बार-बार असफल होने पर भी प्रयास करें या ईश्वर की इच्छा मानकर छोड़ दें? – श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का दिव्य मार्गदर्शन

परिचय

जीवन में बार-बार असफलता का सामना करना हर किसी के लिए एक आम अनुभव है। कई बार हम पूरी मेहनत और लगन से प्रयास करते हैं, फिर भी सफलता नहीं मिलती। ऐसे में मन में यह प्रश्न उठता है—क्या हमें प्रयास करते रहना चाहिए या इसे ईश्वर की इच्छा मानकर छोड़ देना चाहिए? इस गूढ़ प्रश्न का उत्तर श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने अपने प्रवचन (02:32 से 05:50 मिनट) में अत्यंत सरल, व्यावहारिक और आध्यात्मिक दृष्टि से दिया है।

असफलता: कारण और समाधान

1. असफलता का कारण क्या है?

महाराज जी स्पष्ट करते हैं कि असफलता कभी भी ईश्वर की इच्छा नहीं होती। ईश्वर मंगलमय हैं, वे अपने भक्तों के लिए अमंगल की कामना नहीं कर सकते। असफलता हमारे अपने पाप कर्मों का परिणाम है, न कि ईश्वर की इच्छा1।

“ईश्वर की मर्जी कभी असफलता हो ही नहीं सकती। असफलता हमारे अपने पाप कर्म का परिणाम होती है।” – श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज1

2. प्रयास और सत्प्रयास में अंतर

महाराज जी केवल प्रयास करने की नहीं, बल्कि सत्प्रयास (सच्चे, शुद्ध और सत्कर्मयुक्त प्रयास) करने की बात करते हैं। केवल बाहरी प्रयास पर्याप्त नहीं, उसके साथ नामजप, स्तोत्र पाठ, प्रार्थना और शुद्ध आचरण भी आवश्यक हैं1।

  • सत्प्रयास का अर्थ है –

    • ईमानदारी से प्रयास

    • भगवान का नामजप

    • पवित्र आचरण

    • परोपकार

    • जीवों पर दया

3. कर्म और उसका फल

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है—”कर्म करो, फल की चिंता मत करो।” महाराज जी इसी सिद्धांत को दोहराते हैं कि हमारे कर्मों का फल हमें अवश्य भोगना पड़ता है। शुभ कर्म का फल सुख और पाप कर्म का फल दुख है। इसलिए पाप कर्म से डरना चाहिए और सत्कर्म में लगे रहना चाहिए1।

क्या प्रयास छोड़ना चाहिए?

1. प्रयास छोड़ना समाधान नहीं

महाराज जी के अनुसार, असफलता के डर से प्रयास छोड़ना या इसे ईश्वर की इच्छा मान लेना गलत है। ईश्वर कभी अपने भक्त को असफल नहीं करना चाहते। जब तक जीवन है, तब तक प्रयास करते रहना चाहिए, लेकिन सत्प्रयास के साथ1।

2. नामजप और प्रार्थना का महत्व

महाराज जी बार-बार नामजप, भगवान की प्रार्थना और स्तोत्र पाठ की सलाह देते हैं। ये साधन हमारे कर्मों को शुद्ध करते हैं और सफलता की ओर ले जाते हैं। जितना अधिक नामजप करेंगे, उतना ही हमारे पाप कर्म कटेंगे और सफलता के द्वार खुलेंगे।

आचरण और संयम: सफलता की कुंजी

1. पवित्रता और संयम का बल

महाराज जी कहते हैं—”पवित्रता और संयम में बल है, न कि मांस, मदिरा या अन्य भोगों में।”सफलता के लिए हमें अपने आचरण को शुद्ध करना होगा, बुरी आदतें छोड़नी होंगी, जीवों पर दया करनी होगी।

  • शराब, मांस, व्यभिचार, पराई स्त्री से संबंध – ये सब पाप कर्म हैं, जो असफलता का कारण बनते हैं1।

2. धर्मयुक्त कमाई और गृहस्थ धर्म

महाराज जी धर्मयुक्त कमाई, पत्नी/पति से प्रेम, और गृहस्थ धर्म के पालन की भी सलाह देते हैं।धर्म के अनुसार जीवन जीने से ही सच्ची सफलता और आनंद मिलता है1।

पाप कर्म से डरें, सत्कर्म में लगे रहें

1. हर जीव में भगवान

महाराज जी समझाते हैं कि हर जीव में भगवान का वास है। किसी भी जीव को कष्ट देना, मारना, सताना – ये सब पाप हैं।
चींटी से लेकर गाय, बकरी, मुर्गा – सब जीना चाहते हैं।
जो दूसरों को मारता है, उसे भी काल मारता है। इसलिए हिंसा, मांसाहार, और जीवों की पीड़ा से बचें1।

2. पाप कर्म का फल अवश्य मिलता है

गीता के अनुसार, शुभ और अशुभ कर्म का फल अवश्य भोगना पड़ता है।इसलिए पाप से डरें, सत्कर्म करें, नामजप करें, और भगवान से सफलता की प्रार्थना करें1।

सच्ची सफलता: भजन, सेवा और परोपकार

1. नामजप और भजन का महत्त्व

महाराज जी के अनुसार, जीवन में सबसे बड़ा लाभ भगवान का नामजप और भजन है।नामजप से ही पाप कर्म कटते हैं, आचरण शुद्ध होता है, और जीवन में सच्चा आनंद आता है1।

2. सेवा और परोपकार

हर जीव की सेवा करें, परोपकार करें।
सच्चा सुख दूसरों के सुख में है, न कि स्वार्थ में।
परोपकार, दया, और सेवा – ये सब सफलता के मार्ग हैं1।

असफलता से घबराएं नहीं, प्रयास करते रहें

1. असफलता के समय क्या करें?

  • प्रयास छोड़ें नहीं, बल्कि सत्प्रयास करें।

  • नामजप, प्रार्थना, और भजन को जीवन का हिस्सा बनाएं।

  • पाप कर्म, बुरी आदतें, और बुरे आचरण को त्यागें।

  • जीवों पर दया करें, परोपकार करें।

  • धर्मयुक्त जीवन जिएं, संयम और पवित्रता अपनाएं1।

2. भगवान की कृपा और भजन का प्रभाव

महाराज जी कहते हैं –”भगवान की कृपा से ही सफलता मिलती है।
नामजप से हमारे शुभ-अशुभ कर्म दब जाते हैं, और नया शुभ प्रारब्ध बनता है।
भजन के बिना माया से मुक्ति असंभव है।”

संकल्प और नियम: सफलता की ओर कदम

1. पांच नियम जो जीवन बदल दें

महाराज जी जीवन को मंगलमय बनाने के लिए पांच नियम बताते हैं—

  • रोज़ ठाकुर जी का चरणामृत पिएं।

  • घर से निकलने से पहले 11 बार ‘कृष्णाय वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।

  • रोज़ 20-30 मिनट नाम संकीर्तन करें।

  • भगवान को 11 साष्टांग दंडवत करें।

  • वृंदावन की रज माथे पर लगाएं।

इन नियमों का पालन करने से जीवन में सकारात्मकता, सफलता और शांति का अनुभव होगा।

निष्कर्ष: प्रयास, सत्प्रयास और ईश्वर की कृपा

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन का सार यही है—

  • असफलता ईश्वर की इच्छा नहीं, हमारे कर्मों का फल है।

  • प्रयास छोड़ना समाधान नहीं, सत्प्रयास करें।

  • नामजप, भजन, प्रार्थना, सेवा, पवित्रता और संयम से ही सफलता मिलती है।

  • पाप कर्म से डरें, सत्कर्म में लगे रहें।

  • भगवान की कृपा और नामजप से ही जीवन का परम लाभ संभव है।

जीवन में चाहे कितनी भी असफलता मिले, प्रयास करते रहें, सत्प्रयास करें, और भगवान का नाम जपना कभी न छोड़ें। यही सच्ची सफलता का मार्ग है।

अंतिम संदेश

“गंदे आचरण छोड़ो, नामजप करो, अच्छे आचरण करो, परोपकार करो, हर जीव की सेवा करो – तब तुम्हारा मंगल होगा।”– श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज1

राधे-राधे!

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