नीचे दिए गए वीडियो “कार्तिक मास के अंतिम पांच दिन क्यों हैं खास” में श्री देवकीनंदन ठाकुर जी द्वारा कही गई सभी प्रमुख बातें और उनके महत्व को विस्तार से 2000 शब्दों में हिंदी में लेख रूप में प्रस्तुत किया गया है:
कार्तिक मास के अंतिम पांच दिन: क्यों हैं ये विशेष? — श्री देवकीनंदन ठाकुर जी की अमृतवाणी का सारांश
भूमिका
सनातन धर्म में कार्तिक मास का अत्यंत विशिष्ट स्थान है। इस माह की महिमा, इसकी धार्मिकता तथा आध्यात्मिक लाभ अनगिनत हैं। श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने अपने प्रवचन में कार्तिक मास के अंतिम पाँच दिनों के महत्व को अत्यंत सुंदर और सरल भाषा में समझाया है। उन्होंने बताया है कि जीवन की दौड़-भाग में व्यस्त लोगों के लिए भी किस प्रकार इन पंच दिनों का व्रत, नियम, संयम और साधना करने मात्र से पूरे कार्तिक मास का पुण्य अर्जित किया जा सकता है। प्रस्तुत है वीडियो में बताई गई श्री ठाकुर जी की सभी प्रमुख बातों का सार:
1. कार्तिक मास एवं उसके अंतिम पांच दिन
- कार्तिक मास की महिमा: यह मास वैष्णवों की परम संपत्ति है, सर्वाधिक पवित्र और पुण्यदायक माना जाता है। अनेक धार्मिक ग्रंथों में इसकी उत्तमता का वर्णन मिलता है।
- अंतिम पांच दिन विशेष क्यों?
ठाकुर जी बताते हैं, कार्तिक मास अब अपनी पूर्णता की ओर है। लोग सोचते हैं कि अब लाभ कैसे लें, जब संपूर्ण माह व्रत नहीं कर सके। तब हमारे शास्त्रों ने एक अद्भुत उपाय दिया — कार्तिक के अंतिम पाँच दिनों का विशेष व्रत।
यह व्रत पितामह भीष्म को समर्पित है। जब धर्मराज (युधिष्ठिर) के मन में संशय आया था, तब महाभारत के युद्ध के बाद वे भीष्म पितामह के पास गए और भीष्म जी ने जो उपदेश दिए, उनमें कार्तिक मास के अंतिम पांच दिन विशेष बताए गए। - शास्त्रीय आधार: भगवान श्रीकृष्ण ने भी इन पाँच दिनों को भीष्म पितामह को समर्पित कर महिमा मंडित किया है। अतः पूरे महीने व्रत ना रख पाए व्यक्ति यदि केवल पाँच दिन भी व्रत, संयम, नियम आदि का पालन कर ले तो उसे पूरे कार्तिक मास का पुण्य प्राप्त होता है।
2. आरंभ कब से करें, कैसे करें (तारीख़ें एवं विधि)
- यह व्रत देव उठनी एकादशी (प्रभु के शयन से जागरण दिवस) से आरंभ होकर पूर्णिमा तक चलता है। इस वर्ष भीष्म पंचक का विहित आरंभ देव उठनी एकादशी से होगा और पूर्णिमा पर सम्पन्न होगा।
- रोज़ का नियम:
- सुबह ब्रह्म मुहूर्त (3:30 से 5:00 बजे के बीच) उठकर स्नान करें। समय जितना जल्दी हो सके, उतना उत्तम; पर 4–5 बजे के बीच तक अवश्य स्नान कर लें।
- स्नान के बाद तुलसी माता का पूजन करें, शालिग्राम भगवान का पूजन करें, उनपर तुलसी दल अर्पित करें।
- हो सके तो देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी-शालिग्राम विवाह करें।
- हर दिन तुलसी जी को एवं शालिग्राम जी के आगे दीपदान करें (देशी गाय के घी से बने दीपक से)।
3. व्रत तथा पूजा की विधि
- व्रत का संकल्प:
- पाँच दिन व्रत कर सकें तो उत्तम, नहीं तो केवल एक समय शुद्ध शाकाहारी भोजन करें (रात्रि में भोजन का त्याग, केवल सांयकाल भोजन लें)।
- पाँच दिन ब्राह्मण भोजन कराना श्रेष्ठ है — प्रतिदिन एक ब्राह्मण, अथवा अंतिम दिन पाँच ब्राह्मणों को भोज कराएं।
- गौ सेवा:
- पाँच दिन गौ माता को चारा अवश्य खिलाएँ। जिनके पास गौ नहीं है, वे किसी गौशाला में सेवा कर सकते हैं या चारे के बराबर दान कर सकते हैं।
4. पूजन में क्या क्या करें
- तुलसी एवं अन्य वृक्षों की पूजा:
- प्रतिदिन तुलसी माँ, आंवला एवं बेलपत्र वृक्ष का पूजन करें, वहाँ दीपदान करें।
- पूर्णिमा के दिन नदी, गंगा, यमुना, या समुद्र के तट पर हों तो दीपदान अवश्य करें; यह दिव्य फल देनेवाला माना गया है।
- दीपदान की विशेष संख्या:
श्री ठाकुर जी ने बताया:- एकादशी को 11 दीपदान
- द्वादशी को 12
- त्रयोदशी (तेरहवीं) को 13
- चतुर्दशी को 14
- पूर्णिमा को 15 दीपदान
— संध्या के समय करें। श्रद्धा अनुसार 21, 51, 108 दीपदान भी कर सकते हैं।
5. शालिग्राम भगवान, तुलसी माँ एवं ब्राह्मण का महत्व
- शालिग्राम भगवान का पूजन:
प्रत्येक दिन शालिग्राम जी का दर्शन और पूजन करें। महिलाओं के लिए शालिग्राम का केवल दर्शन ही श्रेयस्कर है, स्पर्श नहीं करना चाहिए; मात्र दर्शन करने से भी अनगिनत पुण्य प्राप्त होते हैं। - तुलसी दल अर्पण:
एकादशी एवं पूर्णिमा के दिन न्यूनतम 108 तुलसी दल भगवान को अर्पण करने चाहिए। संपूर्ण जीवन के पाप का क्षय मात्र इस कार्य से हो जाता है।
6. विशेष सतर्कताएँ और निषेध
- तुलसी तोड़ने का नियम:
रविवार को तुलसी नहीं तोड़ते, अतः पूर्व जानकारी अनुसार आवश्यक तुलसी दल पहले ही इकट्ठा कर लें। - अन्य नियम:
- पाँच दिन तक पृथ्वी शयन (जमीन पर बिस्तर लगाकर सोना) करें।
- सरल, सात्विक आहार लें।
- उपायों में अपने सामर्थ्य अनुसार सहभागिता रखें।
- अधिकतम लोगों में इस पुण्य तिथि का प्रचार करें ताकि सभी सनातनी लाभान्वित हो सकें।
7. आध्यात्मिक लाभ व फल
- मोक्ष प्राप्ति:
इन पाँच दिनों में शालिग्राम भगवान का दर्शन कर, व्रत, नियम, संयम करते हुए जो व्यक्ति भक्ति भाव से पूजन करता है, वह मोक्ष का अधिकारी बनता है।
भगवान के धाम की कोई सीमा नहीं — जितने अधिक लोग पुण्य में भागीदार होंगे, उतना ही बड़ा लाभ भारत सहित समस्त संसार को मिलेगा। - परिवार एवं समाज कल्याण:
सभी को इस नियम का पालन करना है, परिवारजन को इसका संकल्प दिलवाना है ताकि सामूहिक उद्धार एवं कल्याण सम्भव हो।
8. श्री ठाकुर जी का भावपूर्ण संदेश
- “जितनी जल्दी हो सके, इस पंच-दिवसीय व्रत का संकल्प लें और अपने परिवार-समाज को भी प्रोत्साहित करें।”
- “श्री शालिग्राम जी का दर्शन मात्र अनेकों यज्ञों का फल देता है।”
- “वीडियो को अधिक से अधिक शेयर करें, ताकि सनातनियों को सनातन धर्म का मर्म समझने तथा पालन करने में सहायता मिले।”
- “राधे-राधे के साथ सनातन की आवाज हर घर में गूंजे!”
- “विद्यार्थियों, गृहस्थों, माताओं, पुरुषों सभी के लिए — योग है कि अपने जीवन को आध्यात्मिकता में ढालें।”
निष्कर्ष
श्री देवकीनंदन ठाकुर जी ने अपने दिव्य प्रवचन में न केवल कार्तिक मास के अंतिम पांच दिन की महत्ता पर प्रकाश डाला बल्कि यह भी बताया कि आज की भागमभाग दुनिया में भी, अगर इंसान पूरे महीने की साधना नहीं कर सके तो कम से कम पांच दिन श्रद्धा, प्रेम, नियम, संयम, और भक्ति से जीवन को बदल सकता है, पूरे मास का पुण्य अर्जित कर सकता है।
इस लेख के माध्यम से आप भी इस पुण्य के पंच दिवस व्रत का संकल्प लें, और दूसरों को भी प्रोत्साहित करें ताकि हमारा व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन पुण्यमय बने और प्रभु की कृपा हम सब पर सदा बरसती रहे।
राधे-राधे!






