प्रश्न-सास पुत्रका पक्ष लेकर तंग करे तो बहूको क्या करना चाहिये ?
उत्तर-बहूको यही समझना चाहिये कि ये तो घरके मालिक हैं। मैं तो दूसरे घरसे आयी हूँ। अतः ये कुछ भी कहें, कुछ भी करें मुझे तो वही करना है, जिससे ये राजी रहें। बहूको सासके साथ अच्छा बर्ताव करना चाहिये, उससे द्वेष नहीं करना चाहिये। उसको अपने भावोंकी रक्षा करनी चाहिये, अपने भावोंको अशुद्ध नहीं होने देना चाहिये। उसको भगवान्से प्रार्थना करनी चाहिये कि ‘हे नाथ! इनको सद्बुद्धि दो और मेरेको सहिष्णुता दो।’
प्रश्न- पति और ससुर आपसमें लड़ें तो स्त्रीको क्या करना चाहिये ?
उत्तर – स्त्रीका कर्तव्य है कि वह अपने पतिको समझाये; जैसे- ‘यहाँ जो कुछ है, वह सब पिताजीका ही है। आपकी माँको भी पिताजी ही लाये हैं। धन-सम्पत्ति, जमीन-जायदाद, घर, वैभव आदि सब पिताजीका ही कमाया हुआ है। अतः उनका सब तरहसे आदर करना चाहिये। उनकी बात मानना न्याय है, धर्म है और आपका कर्तव्य है। कुछ भी लिखा-पढ़ी किये बिना आप उनकी सम्पत्तिके स्वतः सिद्ध उत्तराधिकारी हैं। अतः वे कुछ भी कहें, वह सब आपको मान्य होना चाहिये। आपको शरीर, मन, वाणी आदिसे सर्वथा उनका आदर करना चाहिये। वे कभी गुस्सेमें आकर कुछ कह भी दें तो आपको यही सोचना चाहिये कि उनके समान मेरा हित करनेवाला दूसरा कोई नहीं है। अतः उनका चित्त कभी नहीं दुखाना चाहिये। मैं भी कुछ अनुचित कह दूँ तो आपको मेरी परवाह न करके पिताजीकी बातका ही आदर करना चाहिये।’
प्रश्न-पति और पुत्र आपसमें लड़ें तो स्त्रीको क्या करना चाहिये ?
उत्तर-स्त्रीको तो पतिका ही पक्ष लेना चाहिये और पुत्र को समझाना चाहिये कि ‘बेटा! तुम्हारे पिताजी जो कुछ कहें, जो कुछ करें, पर वास्तवमें उनके हृदयमें स्वतः तुम्हारे प्रति हितका भाव है। वे कभी तुम्हारा अहित नहीं कर सकते और दूसरा कोई तुम्हारा अहित करे तो वे सह नहीं सकते। अतः इन भावोंका खयाल रखकर तुम्हें पिताजीकी सेवामें ही तत्पर रहना चाहिये। तुम मेरा आदर भले ही कम करो, पर पिताजीका आदर ज्यादा करो। वास्तवमें हमारे मालिक तो ये ही हैं। मेरा आदर तुम कम भी करोगे तो मैं नाराज नहीं होऊँगी, पर तुम्हारे पिताजी नाराज नहीं होने चाहिये। मैं भी उनको प्रसन्न रखना चाहती हूँ और तुम्हारा भी कर्तव्य है कि उनको प्रसन्न रखो।’
प्रश्न – पत्नी और पुत्र आपसमें लड़ें तो पुरुषका क्या कर्तव्य है?
उत्तर-उसे पुत्रको समझाना चाहिये कि ‘बेटा! माँको प्रसन्न रखना तुम्हारा विशेष कर्तव्य है। संसारमें जितने भी सम्बन्ध हैं, उन सबमें माँका सम्बन्ध ऊँचा है। अतः अपनी स्त्रीके वशीभूत होकर तुम्हें माँका चित्त नहीं दुखाना चाहिये।
‘ पत्नीसे कहना चाहिये कि ‘तुमने इसको पेटमें रखा है, जन्म दिया है, अपना दूध पिलाया है। अपनी गोदमें टट्टी-पेशाब करनेपर भी तुमने इसपर कभी गुस्सा नहीं किया, प्रत्युत प्रसन्नतासे उत्साहपूर्वक कपड़े धोये। अब यह तुम्हें कुछ कड़आ भी बोल दे तो भी अपना प्यारा पुत्र मानकर इसको क्षमा कर दो; क्योंकि तुम माँ हो। पुत्र कुपुत्र हो सकता है, पर माता कुमाता नहीं हो सकती –
‘कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति’।