हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां आपसे क्या छुपा रही हैं? जानिए 9 छुपे क्लॉज जो आपके क्लेम को रिजेक्ट कर सकते हैं

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प्रस्तावना

2024 में भारत में हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों ने 26,000 करोड़ रुपये के क्लेम रिजेक्ट कर दिए। वजह? आपकी हेल्थ पॉलिसी में छुपे ऐसे नियम, जिनके बारे में शायद ही किसी ने आपको बताया हो। सस्ते प्रीमियम और बड़े सम एश्योर्ड के लालच में अक्सर लोग इन नियमों को नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन जब क्लेम का वक्त आता है, तो इन्हीं क्लॉज की वजह से पैसे अटक जाते हैं1।

इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे ऐसे 9 छुपे क्लॉज, उनकी असलियत, नुकसान और बचाव के तरीके।

1. सब-लिमिट (#SubLimit) – छुपी हुई सीमा

सब-लिमिट का मतलब है, कुछ खास बीमारियों या इलाज पर कंपनी ने एक अधिकतम सीमा तय कर दी है। मान लीजिए आपकी पॉलिसी में 10 लाख का सम एश्योर्ड है, लेकिन हार्निया के इलाज पर सब-लिमिट 2 लाख है। अगर बिल 5 लाख बनता है, तो कंपनी सिर्फ 2 लाख ही देगी, बाकी आपको देना होगा। सस्ती पॉलिसी में अक्सर ये छुपी हुई सीमा होती है, जिससे बड़ा नुकसान हो सकता है1।

सावधानी: पॉलिसी खरीदते वक्त सब-लिमिट क्लॉज जरूर देखें। बिना सब-लिमिट वाली पॉलिसी चुनें।

2. रूम रेंट कैपिंग (#RoomRent) – कमरा चुनने की आज़ादी नहीं

कई पॉलिसी में लिखा होता है कि आप 1% सम एश्योर्ड तक ही रूम रेंट क्लेम कर सकते हैं। अगर आपकी पॉलिसी 10 लाख की है, तो रोज़ाना 10,000 रुपये तक ही रूम रेंट मिलेगा। अगर आप इससे महंगे कमरे में भर्ती होते हैं, तो सिर्फ रूम रेंट ही नहीं, बल्कि पूरे बिल पर ‘प्रपोर्शनल डिडक्शन’ लग जाएगा। यानी जितना रूम रेंट लिमिट से ज्यादा, उतना ही पूरे बिल पर कटौती1।

सावधानी: रूम रेंट कैपिंग वाली पॉलिसी से बचें। हमेशा ‘नो रूम रेंट कैपिंग’ देखें।

3. नो क्लेम बोनस (#NoClaimBonus) – बोनस का जाल

अगर आपने एक साल क्लेम नहीं किया, तो सम एश्योर्ड बढ़ जाता है। लेकिन रूम रेंट कैपिंग वाले क्लॉज में ये बोनस नहीं जुड़ता। यानी रूम रेंट की लिमिट हमेशा बेस सम एश्योर्ड पर ही रहेगी, बोनस पर नहीं1।

सावधानी: नो क्लेम बोनस की असली शर्तें समझें। बोनस के बावजूद रूम रेंट कैपिंग का असर रहता है।

4. रिस्टोरेशन बेनिफिट (#Restoration) – लिमिटेड फायदा

रिस्टोरेशन बेनिफिट का दावा है कि अगर आपका सम एश्योर्ड खत्म हो गया, तो वो दोबारा भर जाएगा। लेकिन कई पॉलिसी में ये सिर्फ दूसरी बीमारी के लिए ही मिलता है, उसी बीमारी के लिए नहीं1।

सावधानी: रिस्टोरेशन बेनिफिट की शर्तें पढ़ें। क्या वो एक ही बीमारी के लिए दोबारा मिलेगा?

5. को-पेमेंट और डिडक्टिबल (#CoPayment, #Deductible) – छुपा खर्च

को-पेमेंट में आपको हर क्लेम पर एक तय प्रतिशत खुद देना होता है, जैसे 20%। डिडक्टिबल में हर क्लेम पर एक निश्चित राशि (जैसे 2 लाख) खुद देना होता है। ये क्लॉज पॉलिसी सस्ती बनाते हैं, लेकिन क्लेम के समय जेब पर भारी पड़ते हैं1।

सावधानी: को-पेमेंट और डिडक्टिबल वाले क्लॉज से बचें।

6. जोनल को-पेमेंट (#ZonalCoPayment) – शहर के हिसाब से कटौती

भारत में मेडिकल खर्च हर शहर में अलग है। कई कंपनियां शहर के हिसाब से प्रीमियम और को-पेमेंट तय करती हैं। अगर आपने टियर-3 सिटी के हिसाब से पॉलिसी ली, लेकिन इलाज टियर-1 सिटी में कराया, तो आपको बिल का एक हिस्सा खुद देना पड़ेगा1।

सावधानी: अपने शहर के हिसाब से सही पॉलिसी चुनें। जोनल को-पेमेंट क्लॉज से बचें।

7. वेटिंग पीरियड (#WaitingPeriod) – तुरंत कवर नहीं

हर पॉलिसी में एक वेटिंग पीरियड होता है, आमतौर पर 30 दिन। यानी पॉलिसी खरीदने के 30 दिन बाद ही कवर शुरू होगा। कुछ बीमारियों (जैसे डायबिटीज, हाइपरटेंशन) के लिए 2-4 साल तक का वेटिंग पीरियड भी हो सकता है। प्री-एक्सिस्टिंग डिजीज (पहले से मौजूद बीमारी) के लिए भी यही लागू है1।

सावधानी: वेटिंग पीरियड जितना कम हो, उतना अच्छा। हेल्थ इंश्योरेंस तब लें जब आप स्वस्थ हों।

8. टॉप-अप और सुपर टॉप-अप (#TopUp, #SuperTopUp) – असली और नकली सुरक्षा

टॉप-अप पॉलिसी में एक डिडक्टिबल लिमिट होती है। जैसे 10 लाख का टॉप-अप, लेकिन डिडक्टिबल भी 10 लाख। यानी जब तक एक बार में 10 लाख से ज्यादा का बिल नहीं होगा, टॉप-अप एक्टिवेट नहीं होगा। अगर दो बार 5-5 लाख का बिल आया, तो टॉप-अप बेकार1।

सुपर टॉप-अप में ये लिमिट साल भर के कुल खर्च पर लागू होती है, जिससे असली सुरक्षा मिलती है।

सावधानी: हमेशा सुपर टॉप-अप पॉलिसी चुनें, साधारण टॉप-अप से बचें।

9. डे-केयर ट्रीटमेंट (#DayCare) – 24 घंटे की बाध्यता

आजकल कई इलाज (जैसे कैटरैक्ट, डायलिसिस) कुछ घंटों में हो जाते हैं। लेकिन कुछ पॉलिसी में लिखा होता है कि सिर्फ 24 घंटे से ज्यादा हॉस्पिटलाइजेशन पर ही क्लेम मिलेगा। इससे डे-केयर ट्रीटमेंट कवर नहीं होता1।

सावधानी: पॉलिसी में डे-केयर ट्रीटमेंट की पूरी लिस्ट देखें और 24 घंटे की बाध्यता से बचें।

10. कैशलेस और रीइंबर्समेंट (#Cashless, #Reimbursement) – नेटवर्क हॉस्पिटल का जाल

कैशलेस क्लेम में आपको बिल नहीं भरना पड़ता, कंपनी सीधे हॉस्पिटल को पे करती है। लेकिन अगर हॉस्पिटल कंपनी के नेटवर्क में नहीं है, तो आपको पहले खुद पे करना होगा और बाद में रीइंबर्समेंट क्लेम करना होगा। इमरजेंसी में ये बड़ी परेशानी बन सकती है1।

सावधानी: अपने शहर के प्रमुख हॉस्पिटल नेटवर्क में हैं या नहीं, जरूर चेक करें।

11. रीजनबल एंड कस्टमरी चार्जेस (#ReasonableCharges, #CustomaryCharges) – कंपनी की मर्जी

भारत में हर हॉस्पिटल का रेट अलग है। इंश्योरेंस कंपनी ‘रीजनबल एंड कस्टमरी चार्जेस’ क्लॉज के तहत सिर्फ वही खर्च देती है, जो उसे उचित लगे। अगर हॉस्पिटल का बिल ज्यादा है, तो कंपनी अपनी मर्जी से क्लेम काट सकती है। इस क्लॉज का फैसला पूरी तरह कंपनी के हाथ में होता है, ग्राहक के पास कोई ठोस उपाय नहीं1।

सावधानी: इलाज के खर्च का अनुमान पहले से लगाएं। पॉलिसी के इस क्लॉज को गहराई से समझें।

कैसे बचें इन छुपे क्लॉज से? (How to Protect Yourself)

  • पॉलिसी खरीदने से पहले सभी क्लॉज ध्यान से पढ़ें।

  • सब-लिमिट, रूम रेंट कैपिंग, को-पेमेंट, डिडक्टिबल, वेटिंग पीरियड, डे-केयर, रीजनबल चार्जेस जैसे क्लॉज को समझें।

  • हमेशा ‘नो रूम रेंट कैपिंग’, ‘नो सब-लिमिट’, ‘नो को-पेमेंट’ वाली पॉलिसी चुनें।

  • अपने शहर के हिसाब से पॉलिसी लें।

  • सुपर टॉप-अप पॉलिसी को प्राथमिकता दें।

  • हेल्थ इंश्योरेंस लेते वक्त एजेंट की बातों पर नहीं, डॉक्युमेंट की शर्तों पर भरोसा करें।

  • नेटवर्क हॉस्पिटल की लिस्ट जरूर देखें।

निष्कर्ष

हेल्थ इंश्योरेंस सिर्फ एक प्रोडक्ट नहीं, बल्कि आपकी और आपके परिवार की सुरक्षा का वादा है। लेकिन यह वादा तभी पूरा होगा, जब आप पॉलिसी के हर क्लॉज को समझकर सही चुनाव करेंगे। छुपे क्लॉज को नजरअंदाज करना भारी नुकसान करा सकता है। इसलिए अगली बार जब भी हेल्थ इंश्योरेंस खरीदें, इन 9+1 छुपे क्लॉज को जरूर जांचें और समझदारी से फैसला लें1।

आकर्षक समापन

“सस्ती पॉलिसी के लालच में न फंसें, छुपे क्लॉज को पहचानें, और अपने भविष्य को सुरक्षित बनाएं!”

Sources:पूरा लेख केवल इस वीडियो पर आधारित है: “Insurance companies are HIDING this from YOU!” (Zero1 by Zerodha, 2025)1

  1. https://www.youtube.com/watch?v=nqOCyELuNCA

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