आध्यात्मिक कहानियां

हमने परम पूज्य श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार {भाई जी) जी महाराज जी की पूरी पुस्तक ‘सत्संग के बिखरे मोती’ को वेबसाइट के माध्यम से आपको लाभ देने की कोशिश की है. भाई जी के वचन को जिन्दगी में अमल किया ताएं, तो दुःख मात्र को चीज नहीं रह जायेगी.

अब हमने गीता प्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित ‘आध्यात्मिक कहानियां’ के जरिये आपको परमार्थ के रास्ते ले जाने का सोचा है, आशा है कि इससे लाभ उठा पाएंगे.

आध्यात्मिक कहानियाँ

निवेदन

दुर्लभ मनुष्य जन्म पाकर आत्मकल्याणकी अभिलाषा रखनेवाले अनेक साधक इस अवसरको सार्थक बनानेका प्रयास करते हैं। इस स्थितिमें उनके समक्ष सर्वप्रथम यह प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या करें और कैसे करें ?-इसी दृष्टिसे साधकोपयोगी आध्यात्मिक कहानियोंका यह संकलन प्रस्तुत किया जा रहा है। इन कहानियोंको पढ़कर साधन-पथपर अग्रसर होनेकी सहज प्रेरणा भी मिलती है एवं साधनका मर्म भी आत्मसात् होता है। गोलोकवासी श्रीसुदर्शनसिंहजी ‘चक्र’ प्रणीत तथा कल्याणमें समय-समयपर प्रकाशित इन मार्मिक कहानियोंमें रोमांचक एवं सुबोध शैलीमें साधकोंका मार्गदर्शन किया गया है, जो परम उपयोगी है।

प्रस्तुत संकलनमें सर्वप्रथम दस कथाएँ योगदर्शनके दो प्रारम्भिक सोपानों, पाँच यम – ‘अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः ॥’ (योगसूत्र २।३०) तथा पाँच नियम – ‘शौचसन्तोषतपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः ॥’ (योगसूत्र २। ३२)-पर आधारित हैं। उक्त दस महाव्रत केवल योगमार्गके साधकके लिये अनिवार्य हों- ऐसा नहीं, अपितु किसी भी साधन-मार्गपर अग्रसर होनेके लिये जो सदाचार अनिवार्यरूपेण अपेक्षित है, ये उसीको परिभाषित करते हैं। इनमेंसे प्रत्येक साधनकी यह भी विशेषता है कि वह स्वयंमें पूर्ण है। यदि एकनिष्ठभावसे किसी एकका भी सम्यक् पालन साधकका स्वभाव बन जाय तो वही एक साधन उसके लिये पूर्णता-प्राप्तिका उपकरण बन जाता है। इन कथाओंको पढ़कर यह बात सहज हृदयंगम हो जाती है।

कलिकालमें भगवत्प्राप्तिका सर्वाधिक सुगम मार्ग भगवद्भक्ति बताया गया है। श्रीमद्भागवत (७।५।२३) में भक्तिके भेद बताते हुए नवधा-भक्तिका वर्णन मिलता है –

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् ।

अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

अर्थात् ‘भगवान्‌के गुण-लीला-नाम-धाम आदिका श्रवण, उन्हीं का कीर्तन, उनके रूप-नाम आदिका स्मरण, उनके चरणोंकी सेवा, पूजा-अर्चा, वन्दन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन।’ भक्तिके उक्त नौ भेदोंके मर्मको नौ कथाओंके माध्यमसे समझाया गया है।

श्रीरामचरितमानसमें भगवान् श्रीरामके मुखारविन्दसे नवधाभक्तिका अभिनव स्वरूप भक्तिमती शबरीके प्रति कहा गया है-

नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं ॥

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥

गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।

चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान ॥

मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत भजन सो बेद निरंतर सज्जन प्रकासा ॥ धरमा ॥ सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥ आठव जथालाभनवम सरल सब सन नव महुँ एकउ जिन्ह संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा ॥ छलहीना। मम भरोस हिय हरष न दीना॥ कें होई। नारि सोइ अतिसम प्रिय भामिनि मोरें। सकल पुरुष प्रकार सचराचर कोई॥ भगति दृढ़ तोरें ॥

(रा०च०मा० ३।३५।७-८, ३५, ३६/१-७)

श्रीरामचन्द्रजीद्वारा प्रतिपादित नवधाभक्तिके उपर्युक्त नौ भेदोंपर भी सत्संग, कथा, गुरुसेवा, गुणगान आदि नौ कहानियाँ लिखी गयी हैं, जो अत्यन्त सरस एवं सुबोध भी हैं। श्रीसुदर्शन सिंह’चक्र’ जीकी इन कहानियोंको पढ़‌कर अनेक पाठक इन्हें पुस्तकाकार प्रकाशित करनेका आग्रह करते थे। इसी दृष्टिसे यह पहला संग्रह प्रकाशित किया जा रहा है।

आशा है, प्रेमी पाठकोंको इस सुरुचिपूर्ण संग्रहसे प्रेरणाके साथ मार्गदर्शन भी प्राप्त होगा।

– राधेश्याम खेमका

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