यहां द इकोनॉमिक टाइम्स के लेख “Delay in discharge from hospital remains a pain point for policyholders: Will it improve soon with insurers and hospitals coming together?” का सरल हिंदी में पुनर्लेखन प्रस्तुत है।
अस्पताल से छुट्टी में देरी – बीमाधारकों की बड़ी परेशानी
कई बार मरीजों को अस्पताल से छुट्टी मिलने में घंटों या कभी-कभी पूरा दिन भी लग जाता है। खास तौर पर तब, जब इलाज का भुगतान बीमा कंपनी के ज़रिए होता है। बीमित मरीजों के लिए discharge प्रक्रिया सामान्य मरीजों की तुलना में अधिक समय लेती है।
मुंबई के समरथ रंजन (35) को इसी साल टायफॉइड और प्लेटलेट्स की कमी के इलाज के लिए दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। बीमा कंपनी ने उनकी भर्ती के समय तुरंत ही शुरुआती मंजूरी दे दी, लेकिन डिस्चार्ज के समय 68,000 रुपये के अंतिम भुगतान की मंजूरी में पूरे 12 घंटे लगा दिए। किसी कारण की जानकारी भी नहीं दी गई।
इसी तरह, मुंबई के संजय सुब्रमणियन को 2022 में हार्ट सर्जरी (CABG) के समय दिक्कत हुई। बीमा कंपनी ने पहले तो मंजूरी दी, लेकिन बाद में दावा किया कि उन्हें पहले से ब्लड प्रेशर की बीमारी है, जो उन्होंने छिपाई। हालांकि उनके पास नौ साल से पॉलिसी थी और ब्लड प्रेशर की बीमारी उन्हें केवल चार साल पहले हुई थी। गलती डॉक्टर की थी जिसने 14 साल लिख दिया था। अंततः पूरा 3 लाख रुपये का दावा मंजूर हुआ पर एक अतिरिक्त दिन का कमरा किराया मरीज को देना पड़ा।
देरी की वजहें
अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच तालमेल की कमी discharge प्रक्रिया को लंबा बना देती है।
- बिना बीमा वाले मरीजों की छुट्टी में औसतन 3.5 घंटे लगते हैं।
- जबकि बीमाधारक मरीजों के लिए यह समय 5 घंटे या उससे अधिक होता है।
बीमा नियामक प्राधिकरण (IRDAI) के नियमों के अनुसार, बीमा कंपनी को अस्पताल का अंतिम बिल और discharge summary मिलने के 3 घंटे के भीतर भुगतान की मंजूरी देनी चाहिए। लेकिन वास्तविकता में यह नियम अक्सर पूरे नहीं किए जाते।
बीमा कंपनियां कभी स्वीकार नहीं करतीं कि उन्होंने देरी की, इसलिए अतिरिक्त कमरे का किराया भी पॉलिसी होल्डर के दावे में जोड़ दिया जाता है, जिससे उसकी कुल बीमित राशि कम हो जाती है।
बीमा और अस्पतालों की बैठक
9 अक्टूबर को हुए एक अहम बैठक में अस्पतालों और बीमा कंपनियों के प्रतिनिधियों ने मिलकर discharge प्रक्रिया को तेज़ करने की आवश्यकता मानी।
मुख्य सुझाव —
- अस्पताल बीमा कंपनियों को एक दिन पहले सूचित करें कि कौन से मरीज अगले दिन छुट्टी लेंगे और अनुमानित बिल भी भेजें।
- इससे discharge के समय बहुत कम बदलाव रहते हैं और प्रक्रिया जल्दी पूरी हो सकती है।
- कुछ बीमा कंपनियां पहले से यह तरीका अपनाकर बेहतर परिणाम पा रही हैं।
सुधार के उपाय
इंश्योरेंस विशेषज्ञों के अनुसार discharge प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए निम्न कदम उपयोगी हो सकते हैं —
- बीमा कंपनियां दस्तावेज़ों व सवालों की सूची को मानकीकृत करें।
- किसी भी जांच या सत्यापन प्रक्रिया की शुरुआत भर्ती के समय ही कर दी जाए।
- मातृत्व जैसे योजनाबद्ध मामलों में discharge की तैयारी पहले से की जा सकती है जिससे देरी कम हो।
कई बार अस्पताल के विभागों में समन्वय की कमी भी बड़ी वजह बनती है — डॉक्टर, नर्सिंग स्टेशन, बिलिंग डेस्क, इंश्योरेंस या TPA काउंटर – सबके बीच फाइलें जगह-जगह घूमती हैं।
विवाद और मतभेद
बीमा कंपनियों की तरफ से अक्सर शिकायत होती है कि अस्पताल बिल में अनावश्यक टेस्ट या अतिरिक्त इलाज जोड़ देते हैं, जिससे बिल बढ़ जाता है।
दूसरी ओर, अस्पतालों का कहना है कि बीमा कंपनियों के डॉक्टर ज़रूरत से ज़्यादा सवाल पूछते हैं, जिससे प्रक्रिया और धीमी होती है।
महावीर चोपड़ा, जो स्वास्थ्य बीमा विशेषज्ञ हैं, कहते हैं कि जब एक बार “प्री-ऑथराइजेशन” यानी शुरुआती मंजूरी मिल जाती है, तो केवल दो-तीन स्तर की जांच बचनी चाहिए। फिर भी अक्सर अंतर रह जाता है — जितनी राशि की पहले मंजूरी दी गई थी और जितना अंतिम बिल आता है, उनमें फर्क से विवाद पैदा हो जाता है।
भविष्य का रास्ता — डिजिटल एकीकरण
सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) के तहत “नेशनल हेल्थ क्लेम्स एक्सचेंज (NHCX)” नामक डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित किया है। इसके ज़रिए बीमा कंपनियों और अस्पतालों की जानकारी एक साझा नेटवर्क पर तुरंत साझा होगी, जिससे समय की बचत होगी।
इसी तरह सरकार एक मानकीकृत बिलिंग फॉर्मेट लाने पर काम कर रही है ताकि सभी अस्पताल एक समान प्रारूप में बिल बनाएं। जब तकनीक पूरी तरह लागू हो जाएगी, तब discharge की धीमी प्रक्रिया काफी हद तक खत्म हो सकती है।
निष्कर्ष
अस्पताल से छुट्टी में देरी बीमाधारकों के लिए अब भी एक बड़ी समस्या है।
कारण हैं —
- पुरानी IT प्रणालियाँ
- दस्तावेज़ी प्रक्रियाएँ
- बीमा और अस्पतालों के बीच समन्वय की कमी
हालांकि IRDAI, बीमा कंपनियां और अस्पताल, सभी अब इस समस्या को गंभीरता से ले रहे हैं। पहले से सूचना देना, डिजिटल एकीकरण और NHCX जैसी पहलें इस स्थिति में सुधार ला सकती हैं। भविष्य में अगर ये उपाय सही तरीके से लागू हुए, तो बीमित मरीजों को घंटों इंतजार नहीं करना पड़ेगा और discharge प्रक्रिया सरल व तेज़ बनेगी।







