ऑफिस में बिना कारण विरोध करने वाले से कैसे निजात पाएँ? — श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के अमृत वचन

ऑफिस में बिना कारण विरोध करने वाले से कैसे निजात पाएँ? — श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के अमृत वचन

मेटा डिस्क्रिप्शन:ऑफिस में अकारण विरोध करने वालों से छुटकारा पाने के लिए श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के दिव्य उपदेश, क्षमा, सहनशीलता और नाम जप का महत्व बताते हैं।

ऑफिस में अकारण विरोध: महाराज जी का समाधान

महाराज जी से प्रश्न:“महाराज जी, कार्य क्षेत्र में अकारण विरोध करने वालों से कैसे निजात पाई जा सकती है? जिससे कोई लेना-देना नहीं, वह व्यक्ति भी द्वेष की भावना रखते हैं।”महाराज जी का उत्तर:“तो हमारा क्या बिगाड़ लेगा? हमारा क्या बिगाड़ मिलेगा? हम शांत हैं, गंभीर हैं। पागल लोग हैं, राग-द्वेष के वशीभूत हैं, पागल लोग हैं। तो हमको व्यवहार क्षेत्र में अपनी कोई कमी नहीं रखना। जैसे हमें कोई कह रहा है कि ये चोर है, तो हमें पहले एक बार देखना है – मेरे में चोरी का स्वभाव तो नहीं है? अगर है, तो भगवान पे संकेत कर रहे हैं, सुधार कर लो। अगर नहीं है, तो आप बोलते रहिए चोर है, क्या फर्क पड़ना है? और बिगाड़ कोई सकता नहीं, अनहोनी होनी नहीं, और जो होनी है उसे टाल कोई सकता नहीं।”महाराज जी आगे कहते हैं:“तो निर्भय रहो, नाम जप करते रहो और सहते रहो। जो आपके प्रति गलत व्यवहार करते हैं, वो खुद नष्ट हो जाएंगे। आप शांत रहो, गंभीर रहो, समय आने पर देख लेना, वो खुद पतित हो जाएंगे, वो खुद नष्ट हो जाएंगे, क्योंकि उनका कर्म ऐसा है ना, वो कर्म ही उनको नष्ट कर देगा। अपने को शांत रहना है, गंभीर रहना है और सहना है। सहने से हमारी उन्नति होती है, लड़ जाने से हमारी अवनति होती है।”

क्षमा और सहनशीलता का महत्व

महाराज जी समझाते हैं:“वो गाली दे रहा है, आप चुप होकर निकल गए, तो वो गाली उसी को पड़ेगी जाकर। वो ऐसे कर्म करेगा, किसी जगह ऐसा फंस जाएगा कि उसको सैकड़ों गालियाँ मिलेंगी और पिटेगा वो, और आप गंभीर रहे, आपकी उन्नति हो जाएगी। अध्यात्म आपको बचाना सिखाता है, आपको आनंदमय होना सिखाता है।”

“नीति कहती है: ‘‘शठे शाठ्यं समाचरेत्’ (दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिए ...‘, लेकिन प्रीति नहीं कहती। प्रीति कहती है: अगर वो एक थप्पड़ तुम्हें मारे, तो तुम झुककर निकल जाओ। अब वह एक थप्पड़ उसके लिए इतना भारी पड़ेगा, वह झेल नहीं पाएगा, क्योंकि आप चुप हो गए ना।”

एक प्रेरक कथा

महाराज जी एक कथा सुनाते हैं:”एक नाव में एक संत और उनके शिष्य बैठे हुए थे। बहुत से लोग नाव में बैठे थे। इतने में एक दरोगा और दो पुलिस वाले चढ़े। जहां संत थे, वहीं खड़े हुए। संत नंगे पैर, उनका शिष्य बूट पहने था। शिष्य ने बूट रख दिया, दरोगा के पैर में लग गया, तो वह चीख पड़ा, एक चांटा मारा और गाली दी। संत शांत रहे। नाव किनारे लगी, दरोगा उतरते समय फिसल गया, संगीन उसके शरीर में घुस गई और वहीं मर गया। गुरुजी ने शिष्य को डांटा कि अगर एक शब्द कह देता तू, तो ये बच जाता। तूने एक शब्द भी नहीं कहा ना, इसलिए इसको इतना भारी दंड मिल गया।”

“पलट कर तुम्हें कोई गाली दे रहा हो, गाली मत देना। उसको इतना बड़ा दंड मिलेगा कि वो भोग नहीं पाएगा। क्षमा श्राप से भी भारी हो गई। सह के निकल जाओ, यह सबसे बड़ा दंड होगा।”

विरोधी के लिए मंगल कामना

महाराज जी कहते हैं:“हम तो यह चाहते हैं, उसको भी दंड ना मिले, आनंद से रहे, काहे को दंड मिले। बुद्धि शुद्ध कर दो, भगवान उसको दंड मत दो, उसकी बुद्धि शुद्ध कर दो। अपने उसका मंगल मनाते हैं – जो हमें गाली देता है, जो हमारा अपमान करता है, जो हमारी उन्नति देखकर जल रहा है, हम उसका भी मंगल मनाएँ, तो हमारा और मंगल हो जाएगा। पर यह कला अध्यात्म के बिना सीखी नहीं जा सकती।”

अध्यात्म का रहस्य

“यह कला अध्यात्म सिखाती है कि आप समर्थ हो, आप उसको दंड दे सकते हो, लेकिन आप चुप होकर चले गए, तो आपका चुप होना उसके लिए भारी पड़ जाएगा। यह रहस्य कोई जल्दी जानता नहीं है, मानता नहीं है कि हम चुप कैसे रह सकते हैं।”

“अध्यात्मवान चुप होकर, शांत होकर सह जाता है। और वो सहनशीलता, वो क्षमा उसके लिए सांप से भी भारी पड़ती है और वो कहीं ऐसी जगह गिरेगा, जहां संभल नहीं पाएगा।”

निष्कर्ष: व्यवहार क्षेत्र में महाराज जी की शिक्षा

  • अपने व्यवहार में कोई कमी न रखें।

  • आत्मनिरीक्षण करें: यदि कोई दोष है, तो सुधारें; नहीं है, तो आलोचना की परवाह न करें।

  • निर्भय रहें, नाम जप करते रहें, सहनशील बनें।

  • शांत और गंभीर रहें, विरोधियों को उनके कर्म का फल मिलने दें।

  • लड़ाई-झगड़े से बचें, क्षमा और सहनशीलता से ही उन्नति होती है।

  • विरोधियों के लिए भी मंगल कामना करें, उनकी बुद्धि शुद्धि की प्रार्थना करें।

  • अध्यात्म के मार्ग पर चलें, यही सच्चा समाधान है।

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आध्यात्मिक समाधान, क्षमा, सहनशीलता और नाम जप — यही महाराज जी के वचन हैं, जो ऑफिस में अकारण विरोध से निजात दिलाते हैं।

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