यह वीडियो, “भोज आदि के निमंत्रण में प्याज-लहसुन का भोजन मिले तो क्या करें?”, में संत श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज की शिक्षाएं और उनके दृष्टिकोण को केंद्र में रखते हुए प्रमुख बिंदुओं को स्पष्ट, संक्षिप्त, व बिंदुवार रूप में प्रस्तुत किया गया है।
परिचय
संत श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज आधुनिक समाज में भक्ति, संयम व पारिवारिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन सिखाते हैं। उनके प्रवचन खासकर गृहस्थ जीवन, भोजन, क्रोध नियंत्रण, परस्पर संबंध, और जीवन के आध्यात्मिक विषयों पर आधारित हैं।
भोज निमंत्रण एवं प्याज-लहसुन का विषय
- सामान्य जीवन में विवाह, कार्यक्रम, भोज आदि में सम्मिलित होना पड़ता है। यह जीवन का हिस्सा है।
- संत जी कहते हैं: ‘‘गांव-गली में अक्सर भोज-निमंत्रण होते हैं, लेकिन यह रेग्युलर नहीं, कभी-कभार ही होते हैं।’’youtube
- यदि किसी भोज में प्याज-लहसुन या तामसिक भोजन बनता है, तो भक्त या साधक को वह भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह ‘तमोगुणी’ होता है।
- ऐसे अवसर पर, विनम्रता पूर्वक अन्य भोजन जैसे खीर, गुलाबजामुन, पूरी आदि ग्रहण किया जा सकता है, जिसमें प्याज-लहसुन न हो।
- भक्त को भोजन के चयन में विवेक और चातुर्य दिखाना चाहिए। यह कह देना चाहिए, ‘‘हमें प्याज-लहसुन नहीं चाहिए।’’ इसका समाधान भी प्रेमपूर्वक, विवाद से बचते हुए, निकाला जाए।youtube
- संत जी सलाह देते हैं, भोजन वहीं करें, जहां शुद्ध, सात्विक भोजन है, और खाने में यही ध्यान रहे कि इरादा शुद्ध रहे।
- खाने में चयन करते समय आवश्यकता से अधिक आग्रह या दिखावा न करें, वरन् अपनी मर्यादा में रहते हुए आवश्यकता अनुसार ग्रहण करें।
- यदि किसी कार्यक्रम में तामसिक भोजन है, तो वहां सात्विक चीजें चुनकर ग्रहण करें फिर विनम्रता से वहां से विदा लें।
“हर भोज में शुद्धता मुमकिन नहीं” – संतुलन का सन्देश
- संत जी बताते हैं, ‘‘हर भोज में रोज शुद्ध भोजन मिले, यह जरूरी नहीं।’’
- गांव-गली में जब भोज-निमंत्रण आता है, वहां अपनी बुद्धि का उपयोग करना चाहिए।
- ‘‘गुलाबजामुन, खीर’’ जैसी चीजों में आमतौर पर प्याज-लहसुन नहीं डाला जाता – इन्हें चयन करके खाया जा सकता है।
- संत जी प्रेरणा देते हैं – ‘‘केवल खाने की अधिकता या आग्रह न रखें, बल्कि शुद्ध भाव से, आवश्यकता अनुसार ही खाएँ।’’youtube
- तामसिक भोजन से दूरी या चयन करने में किसी प्रकार की असहजता या लड़ाई-झगड़े की आवश्यकता नहीं है।
टेबल-मेज़ का व्यवहार
- आज के समय में जब बँटवारा मुश्किल है, होटल या सामूहिक कार्यक्रमों में लोग अलग-अलग टेबल पर, अलग-अलग भोजन करते हैं।
- सनातन परंपरा के अनुसार, ‘‘भैया, तुम्हारा भोजन तुम्हारा; हमारा भोजन हमारा’’ – यह रवैया रखें।
- किसी का मांसाहारी या तामसिक भोजन देखना-समझना भी अनावश्यक है। केवल अपने आचरण, श्रद्धा, उद्देश्य पर केंद्रित रहें।youtube
- संत जी कहते हैं, ‘‘अपना काम करो, लक्ष्य साधो, दूसरों के भोजन या व्यवहार से विचलित मत होओ।’’
परमार्थ व दूसरों को सुधारने का प्रश्न
- प्रवचन में संत जी यह स्पष्ट करते हैं कि किसी और को अपने हिसाब से सुधारना बेहद कठिन है।
- अगर सामने वाला खुद ना चाहे, तो भगवान भी सुधर नहीं सकते। उदाहरण: भगवान श्रीकृष्ण चाह कर भी दुर्योधन को बदल न सके।
- ‘‘अपने आचरण को सुधारे, दूसरों को बदलने का मोह न रखें।’’youtube
- बलपूर्वक सुधारना संभव नहीं, स्वयं प्रेरित होकर ही कोई बदल सकता है।
क्रोध नियंत्रण और गृहस्थ संतुलन
- संत जी अत्यंत सरलता से बताते हैं कि क्रोध जीवन में किसी के भी मंगल का कारण नहीं।
- ‘‘क्रोध में बोलना नहीं चाहिए; जो भी कहना हो, शांति से या मौन रहकर कहें।’’
- गुस्से में व्यक्ति अपने भी और दूसरे के भी मन को आहत करता है।
- यदि गुस्सा बहुत आ रहा है, तो दांतों को कस लें, बोलें नहीं तथा आवश्यक हो तो उस स्थान से हट जाएं।
- क्रोध में बोले शब्द, चोट पहुंचाते हैं, जो घर-परिवार का संतुलन बिगाड़ सकते हैं।youtube
- संयम और मौन से बड़ा कोई उपाय नहीं।
- गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी या परिवारजनों के बीच क्रोध या लापरवाह बातें रिश्तों में आग लगा सकती हैं।
गृहस्थी में संतुलन और आनंद का रहस्य
- गृहस्थी को नरक और स्वर्ग बना सकते हैं – यह सब सोच, रिश्तों और आचरण पर निर्भर करता है।
- ‘‘पति के लिए पत्नी अर्धांगिनी है, और पत्नी के लिए पति भगवान हैं,’’ – ऐसी भावना आवश्यक है।
- अगर संतुलन न हो, तो गृहस्थ जीवन अशांत हो जाता है और ‘‘लक्ष्मी टिकती नहीं।’’youtube
- दोनों को परस्पर प्रेम, आदर, संयम और समझदारी से रहना चाहिए।
- ‘‘जब गुस्सा आये तो चुप रहना चाहिए, भगवान का नाम जपना चाहिए; लड़ाई-झगड़ा, मारपीट से हमेशा नुकसान ही होता है।’’
छोटी-छोटी बातें और उनका महत्व
- जिंदगी की अधिकांश समस्याएँ छोटी-छोटी बातों को बड़ा बना लेने से पैदा होती हैं।
- ‘‘छोटी-छोटी बातों में सहिष्णुता जरूरी है।’’
- छोटी बातों को अगर बड़ा बना लिया जाए तो घर-परिवार में उपद्रव जल्दी फैलता है।
- संत जी आगाह करते हैं कि ‘‘चिंगारी को छोटा न समझें, वह ज्वाला बन सकती है।’’
- हर समस्या क्रोध से नहीं, बल्कि संयम और समझदारी से निपटाई जानी चाहिए।
नाम जप – मन की शांति का उपाय
- जब भी क्रोध या असंतोष आए, नाम जप करना चाहिए; इससे मन स्थिर होता है।
- ‘‘दाँतों को भींचकर मौन हो जाना, वहां से हट जाना और नाम जप में मन लगाना – यही सबसे अच्छा उपाय है।’’
- भजन, सत्संग, ईश्वरीय स्मरण से मन शांत रहता है और घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।youtube
सहिष्णुता की सीमा
- संत जी समझाते हैं कि किसी भी आदमी या जीवनसाथी के “स्वभाव” को भगवान ने ऐसा बनाया है – कई बार कोशिश के बावजूद भी कोई बदल नहीं सकता।
- ‘‘हंस के उनका स्वभाव ऐसा है – भगवान ने उनको ऐसा बनाया है,’’ – यानी विरोध न करके, शांति से रहने की सलाह।
- ‘‘हम सत्संग सुनते हैं, भजन करते हैं, तो हमें शांति मिलती है। वह नहीं सुनते तो उनका स्वभाव अलग है।’’youtube
- सभी परिवारजनों से यही अपेक्षा रखना कि वे एक जैसे हों, नासमझी है।
वैराग्य व गृहस्थ धर्म में समन्वय
- भजन, सत्संग, संयम और प्रेम को गृहस्थ जीवन में बरकरार रखने का संदेश।
- ऐसा वातावरण बनाएं जिसमें आध्यात्मिकता का प्रवेश सहज हो सके।
- ‘‘गृहस्ती में परमात्मा के भाव के साथ रहें; नाराजगी, कटुता, दिखावा न पालें।’’youtube
- गृहस्थ धर्म निर्वाह करते हुए भी ईश्वर भक्ति और सदाचार एक साथ संभव है।
शिक्षा का सार (सारांश बिंदुओं में)
- प्याज-लहसुन जैसी तामसिक चीजों से सम्मानपूर्वक परहेज।
- भोज-निमंत्रण में सात्विक विकल्प चुनने की सलाह।
- चयन में बुद्धिमत्ता, विवाद या अहंकार न लाएँ।
- दूसरे को सुधारने का मोह छोड़कर स्वयं के आचरण सुधारें।
- क्रोध आने पर चुप हो जाएँ, दांत भींच लें, मौन रहें, अनावश्यक उलझनों को टालें।
- छोटी-छोटी बातों को बड़ा न बनाएं; सहन करने की कला सीखें।
- पति-पत्नी या परिवार में आदर, प्रेम व संयम के साथ रहें।
- घर में सत्संग, भजन, नाम जप और शांति का माहौल बनाएं।
- भगवान का स्मरण और भक्ति, गृहस्थी का सबसे बड़ा सहारा है।
- सभी की प्रकृति भिन्न है, बदलना मुश्किल; स्वीकार्यता और प्रेम ही उपाय है।
- गृहस्थ जीवन को नरक बनने से बचाएँ, गृह-कलह का कोई लाभ नहीं।
- जितना हो सके, दूसरों के साथ प्रेम, सहिष्णुता और सदाचार से पेश आएँ।
उपसंहार
संत श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के ये उपदेश आधुनिक जीवन, भक्ति यात्रा और पारिवारिक व्यवस्थाओं के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। यह शिक्षाएँ न केवल समाज में शुद्धता, संयम और सद्भाव का संदेश देती हैं, बल्कि जीवन को सरल, सुखी और आध्यात्मिक बनाती हैं।
ऐसे प्रवचन करोड़ों लोगों को आत्मविश्लेषण, सूझ-बूझ व प्रेम के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।








