
यह प्रवचन परम पूज्य वृंदावन रसिक संत श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का है, जिसमें वे भक्ति, भगवान से प्रार्थना, इच्छाओं की पूर्ति, और ईश्वर के प्रति सच्चे संबंध जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा कर रहे हैं। इसमें बताया गया है कि जब हमारी कोई इच्छा पूरी नहीं होती, तब हमें अपनी भक्ति पर संदेह होने लगता है, जबकि ऐसा सोचना उचित नहीं है। संक्षिप्त रूप में यह प्रवचन निम्नलिखित मुख्य विषयों और उपदेशों के इर्द–गिर्द घूमता है—
भक्ति और संदेह
जीवन में जब कोई समस्या आती है या हम भगवान से कोई मांग रखते हैं जो पूरी नहीं होती, तब मन में भक्ति के प्रति शंका उठने लगती है। संत महाराज समझाते हैं कि हमें यह विचार करना चाहिए कि हम भगवान से क्या मांग रहे हैं और उन मांगों का स्वभाव क्या है। संसार की हर वस्तु नाशवान व परिवर्तनशील है, और जिन समस्याओं को हम भगवान तक पहुँचाने की कोशिश करते हैं, उसकी भी एक प्रक्रिया है।youtube
भगवान से मांगना – दृष्टिकोण और भावना
महाराजजी समझाते हैं कि भगवान से मांगना भी एक भाव का विषय है। जैसे अपने प्रियजन से हम अगर सच्चा प्रेम करते हैं, तो उनसे कोई स्वार्थपरक मांग कम ही करते हैं। इसी तरह भगवान से भी मांगने का सही तरीका है कि – आप सदैव मेरे अंतर में रहें, मैं आपके स्मरण (चिंतन) में लीन रहूं। यदि भगवान से केवल संसारिक सुख-सुविधाओं की मांग की जाए, तो वह सच्चा प्रेम नहीं होता।youtube
साधना और प्रारब्ध
भगवान ने हर किसी को ध्रुव जैसी पदवी भी नहीं दी; ये उनके कठोर तप और साधना का फल था। महाराजजी उदाहरण देकर समझाते हैं कि यदि किसी ने विशेष रूप से भगवान के लिए कठोर तप किया है, जैसे कई दिन बिना अन्न-जल के बिताए, प्रभु के लिए रोए, ध्यान किया—तो ऐसी साधना के फलस्वरूप ही भगवान विशेष कृपा करते हैं। केवल मांगने से नहीं, बल्कि साधना, तप, और अनुष्ठान की पूर्णता से ही इच्छाओं की पूर्ति होती है।youtube
भगवान से संबंध
भगवान से संबंध किस भाव से रखा जाए, यह बेहद महत्वपूर्ण है—मालिक-नौकर, घर वाले या दुकानदार भाव। यदि आप भगवान के घर के “घरवाले” बन जाते हैं, तो मांगनी ही नहीं पड़ेगी—मालिक स्वयं आपकी आवश्यकता पूरी कर देंगे; यदि आप दुकानदार की तरह लेन-देन का भाव रखें, तो भगवान से कुछ भी पाने के लिए तप और साधना में मेहनत करनी होगी, क्योंकि भक्तिक संबंध आत्मिक होता है, लेन-देन नहीं।youtube
मांगना कब और कैसे
मांगने का तरीका भी महत्वपूर्ण है। जीवन में सबक यह लेना है कि भगवान से मांगने के बजाय उनकी कृपा में, उनके प्रेम में तृप्त होना ही सर्वोच्च है। भगवान बिना मांगे भी बहुत कुछ दे चुके हैं—शरीर, सुंदर आंख-कान, जीवन—परंतु हमने भगवान के लिए क्या किया? हमें अपने कर्तव्यों, तप, सेवा का मूल्य समझना चाहिए और भगवान के लिए समर्पित होना चाहिए।youtube
भोग-विलास, प्रारब्ध और कर्म
संतजी कहते हैं कि दुनिया की हर भोग-वस्तु प्रारब्ध व शुभ कर्मों के अनुसार मिलती है—जितना पुण्य, उतना भोग। भगवान को न तो सबको ध्रुव जैसा पद मिलता है, न ही सबकी इच्छाएं वैसी ही पूर्ण होती हैं; इसके लिए भक्ति, तप और अनुष्ठान की महानता जरूरी है।youtube
श्रद्धा, शक्ति और समर्पण
सच्ची भक्ति का अर्थ है – प्रभु में पूर्ण श्रद्धा और समर्पण। जैसे माता–पिता अपने बच्चों की हर चोट-खुशी का ख्याल रखते हैं, वैसे ही भगवान भी भक्त के सच्चे हितैषी, कल्याण करने वाले हैं। मांग केवल भगवान की इच्छा के अनुसार, उनके आनंद के लिए होनी चाहिए, स्वयं के सुख के लिए नहीं। भगवान से यह प्रार्थना करनी चाहिए – प्रभु, दुख-सुख सहने की शक्ति दो, मन को स्थिर और शांत रखो, भजन में रुचि दो, विवेक दो।youtube
साधना, नाम-स्मरण और भजन
संतजी भजन, नाम-स्मरण, भगवान के चिंतन की महिमा बताते हैं कि जीवन सुखद और सफल तब होगा जब हम भजन करें, नाम जपें, भगवत चिंतन में लीन रहें। प्रभु की प्राप्ति के लिए जीवन मिला है, केवल सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए नहीं।youtube
भगवान का विधान और शास्त्र नियम
भगवान कभी भी मनमानी नहीं करते; वे वही प्रदान करते हैं जो विधान, शास्त्र और कर्म के हिसाब से है। उदाहरण के रूप में ध्रुव, प्रह्लाद, मनु, सतरूपा, आदि की तपस्या को उल्लेखित किया जाता है। जब तक अनुष्ठान के अनुसार योग्यता नहीं होती, तब तक भगवान साधना और नियम के अनुसार ही कृपा करते हैं।youtube
निष्कर्ष
जीवन में कोई भी मांग हो, हमें या तो भगवान के प्रिय भक्त बनना चाहिए—जहां मांग अपने आप पूरी हो—or कठिन तप, साधना द्वारा भगवान की कृपा अर्जित करनी चाहिए। मुख्य बात यह है कि भगवान का हर विधान मंगलमय है और हमें भगवान पर विश्वास, प्रेम और भजन में सच्ची श्रद्धा बनाए रखनी चाहिए। संसारिक इच्छाओं की पूर्ति के बजाय भगवत प्राप्ति ही सर्वोपरि है, और इसका जरिया है—निस्वार्थ भक्ति, सेवा भाव, नाम-स्मरण और भगवान का चिंतन।youtube
इस प्रवचन के माध्यम से संतजी का यह उपदेश है कि भक्ति जीवन का केंद्र बने, मांग केवल भगवान के आनंद हेतु हो, और संपूर्ण श्रद्धा एवं समर्पण से भजन, सेवा एवं साधना करें; तब भगवान स्वयं अपने भक्त की हर आवश्यकता का ध्यान रखते हैं।youtube
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