और अंदर ही अंदर मन में क्रोध और द्वेष बढ़ता है।
महाराज जी बताते हैं कि गाली देना केवल शब्दों का खेल नहीं है, यह हमारे संस्कारों और भीतर छिपी हुई अशुद्धियों को दिखाता है। जितनी बार मुंह से गंदी बात निकलेगी, उतना ही मन भी गंदा होता चला जाएगा। धीरे‑धीरे यह आदत इतनी मजबूत हो जाती है कि बिना गाली दिए बात पूरी ही नहीं लगती और तब इंसान को महसूस भी नहीं होता कि वह कितना नीचे गिर चुका है।
व्यापार और गाली – क्या सच में ज़रूरी है?
वीडियो में एक सज्जन कहते हैं कि उनका व्यापार ऐसा है जिसमें लेबर से काम कराने के लिए गाली देकर ही बात करनी पड़ती है। इस पर महाराज जी साफ कहते हैं कि ऐसा कोई व्यापार नहीं है जिसमें गाली देना अनिवार्य हो, यह सिर्फ हमारी बनी हुई आदत और मानसिकता है।
व्यापार में अनुशासन और सख्ती ज़रूर रखी जा सकती है, पर सख्त होना और गाली देना अलग‑अलग बात है।
- मालिक या मैनेजर कठोर शब्दों में, स्पष्ट भाषा में डांट कर भी काम करा सकता है
- नियम बना सकता है, सज़ा‑इनाम की व्यवस्था कर सकता है
- लेकिन मां‑बहन की गालियां देना सिर्फ अपनी कुंठा और गुस्से का निकालना है, न कि मैनेजमेंट
महाराज जी समझाते हैं कि “कठोर शासन” और “गाली वाली भाषा” दोनों एक नहीं हैं। यदि मालिक अपनी वाणी को मर्यादित रखे, पर नियमों में सख्ती दिखाए, तो लेबर भी धीरे‑धीरे आदर और डर दोनों से बात मानने लगती है। गाली से थोड़ी देर के लिए काम निकल भी जाए, लेकिन लंबे समय में इससे दिलों में नफरत भरती है और माहौल जहरीला बनता है।
मृदु, हितकर और सत्य वाणी
धर्मग्रंथों में वाणी के तीन गुण बताए गए हैं – मृदु, हितकर और सत्य।
- मृदु यानी कोमल, नम्र और नरम बोल
- हितकर यानी ऐसी बात जो सामने वाले के हित में हो
- सत्य यानी झूठ नहीं, सच्ची बात
केवल “सत्य बोल दिया” यह पर्याप्त नहीं है, सत्य ऐसा हो जो हितकारी भी हो और उसे बोलने का तरीका भी कोमल हो। यदि कोई कठोर सच बोलकर सामने वाले को अपमानित कर दे, उसका मन तोड़ दे, तो ऐसा सत्य भी अधर्म की श्रेणी में आ सकता है, क्योंकि उससे अहित हो रहा है।
महाराज जी कहते हैं कि वाणी अमोल होती है, इसे तोल‑मोल कर ही बाहर निकालना चाहिए। एक बार गंदी बात मुंह से निकल जाए, तो फिर चाहे जितनी माफ़ी मांग लो, सामने वाले के दिल पर जो चोट लगती है, वह आसानी से नहीं मिटती। इसलिए वाणी पर संयम रखना आध्यात्मिक साधना का अत्यंत आवश्यक हिस्सा है।
विद्यार्थियों की गंदी भाषा और आदतें
महाराज जी विशेष रूप से कॉलेज और स्कूल के विद्यार्थियों की बात करते हैं कि आजकल उनके बीच गाली देना “ट्रेंड” बन गया है। दोस्ती दिखाने, मजाक करने या हीरो बनने के चक्कर में वे हर वाक्य में गंदी गालियां घुसा देते हैं। यह केवल भाषा की गलती नहीं है, यह पूरे विद्यार्थी जीवन की पवित्रता को नष्ट कर रही है।
विद्यार्थी जीवन को उन्होंने “तपस्वी जीवन” कहा है.
- छात्र का असली काम पढ़ाई, चरित्र‑निर्माण और भविष्य की तैयारी है
- उसे अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए
- समय को व्यर्थ मनोरंजन, गंदी बातों और गलत संगति में नहीं गंवाना चाहिए
जो विद्यार्थी गाली देते हैं, गंदे मजाक करते हैं, नशा करते हैं, व्यभिचार (अशुद्ध संबंध) में पड़ते हैं या हस्तमैथुन जैसी आदतों में डूब जाते हैं, वे अपने ही भविष्य को खोखला बना रहे होते हैं। ऐसे बच्चे अगर आगे चलकर किसी पद पर पहुंच भी जाएं, तो वे समाज के लिए खतरा बनते हैं, क्योंकि उनकी सोच भोग‑विलास, स्वार्थ और भ्रष्टाचार से भरी होती है।
नशा, व्यभिचार और गिरता futuro
वीडियो में एक उदाहरण दिया गया कि कैसे नशे की लत लगने पर एक लड़के ने घर का सामान, अनाज और अपनी मां के गहने तक बेच डाले। नशा शुरू में सिर्फ मज़े के लिए किया गया छोटा प्रयोग लगता है, लेकिन धीरे‑धीरे वह एक ऐसी ज़ंजीर बन जाता है जो पूरी जिंदगी को कैद कर देती है।youtube+2
नशा, व्यभिचार, अश्लीलता, गंदी भाषा – ये सब शुरू में “फन” और “फैशन” की तरह लगते हैं, पर असल में यह आत्म‑विनाश का रास्ता हैं।youtube+1
- नशा शरीर को तोड़ता है, दिमाग को सुस्त करता है, पढ़ाई और काम की क्षमता खत्म करता है
- व्यभिचार मानसिक शांति और आत्मसम्मान छीन लेता है
- गंदी भाषा रिश्तों, परिवार और समाज में आदर को नष्ट करती है
महाराज जी चेतावनी देते हैं कि जो बच्चे अभी से इन आदतों में पड़ जाते हैं, वे बड़े होकर भी इन्हीं आदतों के गुलाम बने रहते हैं। बचपन और युवावस्था जीवन की नींव हैं; यदि नींव ही कमजोर, गंदी और टेढ़ी रखी जाएगी, तो पूरी इमारत टेढ़ी ही खड़ी होगी।
विद्यार्थी जीवन – तप और संयम
गुरुकुल परंपरा में विद्यार्थियों को आश्रम भेजा जाता था ताकि वे संसारिक भोगों से दूर रहकर, अनुशासन में, गुरु की छत्रछाया में रहकर पढ़ें‑लिखें और चरित्रवान बनें। वहां ब्रह्मचर्य, सादगी, सेवा और साधना – ये चारों साथ‑साथ चलते थे।
आज आधुनिक स्कूल‑कॉलेज में बाहरी चमक, फैशन, दिखावा और प्रतियोगिता तो बहुत है, पर अध्यात्म, चरित्र‑निर्माण और संयम की शिक्षा लगभग गायब होती जा रही है। परिणाम यह है कि बच्चे डिग्री तो ले लेते हैं, पर धैर्य, विनय, सहनशीलता और आदर की कमी रहती है। छोटी सी बात पर गुस्से में आकर शिक्षक को पीटना, बड़ों से बदतमीजी करना या सोशल मीडिया पर गंदी भाषा लिखना आम होता जा रहा है, जो समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
विद्यार्थी जीवन का असली सौंदर्य संयम में है।
- कम साधनों में रहकर भी संतोष रखना
- अपने माता‑पिता और गुरुओं का सम्मान करना
- समय पर उठना, पढ़ना, सेवा करना और साधना करना
“विद्या विनय देती है” – इसका असली अर्थ
संस्कृत श्लोक है – “विद्या ददाति विनयम्” अर्थात सच्ची विद्या इंसान को विनम्र बनाती है। असली पढ़ाई वह है जो अहंकार घटाए, बोलने में नम्रता लाए और व्यवहार में शालीनता पैदा करे। यदि पढ़‑लिखकर भी आदमी घमंडी, अभद्र, गाली देने वाला और अपमान करने वाला बन जाए, तो समझना चाहिए कि उसे केवल सूचना मिली है, विद्या नहीं।
विद्या से विनय आता है, विनय से पात्रता (काबिलियत), पात्रता से धन, धन से धर्म, और धर्म से सच्चा सुख। अगर विद्या से विनय ही नहीं आया, तो आगे की सारी श्रृंखला ही टूट जाती है। इसीलिए महाराज जी बार‑बार कहते हैं कि विद्यार्थी केवल मार्कशीट न बनाए, अपना चरित्र भी बनाए, भाषा सुधारे, संगति सुधारे और आदतें शुद्ध करे।
गाली छोड़ने के व्यावहारिक उपाय
गाली की आदत अचानक नहीं छूटती, इसके लिए सजग अभ्यास करना पड़ता है। कुछ सरल उपाय अपनाए जा सकते हैं:
- सबसे पहले यह ठान लें कि गाली देना “नॉर्मल” नहीं, “बहुत गलत” है
- अपने दोस्त‑समूह से कहें कि आप गाली नहीं सुनना‑बोलना चाहते, वे आपका साथ दें
- मुंह पर फिसलने लगे तो तुरंत रुक जाएं, वाक्य अधूरा छोड़ दें
- गुस्सा आए तो पहले गहरी सांस लें, पानी पीएं, उसके बाद ही जवाब दें
- घर या ऑफिस में नियम बना लें – गाली बोलने पर खुद को कोई छोटी सी सज़ा या दंड दें (जैसे एक रुपया दान, या एक माला जप)
महाराज जी कहते हैं कि कठोर शब्दों की सीमा तक तो जा सकते हैं, पर गंदी गाली तक नहीं। यानी अनुशासन, समझाना, डांटना – ये सब उस सीमा में हों जहाँ शब्द मर्यादा न टूटे। जब मन में यह भावना मजबूत होगी कि “मेरी वाणी से किसी को चोट न लगे”, तब स्वाभाविक रूप से भाषा कोमल और पवित्र होती चली जाएगी।
नई पीढ़ी के लिए संदेश
महाराज जी हाथ जोड़कर नई पीढ़ी से प्रार्थना करते हैं कि वे नशा, व्यभिचार और गंदी भाषा से बचे रहें। बच्चे केवल अपने परिवार के नहीं, पूरे देश के भविष्य हैं; यदि वही बिगड़ जाएंगे तो देश का भविष्य भी अंधकारमय हो जाएगा।
कल के डॉक्टर, वकील, न्यायाधीश, अधिकारी, नेता – सब आज के ही विद्यार्थी हैं। यदि वे अभी से संयम, सदाचार, स्वच्छ भाषा और सेवा की भावना सीखेंगे, तो आगे चलकर ऊँचे पद पर बैठकर भी विनम्र और न्यायप्रिय रहेंगे। यदि अभी ही वे नशे, भ्रष्टाचार, बदजुबानी और स्वार्थ में डूब गए, तो आगे चलकर पूरे समाज का शोषण करेंगे।
आध्यात्मिकता – सही मार्ग का दीपक
अंत में संदेश यह है कि केवल आधुनिक शिक्षा, पैसा और भौतिक सफलता जीवन को सही दिशा नहीं दे सकती। जब तक जीवन में अध्यात्म नहीं होगा, तब तक संयम, शुद्ध आचरण और पवित्र वाणी स्थायी रूप से नहीं आ सकते।
अध्यात्म का अर्थ है –
- ईश्वर को याद रखना
- अपने हर काम को उसके सामने उत्तरदायी मानना
- अपनी वाणी, आचरण और विचारों को शुद्ध रखने की निरंतर कोशिश करना
जब इंसान को यह भाव आ जाता है कि “भगवान मुझे देख रहे हैं, मेरी वाणी भी उनकी दी हुई है”, तब वह स्वतः ही गाली, झूठ, निंदा और अपमान से दूर रहने लगता है। यही भीतरी जागृति समाज को भी स्वच्छ बनाती है और व्यक्ति को भी सच्चा सुख देती है।
यदि चाहो तो इसी विषय पर एक छोटा‑सा निबंध या भाषण के रूप में भी सामग्री तैयार की जा सकती है, या किसी विशेष भाग (जैसे नशा, विद्यार्थी जीवन, वाणी‑संयम) को और विस्तार से भी समझाया जा सकता है।







