गृहस्थ को अतिथि के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिये?

प्रश्न – गृहस्थ को अतिथिके साथ कैसा बर्ताव करना चाहिये? इन उत्तर-अतिथिका अर्थ है- जिसके आनेकी कोई तिथि, निश्चित समय न हो। अतिथि सेवाकी मुख्यता गृहस्थ-आश्रममें ही है। दो नम्बरमें इसकी मुख्यता वानप्रस्थ-आश्रममें है। ब्रह्मचारी और संन्यासीके लिये इसकी मुख्यता नहीं है।

जब ब्रह्मचारी स्नातक बनता है अर्थात् ब्रह्मचर्य-आश्रमके ले नियमोंका पालन करके दूसरे आश्रममें जानेकी तैयारी करता है, तब उसको यह दीक्षान्त उपदेश दिया जाता है- ‘मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव । अतिथिदेवो भव ।’ (तैत्तिरीयोपनिषद्, शिक्षा० ११।२) अर्थात् माता, पिता, आचार्य और अतिथिको ईश्वर समझकर उनकी सेवा करो। गृहस्थ-

आश्रममें जानेवालोंके लिये ये खास नियम हैं। अतः गृहस्थको अतिथिका यथायोग्य आदर-सत्कार करना चाहिये।

अतिथि सेवामें आसन देना, भोजन कराना, जल पिलाना आदि बहुत-सी बातें हैं, पर मुख्य बात अन्न देना ही है। जब रसोई बन जाय, तब पहले विधिसहित बलिवैश्वदेव करे। बलिवैश्वदेव करनेका अर्थ है-विश्वमात्रको भोजन अर्पित करना। फिर भगवान्‌को भोग लगाये। फिर कोई अतिथि, भिक्षुक आ जाय तो उसको भोजन कराये। भिक्षुक छः प्रकारके कहे गये हैं-

ब्रह्मचारी यतिश्चैव विद्यार्थी गुरुपोषकः ।

अध्वगः क्षीणवृत्तिश्च षडेते भिक्षुकाः स्मृताः ।।

‘ब्रह्मचारी, साधु-संन्यासी, विद्याध्ययन करनेवाला, गुरुकी सेवा करनेवाला, मार्गमें चलनेवाला और क्षीणवृत्तिवाला (जिसके घरमें आग लगी हो; चोर डाकू सब कुछ ले गये हों, कोई जीविका न रही हो आदि) – ये छः भिक्षुक कहे जाते हैं’; अतः इन छहोंको अन्न देना चाहिये।

यदि बलिवैश्वदेव करनेसे पहले ही अतिथि, भिक्षुक आ जायँ तो ? समय हो तो बलिवैश्वदेव कर ले, नहीं तो पहले ही भिक्षुकको अन्न दे देना चाहिये। ब्रह्मचारी और संन्यासी तो बनी हुई रसोईके मालिक हैं। इनको अन्न न देकर पहले भोजन कर ले तो पाप लगता है, जिसकी शुद्धि चान्द्रायणव्रत* करनेसे होती है। अतिथि घरपर आकर खाली हाथ लौट जाय तो वह घले मालिकका पुण्य ले जाता है और अपने पाप दे जाता है। अस अतिथिको अन्न जरूर देना चाहिये।

गृहस्थ को भीतर से तो अतिथिको परमात्माका स्वरूप मान चाहिये और उसका आदर करना चाहिये, उसको अन्न-जल देर चाहिये, पर बाहरसे सावधान रहना चाहिये अर्थात् उसको घरक भेद नहीं देना चाहिये, घरको दिखाना नहीं चाहिये आदि। तात्पर है कि भीतरसे आदर करते हुए भी उसपर विश्वास नहीं करन चाहिये; क्योंकि आजकल अतिथिके वेशमें न जाने कौन आ जाय।

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक “गृहस्थ कैसे रहे ?” से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.

  • Related Posts

    Safe प्लॉट ख़रीदे, ये चार बिन्दु जाने नहीं तो पैसा डूब जाएगा

    यहां प्रस्तुत है वीडियो (“Legal और Safe प्रॉपर्टी ख़रीदने चाहते हैं तो पहले ये चारों बिन्दु जान लीजिए नहीं तो पैसा डूब जाएगा | Building Byelaws-2025”) का विस्तार से, गहराई…

    Continue reading
    बेटा वापस आ जाओ, मैं मिस करता हूँ- शिखर धवन

    शिखर धवन के हालिया इंटरव्यू में उनका दर्द और भावनाएँ साफ तौर पर झलकती हैं। उन्होंने खुलकर बताया कि कैसे अपने बेटे और बच्चों से दूर होना उनके लिए सबसे…

    Continue reading

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    Gold Price : Chandni Chowk का माहौल और क्या बोले Expert?

    Gold Price : Chandni Chowk का माहौल और क्या बोले Expert?

    शरीर में जमी गन्दगी कैसे निकाले

    शरीर में जमी गन्दगी कैसे निकाले

    लड़ते-लड़ते थक गया हूँ, हस्तमैथुन की लत नहीं छूट रही

    लड़ते-लड़ते थक गया हूँ, हस्तमैथुन की लत नहीं छूट रही

    बोर्ड परीक्षा, मेमोरी बूस्ट, स्टडी हैक्स, मोटिवेशन- प्रशांत किराड के टिप्स

    बोर्ड परीक्षा, मेमोरी बूस्ट, स्टडी हैक्स, मोटिवेशन- प्रशांत किराड के टिप्स

    द कंपाउंड इफ़ेक्ट : किताब आपकी आय, जीवन, सफलता को देगी गति

    द कंपाउंड इफ़ेक्ट : किताब आपकी आय, जीवन, सफलता को देगी गति

    कारों पर 2.65 लाख तक की छूट, खरीदारों की लगी लाइन

    कारों पर 2.65 लाख तक की छूट, खरीदारों की लगी लाइन