“कभी-कभी कठिन परिस्थितियों में चाहकर भी सकारात्मक विचार नहीं आते — तब क्या करें? (EN)

मुश्किल परिस्थितियों में सकारात्मक सोच: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के अमूल्य विचार

जीवन में जब कठिनाइयाँ आती हैं, तो अक्सर नकारात्मक विचार मन में घर कर जाते हैं। श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के अनुसार, ऐसी स्थिति में सकारात्मक सोच लाना केवल भगवान की कृपा और सत्संग, नाम जप, तथा अध्यात्मिक ज्ञान से ही संभव है। महाराज जी बताते हैं कि हर विपत्ति हमारे मंगल के लिए आती है और अगर हम नाम जप, भगवान की कथा, और भक्तों के चरित्र का श्रवण करते हैं, तो हमारे हृदय में सकारात्मक विचार स्वतः जागृत हो जाते हैं।

महाराज जी के अनुसार, समाज में बढ़ती हिंसा, अपराध और पारिवारिक विघटन का मूल कारण अध्यात्मिक अज्ञानता है। यदि हम अपने जीवन में ज्ञान और भक्ति को स्थान दें, तो न केवल हम स्वयं सुखी रहेंगे, बल्कि समाज में भी शांति और प्रेम का संचार होगा। महाराज जी कहते हैं कि जैसे शरीर के लिए प्राण और भोजन जरूरी है, वैसे ही जीवन के लिए अध्यात्मिक ज्ञान और सत्संग अनिवार्य है।

इसलिए, जब भी कठिन समय आए, तो भगवान का नाम स्मरण करें, सत्संग करें, और अपने आचरण को शुद्ध रखें। यही जीवन को आनंदमय और सफल बनाने का सबसे सरल और प्रभावी उपाय है।

महाराज जी का शब्द दर शब्द उत्तर

प्रश्न -“कभी-कभी कठिन परिस्थितियों में चाहकर भी सकारात्मक विचार नहीं आते — तब क्या करें?

महाराज जी: क्योंकि भजन नहीं है भाई, हमारे अंदर वो वस्तु नहीं है जो हमें पॉजिटिव ला दे। अगर पॉजिटिव आ गया तो फिर विपत्ति किस बात की? हर विपत्ति में पॉजिटिव विचार आ जाना, यह भगवान की कृपा से होता है। हर विपत्ति हमारे मंगल के लिए आती है, हमारे अमंगल का नाश करने वाली होती है। तो हमें चाहिए कि नाम जप करें, भगवान की लीला कथा सुने, भक्तों के चरित्र सुने, जिससे हमारा हृदय पवित्र हो, हमारे अंदर नाम रूपी खजाना एकत्रित हो, तो हमारे पॉजिटिव विचार हो जाएं।

अभी जो हम आपको अपनी बात बता रहे हैं, यह पॉजिटिव विचार की ही तो है। पॉजिटिव विचार के कारण हम थमे हुए हैं, जैसे एकदम बाढ़ आ जाए और उसका तट उसको रोके हुए हो, वैसे बाढ़ आ गई है कष्ट की, पर विचार रूपी तट रोके हुए है। बड़ी कृपा है लाडली जी की, अपार कृपा है। बस हर बार यह बड़ी कृपा है, बड़ी कृपा है। कष्ट के समय भी राधा राधा राधा, तो कष्ट समझ में ही नहीं आता।

अब भगवान से जुड़े नहीं, नाम जप कर नहीं रहे, अध्यात्म का ज्ञान है नहीं, तब तो माया पीस ही देगी, फिर तो पीस देगी। देखो ना क्या–क्या हाल हो रहे हैं — एक-एक इंच जमीन के लिए भाई-भाई का खून कर रहा है, अपनी वासना के लिए पत्नी-पति का खून कर रही, पति-पत्नी का खून कर रहे, ये क्या हो रहा है? ये क्या हो रहा है? ज्ञान नहीं है, अध्यात्म विहीन है, राक्षसी भाव जागृत हो रहा है, और वो नष्ट होते चले जा रहे हैं।

हमारे समाज में ये जो जितनी गंदी बातें हो रही हैं, क्राइम हो रहे हैं, उनका कारण अज्ञान ही तो है। अगर अज्ञान नष्ट हो जाए — अरे यार, भाई है, एक इंची जमीन क्या, एक बीता से तो ले जा यार, छोटा या बड़ा खा पी जा, मेरा भाई तो है। और जब मुझे पति मिल गया मेरे कर्मों के अनुसार, तो मुझे दूसरे पुरुष की तरफ झांकने की जरूरत क्या है? जैसा भी हमारे कर्म थे, हमारा पति मिल गया, उसी को भगवान मान करके उसका सेवन करो, अपनी अर्धांगिनी, अपना दिल है, अपना हृदय, पत्नी जैसा हमारे प्रारब्ध में थी, वैसी मिल गई।

दोनों हम भावों का ऐसा सामंजस्य बैठा लें कि एक दूसरे को प्यार करते हुए जीवन व्यतीत करें — यह तो है बुद्धिमानी। तो इसलिए बहुत अध्यात्म की जरूरत है, हमें कंट्रोल करने के लिए। जैसे हम जीने के लिए सांस की जरूरत है, प्राणों के पोषण के लिए अन्न की जरूरत है, ऐसे हमें जिंदगी सही बिताने के लिए ज्ञान की जरूरत है। अगर हमारा ज्ञान ना हुआ, तो 5 मिनट में ऐसा कर्म बन जाएगा कि पूरे जीवन जेल भोगना पड़ेगा।

तो हमें अपने जीवन जीने के लिए ज्ञान की जरूरत है, जो हम अपने इंद्रियों पर कंट्रोल कर सके, अपने मन पर कंट्रोल कर सके, और हम पॉजिटिव विचार वाले बनें। वो नाम जप और सत्संग, सत्संग के द्वारा ज्ञान प्राप्त करो और सही आचरण करो, तो जीवन आनंदमय हो जाएगा। नहीं तो जरा सी गुस्सा की, एक को मार दिया, वो तो मर गया, तुम पूरे आजीवन झेल या फांसी की सजा। कितना मतलब सोचो, हमारी छोटी-छोटी गलतियों से हमारे समाज का होगा क्या?

जब ज्ञान नहीं होगा, तो राक्षसी भाव होगा, पशुता होगी, हिंसा होगी — ये बहुत। अब देखो, हमारे चींटी काटे तो कैसा लगता है? लगता है ना कि हमारे काट रही? अब वो किसी लड़की को गायब करके ले जाते हैं, हिंसा कर देते हैं, मार देते हैं — अब ये राक्षसी बुद्धि है कि नहीं? बुद्धि तो हम यही कह रहे हैं कि सबको ज्ञान की जरूरत है, सबको अध्यात्म की जरूरत है। अगर अध्यात्मवान बनोगे, तो एक आनंदमय जीवन होगा, दूसरों को सुख देने की भावना आएगी।”

[Source: Based on the provided search result transcript, 30:35–34:43]

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