दिल्ली में बम ब्लास्ट जैसी दर्दनाक घटनाएं हमें बार-बार यह अहसास दिलाती हैं कि जीवन अत्यंत अनिश्चित है — न जाने कब किसको कौन सी विपत्ति घेर ले। ऐसे में हमारे प्राचीन संतों के वचनों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है, जिन्होंने जीवन को भय-मुक्त, कल्याणमयी और सुखद बनाने के सहज और सरल मार्ग बताए हैं। आज के लेख में, वृंदावन के रसिक संत, परम पूज्य श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के दुख-निवारण तथा अकाल मृत्यु से बचने के पाँच अमूल्य उपायों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। दिल्ली बम ब्लास्ट के बाद सुरक्षा व्यवस्था, इंटेलिजेंस फेलियर, सरकार और पुलिस की लापरवाही की बहस में ना पड़कर हमें संतों की सीख पर ध्यान देने की जरुरत है. हम पहले भी इस तरह की दर्दनाक घटनाओं से पहले भी महाराज जी के उपदेशों को आपतक पहुंचाते आए हैं.
प्रस्तावना
हम भौतिक सुख-सुविधाओं की तलाश में जीवन के असली उद्देश्यों को अक्सर भूल जाते हैं। रोजमर्रा की उथल-पुथल, आपसी होड़, चिंता, भय और संसार के तनाव के बीच अक्सर हमें यह लगता है कि हमारा जीवन हमारे बस में है — परंतु ऐसी दर्दनाक घटनाएँ जैसे दिल्ली में हाल की बम-विस्फोट वाली घटना, हमें जागरूक कर देती हैं कि मृत्यु कभी भी आ सकती है।
संतजन सदैव कहते आए हैं कि भगवान का नाम-स्मरण, भजन-कीर्तन और प्रभु के बताए मार्ग पर चलना ही असली और स्थायी सुरक्षा है। उनका मानना है कि सांसारिक उपाय सीमित हैं, परंतु भगवान का सत्संग और पावन नियम जीवन को सुरक्षा कवच दे सकते हैं। क्या हैं वे पाँच उपाय और उनका हमारे जीवन में क्या महत्व है — यह समझते हैं….
पहला उपाय: रोज़ ठाकुर जी का चरणामृत पीना
परम पूज्य श्री हित प्रेमानंद जी महाराज बार-बार ज़ोर देते हैं कि यदि आप जीवन में मंगल चाहते हैं, तो रोज़ भगवन श्रीकृष्ण के चरणामृत का सेवन करें।
- मंदिर में शालिग्राम, बिहारी जी, राधा वल्लभ जी या राधारमण जी का चरणामृत लें।
- यह चरणामृत शीशी में भरकर, उसमें पाँच लीटर पानी मिला लें — एक ढक्कन का सेवन करें, यह महीनों चलता रहेगा।
- चरणामृत में इतनी शक्ति है कि वह ‘अकाल मृत्यु’ का हरण और समस्त रोगों का विनाश करने वाली औषधि है — “श्रीकृष्ण पादोदकम पित्वा पुनर्जन्म नित्यते”।
- शराब की तुलना में चरणामृत पीना अनमोल सौदा है, फिर भी लोग लापरवाही करते हैं।
- नियमित सेवन से न केवल सांसारिक रोग मिटते हैं, अपितु पुनर्जन्म का चक्र भी समाप्त होता है — यह वचन भगवान के ही हैं।
क्यों महत्त्वपूर्ण है चरणामृत?
चरणामृत भगवान के चरणों की ऊर्जा, भक्तों के विश्वास और आशीर्वाद को अपने भीतर समेटे होता है। इसकी नियमितता से न सिर्फ मन व शरीर शुद्ध होते हैं, बल्कि अद्भुत सात्विकता और सकारात्मकता का संचार होता है। यह मंत्र ‘सर्व व्याधि विनाशनम्’ एवं ‘अकाल मृत्यु हरणम्’ को सच सिद्ध करता है।
दूसरा उपाय: घर से निकलते समय मंत्र जाप
महाराज जी ने दूसरा उपाय बताया — जब भी आप घर से निकलें, तो कम-से-कम 11 बार निम्नलिखित मंत्र का जप अवश्य करें:
“कृष्णाय वासुदेवाय हरे परमात्मने
प्रणत क्लेश नाशाय गोविंदाय नमो नम:”
- घर के दरवाजे के भीतर ही ठहरकर, धीरे-धीरे, अपनी उँगलियों से गिनते हुए 11 बार मंत्र उच्चारण करें।youtube
- यह छोटा-सा प्रयास पाँच मिनट से अधिक नहीं लेगा।
- महाराज जी गारंटी देते हैं कि जिसने यह मंत्र 11 बार घर से निकलने पर जपा, उस पर कभी भी दुर्घटना या एक्सीडेंट नहीं होगा — और यदि हुआ तो वह सुरक्षित बाहर निकलेगा।
इस साधना का रहस्य क्या है?
मंत्र के उच्चारण से न केवल आत्मविश्वास, बल्कि दिव्यता और सुरक्षा का एहसास मिलता है। यह शारारिक व मानसिक बाधाओं के लिए सुरक्षा-घेरा तैयार करता है। भगवान के नाम में अतुल्य शक्ति होती है, जो अनिष्ट को तुरंत दूर कर देती है।
तीसरा उपाय: घर में नाम-संकीर्तन
तीसरा नियम महाराज जी ने बताया — हर दिन कम-से-कम 20-30 मिनट अपने घर में ठाकुर जी के सामने बैठकर नाम-संकीर्तन अवश्य करें।
- “राधा-राधा” या जो भी नाम प्रिय हो, उसका आनंदपूर्वक संकीर्तन करें।
- नाम-संकीर्तन सर्व पाप प्रणाशनम — सब पापों का नाश करता है।
- यह कार्य पूरी श्रद्धा, सच्चे मन और प्रेम से करें।
नाम-संकीर्तन के लाभ
- नकारात्मक विचार, मानसिक तनाव, भयादि स्वयं ही दूर हो जाते हैं।youtube
- घर-परिवार में शांति, सौहार्द्र, सुख-समृद्धि बढ़ती है।youtube
- भगवान के नाम के कंपन पूरे वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देते हैं।youtube
चौथा उपाय: प्रभु को 11 दंडवत प्रणाम
महाराज जी ने चौथा उपाय बताया — रोज़ ठाकुर जी को 11 साष्टांग दंडवत प्रणाम करें।
- चाहे घर में भगवन का चित्र हो, शालिग्राम हो, प्रतिमा हो — साष्टांग दंडवत प्रणाम अवश्य करें।
- एक बार दंडवत प्रणाम का फल — ‘एक कृष्ण कृता प्रणामो दशास्वमेधा वथेन तुल्य’ — अर्थात दस अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल।
- दस अश्वमेध यज्ञ का फल तो पुनर्जन्म भोगने के लिए है, लेकिन जो कृष्ण को प्रणाम करता है, उसे पुनर्जन्म नहीं होता — ‘कृष्ण प्रणामी न पुनर्भवाय’।
प्रणाम क्यों है आवश्यक?
प्रणाम के माध्यम से अहंकार गलता है, विनम्रता आती है तथा प्रभु का आशीर्वाद सहज रूप से मिलता है। यह अभ्यास मन, शरीर और आत्मा – तीनों को निर्मल बनाता है।
पाँचवाँ उपाय: सिर पर वृन्दावन की रज लगाएँ
आखिरी और बेहद सरल उपाय — रोजाना अपने सिर के बालों के बीच में वृंदावन की रज (धूल) लगा लें।
- महाराज जी के अनुसार, वृंदावन की रज को विशेष मान्यता प्राप्त है — वह स्वयं शिव, सनकादि ऋषियों की चाहत वाली रज है।
- “रज शिव सनकाद की याचत सो रज शीश चढ़ाऊँ, किशोरी तेरे चरणन की रज पाऊँ”।
- यह रज, माथे व सिर पर लगाने से शरीर, मन व आत्मा पर चमत्कारी प्रभाव पड़ता है।
वृन्दावन की रज का महत्व
कहा जाता है कि भगवान के चरणों की रज सब दुखों का निवारण करती है। इससे परमात्मा की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है और समस्त विघ्न, भय, बीमारी स्वतः दूर हो जाते हैं।
इन पाँच उपायों की व्यावहारिकता
इन पाँच नियमों को अपने जीवन में लागू करना अत्यंत सरल है, कोई खर्च नहीं, कोई बड़ी साधना नहीं — केवल श्रद्धा, विश्वास और नियमितता चाहिए।
- सुबह उठकर एक ढक्कन चरणामृत पिएँ।
- घर से निकलने से पूर्व 11 बार मंत्र जप कीजिए।
- दिन में समय निकालकर घर में प्रभु का नाम-संकीर्तन करें।
- रोज़ ठाकुर जी को 11 दंडवत प्रणाम करें।
- वृंदावन की रज प्रतिदिन सिर पर लगाएं।
यदि ये पाँच नियम आप अनुशासनपूर्वक अपनाते हैं तो न केवल अकाल मृत्यु, दुर्घटनाएँ, बीमारियाँ आपसे दूर रहेंगी, बल्कि जीवन में अमिट शांति, सुख, समृद्धि एवं मान-सम्मान भी मिलेगा।
जीवन में लाएँ सकारात्मक बदलाव
आज की विषम परिस्थितियाँ हमें संतुलित, स्थिर और मानसिक रूप से मजबूत रहने की प्रेरणा देती हैं। बम विस्फोट जैसी घटनाएँ हमें स्मरण कराती हैं कि भौतिक संरक्षण के साथ आत्मिक संरक्षण कहीं ज्यादा जरूरी है। पुलिस, व्यवस्था, सरकार पर प्रश्नचिह्न लगाने से बेहतर है कि हम प्रभु के प्रत्यक्ष आदेशों और संतों के वचनों का पालन करें।
निष्कर्षः
जीवन की अनिश्चितता को प्रभु का स्मरण निरर्थक बना देता है; “जो भक्त अपनी दिनचर्या में इन पाँच साधारण उपायों को सम्मिलित करता है, उसका जीवन परम मंगलमय बन जाता है”। सिर्फ एक बार दिल से अपनाकर देखिए — अनुभूतियाँ, बदलाव और सकारात्मक ऊर्जा स्वयं महसूस करेंगे।
राधे-राधे!
संदेश
अंततः, “शरणं गच्छामि” अपनाकर भक्त भगवान के चरणों की शरण में आते हैं, यही सबसे बड़ा अमोघ कवच है। अपने रूढ़िवादी विचारों, अंधविश्वास, तांत्रिक उपायों या भ्रांतियों की बजाय, संतों के इन अमूल्य, सहज और शुद्ध मार्गों को अपनाने से सत्-चित्-आनंद स्वरूप का साक्षात्कार निश्चित है।
पुनः, अपने जीवन को सार्थक बनाइए, इन पाँच नियमों का शुद्ध मन से पालन कीजिए — और अनुभव कीजिए एक दिव्य, अखंड, भयमुक्त और सुखद जीवन।








