बिना गुरु के भगवत प्राप्ति संभव है? – श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का दिव्य मार्गदर्शन

परिचय

सनातन धर्म में गुरु का स्थान सर्वोच्च बताया गया है। श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने अपने प्रवचनों में बार-बार गुरु की महिमा और भगवत प्राप्ति के मार्ग में उनकी अनिवार्यता को स्पष्ट किया है। आज के इस लेख में हम उन्हीं के वचनों के आधार पर समझेंगे कि क्या बिना गुरु के भगवत प्राप्ति संभव है, और गुरु की शरण क्यों आवश्यक है।

गुरु की आवश्यकता क्यों?

श्री महाराज जी कहते हैं – “वृंदावन में निधिवन जानते हो? पहली बार कैसे गए थे? कोई पूछते-पूछते तो गएगे। तो जब तक कोई गाइड नहीं मिलेगा, तब तक कैसे पहुंच जाओगे? कोई गाइड तो चाहिए ना कि भाई इधर से इधर मुड़ना, यहां से यहां जाना। तो भगवत मार्ग में गाइड के बिना नहीं चला जा सकता। गाइड है गुरु। चाहे शिव विरंच सम होई, गुरु बिन भव निधि तरे ना कोई। चाहे भगवान शंकर हो, ब्रह्मा के समान हो, बिना गुरु की कृपा के वो इस भव समुद्र से पार नहीं हो सकता।”(शब्दशः: 07:11–08:47)1

स्पष्टीकरण:

  • जैसे किसी अनजान स्थान पर जाने के लिए गाइड (मार्गदर्शक) आवश्यक है, वैसे ही भगवत प्राप्ति के मार्ग में गुरु का होना अनिवार्य है।

  • गुरु के बिना कोई भी साधक, चाहे वह कितना भी बड़ा ज्ञानी या तपस्वी क्यों न हो, इस संसार सागर को पार नहीं कर सकता।

गुरु वाणी का महत्व

महाराज जी आगे कहते हैं –”गुरु का आश्रय लेना, गुरु वाणी का आश्रय लेना अत्यंत आवश्यक है। बिना गुरु वाणी के कोई मुक्ति ही नहीं हो सकता। जब तक गुरु वाणी पर नहीं चलेगा, तब तक मुक्ति ही नहीं हो सकता। अपनी मनमानी चलने से कोई भगवत प्राप्ति थोड़ी कर लेता है। गुरु के श्रीमुख से निकले हुए वचन और उसी पे अपने जीवन को चला दिया, माया मुक्त हो गए।”

मुख्य बिंदु:

  • गुरु की वाणी ही शास्त्रवत है, उसी पर चलना साधक को माया से मुक्त करता है।

  • अपनी मनमानी या केवल शास्त्र पढ़कर, बिना गुरु की कृपा के, भगवत प्राप्ति नहीं होती।

गुरु की पहचान कैसे करें?

महाराज जी बताते हैं –”महाराज जी सद्गुरु को कैसे पहचाने? भगवान से प्रार्थना करो कि आप हमें सद्गुरु रूप में मिलो। तो या तुम्हें वह पकड़ लेंगे या तुमको वहां पहुंचा देंगे। भगवान से प्रार्थना करो कि मैं अज्ञानी जीव, गुरु की महिमा को क्या जानूं प्रभु, जहां आप गुरु रूप से विराजमान हो, मुझे आकर्षित कर लो, मुझे स्वीकार कर लो, बात बन जाएगी।”

मुख्य बिंदु:

  • सच्चे गुरु की पहचान स्वयं भगवान की कृपा से ही संभव है।

  • साधक को अपनी सीमित बुद्धि पर नहीं, प्रभु की कृपा पर भरोसा रखना चाहिए।

गुरु के बिना साधना का परिणाम

महाराज जी स्पष्ट कहते हैं –”गुरु के श्रीमुख से निकले हुए वचन और उसी पे अपने जीवन को चला दिया, माया मुक्त हो गए। समझ पा रहे हैं? नहीं तो देहाभिमान नष्ट नहीं होता, अहंकार नष्ट नहीं होता, अहंकार बना रहता है साधना करने पर भी।”

स्पष्टीकरण:

  • बिना गुरु के मार्गदर्शन के साधना करने पर भी अहंकार, देहाभिमान और माया का बंधन नहीं टूटता।

  • गुरु ही साधक को भीतर से शुद्ध करते हैं और भगवत प्राप्ति के योग्य बनाते हैं।

शास्त्रों का समर्थन

श्री महाराज जी के वचन शास्त्रों पर आधारित हैं। संत तुलसीदास जी ने भी कहा है –
“बिनु हरि कृपा मिलहि नहि संता। बिनु संता मिलहि न हरि भगवंता॥”
अर्थात, भगवान की कृपा के बिना संत (गुरु) नहीं मिलते, और संत के बिना भगवान नहीं मिलते।

गुरु की कृपा और भगवत प्राप्ति का संबंध

महाराज जी कहते हैं –”गुरु के श्रीमुख से निकले हुए वचन और उसी पे अपने जीवन को चला दिया, माया मुक्त हो गए। नहीं तो देहाभिमान नष्ट नहीं होता, अहंकार नष्ट नहीं होता।”

मुख्य बिंदु:

  • गुरु की कृपा से ही साधक का मन निर्मल होता है।

  • गुरु के वचन पर चलकर ही साधक माया से पार होकर भगवत प्राप्ति कर सकता है।

गुरु की आज्ञा का पालन

महाराज जी के अनुसार –
“गुरु की आज्ञा पर रह रहे तो आप चाहे जितनी दूर रह रहे हैं, आप गुरु के बिल्कुल समीप रह रहे हैं। आपको अनुभव कराएंगे गुरुदेव कि जाग्रत में, स्वप्न में, सुषुप्ति में आप अपने गुरुदेव के साथी हैं।”
2

मुख्य बिंदु:

  • गुरु के शरीर की समीपता से अधिक महत्वपूर्ण है उनकी आज्ञा की समीपता।

  • गुरु की आज्ञा का पालन ही सच्ची शिष्यता है।

अनुभव से सिद्ध मार्ग

महाराज जी कहते हैं –”भगवान के मार्ग में तो चला नहीं जाता अनुभव से चला जाता है। ये केवल अनुमान से नहीं चला जाता, अनुभव से चला जाता है। अनुभव गम में भजे जे संता। तो जब तक आपको अनुभव नहीं होगा तब तक आपकी बुद्धि मानेगी नहीं ना।”

मुख्य बिंदु:

  • केवल तर्क, अनुमान या शास्त्र ज्ञान से नहीं, बल्कि गुरु के मार्गदर्शन और अनुभव से ही भगवत प्राप्ति संभव है।

  • गुरु साधक को अनुभव कराते हैं, जिससे उसका विश्वास दृढ़ होता है।

गुरु के बिना भगवत प्राप्ति क्यों असंभव है?

महाराज जी ने स्पष्ट कहा –”गाइड है गुरु। चाहे शिव विरंच सम होई, गुरु बिन भव निधि तरे ना कोई।”

  • ब्रह्मा, शंकर जैसे देवता भी गुरु के बिना भवसागर पार नहीं कर सकते।

  • गुरु के बिना साधक का अहंकार, माया, वासनाएं नहीं मिटतीं।

निष्कर्ष

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के वचनों के अनुसार, गुरु के बिना भगवत प्राप्ति असंभव है। गुरु ही साधक को सही मार्ग दिखाते हैं, उसकी कमजोरियों को दूर करते हैं, और भगवत प्रेम की ओर अग्रसर करते हैं। गुरु के वचन, उनकी कृपा और उनके मार्गदर्शन के बिना साधक का मन कभी भी पूर्ण शुद्ध नहीं हो सकता, और न ही वह भगवत प्राप्ति कर सकता है।

अतः, यदि आप भगवत प्राप्ति के इच्छुक हैं, तो सच्चे गुरु की शरण में जाएं, उनकी आज्ञा का पालन करें, और अपने जीवन को उनके वचनों के अनुसार ढालें। यही भगवत प्राप्ति का सच्चा और सिद्ध मार्ग है।

सम्बंधित प्रश्नों के उत्तर

क्या केवल नाम जप से भगवत प्राप्ति हो सकती है?नाम जप अत्यंत प्रभावशाली है, परंतु गुरु दीक्षा और मार्गदर्शन के बिना उसका पूर्ण फल नहीं मिलता। गुरु द्वारा दिया गया मंत्र और उनका मार्गदर्शन ही साधना को सिद्ध करता है34।गुरु की कृपा कैसे प्राप्त करें?भगवान से प्रार्थना करें कि वे आपको सच्चे गुरु के पास ले जाएं। जब आपकी साधना और प्रार्थना सच्ची होगी, गुरु स्वयं आपको स्वीकार कर लेंगे12।

अंतिम संदेश

“गुरु के बिना भगवत प्राप्ति नहीं, गुरु के बिना मुक्ति नहीं, गुरु के बिना प्रेम नहीं।”

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