यदि सभी मनुष्य अपने- आपको अलग-अलग सुधार लें तो सभी सुधर जायँ
आदरणीय परम पूज्य श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी की लाभदायक पुस्तक ‘सत्संग के बिखरे मोती ‘
६०-व्यष्टिके समूहका नाम समष्टि है। यदि सभी मनुष्य अपने- आपको अलग-अलग सुधार लें तो सभी सुधर जायँ।
६१-अपना सुधार चाहनेवालेको, उन्नतिशीलको यह नहीं देखना चाहिये कि दूसरा ठीक हो, दूसरे सुधरें, तब मैं भी सुधरूँ। उसे तो अपना सुधार आरम्भ ही कर देना चाहिये। अपना सुधार अपने ही द्वारा होगा।
‘उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं
नात्मानमवसादयेत् ।’
६२-यह समय ही कलियुगका है, मन अच्छी बात तो जल्द ग्रहण नहीं करना चाहता। बुरीको बहुत जल्दी ग्रहण कर लेता है।
६३-इस कलियुगमें वस्तुतः अच्छी बात मिलती भी बहुत कम है। कहीं मिल भी जाती है तो ग्रहण नहीं होती। ग्रहण नहीं होनेमें कारण है अन्तरका मल।
६४-अन्तरके मलको नाश करनेके लिये भगवन्नामसे बढ़कर दूसरा सुलभ साधन है ही नहीं। स्त्री, बच्चे, बूढ़े सभी भगवान्का नाम बड़े प्रेमसे ले सकते हैं।
६५-भगवान्के नाममें श्रद्धा नहीं हो, प्रेम नहीं हो तो दूसरेके कहनेसे ही लेना आरम्भ कर दें। अच्छा क्या हानि है, नाम लिया करेंगे; इसी भावसे लें। आदत डाल लें, फिर काम होगा ही; क्योंकि भगवन्नाममें वस्तुशक्ति ही ऐसी है, पाप नाश करनेकी स्वाभाविक शक्ति ऐसी है कि जीभपर नाम आते ही वह मलका नाश करेगा ही।
६६-भगवन्नाम पापोंका नाश करके ही शान्त नहीं हो जाता। पापका नाश करनेके बाद हृदयमें ज्ञानकी ज्योति पैदा करता है, ज्ञानके बाद भगवान्के प्रति प्रेम उत्पन्न करता है। यह हुआ कि फिर स्वयं नामी खिंच आते हैं।
६७-भगवान्के नाम, स्वरूप, लीला, धाममें अन्तर नहीं है। ये सब भगवत्स्वरूप ही हैं।
६८-नाम भगवान्को हमारी ओर खींचता है और हमें भगवान्की ओर ले जाता है-दोनों ही काम करता है।