आपके पुराने गंदे कर्म ऐसे मिट सकते है (EN)

आपके पुराने गंदे कर्म ऐसे मिट सकते है

एक युवक ने वृन्दावन के राधा केलि कुंज के महाराज जी से पुछा था, महाराज जी मेरे तमाम प्रयास के बावजूद मुझे अच्छी नौकरी नहीं मिल रही. महाराज ने युवक को सलाह दी.

विद्यारण जी बहुत बड़े महापुरष हुए हैं. उन्होंने अपने माता पिता को सुखी करने के हेतु धन प्राप्ति के लिए गायत्री अनुष्ठान किया. एक पुरूशरण २४ लाख गायत्री का होता है. उन्होंने कई बार पुरश्चरण किया एक बार भी कोई धन की प्राप्ति नहीं हुई.

आखिर में उन्होंने सन्यास ले लिया , ज्यों ही संन्यास लिया, माता गायत्री प्रकट हो गई. उन्होंने कहा, तुम इन्द्रासन भी मांग लो तो दे देंगे.

विद्यारण जी बोले- अब क्या जरुरत है, अब मैं तो बैरागी हो गया. मेरे माता पिता की भी मृत्यु हो गई , मैंने उनकी सेवा के लिए धन चाहा था. मैंने २३ पुरश्चरण किये, आप तब नहीं आयी.

माता बोलीं- तुम्हारे अनंत जन्मो में ऐसे २४ महापाप थे. जिनके कारण मैं नहीं आ पा रही थी. अब वो २३ पुराशरण से नष्ट हो गए और २४ वा तुमने संन्यास लिया अब आप जो चाहो। विद्याधरण जी बोले अब मुझे कुछ नहीं चाहिए माता, अब तो मुझे ब्रह्म प्राप्ति करनी है.

इससे आभास होता है कि अगर हमारा बुरा प्रारब्ध है, तो हमको भोगना पड़ेगा. चाहे हम कितना भी प्रयास करे.

तो अब हमें क्या करना चाहिए, ताकि हमें परम शांति मिले. प्रभु के नाम का जप करते हुए उन पर दृष्टि लगाए कि प्रारब्ध से हमारा भरण पोषण शरीर से भले है लेकिन हमारा भरण पोषण आपसे होगा नाथ.

तो भगवान् ही अकेले है, जो आपके प्रारब्ध को मिटा देंगे.

सुदामा जी के भाग्य में दरिद्रता थी. उनको ऐसी दरिद्रता थी कि उन्हें कई कई दिन तक भिक्षा नहीं मिलती थी.

ये जितने भी चरित्र हमारे लिए उदहारण है.

वह मांगने जाते तो मांगने से भी नहीं मिलता था. एक दिन उनकी पत्नी ने कहा, हमारा आपका तो गुजारा चरणामृत से भी चल जाता है, लेकिन छोटे छोटे बच्चे तो मर जाएंगे एक दिन.

सुदामा जी ने कहा, श्री कृष्ण के अलावा हमारा कोई नहीं है.

प्रारब्ध जब बिगड़ता है तब प्रारब्ध कोई सफलता नहीं होने देता. एक दिन श्री रुक्मणि जी ठाकुर जी को प्रसाद पवा रही थी, ठाकुर जी ने पवाने से रोक दिया, रुक्मणि जी ने कहा, प्रभु जी ऐसे स्थिति हमने तब आपकी देखी है, जब किसी भक्त को कष्ट होता है. कौन सा भक्त है और क्या कष्ट है.

प्रभु बोले- एक सुदामा हमारे मित्र है, उनको कई दिन से भोजन नहीं मिला. रुक्मणि जी बोली- प्रभु वह आपके मित्र और मैं आपकी दासी। महालक्ष्मी जी का अवतार रुक्मणि जी हैं . रूक्मणी जी बोलीं- मुझे आप हुकुम कीजिये- हम उनको सम्पति दे देंगे. प्रभु बोले हमारे मित्र को चाह नहीं है और चाह ना होने पर हम विवश है, अगर वह चाह कर ले तो सारी व्यवस्था हो जाए.

रुक्मणि जी बोली- आप चाह पैदा कर दे. प्रभु बोले- सुदामा के हृदय में तो हम भी चाह पैदा नहीं कर सकते, क्योंकि जिस हृदय में भगवान् का आश्रय और निरंतर चिन्तन है, वहां माया की चाह नहीं होती. रुक्मणि जी बोली- उनकी पत्नी के हृदय में?

प्रभु बोले प्रयास करते है. भगवान् संत वेश में गए. कहा- भिक्षा चाहिए. सुदामा जी की पत्नी ने हाथ जोड़ा. उनने कहा, हम असमर्थ है, आपको भिक्षा नहीं दे सकते, प्रभु बोले- क्यों।

पत्नी बोली- हम अपवित्र हैं. हमारे ऊपर सूतक लगा है. हमने पुत्र जन्मा है.

प्रभु बोले- ठीक है, दस बारह दिन बाद आ जाएंगे

बोलीं नहीं आजीवन अपवित्र रहेंगे.

प्रभु बोले- ऐसा कौन सूतक है

बोलीं- दरिद्रता रुपी पुत्र का जन्म हुआ है.

प्रभु बोले- दरिद्र कैसे हो सकती हो. जिनके पति के मित्र द्वारकादिश भगवान् श्री कृष्ण हैं. वो दरिद्र कैसे हो सकता है. एक बार अपने पति से कहो.

प्रभु यह कहकर चले गए.

सुदामा जी आए. तो पत्नी ने कहा- आज एक अतिथि आए थे, मैं कुछ नहीं दे पाई. मुझको बहुत कष्ट है. आपके मित्र द्वारकादिश श्री कृष्ण हैं. ?

सुदामा जी ने कहा- हाँ.

पत्नी बोली- चले जाओ ना वो कुछ ना कुछ सहयोग कर देंगे.

सुदामा जी बोले हमने ऐसे मित्र नहीं बनाए कि वो हमारा सहयोग करे. मर जाऊँगा, उनसे यह नहीं कह पाऊंगा.

पत्नी बोलीं- मत कहना पर दर्शन के लिए ही चले जाओ. सुना है वो इतने उदार है कि आपको वहां जाने पर ही कुछ न कुछ दे देंगे.

सुदामा जी ने कहा, हाँ मैं दर्शन के लिए तो जा सकता हूँ.

सुदामा जी बोले-मित्र के पास जाना है तो कुछ ले करके जाना चाहिए. मेरे पास तो कुछ नहीं है.

उनकी पत्नी पड़ोस में किसी से मांगने गई तो एक पडोसी ने चावल पछोरने पर जो चावल के कनका बच जाते है, वो दे दिए.

सुदामा जी ने कहा, हमारे प्रभु भाव के भूखे है, हम कुछ भी ले जाएंगे, वो ले लेंगे. हम खाली हाथ तो नहीं है.

द्वारकापूरी पहुंचे. दूर से दिख रहा था कोई दरिद्र हैं, हड्डी हड्डी शरीर में, कई जगह वस्त्र फटे हुए.

द्वारपाल ने पुछा- किस से मिलना है.

सुदामा जी बोले- श्री कृष्ण से.

द्वारपाल बोले- आप संभाल के बोलो, क्योंकि आप समस्त कोटि ब्रह्माण्ड नायक का नाम ऐसे कैसे बोल सकते है.

सुदामा बोले अरे तुम जाकर तो बोलो ना. श्री कृष्ण से जाकर कह दो कि एक सुदामा नाम के ब्राह्मण आए हैं.

पार्षद गए और बोले बड़ा अजीब आदमी है, आपका नाम बिना किसी सभ्यता के ले रहा है.

जैसे ही प्रभु ने सुदामा जी का सुना- कूद पड़े भगवान।

भगवन का पार्षद सोच रहा, ब्रह्मा जी, शंकर जी आते हैं, तो घंटो खड़े रहते हैं और भगवान ऐसे भाग रहे हैं. भगवन ने सुदामा जी को गले से लगाया.

भगवान ने सुदामा जी को रुक्मणि जी के महल में उनके पलंग में बैठाया. उन्होंने स्वंय उनके चरण पखारे.

प्रभु बोले क्या हाल चाल है. सुदामा जी बोले, प्रभु आप सब जानते है.

प्रभु बोले-हमारे पास आए कुछ तो लाए हो. चारो तरफ का वैभव देखकर सुदामा जी चावल छिपाने लगे. प्रभु बोले- फिर चूक कर रहे हो. तुमने हमारे हिस्से की चोरी पहले की थी. प्रभु ने सुदामा जी से चावल छिन लिए. प्रभु बोले- देखा भाभी ने मेरे लिए तंदूल चावल भेजे है . भगवान् खुश हो गए. सुदामा जी का आदर सत्कार किया.

तो जाते वक्त सुदामा जी सोच में थे. उनकी चाह नहीं थी पर पत्नी की बात सोच रहे थे. सुदामा जी ने कहा प्रभु अब मैं चलू. प्रभु ने कहा, हाँ ठीक है. प्रभु बोले, अरे जो ये कपडे है महंगे है, रास्ते में तुम्हे चोर बदमाश पकड़ सकते हैं. तुम इसको उतार दो. अपने पुराने कपडे पहन लो. कपडे भी उतार दिए.

सुदामा जी ने सोचा रास्ते में सुदामा जी नेगेटिव नहीं सोच रहे. वह सोच रहे मेरे श्री कृष्ण मुझे कितना प्यार करते है. उन्होंने इसलिए कुछ नहीं दिया कि ये दरिद्र सम्पति पाकर इसकी बुद्धि ना भ्रष्ट हो जाए और मुझे कहीं भूल ना जाए. प्रभु के प्यार में मग्न होकर अपने घर पहुंचे तो उन्हें द्वारका पूरी जैसी भव्यता देखने को मिली. उन्होंने पुछा मैं कहा पहुंच गया. प्रभु ने उनके लिए द्वारका पूरी की तरह सुदामा पूरी का निर्माण करवा दिया था.

वहीँ भगवान के पास विधाता आए. उन्होंने कहा, प्रभु यह तो गलत हो गया, इनके भाग्य में हमने लिखा था छह श्री, ऐश्वर्य का नाश, जीवन में नहीं ऐश्वर्य। भगवान ने छह श्री का उलटा कर दिया, यक्षश्री. सुदामा को कुबेर का खजाना दे दिया. विधाता बोले- प्रभु.

भगवान बोले- सुदामा ने अनंत ब्रह्माण्ड के समस्त जीवो को तृप्त कर दिया। विधाता ने सोचा खुद को खाने को नहीं, सबको तृप्त कैसे कर दिया . प्रभु बोले मेरे रोम रोम में करोड़ करोड़ ब्रह्माण्ड वास करते हैं. इनके तंदुलो से मैं तृप्त हो गया. अनंत ब्रह्माण्ड का भोजन हो गया, उसका जो पुण्य होता है, लिख दो इनके भाग्य है.

तो एकमात्र प्रारब्ध को मिटाने वाले भगवान है, कर्तुम अकर्तुम अन्यथा कर्तुम। भगवान् की शरण में होकर उनका नाम जप कीजिये और उनसे प्रार्थना कीजिये कि आपको उचित लगे तो समस्या का समाधान कर दीजिये नहीं तो मुझे समस्या से लड़ने का विवेक दीजिये. आपका भाग्य बदल जाएगा.

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