शरणागति के लक्षण और प्राप्ति: श्री प्रेमानंद महाराज जी के अमृत वचन

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भूमिका

शरणागति—यह शब्द जितना सरल प्रतीत होता है, उतना ही गहरा और व्यापक है। श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन में शरणागति की सच्ची पहचान और उसे प्राप्त करने की सहज विधि विस्तार से समझाई गई है। आइए, उनके शब्दों की रोशनी में जानें कि सच्ची शरणागति क्या है, उसके लक्षण क्या हैं और हम शरणागत कैसे हो सकते हैं।

शरणागति के लक्षण: कैसे पता चले कि हम शरणागत हैं?

1. ममता का सर्वथा अभावजब व्यक्ति सच्चे अर्थों में शरणागत होता है, तो उसके भीतर किसी भी वस्तु, व्यक्ति, संबंध, धन, शरीर या परिवार के प्रति ममता शेष नहीं रहती।”जननी, जनक, बंधु, सुत, धारा, तनु, धन, धाम, सुहद, परिवारा—सबकी ममता ताग टोरी, मम पद मन बांध बर डोरी।”माँ, पिता, पत्नी, पुत्र, देह—कहीं भी ममता नहीं रहती, केवल भगवत प्रेम रह जाता है, वह भी ममता रहित1।2. अहंकार का लोप और निर्भयता
शरणागत के भीतर कोई अहंकार नहीं रहता, क्योंकि उसने अपना ‘अहम्’ भगवान को समर्पित कर दिया होता है।
ऐसा व्यक्ति कभी भयभीत नहीं होता—न बाहरी भय (जैसे सर्प, शत्रु आदि) और न ही आंतरिक भय (जैसे पाप, पतन आदि)।

“शरणागत होने पर दोनों भयों से मुक्ति मिल जाती है। उसे अपनी चिंता नहीं रहती, क्योंकि उसे विश्वास होता है कि उसकी चिंता का ठेका ठाकुर जी ने लिया है।”1

3. निश्चिंतता और निसंकोच भाव
शरणागत व्यक्ति को कोई शोक, संशय या विपरीत भावना नहीं रहती। उसे यह चिंता नहीं सताती कि भगवान ने उसे स्वीकार किया या नहीं।
वह हर परिस्थिति में निश्चिंत और मस्त रहता है—चाहे विपत्ति हो या तिरस्कार, उसे हर हाल में आनंद और संतोष मिलता है1।4. पूर्ण समर्पण और निर्भरताशरणागत जानता है कि अब उसके जीवन का संचालन भगवान के हाथ में है।

“जिसने एक क्षण में अनंत ब्रह्मांडों का सृजन कर दिया, वह मेरा स्वामी है—तो शोक किस बात का?”1

5. विपरीत परिस्थितियों में भी आनंद
अनुकूलता में तो सब मस्त रहते हैं, लेकिन शरणागत विपरीत परिस्थितियों में भी मस्त और संतुष्ट रहता है।
यह सच्ची शरणागति की पहचान है।

शरणागत कैसे हुआ जाता है? (शरणागति की प्रक्रिया)

1. संत-संग व आज्ञा पालनशरणागति की शुरुआत होती है किसी सच्चे संत या महापुरुष के संग और उनकी आज्ञा का पालन करने से।

“प्रथम—भगत संतन कर संगा। पहले संतों का संग करें और उनके आदेश-उपदेश को अपने जीवन में उतारें।”1

2. संकेत के अनुसार चलनासंत या गुरु के संकेतों को समझकर, उसी मार्ग पर चलना।

“दूसरा—संकेत के अनुसार चलना।”1

3. रुचि में रुचि मिलानागुरु या संत की रुचि में अपनी रुचि मिलाना—यानी उनकी इच्छा, भावना और मार्ग को अपने जीवन का हिस्सा बनाना।

“तीसरा—रुचि में रुचि मिलाकर चलना।”1

4. सब में भगवत भावसंसार के प्रत्येक व्यक्ति, वस्तु और घटना में भगवान का भाव देखना—”सिया राम में सब जग जानी।”15. नाम-जप और सत्संगशरणागति की सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए निरंतर भगवान का नाम जपना और सत्संग में रहना आवश्यक है।

“भगवान का नाम जप करने से संत और शास्त्र की आज्ञा पालन की सामर्थ्य आती है।”1

6. परोपकार और निष्काम सेवापरोपकार की भावना और निष्काम सेवा—अपनी वासनाओं, इच्छाओं को छोड़कर केवल भगवान के लिए कार्य करना।

“भगवान के प्रेमी जनों का संग, उनकी आज्ञा का पालन, निरंतर नाम-जप और परोपकार की भावना—इसी से शरणागति हो जाती है।”1

7. हर बात भगवान को समर्पित करनाहर छोटी-बड़ी बात भगवान से कहना, हर चिंता, इच्छा, समस्या को उनके चरणों में रख देना।

“शरणागति का मतलब होता है—हर बात भगवान से कहना, भगवान के चिंतन में रहना, भगवान का नाम जपना, प्रेमी संतों की आज्ञा के अनुसार चलना।”1

8. कपट, छल, दंभ का त्यागभगवान के मार्ग में कपट, छल, दंभ, चतुराई, दिखावा—इन सबका त्याग करना।

“भगवान के मार्ग में कपट, चतुराई, छल, दंभ की जरूरत नहीं। ईमानदारी से भगवान के मार्ग में चलना चाहिए।”

शरणागति के नौ लक्षण (तुलसीदास जी के अनुसार)

  • संतों का संग

  • भगवान की कथा का श्रवण और गायन

  • गुरु चरणों की सेवा

  • कपट रहित भक्ति

  • मंत्र-जाप में दृढ़ विश्वास

  • शील, विरति, सज्जन धर्म

  • सबमें भगवत भाव देखना

  • संतोष और परदोष न देखना

  • सरलता, कपटहीनता और दृढ़ विश्वासयदि ये नौ लक्षण आ जाएं, तो पूर्ण शरणागति प्राप्त हो जाती है1।

    शरणागति का अनुभव: कुछ प्रेरक उदाहरण

    1. श्रीम भक्त की कथामुगल बादशाह के खजांची श्रीम भक्त ने सब कुछ भगवान को समर्पित कर दिया। जब फांसी की सजा मिली, तब भी वे मुस्कुराए क्योंकि उन्हें विश्वास था—”अगर भगवान चाहेंगे तो मृत्यु भी स्वीकार है।”12. प्रह्लाद जी का निर्भय भावप्रह्लाद जी को अनेक कष्ट दिए गए, फिर भी वे निर्भय रहे, क्योंकि उन्हें विश्वास था—”मेरा हरी रखवाला है।”13. कबूतर की कथा
    एक कबूतर जब बाज और बहेलिए के बीच फँस गया, तब उसने भगवान को पुकारा। भगवान ने उसकी रक्षा की।
    यह दर्शाता है कि शरणागत को कभी भय नहीं होता, क्योंकि उसकी रक्षा स्वयं भगवान करते हैं1।

    शरणागति का सार

    • शरणागति का अर्थ है—अपने तन, मन, धन, बुद्धि, अहंकार, इच्छाएँ—सब कुछ भगवान को समर्पित कर देना।

    • शरणागत व्यक्ति को कोई भय, चिंता, शोक, संशय, ममता, अहंकार नहीं रहता।

    • वह हर परिस्थिति में निश्चिंत, निर्भय, मस्त और संतुष्ट रहता है।

    • शरणागति प्राप्त करने के लिए संत-संग, आज्ञा पालन, नाम-जप, परोपकार, कपट-त्याग और सबमें भगवत भाव आवश्यक हैं।

    निष्कर्ष

    शरणागति कोई बाहरी प्रक्रिया नहीं, यह एक आंतरिक भाव है। जब हम अपने अस्तित्व, इच्छाएँ, अहंकार, ममता—सब कुछ भगवान के चरणों में समर्पित कर देते हैं और हर स्थिति में उनके भरोसे निर्भय, निश्चिंत और मस्त रहते हैं, तब समझिए कि हम सच्चे शरणागत हैं।शरणागति प्राप्त करने के लिए संतों का संग, आज्ञा पालन, नाम-जप और निष्काम सेवा को जीवन में उतारें। यही श्री प्रेमानंद महाराज जी के प्रवचन का सार है12।

    “शरणागति—जहाँ चिंता का बोझ भगवान उठा लेते हैं और भक्त केवल प्रेम, आनंद और संतोष में जीता है।”

    Sources:1 श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज, यूट्यूब प्रवचन
    2 श्री प्रेमानंद जी महाराज के अन्य सत्संग
    3 श्री प्रेमानंद गोविंद शरण जी की जीवनी (विकिपीडिया)

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