विषय: AI और रोबोट्स का भविष्य – महाराज जी के चिंतन एवं सत्संग का विस्तृत आलेख
प्रस्तावना
जब हम मौजूदा समय की परिस्थितियों को देखते हैं, तो बार-बार मन में यह डर उत्पन्न होता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोट्स के बढ़ते प्रभाव के चलते भविष्य कैसा होगा। इस सत्संग में Param Pujya Vrindavan Rasik Sant Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj ने इस चिंता को न सिर्फ समझा, बल्कि समाज को चेताया कि आगे का समय किस प्रकार संकटपूर्ण हो सकता है। ये चिंताएं आम हैं, खासकर जब तकनीक हमारे जीवन के हर क्षेत्र में घुसपैठ कर रही है। महाराज जी ने इसका समाधान भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से प्रस्तुत किया है।
महाराज जी का संदेश: बहरूपिया आधुनिकता और संकट का एहसास
महाराज जी कहते हैं कि आज का समय ऐसा आ गया है जहाँ मशीनों और टैक्नोलॉजी ने सभी कामों पर कब्जा कर लिया है। इंसान का मन बार-बार भय से भर जाता है कि आने वाले कल का समय कैसा होगा। सुख-सुविधाओं के साथ आंतरिक शांति, स्थिरता, साहस, और विश्वास में कमी आती जा रही है। महाराज जी बताते हैं कि कलयुग में लोग भोग, विलासी, और रोगी होंगे। जब हम पिछली पीढ़ियों को याद करते हैं, तो समझ में आता है कि पहले कैंसर जैसा रोग सुनाई भी नहीं देता था। अब यह बीमारी बुखार की तरह फैल गई है; हर तरफ लोग इसके शिकार हो रहे हैं।
वे कहते हैं कि कलयुग का प्रभाव हर तरफ दिखेगा। लोग भोगी, विलाशी, व्यसनी, और रोगी बनते जा रहे हैं। यह परिस्थिति मशीनों और सुविधाओं के बढ़ते उपयोग की वजह से आई है। पहले मेहनत का महत्व था, आज मशीनों, ट्रैक्टर्स आदि ने स्वस्थ जीवन को छीन लिया है। उदाहरण के लिए, किसान पहले बैल और हल से खेत जोतते थे, आज वह काम ट्रैक्टर से चंद मिनटों में हो जाता है। मेहनत की जगह सुविधा ने ले ली है।
पुराने युग की मेहनती जीवनशैली
महाराज जी के शब्दों में—मेहनत, श्रम, और संयम ही शरीर को पुष्ट रखते थे। माताएं-बहनों का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि घर की चक्की से अनाज पीसने, धान कूटने आदि से शरीर बलवान होता था। अब मशीनें आ जाने से काम चंद मिनटों में हो जाता है, लेकिन इसका दुष्प्रभाव यह है कि शरीर कमजोर हो गए हैं। पहले लोग कुएँ से 30-40 बाल्टी पानी खींचते थे; इससे पूरे शरीर की एक्सरसाइज हो जाती थी। अब बटन दबाओ और मोटर पानी निकाल दे। पशुओं को चारा काटना भी पोलक मशीन से हो रहा है।
महाराज जी बताते हैं कि पहले गाँव में सिर्फ 10-20 लोग ही विशेष रूप से देखने योग्य होते थे, जिनमें युवावस्था का बल झलकता था। अब युवाओं में वह ताकत नहीं रह गई है। यह सब सुविधाओं की वजह से हुआ है। पहले किसान सुबह मोटी रोटियाँ, चना, मट्ठा, गुड़ जैसी देसी चीजें खाते थे और दिनभर मेहनत करते थे।
आज के आधुनिक भोजन और विचारों की स्थिति
महाराज जी बताते हैं कि पहले घर में कच्चे दूध-घी, दही, मठ्ठा, सब्जी, दाल, और ताजगी से भरपूर रोटियाँ खाई जाती थीं। आज पैकेट का मठ्ठा, बाजार की बासी चीजें मिल रही हैं। खाने में पोषण और स्वाद दोनों कम हो गए हैं। आज के भोजन और विचारों की वजह से शरीर कमजोर और मन अस्थिर हो गया है। पहले मेहनत करने पर न तो जुखाम होता था, न ही बुखार, और शरीर स्वस्थ रहता था। अब मेहनत छूट गई है, मशीनें हर काम कर रही हैं।
सामाजिक परिवर्तन: आलस्य, व्यसन और रोग
महाराज जी कहते हैं कि अब लोग घर के काम के लिए कामवाली रखते हैं, घर में हाथ-पैर काम करने से बचते हैं। नतीजा यह है कि शरीर रोगों का घर बनता जा रहा है। चेहरे पीले पड़ गए हैं, पहले चेहरों पर चमक रहती थी। जिनके पास पैसा है, वे शराब, व्यसन, और अनुचित आचरण में लगे रहते हैं। कलयुग का प्रभाव जोरों से बढ़ रहा है, और मशीनों की वजह से यह और भी तेज़ हो जाएगा।
महाराज जी चेतावनी देते हैं कि मशीनें आज सुविधाजनक लग सकती हैं, लेकिन भविष्य में यह समाज के लिए हानिकारक होंगी। लेबर को काम नहीं मिल रहा, लोग खाली बैठे हैं। खालीपन, व्यसन, रोग, और कमजोर शरीर नतीजा है। मेहनत बहुत छूटती जा रही है। अब कोई दो किलोमीटर पैदल चलना नहीं चाहता, ₹100 में ऑटो से जाना पसंद करता है।
जीवन की सरलता और आत्मिक बल
महाराज जी की पुरानी यादों में ऐसी रोटियाँ बनी थीं, जिनमें न नमक था, न उर्वरक, फिर भी स्वादिष्ट थीं। घर की चक्की, खेत की उपज, चूल्हे पर बनी रोटियाँ, दही, मठ्ठा और सब कुछ अपने आप में आनंदमय था। अब गैस चूल्हा आया, पैकेट वाला मठ्ठा, और जगह-जगह बासी चीजें मिल रही हैं। आधुनिकता ने सब बदल दिया है।
वे आगे कहते हैं कि पहले स्कूल में जाने वाले बच्चे को किसान के घर की रोटी, दही, मठ्ठा, गुड़, और ताजगी मिलती थी। जीवन का आनंद मिला करता था, आज वह नहीं रहा। पैकेट वाला मठ्ठा, बाजार की सब्जियाँ, बासी स्वाद सब जगह छा गया है। यह आधुनिकता भयावह है; विचारशील होकर सोचना चाहिए कि आगे का समय कैसा होगा।
आधुनिकता का प्रभाव – भयावहता और समाधान
महाराज जी कहते हैं, “अब कुछ दिन में खाने की भी मशीन आ जाएगी।” यह sarcasm है कि सुविधाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं, लेकिन आने वाला समय संकट का समय होगा। आधुनिकता बढ़ती चली जा रही है, बढ़ते-बढ़ते भयावहता छा जाएगी। क्या करना है, इसका सोच विचार करो।
यह बात सच्चाई है कि मशीनें, रोबोट्स, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आज हर क्षेत्र में अपना स्थान बना रही हैं। लोग इनकी वजह से आलसी, रोगी, और कमजोर होते जा रहे हैं। समाज का ढांचा बदल रहा है, रिश्ते बदल रहे हैं, शरीर और मन कमजोर हो रहे हैं।
भविष्य का संकेत: महाराज जी की चेतावनी
महाराज जी के संदेश के अनुसार, आने वाला समय संकटपूर्ण होगा। सुविधाएँ और तकनीक आज स्वयं सुविधाजनक लगती हैं, लेकिन कल यह समाज के लिए घातक सिद्ध होंगी। यह डर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोट्स को लेकर है—कि आगे आने वाले समय में ये इंसान को परास्त कर देंगी। लोग काम छोड़ देंगे, शारीरिक मेहनत छूट जाएगी, व्यसन और रोग बढ़ते जाएंगे।
महाराज जी बार-बार कहते हैं, चिंता सिर्फ मशीनों की बढ़ती भूमिका से ही नहीं है, बल्कि मानव का नैतिक और सामाजिक पतन भी इसमें शामिल है। अगर लोग मेहनत, संयम, और साधना को छोड़ देंगे, तो यह समाज के लिए संकट का समय होगा।
आध्यात्मिक समाधान – शांति, साहस, और विश्वास
महाराज जी का संदेश केवल चिंता तक सीमित नहीं है, बल्कि समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। वे कहते हैं, “अगर शरीर को मेहनत नहीं दोगे, तो वह रोगों का घर बन जाएगा।” मेहनत, संयम, साधना और सही आहार ही स्वस्थ जीवन की कुंजी है। मुश्किल समय में आंतरिक शांति, स्थिरता, साहस, और विश्वास की आवश्यकता होती है। भगवान का नाम स्मरण, साधना, भजन, कीर्तन, सकारात्मक सोच ही स्थायी समाधान हैं।
समाज को चाहिए कि मशीनों की सुविधा के साथ संतुलन बनाकर चले। मनुष्य के हिस्से का काम, श्रम, सीधा भोजन, संयम, और सत्संग को न छोड़ें। परमात्मा का सत्संग, साधना, और विचारशील दृष्टि आज के संकटों का समाधान हो सकते हैं।
निष्कर्ष
महाराज जी ने इस सत्संग में जो बात स्पष्ट रूप से कही है, वह आज के समाज को चेतावनी भी है और समाधान भी। मशीनों, रोबोट्स, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने हमारी जिंदगी में अपनी जगह जरूर बना ली है, लेकिन इसके साथ जो डर, चिंता, और संकट जुड़े हैं, उनका हल मेहनत, संयम, साधना, और सही दिशा में विश्वास से ही मिल सकता है। अगर समाज जागरूक, विचारशील रहें, मेहनत और साधना की ओर लौटें, तो स्वस्थ, संस्कारी, और सुखी जीवन संभव है।
पूरा सत्संग शब्दशः (टेक्स्ट ट्रांस्क्रिप्ट)
राधे-राधे महाराज जी, आज का समय ऐसा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रोबोट से सारे काम किए जाते हैं। ऐसे में मन बार-बार भय से भर जाता है कि मतलब आने वाला समय कैसे होगा? आंतरिक शांति, स्थिरता, साहस और विश्वास में कमी आ जाती है। कलयुग में लोग भोगी, विलाशी, व्यसनी और रोगी होंगे। पहले कैंसर सुना नहीं जाता था, अब बुखार की तरह कैंसर फैल रहा है। जिसको देखो वो कैंसर से पीड़ित हो रहा है।
कलयुग में लोग भोगी, विलाशी, व्यसनी, और रोगी होंगे। हमने अपने बचपन में देखा – किसान हल से पूरा बीघा जोतता था। रात 2 बजे से बैल को हल में लगाकर 11 बजे दिन तक चलाता, तो दो दिन बराबर चलता रहता। किसान को न जुखाम, न बुखार, ढेर सारा भोजन पाने वाला, मेहनत होता था। माताएं बहनें घर में धान कूटती थीं, घर की चक्की चलाती थीं, सब बलवती थीं। अब ट्रैक्टर से 20 मिनट में खेत जोत जाता है, 20 मिनट में चक्की में आटा पीस जाता है, मशीनें रोटी बना रही हैं, शरीर बीमार हो गए हैं। अब 30 हाथ से कुएँ से पानी खींचा जाता था, बाल्टी से फेफड़े, दिल सब सही रहते थे। अब बटन दबाओ, मोटर से पानी निकल जाए। अब थोड़ा रह गया, कुएँ से पानी खींचना। जानवरों को चारा देना, पसीना-पसीना हो जाता था, अब मशीन से चारा कट जाता है। सब बटन वाले काम रह गए हैं।
पहले गाँव में 10-20 लोग ही देखने लायक होते थे, अब ऐसे नहीं नजर आते। खेती, जोतना, सब मेहनत करना, बलवान होते थे, नए लड़के चाउमीन खाने वाले हैं तो बल कैसे आएगा? सुबह चार मोटी रोटी, चना, एक लीटर मठ्ठा और 250 ग्राम गुड़, यही बाल भोग होता था। दोपहर में ढेर सारी सब्जी, दाल, रोटी खाने के बाद घूमते रहते थे। आज के भोजन और विचारों की वजह से आगे का समय संकटपूर्ण होगा। घर में पोछा लगाने, हाथ-पैर काम करने में मेहनत हो, अब घर में कामवाली रख ली, शरीर को क्या करोगे? अगर मेहनत नहीं करोगे, तो रोगों का घर हो जाएगा। चेहरे पीलिया जैसे हो गए हैं, पहले चेहरा चमकता था, चमकदार लगता था, जवाल , घी-दूध खाकर चमक आती थी।
आज जिनके पास पैसा है, वह शराब पी रहे हैं, व्यसन कर रहे हैं, गंदे आचरणों में हैं। कलयुग का प्रभाव बहुत जोर से बढ़ेगा। मशीनें जितनी बन रही हैं, आज सुविधाजनक लग रही हैं, लेकिन कल समाज के लिए हानिकारक होंगी। अब मशीनें ऐसी आ गईं कि लेबर को काम नहीं है, सब मशीनों से काम हो रहा है, लोग क्या करेंगे? नशा करेंगे, व्यभिचार करेंगे, रोगी शरीर बनेंगे। मेहनत छूट रही है, मेहनत कहाँ रह गई है? कौन 2 किलोमीटर पैदल चलना चाहेगा? अब तो ऑटो से जाना पसंद है। बेटा 10 मिनट इंतजार करता है, 10 मिनट में पहुँच जाएगा, 2 किलोमीटर या 1.5 किलोमीटर चलना नहीं चाहता। पैसे देकर ऑटो से पहुँचता है। समय बदलता जा रहा है, यह भयावह है।
हमने ऐसी रोटी खाई है जिसमें बिना नमक के भी स्वादिष्टता थी। बिना खाद के खेतों में पैदा होती थी, घर की चक्की से पीसी जाती थी, चूल्हे पर बनती थी। खूब मक्खन और नमक लगाते, स्वादिष्ट होती थी। स्कूल जाना होता था, किसान के घर में बिना गैस चूल्हा, 8 बजे जलता था, रात की रोटी बन जाती थी, दही और मठ्ठा मिलता था। अच्छा-loved होते थे। अब पैकेट वाला मठ्ठा मिलता है, पता नहीं कब, कहाँ, कैसे बना है। ये सब बातें दूर हो गई हैं। आधुनिकता बढ़ती जा रही है, भयावह है, विचारशीलता जरूरी है।
अब रोटी बनाने की मशीन आ गई, अब खाने की भी आ जाएगी। आधुनिकता इतनी बढ़ रही है, संकट ही संकट होगा, समय विचार कर लो।
अंतिम बात
महाराज जी का उपदेश आज के समय के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। AI, रोबोट्स, और मशीनों की बढ़ती भूमिका के सामने समाज चाहे जितना भी विकास करे, इंसान को मेहनत, संयम, साधना, संतुलित जीवन और ईश्वर-भावना को नहीं भूलना चाहिए। समाज में नैतिकता, स्वास्थ्य, रिश्ते, और आत्मिक बल बनाए रखना आज भी उतना ही जरूरी है जितना पहले था।
यह सम्पूर्ण लेख Maharaj Ji के शब्दों, भावों एवं संदर्भों पर आधारित है और वीडियो/ट्रांस्क्रिप्ट के अनुसार विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया गया है।






