बेंगलुरु होमबायर को देरी से फ्लैट कब्जा मिलने पर ₹29 लाख मुआवजे का आदेश : कर्नाटक RERA का ऐतिहासिक फैसला
भूमिका
रियल एस्टेट में निवेश करने वाले अधिकांश खरीदारों का सामना कभी-कभी फ्लैट के कब्जा में देरी से होता है। ऐसी देरी अधिकांश मामलों में पीड़ित खरीदार के लिए मानसिक, आर्थिक और सामाजिक तनाव का कारण बनती है। हाल ही में कर्नाटक RERA द्वारा दिए गए एक फैसले ने होमबायर को न्याय दिलाया, जब एक प्रमोटर ने करीब चार साल की देरी के बाद भी अपने बचाव में तर्क दिए, लेकिन अंततः उसे खरीदार को ब्याज समेत ₹29 लाख का मुआवजा देने का आदेश देना पड़ा। इस लेख में इस मामले की संपूर्ण विवेचना, कानूनी पहलुओं, प्रमोटर के बचाव और न्यायिक निर्णय का विस्तारपूर्वक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है ।
मामला क्या है?
एक बेंगलुरु के होमबायर ने मार्च 2014 में फ्लैट की खरीद हेतु एग्रीमेंट किया था। प्रमोटर/बिल्डर ने दिसंबर 2016 (प्लस 6 महीने) को फ्लैट कब्जा देने का वादा किया था। बाद में, प्रमोटर ने तर्क दिया कि यह तारीख टाइपो है, सही तारीख मई 2017 (प्लस 6 महीने) होनी चाहिए थी। उसने दावा किया कि इस त्रुटि की जानकारी मिलते ही उसने मई 2015 में एक एडेंडम द्वारा सही तारीख बताई थी और यह डॉक्युमेंट ब्लू डार्ट कुरियर से खरीददार को भेज दिया गया था।
लेकिन कर्नाटक RERA ने जांच के बाद पाया कि प्रमोटर यह साबित नहीं कर सका कि सचमुच वह पत्र सही समय पर खरीददार तक पहुँचा था। इसलिए RERA ने मूल एग्रीमेंट की तारीख (जून 2017 तक) को मान्य माना और देरी के लिए खरीदार को मुआवजा देने का आदेश दिया ।
कानूनी जांच और प्रमोटर के बचाव
प्रमोटर ने खरीदार को फ्लैट देने में लगभग 10 महीने की देरी को “फोर्स मैज्योर” परिस्थितियों—जैसे कि नोटबंदी, बारिश, रेती की कमी आदि—पर लगा दिया। लेकिन RERA अथॉरिटी ने साफ किया कि ये खिलाफतें कानून की दृष्टि में फोर्स मैज्योर की श्रेणी में नहीं आतीं।
इसके अलावा, प्रमोटर ने एडेंडम की कॉपी, कुछ अन्य डॉक्युमेंट्स व एमओयू और रजिस्टर्ड सेल डीड के कुछ क्लॉज़ का हवाला देकर तर्क दिया कि खरीदार ने इन दस्तावेज़ों के माध्यम से किसी भी प्रकार के मुआवजे के दावे से इनकार किया है। परंतु RERA ने पाया कि कोई संशोधन या एग्रीमेंट के रेक्टिफिकेशन संबंधी विधिवत दस्तावेज़ खरीददार व प्रमोटर के बीच नहीं हुआ। इसी आधार पर प्रमोटर के सारे बचाव अस्वीकार कर दिए गए ।
खरीदार का पक्ष और भुगतान का तर्क
प्रमोटर ने दावा किया कि खरीदार ने शेष राशि की अदायगी में देर की। RERA की जांच में पता चला कि खरीदार ने बैंक स्टेटमेंट्स पर आधारित एडवांस और बकाया राशि समय पर दी थी; जो 11 मार्च 2019 को अंतिम भुगतान हुआ, वह केवल स्टाम्प ड्यूटी व रजिस्ट्रेशन शुल्क के लिए था, न कि बिल्डर को बकाया के लिए ।
RERA का निर्णय : क्यों खरीदार जीता?
RERA अथॉरिटी ने निम्न बिंदुओं पर निर्णय दिया—
- प्रमोटर देरी का उचित स्पष्टीकरण देने में असफल रहा।
- एडेंडम का सम्पूर्ण प्रमाण उपलब्ध नहीं था, जिससे मूल एग्रीमेंट की तारीख बाध्यकारी मानी गई।
- प्रमोटर द्वारा फोर्स मैज्योर का बचाव ठीक नहीं पाया गया।
- खरीदार के भुगतान की समयबद्धता स्पष्ट प्रमाणित थी।
- रजिस्टर सेल डीड में किसी भी तरह का भुगतान निषेध क्लॉज बाद की तारीख में डालना खरीदार के अधिकारों को नहीं छीन सकता।
- RERA एक्ट की धारा 18 के अनुसार खरीदार मुआवजा पाने के हकदार है।
- सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार कोई भी क्लॉज कानून के प्रावधानों को पराजित नहीं कर सकता, ‘एस्टॉपल अगेंस्ट लॉ’ सिद्धांत लागू है ।
प्रमुख कानूनी प्रावधान व मिसाल
- RERA (रियल एस्टेट रेग्युलेशन एंड डेवलपमेंट एक्ट) की धारा 18(b) के मुताबिक, जब कोई खरीदार प्रोजेक्ट से पीछे हटना नहीं चाहता, तो प्रमोटर द्वारा देरी के हर महीने के लिए निर्धारित ब्याज देना होता है।
- प्रमोटर और खरीदार के बीच हुए सेल डीड के किसी भी क्लॉज से कानूनी अधिकार नहीं छीने जा सकते, अगर मामला खरीददार द्वारा RERA में दाखिल किया गया था।
- सुप्रीम कोर्ट के ‘स्टेट ऑफ बिहार vs प्रोजेक्ट उच्चा विद्या शिक्षक संघ (2006) 2 SCC 545’ व ‘विष्णु vs स्टेट ऑफ महाराष्ट्र (AIR 2006 SC 508)’ फैसलों में साफ किया गया, कानून के खिलाफ कोई एस्टॉपल लागू नहीं की जा सकती। डॉक्युमेंट्स को संपूर्णता में देखा जाना चाहिए, आंशिक रूप से किसी पक्ष के लिए लाभदायक क्लॉज नहीं निकाला जा सकता ।
प्रमोटर के तर्कों की खिंचाई
RERA ने यह भी कहा कि प्रमोटर मामले को मनमाफिक क्लॉज़ पर केंद्रित कर रहा था, जबकि अनुबंध संपूर्णता में मान्य माना जाना चाहिए। बकाया भुगतान में देरी का आरोप निराधार पाया गया। रहनुमा सेल डीड पर प्रमोटर द्वारा डाले गए कंडिशन, लेटर ऑफ अंडरटेकिंग आदि सब अनुत्तेजक व कानूनी रूप से अस्वीकार्य ठहरे।
RERA ने यह भी कहा कि बचाव में दिए गए फोर्स मैज्योर तर्क, एडेंडम, एमओयू में प्रमोटर का पक्ष लगातार बदलता रहा—जिससे उसके वक्तव्यों की विश्वसनीयता नहीं रही। इसलिए खरीदार के हक में निर्णय दिया गया ।
आदेश और परिणाम
- प्रमोटर को आदेश दिया गया कि SBI MCLR +2% ब्याज की दर से 1 जून 2017 से फ्लैट कब्जा व ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट देने तक का ब्याज चुकाए।
- प्रमोटर को ₹29,05,091 की राशि 60 दिन में देने का निर्देश।
- खरीदार ने कुल ₹1,48,88,425 का भुगतान किया था।
- प्रमोटर की अपील को दोबारा (अक्टूबर 2025) खारिज कर दिया गया और RERA के पुराने आदेश को बरकरार रखा गया।
- अपील प्रक्रिया के दौरान जमा राशि, ब्याज समेत खरीददार को बैंकर्स चेक/DD के जरिए देने का निर्देश।
देरी के मुआवजे का अधिकार
Mukherjee (SNG & Partners) के अनुसार, RERA एक्ट में देरी के मुआवजे के दावे हेतु कोई सीमित समयसीमा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने ‘Popat Bhairu Govardhane vs Special Land Acquisition Officer’ व पंजाब RERA ने ‘Surinder Kumar Garg vs MultiTech Towers Pvt Ltd’ केस में स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों के लिए कोई लिमिटेशन लागू नहीं होती ।
सीख और सुझाव: ग्रैंडमास्टर्स से
- प्रमोटर व खरीददार को सभी डॉक्युमेंट्स का आदान-प्रदान, समयबद्ध भुगतान व उचित रिकॉर्ड सुरक्षित रखना चाहिए।
- जानकारी व ऐग्रमेंट की संपूर्णता को समझें; आंशिक क्लॉज या बाद के एडेंडम पर आँख बंद कर भरोसा न करें।
- कोई भी नया क्लॉज कानून के अधिकारों को नहीं छीन सकता, RERA के तहत खरीदारों का अधिकार सुरक्षित है।
- मुआवजा व ब्याज की गणना विधिवत डॉक्युमेंट्स, बैंकों के स्टेटमेंट, ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट की तारीख के आधार पर की जानी चाहिए।
- खरीदारी के समय RERA की शर्तों, डेवलपर के ट्रैक रिकॉर्ड पर बारीकी से नजर रखें।
निष्कर्ष
इस फैसले ने साफ कर दिया कि प्रमोटर की मनमानी, एडेंडम के अस्पष्ट प्रमाण, बार-बार बदलते तर्क और अनुचित पक्षपाती क्लॉज स्वीकार्य नहीं हो सकते। RERA सयंत्र खरीदारों के हितों की रक्षा करता है और कानून की अनदेखी या उसका दुरुपयोग करने वालों को सख्त सजा देता है। खरीदारों को चाहिए कि वे अपने अधिकारों के लिए हर दस्तावेज़ सहेजकर रखें और किसी भी विवाद में न्याय पाने का प्रयास करें ।
केस से जुड़े प्रमुख तथ्य तालिका में
| तथ्य | विवरण |
|---|---|
| एग्रीमेंट तारीख | मार्च 12, 2014 |
| वादा की गई कब्जा तारीख | दिसंबर, 2016 (+६ माह) |
| प्रमोटर का दावा | टाइपो, सही तारीख मई 2017 (+६ माह) |
| प्रमोटर का बचाव | फोर्स मैज्योर, एडेंडम, सेल डीड क्लॉज |
| खरीदार का भुगतान | समय पर, अंतिम भुगतान स्टाम्प शुल्क हेतु |
| RERA का निर्णय | ब्याज समेत ₹29,05,091 मुआवजा, 60 दिन में चुकाना |
| महत्वपूर्ण कानून | RERA Act Section 18(b), Supreme Court Judgements |
इस पूरे मामले में कर्नाटक RERA का फैसला न केवल खरीदारों को न्याय दिलाने का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता, जवाबदेही और खरीदारों के अधिकारों को मजबूत करता है ।






