भूमिका
आज के दौर में शिक्षा का महत्व पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा अच्छे अंकों से पास होकर एक सफल जीवन जिए। लेकिन वास्तविकता यह है कि कई बच्चे, विशेषकर 9वीं और 10वीं कक्षा के, अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाते। माता-पिता ट्यूशन, कोचिंग, अतिरिक्त वातावरण सब देते हैं, फिर भी परिणाम कमजोर आते हैं। बच्चे पढ़ाई में मन नहीं लगाते, बार-बार डांट-फटकार सुनते हैं, और धीरे-धीरे उनका आत्मविश्वास भी टूटने लगता है।
यह स्थिति केवल बच्चों या अभिभावकों की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है। यह समझना जरूरी है कि इसका कारण सिर्फ “पढ़ाई में ध्यान न देना” नहीं, बल्कि मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक और तकनीकी परिवर्तन भी हैं।
1. पढ़ाई में रुचि कम क्यों होती है
किसी भी उम्र में जब बच्चा किसी चीज़ में आनंद नहीं पाता, तो उसका मन वहाँ टिकना बंद कर देता है। 9वीं और 10वीं का दौर बच्चों के जीवन का संक्रमण काल होता है — न वे पूरी तरह बच्चे रहते हैं, न पूरी तरह बड़े। इस आयु में ध्यान भटकना स्वाभाविक होता है।
कुछ प्रमुख कारण:
- अत्यधिक दबाव: हर समय अच्छे नंबर लाने का डर बच्चों के ऊपर रहता है।
- तुलना: माता-पिता, रिश्तेदार या शिक्षक जब दूसरे बच्चों से तुलना करते हैं, तो बच्चा खुद को छोटा महसूस करता है।
- तकनीक का आकर्षण: मोबाइल, टीवी और गेम्स दिमाग को “तुरंत मनोरंजन” देने की आदत डाल देते हैं, जबकि पढ़ाई में धैर्य चाहिए।
- वास्तविक समझ की कमी: कई बार बच्चे यह नहीं समझते कि वे जो पढ़ रहे हैं उसका उनके भविष्य से क्या संबंध है।
- गलत पढ़ाई का तरीका: सिर्फ रटने की आदत, विषय की समझ के बिना अध्ययन करने से रुचि ना होने लगती है।
2. कोचिंग और ट्यूशन के बावजूद सुधार क्यों नहीं होता
आज लगभग हर बच्चा किसी न किसी कोचिंग संस्थान में पढ़ता है। अभिभावक सोचते हैं कि अच्छी कोचिंग मतलब अच्छे नंबर, लेकिन वास्तविकता इतनी सरल नहीं है।
- अति-निर्भरता: बच्चा सोचता है कि सब कुछ “टीचर सिखा देंगे,” इसलिए स्वयं अध्ययन नहीं करता।
- थकान और समय की कमी: स्कूल + कोचिंग + होमवर्क के बीच बच्चे के पास मन को शांत रखने का समय नहीं बचता।
- व्यक्तिगत ध्यान का अभाव: भीड़ भरी कक्षाओं में हर बच्चे की सीखने की शैली को समझना मुश्किल होता है।
- मानसिक भार: हर विषय के लिए अलग शिक्षक, अलग पद्धति — इससे बच्चा भ्रमित हो जाता है।
अभिभावकों को समझना चाहिए कि शिक्षा केवल “पढ़ाई करवाने” से नहीं बल्कि “पढ़ाई का वातावरण” देने से विकसित होती है।
3. आत्मविश्वास की कमी का कारण
जब बार-बार असफलता मिलती है, तो कोई भी व्यक्ति खुद पर से विश्वास खो देता है। बच्चों में भी यही होता है।
- डांट, आलोचना और तुलना बच्चों को अंदर से कमजोर करती है।
- हर समय निगरानी रखने से वे खुद निर्णय लेने की क्षमता खो देते हैं।
- दूसरों की स्वीकृति की लालसा (validation) उन्हें अपने असली रूप से दूर कर देती है।
- सोशल मीडिया पर दूसरों की “सफल जिंदगी” देखकर वे खुद को कमतर समझने लगते हैं।
समाधान:
- बच्चे की हर छोटी प्रगति पर उसकी प्रशंसा करें।
- “गलती” को सीखने का अवसर मानें।
- बच्चों को स्वतंत्र रूप से सोचने और करने के मौके दें।
4. मोबाइल और टीवी का प्रभाव
मोबाइल फ़ोन आधुनिक जीवन का हिस्सा है, लेकिन यह बच्चों की कल्पनाशक्ति, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और नींद पर गहरा असर डाल रहा है।
- लगातार स्क्रीन पर रहना दिमाग को सतही सोच की ओर ले जाता है।
- गेम्स और सोशल मीडिया त्वरित आनंद देते हैं, जिससे बच्चे को पुस्तकों में आनंद नहीं मिलता।
- देर रात तक मोबाइल देखने से नींद की कमी रहती है, जिसके कारण पढ़ाई में थकान रहती है।
क्या करें:
- घर में “मोबाइल नियम” बनाएं — जैसे भोजन या पढ़ाई के समय मोबाइल न हो।
- अभिभावक स्वयं भी मोबाइल का सीमित उपयोग कर उदाहरण प्रस्तुत करें।
- बच्चों को तकनीक के सकारात्मक उपयोग (जैसे शैक्षिक वीडियो, ऑडियो बुक्स) सिखाएं।
5. खेल और सह-पाठयक्रम गतिविधियों का महत्व
कई माता-पिता सोचते हैं कि खेल पढ़ाई में बाधा हैं। परंतु ऐसा नहीं है। खेल बच्चों में ऊर्जा, आत्मविश्वास और सामाजिक कौशल बढ़ाते हैं।
- नियमित खेल से मन ताजा रहता है और एकाग्रता बढ़ती है।
- टीमवर्क और नेतृत्व सीखने का अवसर मिलता है।
- शरीर के साथ-साथ मस्तिष्क भी सक्रिय रहता है।
फिजिकल एक्टिविटी को पढ़ाई का हिस्सा बनाएं, न कि उससे अलग चीज़ समझें।
6. ध्यान, योग और भगवान के नाम का प्रभाव
आध्यात्मिक अभ्यास किसी भी उम्र में व्यक्ति की एकाग्रता और आत्मविश्वास को गहराई से प्रभावित करता है।
- ध्यान (Meditation) से मन स्थिर होता है और अनावश्यक चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
- योग शरीर और मस्तिष्क का संतुलन बनाए रखता है।
- भगवान के नाम का जप मन में सकारात्मक ऊर्जा भरता है।
अगर माता-पिता सुबह-शाम बच्चों के साथ 10 मिनट ध्यान और भजन का अभ्यास करें, तो घर का वातावरण शांत और प्रेरणादायक बन सकता है।
7. अभिभावकों की भूमिका
बच्चे वही बनते हैं जो वे घर में देखते हैं, न कि जो उन्हें कहा जाता है। इसलिए माता-पिता का व्यवहार सबसे अहम है।
क्या करें:
- बच्चों से संवाद बढ़ाएँ, केवल आदेश न दें।
- उनकी भावनाओं को सुनें और समझें।
- उनकी छोटी उपलब्धियों की सराहना करें।
- केवल अंक नहीं, उनके प्रयास की भी तारीफ करें।
- गलतियों पर गुस्सा करने के बजाय साथ में समाधान ढूंढें।
अभिभावक का स्नेह और सहयोग ही बच्चे की सबसे बड़ी प्रेरणा है।
8. बच्चों की मनोविज्ञान को समझना
हर बच्चा अलग होता है। कुछ बच्चे गणित में तेज़ होते हैं, कुछ रचनात्मक, कुछ बोलने में निपुण। पर समाज सबको एक ही पैमाने पर मापता है।
- जिस क्षेत्र में बच्चा स्वाभाविक रूप से अच्छा है, वहां उसे बढ़ावा देना चाहिए।
- पढ़ाई को उसकी रुचि से जोड़ना चाहिए।
- बच्चे को यह विश्वास दिलाना जरूरी है कि सफलता केवल “नंबरों” की बात नहीं है।
9. शिक्षक – मार्गदर्शक की भूमिका
शिक्षक केवल पढ़ाने वाले नहीं, बल्कि दिशा दिखाने वाले होते हैं।
- शिक्षक को हर छात्र की क्षमता और सीमाओं को पहचानना चाहिए।
- प्रेरणादायक कहानियाँ सुनाकर उनमें आशा जगानी चाहिए।
- स्कूल को केवल परीक्षा केंद्र नहीं बल्कि “जीवन सीखने का केंद्र” बनाना चाहिए।
10. आत्मविश्वास बढ़ाने के उपाय
- रोज़ 10 मिनट अपने लक्ष्य के बारे में लिखें।
- नकारात्मक वाक्य (“मुझसे नहीं होगा”) को सकारात्मक वाक्य (“मैं कोशिश करूंगा”) से बदलें।
- आत्म-संवाद (Self-talk) का अभ्यास करें।
- स्टेज पर बोलने, प्रोजेक्ट प्रस्तुत करने जैसी गतिविधियों में भाग लें।
- किसी प्रेरक व्यक्ति की जीवनी पढ़ें।
आत्मविश्वास एक दिन में नहीं बनता, पर निरंतर प्रयास से यह हमेशा बढ़ता रहता है।
11. शिक्षा का असली अर्थ
शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षा पास करना नहीं, बल्कि जीवन को समझना और सही निर्णय लेना सीखना है।
- किताबें हमें ज्ञान देती हैं, लेकिन जीवन अनुभव सिखाता है।
- अभिभावक और शिक्षक दोनों को यह समझना चाहिए कि “अंक” इंसान का मूल्य नहीं तय करते।
- बच्चों में मानवता, संवेदना, और सच्चाई के संस्कार डालना ही असली शिक्षा है।
12. अभिभावकों के लिए प्रेरक संदेश
हम अपने बच्चों को जीतना सिखाए बिना हारने से डरा देते हैं।
अगर बच्चा असफल होता है, तो मायूस होने की जगह उसे सिखाएं कि यह असफलता नहीं, सीखने का कदम है।
हर बच्चा उस बीज की तरह है जिसे सही समय, सही मिट्टी, और सही धूप की जरूरत है।
समापन
बच्चों को बदलने से पहले अभिभावकों को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। प्यार, विश्वास, संवाद और संयम — यही चार स्तंभ हैं जो बच्चे की शिक्षा, व्यक्तित्व और उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करते हैं।
अगर बच्चे को यह विश्वास हो जाए कि “मुझे मेरे माता-पिता समझते हैं”, तो वह जिंदगी के हर मोड़ पर सफलता पाएगा।







