Nilesh Shah | Investment Plans: सोना, शेयर या प्रॉपर्टी, लॉन्ग टर्म निवेश किसमें है फायदेमंद ?

लंबी अवधि के लिए सोना, शेयर या प्रॉपर्टी – किसमें निवेश फ़ायदेमंद है, यह समझने के लिए सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि हर एसेट की भूमिका अलग है और सही जवाब हर व्यक्ति की ज़रूरत, समयावधि और रिस्क प्रोफाइल पर निर्भर करता है। इंटरव्यू में निलेश शाह का स्पष्ट संदेश है कि सबसे बेहतर रिटर्न की संभावना लंबी अवधि में इक्विटी (शेयर / इक्विटी म्यूचुअल फंड) में होती है, जबकि गोल्ड और प्रॉपर्टी सपोर्टिंग रोल में रहते हैं।


भारत का नया निवेश परिदृश्य

भारत में एसेट मैनेजमेंट इंडस्ट्री पिछले 40 साल में 300 करोड़ से बढ़कर 70 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा हो चुकी है, जो दिखाती है कि लोग परंपरागत बचत से आगे बढ़कर निवेश सीख रहे हैं। निलेश शाह के अनुसार भारतीयों में बचत की आदत तो हमेशा से रही है, लेकिन निवेश की समझ अभी भी उतनी विकसित नहीं है जितनी होनी चाहिए।

  • प्रोविडेंट फंड और पेंशन फंड का साइज़ अभी भी कई विकसित देशों की तुलना में काफी छोटा है।
  • म्यूचुअल फंड जैसे उत्पादों ने आम लोगों को महंगाई से ऊपर रिटर्न दिलाने में अहम भूमिका निभाई है।

सोना: सुरक्षा की ढाल, पर सीमित रिटर्न

निलेश शाह साफ कहते हैं कि सोना और चांदी में कोई इनहेरेंट वैल्यू नहीं, उनकी वैल्यू ज्यादातर परसेप्शन और सेंट्रल बैंकों की खरीदी पर आधारित है। इन पर न डिविडेंड आता है, न बोनस, इसलिए इन्हें प्राइमरी रिटर्न इंजन की बजाय सुरक्षा (हेज) के रूप में देखना बेहतर है।

सोने के बारे में मुख्य बातें

  • 2020 के बाद से ग्लोबल गोल्ड प्राइस में तेज़ी आई, शुरुआत में यह सस्ता हो जाने के कारण रिकवरी थी।
  • रूस–यूक्रेन युद्ध के बाद रूस के फॉरेन रिज़र्व फ्रीज़ होने से सेंट्रल बैंकों में डर बढ़ा और उन्होंने सोना ज़्यादा खरीदना शुरू किया, जिससे मांग बढ़ी और दाम ऊपर गए।
  • रूस, चीन, भारत, तुर्की जैसे देशों के सेंट्रल बैंक अपने रिज़र्व में सोने की हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं, जबकि वेस्टर्न सेंट्रल बैंकों में पहले से ही 60–80% तक रिज़र्व गोल्ड में है।

रिस्क कहाँ है?

  • अगर सेंट्रल बैंक खरीदते रहे तो गोल्ड में तेजी जारी रह सकती है, लेकिन जिस दिन वे बिकवाली शुरू करेंगे, गोल्ड में बड़ा करेक्शन संभव है; अतीत में 800 डॉलर से 200 डॉलर तक गिरावट देखी जा चुकी है।
  • गोल्ड की कीमतें थोड़ा सा डिमांड-सप्लाई बैलेंस बदलने पर तेज़ी से ऊपर-नीचे हो सकती हैं, क्योंकि यह एक कमोडिटी की तरह वेटिंग स्केल पर चलता है।

कैसे और कितना सोना लें?

  • छोटी क्वांटिटी (1–10 ग्राम) में फिजिकल गोल्ड लेने पर मेकिंग चार्ज और ट्रांज़ैक्शन कॉस्ट इतनी ज़्यादा हो सकती है कि एक साल का रिटर्न वहीं खत्म हो जाए।
  • छोटी रकम के लिए गोल्ड ETF या गोल्ड फंड बेहतर विकल्प माने गए हैं, क्योंकि उनकी कॉस्ट कम रहती है।
  • गोल्ड–सिल्वर पोर्टफोलियो में सीमित प्रतिशत (कुल पोर्टफोलियो का छोटा हिस्सा) ही रखना समझदारी है, क्योंकि यह रिटर्न से ज़्यादा डाइवर्सिफिकेशन और सुरक्षा के लिए है।

शेयर (इक्विटी): सबसे बड़ी रिटर्न क्षमता

इक्विटी मार्केट को निलेश शाह लंबे समय की दौड़ में सबसे बेहतर रिटर्न देने वाला एसेट मानते हैं, बशर्ते निवेशक सही तरीके से और लंबी अवधि के लिए निवेश करे। म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री के 25–30 साल के इतिहास में इक्विटी फंड्स ने महंगाई को अच्छी तरह बीट किया है।

इक्विटी की खासियतें

  • सही शेयर या सही इक्विटी फंड में लंबी अवधि (10–15–20 साल) तक निवेश करने पर रिटर्न गोल्ड और प्रॉपर्टी से ज़्यादा मिलने की संभावना रहती है।
  • म्यूचुअल फंड्स छोटे निवेशकों को प्रोफेशनल फंड मैनेजमेंट, डाइवर्सिफिकेशन और सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट का मौका देते हैं, जिससे वे अकेले शेयर चुनने की गलती से बच सकते हैं।

रिस्क और मनोविज्ञान

  • मार्केट में गिरावट अक्सर सबसे अच्छा निवेश समय होती है, लेकिन लोग डर के कारण उस समय निवेश रोक देते हैं या पैसा निकाल लेते हैं।
  • सही सलाह यह है कि अपनी जरूरत, रिस्क प्रोफाइल और लक्ष्य देखकर निवेश करें, सिर्फ पिछले 6 महीने का रिटर्न देखकर फ़ैसला न लें; खुद फंड हाउस भी विज्ञापन में कहते हैं कि “past performance is no indicator of future performance”।
  • निलेश शाह के अनुसार निवेश ज्ञान से कम और भय–लालच के संतुलन से ज़्यादा चलता है; संतुलित निवेशक अक्सर सबसे अच्छा रिटर्न बनाते हैं।

किसके लिए क्या?

  • जिनके पास समय, समझ और रिसर्च की क्षमता है, वे सीधे शेयर/बॉन्ड चुन सकते हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए म्यूचुअल फंड्स के ज़रिए निवेश ज़्यादा व्यावहारिक है।
  • मल्टी एसेट एलोकेशन फंड जैसे प्रोडक्ट्स में फंड मैनेजर खुद इक्विटी, गोल्ड, डेब्ट में बैलेंस तय करते हैं; निलेश शाह इसे आम निवेशक के लिए “सारे मर्ज की एक दवा” कहते हैं।

प्रॉपर्टी: अवसर भी, जोखिम भी

रियल एस्टेट में रिटर्न बहुत हद तक इस पर निर्भर है कि आपने कौन सी, कहाँ और किस स्थिति की प्रॉपर्टी खरीदी है, इसलिए इसमें चयन की गलती महंगी पड़ सकती है।

प्रॉपर्टी की चुनौतियाँ

  • गलत या डिस्प्यूटेड प्रॉपर्टी लेने पर 10–15 साल तक डेवलपमेंट नहीं होती, केस या अटके प्रोजेक्ट में पैसा फँस सकता है।
  • लिक्विडिटी कम है; जरूरत पड़ने पर तुरंत बेचकर पैसे निकालना मुश्किल हो सकता है, जबकि शेयर/म्यूचुअल फंड में यह आसान है।

फिर भी इसकी भूमिका

  • लॉन्ग टर्म में, सही लोकेशन और सही प्रोजेक्ट चुनने पर प्रॉपर्टी अच्छी वेल्थ बना सकती है, खासकर रहने और किराये की जरूरतों के लिए।
  • लेकिन निलेश शाह स्पष्ट कहते हैं कि रिटर्न की संभावना की तुलना करें तो इक्विटी > गोल्ड व रियल एस्टेट रहती है; यानी गोल्ड और प्रॉपर्टी सपोर्टिंग रोल में हैं, मुख्य इंजन इक्विटी है।

किसमें कितना और कैसे निवेश करें?

इंटरव्यू में निलेश शाह किसी एक फिक्स थंब रूल (जैसे 70–30 या 50–50) पर ज़ोर नहीं देते, बल्कि हर व्यक्ति की जरूरत और रिस्क प्रोफाइल के आधार पर सलाह की बात करते हैं। फिर भी कुछ आसान सिद्धांत निकलते हैं जो आम निवेशक के लिए उपयोगी हो सकते हैं।

1. अपनी “लंबी अवधि” खुद तय करें

  • अगर लक्ष्य बच्चों को इनहेरिटेंस देना है, तो आपके लिए लंबी अवधि आपकी जीवन अवधि तक है।
  • अगर किसी खास जरूरत (जैसे 1–2 साल में फंड चाहिए) के लिए निवेश कर रहे हैं, तो वही अवधि आपके लिए “लंबी” हो सकती है; ज़रूरत से पहले पैसा न निकालने की शर्त पर।

2. रिस्क प्रोफाइल और उम्र का रोल

  • एक सामान्य thumb rule यह बताया जाता है कि “100 – उम्र = इक्विटी का प्रतिशत” या “100 – उम्र = सेफ एसेट्स का प्रतिशत”; यानी उम्र बढ़ने के साथ सेफ एसेट्स का हिस्सा बढ़ता है, पर हर 60 साल के व्यक्ति की रिस्क प्रोफाइल एक जैसी नहीं होती।
  • जिनके पास पेंशन या स्थिर इनकम है और वे पैसा आने वाली पीढ़ी के लिए रख रहे हैं, वे ज़्यादा रिस्क ले सकते हैं; जो खुद उसी पैसे पर निर्भर हैं, उन्हें ज़्यादा सेफ रहना चाहिए।

3. गोल्ड–सिल्वर का अनुपात

  • सिल्वर में अभी मोमेंटम स्ट्रॉन्ग बताया गया, क्योंकि उसमें इंडस्ट्रियल डिमांड भी है और कुछ सेंट्रल बैंक खरीदी भी।
  • गोल्ड को “लंबी रेस का घोड़ा” कहा गया, यानी स्थिरता और दीर्घकालीन वैल्यू स्टोर के लिए बेहतर।
  • जिनको खुद बैलेंस तय करना कठिन लगे, उनके लिए गोल्ड–सिल्वर फंड ऑफ फंड जैसा प्रोडक्ट, जिसमें फंड मैनेजर खुद गोल्ड–सिल्वर का एलोकेशन बदलता है, एक विकल्प हो सकता है।

4. फिक्स्ड डिपॉज़िट बनाम म्यूचुअल फंड

  • पुरानी पीढ़ी अभी भी FD को सबसे सुरक्षित मानती है, क्योंकि उसमें रिटर्न निश्चित दिखता है और पूँजी गंवाने का डर कम लगता है।
  • लेकिन निलेश शाह कहते हैं कि रिटर्न और रिस्क एक ही सिक्के के दो पहलू हैं; बिना रिस्क लिए लम्बे समय में महंगाई से ऊपर रिटर्न मिलना मुश्किल है।
  • समाधान के रूप में हाइब्रिड फंड्स सुझाए जाते हैं, जिनमें 25% से 80% तक इक्विटी हो सकती है और बाकी डेब्ट में होता है, जिससे रिस्क कंट्रोल में रहते हुए FD से बेहतर संभावित रिटर्न मिल सकता है।

5. आम निवेशक के लिए आसान फ़ॉर्मूला

  • नियमित निवेश की आदत: “बूंद–बूंद से सागर” – छोटी रकम भी SIP के ज़रिए बड़ी बन सकती है।
  • लंबी अवधि पर फोकस: जल्दी रिज़ल्ट चाहने से लोग गलत समय पर खरीद–फरोख्त कर बैठते हैं; जल्दी का काम यहाँ भी नुक़सानदेह है।
  • डाइवर्सिफिकेशन: “डोंट पुट ऑल एग्स इन वन बास्केट” – इक्विटी, डेब्ट, गोल्ड आदि का मिला-जुला पोर्टफोलियो महंगाई को बीट करने में मदद करता है।

निष्कर्ष: आपके लिए सही कॉम्बिनेशन क्या हो सकता है?

नीलेश शाह के विचारों को आसान शब्दों में समझें तो लंबी अवधि के निवेश के लिए मोटा-मोटा संदेश यह है कि सबसे ज़्यादा रिटर्न की संभावना इक्विटी (शेयर / इक्विटी म्यूचुअल फंड) में है, जबकि गोल्ड पोर्टफोलियो की सुरक्षा और डाइवर्सिफिकेशन के लिए सीमित मात्रा में ठीक है और प्रॉपर्टी सही चुनने पर मददगार लेकिन रिस्की और कम लिक्विड एसेट है। आम निवेशक, जिसे मार्केट का ज्यादा ज्ञान या समय नहीं, उसके लिए मल्टी एसेट एलोकेशन फंड या अच्छे एडवाइज़र की मदद से बनाया गया डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो सबसे व्यावहारिक रास्ता बन सकता है।

अगर चाहें तो अगला कदम यह हो सकता है कि आपकी उम्र, आय, लक्ष्य और जोखिम सहने की क्षमता के आधार पर एक उदाहरणी पोर्टफोलियो (कितना इक्विटी, कितना गोल्ड, कितना डेब्ट आदि) भी तैयार किया जा सकता है।

  1. https://www.youtube.com/watch?v=qdTC0GNPRHI

Related Posts

एक्सटेंडेड वारंटी घाटे का सौदा क्यों? कंपनियों के लिए ‘चाँदी’ क्यों?

एक्सटेंडेड वारंटी होती क्या है? एक्सटेंडेड वारंटी वह अतिरिक्त सुरक्षा योजना है जो आपको प्रोडक्ट की कंपनी या डीलर, सामान्य कंपनी वारंटी खत्म होने के बाद के समय के लिए…

Continue reading
क्यों SWP से कमाई रेंटल इनकम से बेहतर है ?

SWP क्या होता है? SWP यानी Systematic Withdrawal Plan म्यूचुअल फंड से पैसे निकालने का एक प्लान है, जिसमें आप पहले एकमुश्त या बड़ी रकम म्यूचुअल फंड में लगाते हैं…

Continue reading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You Missed

मेरी अयोध्या की यात्रा का अनुभव आपके काम आ सकता है

मेरी अयोध्या की यात्रा का अनुभव आपके काम आ सकता है

Nilesh Shah | Investment Plans: सोना, शेयर या प्रॉपर्टी, लॉन्ग टर्म निवेश किसमें है फायदेमंद ?

Nilesh Shah | Investment Plans: सोना, शेयर या प्रॉपर्टी, लॉन्ग टर्म निवेश किसमें है फायदेमंद ?

पैसे को बैंक में मत रखो

पैसे को बैंक में मत रखो

स्कूल पेरेंट्स मीटिंग में ज़्यादातर बच्चों को डाँट क्यों पड़ती है?

स्कूल पेरेंट्स मीटिंग में ज़्यादातर बच्चों को डाँट क्यों पड़ती है?

किशोर बच्चे माँ‑बाप की बात क्यों नहीं सुनते?

किशोर बच्चे माँ‑बाप की बात क्यों नहीं सुनते?

अगर कोई हमारी मेहनत से कमाया हुआ धन हड़प ले तो क्या करें?

अगर कोई हमारी मेहनत से कमाया हुआ धन हड़प ले तो क्या करें?