यहाँ पर ओडिशा उच्च न्यायालय के उस ऐतिहासिक फैसले का विस्तार से हिंदी लेख प्रस्तुत है, जिसमें कहा गया है कि दूसरी पत्नी के बच्चों को भी उनके दिवंगत हिंदू पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलता है।
भूमिका
भारत के पारिवारिक कानूनों में संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर कई बार जटिल विवाद उत्पन्न होते हैं, विशेषकर जब परिवार में कई विवाह या संबंध हों। ओडिशा उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक मामले में स्पष्ट रूप से निर्णय दिया है कि पहली पत्नी (वैध विवाह) एवं दूसरी पत्नी (शून्य या शून्यता योग्य विवाह) के बच्चों को पिता की पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति में अधिकार प्राप्त होगा। यह निर्णय न केवल समाज में समावेशिता और न्याय को बढ़ाता है, बल्कि ऐसे बच्चों के अधिकारों को भी सुनिश्चित करता है जो पहले प्रायः उपेक्षित रह जाते थे।
मामले का संक्षिप्त परिचय
यह फैसला श्री कैलाश चंद्र मोहंती के परिवार से जुड़ा है। उनकी पहली पत्नी अनुसया मोहंती ने परिवार न्यायालय भुवनेश्वर में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने खुद को वैध विवाहिता और कानूनी उत्तराधिकारी घोषित करने की मांग की थी। अनुसया का विवाह हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार 5 जून 1966 को हुआ था और उनसे दो बेटें हुए। दूसरी ओर, संध्या रानी साहू (दूसरी पत्नी) केवल एक नर्स थीं, जिन्होंने दिवंगत श्री मोहंती के साथ गैर-वैध विवाह सम्बंध स्थापित किया था।
परिवार न्यायालय की सुनवाई के दौरान पहली पत्नी को उनकी संपत्ति में अधिकार दिया गया, लेकिन दूसरी पत्नी की मौजूदगी नहीं रही, यहाँ तक कि उनके अधिवक्ता भी सुनवाई के दौरान नहीं रहे। कोविड-19 महामारी के कारण भी संध्या को अद्यतन स्थिति की जानकारी नहीं मिल सकी, जिससे उनका पक्ष सही प्रकार से नहीं रखा जा सका।
अपील एवं अदालत की प्रक्रिया
संध्या (दूसरी पत्नी) ने ओडिशा उच्च न्यायालय में निर्णय को चुनौती दी। कोर्ट ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि संध्या को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका नहीं दिया गया। साथ ही, संपत्ति/रेंट आदि के बटवारे के लिए अंतरिम व्यवस्था के तहत कोर्ट ने 60:40 के अनुपात में पहली पत्नी और दूसरी पत्नी को एक अस्थायी बंटवारा तय किया।
मद्रास उच्च न्यायालय के अद्यतन आदेश के बाद, परिवार न्यायालय ने पुनः सुनवाई कर अनुसया को संपत्ति में अधिकार दे दिया। संध्या ने एक बार फिर अपील की।
न्यायालय द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण प्रश्न
- क्या पहले वैध विवाहिता का कोर्ट में marital status का घोषणा माँगने का अधिकार है या उसे दीवानी अदालत में जाना चाहिए था?
- क्या विवाद हेतु दाखिल वाद मृतक के निधन के तीन साल बाद दाखिल होने के कारण समयबद्धता से barred है?
- क्या परिवार न्यायालय ने दूसरी पत्नी के बच्चों को संपत्ति से वंचित कर Section 16 HMA का उल्लंघन किया?
न्यायालय ने खासतौर पर तीसरे बिंदु—पैतृक संपत्ति के बंटवारे व दूसरी पत्नी के बच्चों के अधिकार को लेकर निर्णय दिया।
विवाद के मूल मुद्दे
मूलतः यह विवाद इस बात पर था कि क्या दूसरी पत्नी (शून्य/शून्यता योग्य विवाह) के बच्चों को पैतृक संपत्ति में वैध उत्तराधिकार मिलेगा या नहीं। दिलचस्प बात यह है कि अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Revanasiddappa v. Mallikarjun (2023) को उद्धृत किया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हिदू विवाह अधिनियम की धारा 16(3) के तहत ऐसे बच्चों को केवल वही संपत्ति मिलेगी, जो उनके माता-पिता के हिस्से में आती है—मतलब:
- माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्ति
- पैतृक संपत्ति में वह हिस्सा, जो माता-पिता को काल्पनिक बंटवारे (notional partition) में मिलता यदि मृतक के जीवनकाल में बंटवारा होता
हिंदू विवाह अधिनियम और उत्तराधिकार अधिनियम का महत्त्व
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 शून्य या शून्यता योग्य विवाहों से उत्पन्न बच्चों को वैधता प्रदान करती है, जिससे वे संपत्ति के उत्तराधिकार के अधिकार के पात्र होते हैं।
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत ये बच्चे कक्षा-1 उत्तराधिकारी (Class-I heir) की श्रेणी में आते हैं, जिससे उन्हें स्व-अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलता है।
- धारा 16(3) यह स्पष्ट करती है कि ऐसी वैधता केवल माता-पिता की संपत्ति तक सीमित है, अन्य रिश्तेदारों की नहीं।
काल्पनिक बंटवारे (Notional Partition) की अवधारणा क्या है?
जब किसी हिंदू मिताक्षरा कुटुंब के सदस्य की मृत्यु होती है, तो उसकी पैतृक संपत्ति में उसके हिस्से की गणना काल्पनिक बंटवारे के आधार पर की जाती है। मकसद है—मृतक के जीवनकाल में बंटवारा हुआ मानना। उसके बाद उस हिस्से में उनके वैध उत्तराधिकारियों—चाहे पहली पत्नी या दूसरी पत्नी से उत्पन्न बच्चे हों—का बराबरी से अधिकार बनता है।
न्यायालय का अंतिम फैसला
ओडिशा उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया:
- दूसरी पत्नी के बच्चों को पिता की स्व-अर्जित संपत्ति में पूर्ण अधिकार है।
- पैतृक संपत्ति में वह हिस्सा—जो पिता को काल्पनिक बंटवारे में मिलता—भी उनका अधिकार है।
- पहली पत्नी उत्तराधिकारी बनी रहती हैं, लेकिन बच्चों को बंचित नहीं किया जा सकता।
- Family Court के बंटवारे के आदेश में संशोधन किया गया, जिससे दूसरी पत्नी के बच्चों को अधिकार मिला।
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस फैसले से कोई नया कानून स्थापित नहीं हुआ है, बल्कि पहले से तय वैधानिक स्थिति की पुष्टि हुई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हवाले से ओडिशा हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि अदालतें और समाज शून्य/शून्यता योग्य विवाह से उत्पन्न बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं ताकि वे संपत्ति से वंचित न रह जाएं।
उत्तराधिकार में स्पष्टता और योजना की आवश्यकता
कोर्ट ने यह भी सलाह दी कि बहु विवाह या जटिल परिवार संरचना वाले मामलों में उत्तराधिकार की स्पष्ट योजना आवश्यक है। माता-पिता को वसीयत, ट्रस्ट, इत्यादि दस्तावेज़ों का सहारा लेना चाहिए ताकि कानूनी विवाद या अस्पष्टता से बचा जा सके। ट्रस्ट जिंदा रहते हुए संपत्ति की सुरक्षात्मक व्यवस्था कर सकते हैं, जबकि वसीयत मृत्यु के बाद लागू होती है।
समाज पर असर
- विवाह के संप्रदायिक स्वरूप को सुरक्षित रखते हुए कोर्ट ने निर्दोष बच्चों के अधिकारों की पुष्टि की।
- अदालत का विचार है कि संपत्ति के बंटवारे में स्पष्टता समाज में शांति और न्याय को बढ़ावा देगी।
निष्कर्ष
ओडिशा उच्च न्यायालय का फैसला भारतीय पारिवारिक कानून में बेहद महत्वपूर्ण है। यह बच्चों की, विशेषकर दूसरी पत्नी के बच्चों की, पैतृक संपत्ति में भागीदारी के अधिकारों को सुनिश्चित करता है। समाज में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां दूसरी शादी या शून्यता योग्य विवाह के बच्चों को संपत्ति से वंचित कर दिया जाता था। अब सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के इन फैसलों के बाद ऐसे बच्चों को भी बराबरी का अधिकार मिलेगा, जिससे न्याय, समावेशिता व पारिवारिक सामंजस्य सुनिश्चित होगा।
क्या सीखें?
- अगर परिवार में कई विवाह हैं, तो संपत्ति की योजना बनाते समय आगामी उत्तराधिकार को ध्यान में रखें।
- वसीयत या ट्रस्ट का सहारा लें।
- कानून की जानकारी रखें ताकि कोई भी पक्ष अपने अधिकार से वंचित न रहे।
- सभी बच्चों के लिए सामाजिक सुरक्षा और न्याय की व्यवस्था होनी चाहिए।
इस निर्णय का महत्व
यह फैसला सभी हिंदू परिवारों के लिए एक मिसाल बन गया है। कानून के तहत अब:
- दूसरी पत्नी के बच्चों के अधिकार भी बराबरी के हैं।
- पैतृक एवं स्व-अर्जित संपत्ति दोनों में हिस्सा मिलेगा।
- कोई भी बच्चा केवल विवाह की तकनीकी वजहों से संपत्ति से वंचित नहीं रहेगा।
इसी तरह के फैसले समाज में न्याय और एकजुटता को बढ़ावा देते हैं और कानून की सही व्याख्या प्रस्तुत करते हैं।
यह लेख आपके दिए गए अंग्रेज़ी स्रोत के आधार पर तैयार किया गया है, जिसमें सभी मुद्दों, कोर्ट की कार्यवाही और कानूनी प्रावधानों का विस्तार से वर्णन है। अगर आपको लेख में और विस्तार या उदाहरण चाहिए, तो जरूर बताएं।





