बेलगाम बैटरी रिक्शा: बढ़ती अव्यवस्था और खतरा

बैटरी (ई‑रिक्शा) अपनी जगह सस्ती और पर्यावरण‑अनुकूल सवारी है, लेकिन जमीन पर बिना नियंत्रण के फैलाव ने इसे नई मुसीबत, ट्रैफिक अव्यवस्था और सुरक्षा संकट में बदल दिया है। कानून मौजूद हैं, पर कमज़ोर लागू‑करन, सस्ती अवैध गाड़ियाँ और बेरोज़गारी ने मिलकर हालात ऐसे बना दिए हैं कि नाबालिग से लेकर नशे में धुत लोग तक सवारी ढोते दिख जाते हैं।​

कानूनी ढांचा क्या कहता है

भारत में ई‑रिक्शा भी “मोटर व्हीकल” के तहत आते हैं, इसलिए ड्राइविंग लाइसेंस, रजिस्ट्रेशन, फिटनेस और यातायात नियम इन पर भी अनिवार्य हैं। मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार 18 साल से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक सड़क पर मोटर वाहन नहीं चला सकता, और सार्वजनिक परिवहन (कमर्शियल) चलाने के लिए न्यूनतम आयु की शर्त और सख़्त है।​

केंद्र सरकार ने ई‑रिक्शा/ई‑कार्ट के लिए अलग परिभाषा और कुछ छूटें दी हैं, पर “लाइसेंस की ज़रूरत नहीं” जैसा कोई प्रावधान नहीं है; लाइसेंस और वाहन पंजीकरण कानूनी रूप से अनिवार्य ही हैं। कई राज्यों ने ई‑रिक्शा के लिए अलग पॉलिसी, रूट परमिट और शहर‑वार गाइडलाइन भी बनानी शुरू कर दी हैं ताकि इनका संचालन व्यवस्थित हो सके।​

ज़मीन पर हकीकत: बेलगाम सिस्टम

कानून होने के बावजूद बड़े शहरों में हज़ारों ई‑रिक्शा बिना पंजीकरण, बिना परमिट और बिना लाइसेंस वाले चालकों के साथ सड़कों पर दौड़ रहे हैं। गाज़ियाबाद‑नोएडा जैसे इलाकों में अनुमान है कि कुल ई‑रिक्शाओं का बड़ा हिस्सा या तो अवैध असेंबली से बना है या बिना RTO रजिस्ट्रेशन के चलता है, जिससे न तो सुरक्षा की गारंटी है न ही जवाबदेही की।​

कारण साफ हैं – पंजीकृत गाड़ी और परमिट की कुल लागत 1.5–1.6 लाख रुपये तक पहुँच जाती है, जबकि अवैध, बिना सर्टिफिकेशन वाली गाड़ी 70–80 हज़ार में मिल जाती है, तो गरीब चालक सस्ती और खतरनाक राह चुन लेते हैं। इसके साथ ही, चेकिंग में ढील, स्थानीय स्तर पर “सेटिंग” और रोज़गार का दबाव मिलकर इस अव्यवस्था को और मजबूत करते हैं।​

बिना लाइसेंस, नाबालिग और नशे में ड्राइविंग

कानून साफ कहता है कि बिना प्रभावी ड्राइविंग लाइसेंस कोई भी मोटर वाहन नहीं चला सकता, लेकिन कई जगह नाबालिग बच्चे खुलेआम ई‑रिक्शा चलाते दिखाई देते हैं। उत्तराखंड और यूपी के कई शहरों में नाबालिगों द्वारा ई‑रिक्शा चलाने पर अलग से अभियान चलाकर चालान और वाहन जब्ती की कार्रवाई करनी पड़ी, जिससे ये साफ हुआ कि समस्या व्यापक है।​

इसी तरह कई केस ऐसे सामने आए हैं जहाँ शराब या नशे की हालत में ई‑रिक्शा चलाने से दुर्घटनाएँ हुईं, जबकि ड्रिंक‑एंड‑ड्राइव पर कड़े प्रावधान मौजूद हैं। बिना ट्रेनिंग, बिना मेडिकल फिटनेस और नशे की हालत में चलने वाला थ्री‑व्हीलर पैदल यात्रियों, साइकिल, बाइक और खुद सवारियों के लिए गंभीर जोखिम बन जाता है।​

ट्रैफिक, जाम और शहरी अव्यवस्था

ई‑रिक्शा का सबसे बड़ा दावा “लास्ट‑माइल कनेक्टिविटी” है, लेकिन बेतरतीब खड़ी गाड़ियाँ और कहीं भी रुक‑रुक कर सवारी बिठाना/उतारना भारी जाम की वजह बन गया है। गाज़ियाबाद में हापुर रोड जैसे व्यस्त कॉरिडोर पर ई‑रिक्शा के कारण जाम इतना बढ़ा कि प्रशासन को सुबह 7 से रात 10 बजे तक कुछ मुख्य सड़कों पर इन पर पाबंदी लगाने का निर्णय लेना पड़ा।​

घंटाघर, बस अड्डा, मेट्रो स्टेशन के बाहर अक्सर ई‑रिक्शा कतार की जगह सड़क पर ही खड़े हो जाते हैं और कई बार गलत दिशा में चलकर, यू‑टर्न लेकर या बीच में रुककर ट्रैफिक फ्लो तोड़ देते हैं। न तो ठोस स्टैंड बने, न ही सवारियों के लिए निर्धारित “पिक‑अप/ड्रॉप” जोन, नतीजा – फुटपाथ कब्ज़ा, सड़क की चौड़ाई घट जाना और आम वाहन चालकों के लिए रोज़ की सिरदर्दी।​

सुरक्षा: बच्चों, महिलाओं और पैदल यात्रियों के लिए खतरा

कई राज्यों में स्कूली बच्चों को ई‑रिक्शा से ढोने के चलन पर सवाल उठे हैं, क्योंकि ओवरलोडिंग, बिना सीट‑बेल्ट और कमजोर बॉडी के कारण ज़रा सी टक्कर में भी बड़ा हादसा हो सकता है। भोपाल और कुछ अन्य शहरों में इसीलिए स्कूल‑किड्स के लिए ई‑रिक्शा पर आंशिक/पूर्ण पाबंदी लगाने की बात चली, ताकि परिवहन को थोड़ा नियंत्रित और सुरक्षित किया जा सके।

पैदल यात्रियों की सुरक्षा भी बड़ा सवाल है – फुटपाथ पर चढ़ जाना, मार्केट के बीच से ई‑रिक्शा घुसा देना, और रॉन्ग‑साइड चलना आम बात हो गई है, जिससे सीनियर सिटिज़न और बच्चों के गिरने‑कुचलने की घटनाएँ बढ़ती हैं। रात में रिफ्लेक्टर, उचित लाइट और इंडिकेटर की कमी दुर्घटना की संभावना और बढ़ा देती है।​

रोज़गार, गरीब चालक और उनका पक्ष

ई‑रिक्शा से लाखों बेरोज़गार, प्रवासी मजदूर और कम पढ़े‑लिखे युवाओं को रोज़गार मिला है; सिर्फ गाज़ियाबाद जैसे शहरों में ही हज़ारों परिवार सीधे‑अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े हैं। कम पूँजी में रोज़ 600–1000 रुपये तक की कमाई की संभावना ने इसे ग्रामीण‑शहरी गरीबों के लिए आकर्षक विकल्प बना दिया है, खासकर ऑटो या टैक्सी परमिट की तुलना में।​

जब प्रशासन अचानक किसी रूट पर पाबंदी लगाता है या सख़्त चेकिंग शुरू करता है, तो यही गरीब चालक सबसे पहले सड़क पर उतरकर विरोध करते हैं, जैसा गाज़ियाबाद में बैन के खिलाफ़ आंदोलन के दौरान दिखा। उनका तर्क है कि वैकल्पिक स्टैंड, वैध परमिट और सस्ती फाइनेंसिंग दिए बिना सीधे‑सीधे “बैन और जब्ती” करना रोज़गार छीनने जैसा है।​

पर्यावरण और पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर असर

ई‑रिक्शा पारंपरिक डीज़ल‑पेट्रोल रिक्शा/ऑटो की तुलना में शोर और सीधे धुएँ के मामले में साफ हैं, इसलिए इन्हें क्लीन मोबिलिटी के रूप में बढ़ावा दिया गया। परंतु बैटरी डिस्पोज़ल, चार्जिंग के लिए कोयला‑आधारित बिजली और ख़राब, सस्ती बैटरियों के उपयोग ने पर्यावरणीय फ़ायदे को आंशिक रूप से कमज़ोर भी किया है।​

साथ ही, जब शहर योजना के बिना हर गली‑मुख्य सड़क पर ई‑रिक्शा भर जाते हैं, तो बसों और मेट्रो की फीडर‑सर्विस व्यवस्थित होने की बजाय अनियंत्रित “शेयरिंग” कल्चर हावी हो जाता है, जिससे समग्र पब्लिक ट्रांसपोर्ट प्लानिंग बिगड़ती है। यानी हरियाली के नाम पर अगर अराजकता बढ़े, तो कुल मिलाकर शहर को फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता है।​

नियम‑कानून: क्या‑क्या ज़रूरी है

सैद्धांतिक रूप से ई‑रिक्शा के लिए ये मूल बातें अनिवार्य हैं।​

  • RTO से वाहन का रजिस्ट्रेशन (RC) और वैध नंबर प्लेट।​
  • कमर्शियल/ट्रांसपोर्ट कैटेगरी के अनुरूप उपयुक्त ड्राइविंग लाइसेंस।​
  • निर्धारित रूट/ज़ोन के लिए परमिट, ताकि गाड़ी हर जगह न चले।​
  • फिटनेस सर्टिफिकेट, थर्ड‑पार्टी इंश्योरेंस और समय‑समय पर टेक्निकल जांच।​

केंद्र और राज्यों द्वारा बन रही नई नीतियाँ QR‑कोड, स्टिकर, कलर‑कोडेड ज़ोन और डिजिटल रजिस्टर जैसे उपाय सुझा रही हैं, जिनसे यह ट्रैक हो सके कि कौन सा ई‑रिक्शा किस रूट पर, किस ड्राइवर/मालिक के नाम से चल रहा है। कुछ शहरों में स्कूल बच्चों के लिए, हाईवे और मुख्य आर्टेरियल रोड पर ई‑रिक्शा पर समयबद्ध या पूर्ण पाबंदी जैसे कदम भी उठाए जा रहे हैं।​

गाज़ियाबाद जैसे शहरों के लिए क्या समाधान

गाज़ियाबाद में पहले से लागू या प्रस्तावित कुछ उपाय बाकी शहरों के लिए भी मॉडल बन सकते हैं।​

  • मुख्य हाइवे और व्यस्त कॉरिडोर (जैसे हापुर रोड, DME के हिस्से) पर समयबद्ध प्रतिबंध, ताकि भारी जाम ना लगे।​
  • शहर को 2–3 ज़ोन में बाँटकर हर ई‑रिक्शा के लिए फिक्स्ड रूट और कलर‑कोडेड स्टिकर/QR‑कोड की व्यवस्था।​
  • मेट्रो, बस अड्डा और मार्केट के बाहर अधिकृत स्टैंड, जहाँ से तय किराए पर सवारी मिले और सड़क कब्ज़ा न हो।​

इसके साथ ही, ड्राइवरों के लिए अनिवार्य ट्रेनिंग, साइको‑अल्कोहल टेस्ट की चेकिंग, और नाबालिग/बिना लाइसेंस पकड़े जाने पर भारी जुर्माना और वाहन ज़ब्ती जैसे कदमों की ज़रूरत है। प्रशासन यदि आसान फाइनेंस, सब्सिडी और सस्ती रजिस्ट्रेशन फीस देकर अवैध गाड़ियों को वैध करने का रास्ता खोले, तो चालक भी क़ानूनी फ्रेमवर्क में आने को तैयार हो सकते हैं।


सार‑संकल्पना तुलना (ई‑रिक्शा: फायदा बनाम समस्या)

पहलूसंभावित लाभमौजूदा समस्याएँ
रोज़गारकम पूँजी में हज़ारों गरीब, प्रवासी और बेरोज़गार युवाओं को रोज़गार का साधन मिला।​अवैध गाड़ियाँ, बिना लाइसेंस ड्राइविंग और अचानक बैन से रोज़गार असुरक्षित और असंगठित रूप ले रहा है।​
ट्रांसपोर्टलास्ट‑माइल कनेक्टिविटी, मेट्रो‑बस तक आसान पहुँच और कम किराया।​बेतरतीब पार्किंग, कहीं भी रुकना और रॉन्ग‑साइड चलना बड़े पैमाने पर ट्रैफिक जाम और अव्यवस्था पैदा कर रहा है।​
पर्यावरणधुआँ और शोर सीधे तौर पर कम, इसलिए पारंपरिक ऑटो की तुलना में साफ विकल्प।jसस्ती, घटिया बैटरियाँ, गलत डिस्पोज़ल और अव्यवस्थित चार्जिंग से पर्यावरणीय लाभ सीमित हो जाते हैं।​
सुरक्षारफ्तार अपेक्षाकृत कम, इसलिए सिद्धांततः सुरक्षित होना चाहिए।​ओवरलोडिंग, बिना रजिस्ट्रेशन, नाबालिग/नशे में ड्राइविंग और कमजोर बॉडी के कारण बच्चों‑महिलाओं‑पैदल यात्रियों के लिए गंभीर खतरा।
क़ानून व्यवस्थाअलग नियम और पॉलिसी बनाकर शहरों में इन्हें व्यवस्थित सार्वजनिक परिवहन बनाया जा सकता है।​अभी ज्यादातर जगह नियम किताबों में हैं, जमीन पर प्रवर्तन कमज़ोर है, जिससे “बेलगाम” ई‑रिक्शा माफिया और अराजकता पैदा हो रही है।

इस तरह बैटरी रिक्शा अपने आप में बुरी चीज़ नहीं है, लेकिन बिना योजना, बिना सख़्त लाइसेंसिंग और बिना शहर‑स्तरीय ट्रैफिक मैनेजमेंट के यह नई मुसीबत, बेलगाम सिस्टम और जनता के लिए जोखिम बनता जा रहा है; समाधान “पूरी तरह बैन” नहीं, बल्कि सख़्त, ईमानदार और इंसाफ़ी नियमन में है।​

देश भर में ई‑रिक्शा की सही कुल संख्या का कोई एक आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन सरकारी और रिसर्च डेटा से अंदाज़ा है कि पंजीकृत ई‑रिक्शा करीब 18–20 लाख हैं, जबकि बिना पंजीकरण/अनौपचारिक गाड़ियाँ जोड़ें तो यह संख्या कई करोड़ तक पहुँचती बताई जा रही है। ई‑रिक्शा से होने वाले हादसों के आधिकारिक ऑल‑इंडिया अलग से डेटा सीमित है, लेकिन दिल्ली जैसे शहरों के ताज़ा आँकड़े दिखाते हैं कि हर साल सैकड़ों दुर्घटनाएँ, दर्जनों मौतें और हज़ारों चालान‑प्रॉसिक्यूशन सिर्फ ई‑रिक्शा से जुड़े मामलों में हो रहे हैं.

देश में कितने ई‑रिक्शा

भारत सरकार के VAHAN पोर्टल के अनुसार नवंबर 2024 तक पूरे देश में लगभग 18.1 लाख ई‑रिक्शा पंजीकृत थे। अलग‑अलग रिसर्च व बाज़ार रिपोर्ट यह भी दिखाती हैं कि सिर्फ 2023 में ही 5.8 लाख से ज़्यादा ई‑रिक्शा बिके और 2024–25 में सालाना बिक्री कई लाख यूनिट तक पहुँच रही है।​

कुछ अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय आकलनों में कहा गया है कि भारत में चल रहे कुल ई‑रिक्शा (पंजीकृत + अपंजीकृत) की संख्या अनुमानतः 1.5 करोड़ के आसपास हो सकती है, क्योंकि बड़ी संख्या में गाड़ियाँ बिना रजिस्ट्रेशन लोकल लेवल पर चल रही हैं। उत्तर प्रदेश अकेले में 2024 में ई‑रिक्शा बिक्री में देश के कुल बाज़ार का करीब एक‑तिहाई से अधिक हिस्सा रखता है, जिससे साफ है कि यूपी जैसे राज्यों में घनत्व बहुत अधिक है।​

ई‑रिक्शा से होने वाले हादसे

ऑल‑इंडिया स्तर पर सिर्फ ई‑रिक्शा‑विशेष दुर्घटना आँकड़े अलग से प्रकाशित नहीं होते, लेकिन महानगरीय पुलिस के डेटा से तस्वीर स्पष्ट होती है। दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के अनुसार 1 जनवरी से अगस्त 2025 के बीच ई‑रिक्शा से जुड़े 108 सड़क हादसों में 26 लोगों की मौत और 130 लोग घायल हुए; यानी लगभग हर महीने करीब 3 मौतें और दर्जनों घायल सिर्फ ई‑रिक्शा दुर्घटनाओं से।​

दिल्ली पुलिस के ताज़ा आँकड़ों में यह भी सामने आया कि 2024 के पूरे साल के मुकाबले 2025 में ई‑रिक्शा से जुड़ी मौतों की संख्या बढ़ गई है, जबकि कुल हादसों की संख्या लगभग समान स्तर पर रही। विशेषज्ञों के अनुसार गलत साइड चलना, ओवरलोडिंग, नाबालिग/अन‑ट्रेन्ड ड्राइवर और कहीं भी अचानक रुकना‑मुड़ना इन दुर्घटनाओं के मुख्य कारण हैं।​

चालान, मुकदमे और कार्रवाई

दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के अनुसार 2021 से अब तक ई‑रिक्शा द्वारा नियमों के उल्लंघन के 7.7 लाख से अधिक मामलों में चालान/प्रॉसिक्यूशन की कार्रवाई की जा चुकी है, जो बताता है कि नियम‑तोड़ना बहुत आम है। 2023 में ई‑रिक्शा से जुड़े 2,08,000 से ज़्यादा ट्रैफिक उल्लंघन दर्ज हुए जो 2024 में बढ़कर 3,05,000 से अधिक हो गए, इसलिए अब जब्त ई‑रिक्शा को 7 दिन के भीतर स्क्रैप कर देने जैसी सख़्त नीति लागू की जा रही है।​

कई राज्यों/ज़िलों (जैसे पटना, नोएडा आदि) ने नाबालिग व बिना लाइसेंस ई‑रिक्शा चलाने पर विशेष अभियान शुरू किए हैं, जिनमें गाड़ी मालिक पर एफआईआर, 25,000 रुपये तक जुर्माना और माता‑पिता/अभिभावक पर भी धारा 199A के तहत कार्रवाई शामिल है। नोएडा ट्रैफिक पुलिस ने हाल की विशेष ड्राइव में ही एक दिन में 1000 से ज़्यादा ऑटो/ई‑रिक्शा का चालान किया और ज़िले में लगभग 23,000 पंजीकृत ई‑रिक्शा होने की जानकारी दी, जिन पर लगातार चेकिंग व रिकॉर्ड अपडेट की कार्रवाई चल रही है.​

संक्षेप में, पंजीकृत ई‑रिक्शा लाखों में हैं और अपंजीकृत मिलाकर संख्या इससे कई गुना अधिक; हादसों व नियम‑उल्लंघन के मामले तेज़ी से बढ़े हैं, जिसके चलते चालान, गाड़ी जब्ती, स्क्रैपिंग और नाबालिग‑ड्राइविंग पर कड़े दंड जैसी कार्रवाइयाँ अब पूरे देश में तेज की जा रही हैं।​

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