
यहां प्रस्तुत है “Counter से जप करना और माला से जप करने पर फल में क्या अंतर पड़ेगा?” विषय पर आधारित एक हिंदी लेख, जो परम पूज्य वृंदावन रसिक संत श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचनों के सारांश एवं विस्तार पर केंद्रित है। यह लेख जप-साधना की पारंपरिक और आधुनिक विधियों, उनके महत्व, उपयोगिता, तथा आध्यात्मिक दृष्टिकोण का समग्र विवेचन प्रस्तुत करता है।
भूमिका
आध्यात्मिक साधना में “जप” प्रमुख साधनों में से एक है। जप का अर्थ है — किसी भी देवता, मंत्र या मंत्रवत नाम का निरंतर उच्चारण। यह उच्चारण सामान्यतः माला (रुद्राक्ष, तुलसी या अन्य) के माध्यम से गणना करते हुए या आज के आधुनिक युग में उपलब्ध इलेक्ट्रॉनिक काउंटर की सहायता से, अथवा कभी-कभी अंगुलियों या अन्य गणनाओं से किया जाता है। इन विधियों में कौन-सी श्रेष्ठ या प्रभावशाली है? क्या काउंटर से जप करने पर भी वही फल मिलता है, जो माला से जप करने पर मिलता है? इन प्रश्नों का उत्तर परम श्रद्धेय संत श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने अपने प्रवचन में विस्तार से समझाया है।
जप का आध्यात्मिक आधार
सभी वैदिक, पुराणिक और संत-परंपरा के अनुसार, “नाम जप” की महिमा अवर्णनीय है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्पष्ट कहा है — “भाव कुभाव अनख आलसहु, नाम जपत मंगल दसहु।” अर्थात, कोई भी व्यक्ति जिस भावना से भी सद्गुणों के साथ या अज्ञानवश, आलस्यवश, जप करता है, उसका कल्याण और मंगल दसों दिशा में होता है। संत-महापुरुषों का मत रहा है कि “नाम जप” स्वयं में पूर्ण है, चाहे वह किसी भी माध्यम से किया जाए, पुनः भी आवश्यक है कि जप जिह्वा (जीभ) से ही हो, केवल माला या काउंटर से गणना करने से नहीं, बल्कि मुख से नामोच्चार ही सच्चा जप है।
जप करने के माध्यम : माला, काउंटर, अथवा अन्य
माला से जप
भारतीय संस्कृति में माला (रुद्राक्ष, तुलसी, चंदन, आदि) से जपने का विशिष्ट स्थान है। माला से जपना अनुशासन, निरंतरता तथा मन की एकाग्रता को उत्पन्न करता है। माला में 108 दाने होते हैं, जो दिव्यताओं का प्रतीक माने जाते हैं, तथा एक पूरी माला पूर्णता का संकेत देती है। माला द्वारा साधना करते समय जब साधक स्नान-ध्यान कर एकाग्रचित होकर बैठता है, तो वातावरण, साधना और मानसिकता का संयोजन होता है। यह शास्त्र में अनुमोदित स्वरूप है।
काउंटर से जप
वर्तमान युग में, व्यस्त जीवन-संघर्ष एवं औपचारिकताओं के कारण माला लेकर हर समय, विशेष रूप से ऑफिस या सार्वजनिक स्थलों पर जप करना संभव नहीं हो पाता। ऐसे में डिजिटल या मैकेनिकल काउंटर का चलन बढ़ा है, जो हर जाप की संख्या को वही रिकॉर्ड कर देता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि बिना माला के भी कोई भी व्यक्ति हर स्थान पर निरंतर जप कर सकता है। महाराज जी कहते हैं – “काउंटर तो केवल गिनती कर रहा है, वह जप नहीं कर रहा है। जबान से उच्चारित नाम ही साधक का कल्याण करता है।”
अन्यमाध्यम — अंगुलियों, कंकर, कील आदि से
महराज जी उदाहरण देते हैं कि कुछ संत-महापुरुष ना माला, ना काउंटर, बल्कि कंकड़, कील, अथवा अंगुलियों की सहायता से भी जप करते थे। महत्वपूर्ण बात साधना के प्रति मन की आकांक्षा एवं श्रद्धा की है, न कि माध्यम या यंत्र की।
फल किसका और किसे मिलता है?
सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यही है कि “जप का फल किसे और कैसे मिलता है?” तो संतों के अनुसार, जप का फल “मुख से नामोच्चार, मन की एकाग्रता और भाव की सच्चाई” पर निर्भर है, न कि केवल माध्यम/गणना पर। माला, काउंटर, कंकर, कील, अंगुली आदि तो मात्र सहायक साधन हैं। नाम के उच्चारण में शक्ति है, उसी में दिव्यता है। “माला फेरत जुग गया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका छोड़ि दे, मन का मनका फेर।” यह पद संतों ने इसलिए कहा क्योंकि कभी-कभी सेवक केवल बाह्य अनुशासन से चिपक कर केवल गिनती-पूर्ति में ही भटक जाता है, मन सार्थक नहीं करता। यदि माला या काउंटर केवल दिखावा बन कर रह जाए, और जिह्वा नाम न बोले, तो साधना निष्फल है।
माला और काउंटर : कब, कैसे, क्यों?
महाराज जी अपने प्रवचन में स्पष्ट रूप से कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति घर, मंदिर या साधना-स्थल पर बैठकर, स्नान आदि कर व्यवस्थित रूप से जप करना चाहता है, तो शास्त्रीय पद्धति अनुसार माला का उपयोग करें। वहीं, यदि ऑफिस, यात्रा, या सार्वजनिक स्थान पर हैं, और माला का प्रबंध कठिन है, तो काउंटर या अन्य माध्यम का सहारा लेकर भी जप किया जा सकता है।
उन्होंने एक प्रसिद्ध कथा का उल्लेख किया, जिसमें संत जेल में थे, तो माला की जगह दीवार में कील ठोक कर उसकी सहायता से जप के माध्यम बनाए। कहीं पर कंकड़, कभी अंगुली — साधना के अनुरूप साधन चुने गए। महत्त्व केवल नामोच्चार है, साधन का नहीं।
माला-काउंटर और दिखावाभाव
माला गले में डाल लेना या काउंटर हाथ में रखने मात्र से कोई विशेष पुण्य नहीं मिलता। यदि मन में कपट, असत्य, या दिखावा है तथा जिह्वा नामोच्चार न करे, तो साधना अपूर्ण है। महाराज जी कहते हैं — “माला गले में डाल कर झूठ बोलते रहो, गलत आचरण करो, तो क्या माला तुम्हें बैकुंठ पहुँचा देगी?” माला, काउंटर या अन्य किसी भी साधन का अर्थ है साधक को अपने लक्ष्य से जोड़े रखना।
आधुनिकता और काउंटर की सहजता
महराज जी कहते हैं — “आज के युग में आध्यात्मिक चेतना जागृत करने में आधुनिक साधनों का बड़ा योगदान है।” मोबाइल, काउंटर आदि साधनों ने लाखों लोगों को जप-साधना की ओर प्रवृत्त किया है। पहले जहां जप, हवन, पूजा कठिन लगती थी, वह अब मोबाइल-काउंटर या अंगुलियों की गणना से सहज हो गई है। परिणामतः, समाज में जप-साधना का उत्साह बढ़ा, परिवर्तन आया, और अनेक बुराइयों का त्याग हुआ।
समाज एवं संत-दृष्टि
समाज में अनेक मत-मतांतर हैं — कोई कहता है काउंटर से जप निष्फल है, कोई कहता है माला ही अनिवार्य है। महराज जी स्पष्ट संकेत देते हैं — “काउंटर निषेध नहीं है, माला निषेध नहीं है, किसी भी साधन का निषेध नहीं है। ‘भाव’ और ‘सच्चा नामोच्चार’ ही साधना का मर्म है।” जैसा अवसर, जैसा समय, जैसी परिस्थितियां, उसी अनुसार साधन चुनें। शास्त्रों ने भी यही दृष्टि अपनाई है — यदि मन से, नामोच्चार के साथ कोई भी जप करता है, उसका कल्याण सुनिश्चित है।
संत-महापुरुषों के प्रेरक प्रसंग
महराज जी अनेक प्रसंगों द्वारा नाम-साधना का महत्व स्पष्ट करते हैं:
- एक संत ने 1100 कंकड़ रख लिए, माला या काउंटर की आवश्यकता नहीं समझी। मुख्य तथ्य था ओंकार/नाम का उच्चारण।
- स्व. श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने कारावास में माला की जगह कील ठोक कर रोज जप की संख्या सुनिश्चित की और प्रेम-दर्शन जैसी अमूल्य रचनाओं की रचना की।
- गंगा किनारे एक संत को कंकर के माध्यम से जप करते देखा गया — ओम्, ओम्, और हर बार एक कंकर।
- महापुरुषों के अनुभव बताते हैं कि माध्यम चाहे जो हो, मुख से नामोच्चारण अनिवार्य है; उसी में फल है, उसी में मंगल है। यदि साधन का दिखावा मात्र है, मन और वाणी न मिल जाएं, तो साधना सफल नहीं होती।
बच्चों, युवाओं, महिलाओं के लिए काउंटर का लाभ
महाराज जी स्पष्ट रूप से बच्चों और अन्य वर्गों के लिए काउंटर की उपयोगिता बताते हैं:
- आज के बच्चे डिजिटल साधनों में सहजता से नाम जप सकते हैं।
- विद्यालय, ऑफिस या यात्रा में माला ले जाना संभव न हो, तो काउंटर उन्हें सुविधा देता है।
- महिलाओं के लिए भी काउंटर चलते-फिरते जप में सहयोगी बनता है।
- माला की संख्या 108 पर रोक जाने के कारण यदि साधना बाधित हो जाए, तो काउंटर से चलते-फिरते, किसी भी संख्याबद्ध क्रम में जप जारी रखा जा सकता है।
शुद्ध साधना के लिए आदेश
महराज जी बार-बार कहते हैं — “काउंटर निषेध नहीं है, नामोच्चार और सच्ची भावना ही सर्वोपरि है। खूब काउंटर से जप करो, खूब नामोच्छारण करो, खूब आनंद लो।” माला, काउंटर, कंकर, अंगुली किसी का निषेध नहीं है; निषेध है केवल दिखावे और निष्क्रियता का। मुख्य है साधना में ‘मन, वचन, और कर्म’ की एकता।
शास्त्रीय-तथ्यों द्वारा अनुमोदन
क्या काउंटर का उपयोग शास्त्र-सम्मत है? महाराज जी स्पष्ट करते हैं — “आजकल मोबाइल/काउंटर शास्त्र में लिखे तो नहीं हैं, जैसे कि हवाई जहाज भी शास्त्र में नहीं है, किंतु यदि किसी विधि से समाज में ईश्वर-स्मृति बढ़ती है, वह उपयोगी है।” इस युग में संसाधनों का सदुपयोग धर्मानुसार करना चाहिए — नई-नई विधाएं भी नाम-स्मरण को आगे बढ़ाती हैं।
मन की एकाग्रता और भाव की शुद्धता
अन्ततः, जप कितनी बार किया ― यह संख्या से अधिक महत्वपूर्ण है, मन, वचन, कर्म की एकाग्रता। यदि नामोच्चार करते समय मन ध्यान केंद्रित नहीं करता, केवल गिनती पूरी हो रही है, तो साधना निष्क्रिय है। महाराज जी कहते हैं — “माला फेरत जुग गया, फिरा न मन का फेर,” अर्थात केवल माला घुमाने मात्र से कल्याण नहीं होता, जब तक मन उसी में स्थिर न हो।
कथा — जप के लिए कोई बंधन नहीं
महराज जी ने एक अद्भुत प्रसंग सुनाया। एक शराबी व्यक्ति भी भगवान की मूर्ति के दर्शन कर प्रश्न करने आ गया — “कौन है भगवान?” महाराज जी ने समझाया — “यदि उपदेश सत्य मिले, वह किसी से मिले, ग्रहण कर लेना चाहिए।” नाम-साधना का उपदेश, मार्गदर्शन कोई भी दे, यदि वह अनुभव और सत्य पर आधारित है, उससे कल्याण अवश्य होता है।
नाम जप से समाज में बदलाव
आधुनिक साधनों की अनुपमीय भूमिका के उदाहरण देते हुए महाराज जी बताते हैं — “काउंटर, मोबाइल आदि ने लाखों लोगों को जप के मार्ग पर प्रेरित किया है। अनेक युवाओं ने मद्य, मास आदि दुर्व्यसनों का त्याग आश्वस्त भाव से किया और श्रेय–अपश्रेय से ऊपर उठकर जप से जीवन सुधारा।” यह उदाहरण सिद्ध करते हैं कि यदि साधना के प्रति भावना सच्ची है, तो साधन कोई भी हो, उसका फल अवश्य मिलेगा।
निष्कर्ष: साधना का सार
- जप का सच्चा फल केवल और केवल नामोच्चार और सच्ची भावना से मिलता है।
- माला, काउंटर, कंकर, अंगुली, मोबाइल आदि मात्र सहायक माध्यम हैं।
- नाम जप की सफलता में सबसे बड़ी बात है जिह्वा-नामोच्चार, मन की एकाग्रता और कर्म-शुद्धि।
- दोनों विधियों में कोई विरोध या निषेध नहीं, दोनों ही परिस्थितियों-आवश्यकताओं के अनुसार श्रेष्ठ हैं।
- आधुनिक साधनों से लोगों में साधना का उत्साह और सामाजिक बदलाव आया है।
- दिखावा, मन की चंचलता, कपट या निष्क्रियता से साधना सफल नहीं होती।
- संत-महापुरुषों का अनुभव, शास्त्र-सम्मति और समाज के परिवर्तनों से सिद्ध है कि “नाम जप” चाहे जिस साधन से हो, अंत में वही श्रेष्ठ है जो दृढ़ भावना, सच्चे उच्चारण और मन की निष्ठा के साथ किया गया हो।
पाठकों के लिए सन्देश
आध्यात्मिकता का सच्चा मार्ग वह है, जिसमें साधना का अनुशासन और मन की शुद्धता मिल जाए। कभी माला, कभी काउंटर — परंतु नाम-स्मरण, भगवान के प्रति अनुराग, और जीवन में सच्चाई — सबसे मूलभूत अनिवार्य शर्त है। जिस साधन से नाम-स्मरण सुलभ और सुगम हो, वही विधेयक है, वही श्रेष्ठ है। आधुनिक युग में, जैसे-जैसे साधन उपलब्ध हों, उनका धर्मानुसार सदुपयोग कर, भगवान के नाम-स्मरण, जप, साधना और भक्ति से ही सच्चा कल्याण होगा।
यह लेख महराज जी के प्रवाचनों, संत-महापुरुषों के उपदेशों, ऐतिहासिक दृष्टांतों और समकालीन समाज में हो रहे परिवर्तनों पर आधारित है। यदि सच्ची श्रद्धा, नामोच्चार और निष्ठा हो, तो जप का कोई साधन असफल नहीं, बल्कि सब मंगलकारी और कल्याणकारी हैं।