स्लीपर बसें: आराम या खतरा?
स्लीपर बसें लंबी दूरी की रात वाली यात्रा के लिए बनी हैं, जिनमें सीट की जगह बर्थ यानी लेटने की जगह होती है। दिखने में ये बसें लक्ज़री और आरामदेह लगती हैं, लेकिन सुरक्षा नियमों की अनदेखी इन्हें कई बार चलते‑फिरते ताबूत बना देती है।
- कई राज्यों में जयपुर‑दिल्ली, कर्नूल, लखनऊ जैसे रूट पर स्लीपर बसों में आग से दर्जनों लोगों की मौत और घायल होने के मामले सामने आए हैं।
- इन हादसों के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सभी राज्यों को आदेश दिया है कि जो स्लीपर बसें सुरक्षा मानकों का पालन नहीं करतीं, उन्हें सड़क से हटाया जाए।
आग क्यों लग रही है? मुख्य कारण
आग लगने के पीछे एक नहीं, कई कारण मिलकर हादसा बन जाते हैं।
तकनीकी और डिज़ाइन से जुड़ी वजहें
- डीज़ल/CNG लीकेज और शॉर्ट सर्किट
- इंजन या फ्यूल लाइन से लीक, पुराना वायरिंग सिस्टम, घटिया फिटिंग या ओवरलोडेड इलेक्ट्रिक सिस्टम से चिंगारी निकल सकती है।
- एक‑दो सेकंड में यह आग परदे, फोम और प्लास्टिक पर पकड़ लेती है और पूरी बस चंद मिनटों में धधकने लगती है।
- ज्वलनशील (जलने वाली) इंटीरियर सामग्री
- कई बस बॉडी बिल्डर फायर रिटार्डेंट की बजाय सस्ता फोम, रेक्सीन, प्लाईवुड और प्लास्टिक शीट लगाते हैं, जो तेजी से आग पकड़ते हैं.
- इससे आग बहुत तेज़ फैलती है और घना धुआं बनता है, जिससे यात्री बेहोश भी हो सकते हैं।
- निकास (एग्ज़िट) और गैलरी का रास्ता बंद
- नियमों के अनुसार कम से कम चार आपातकालीन रास्ते, छत पर हैच और 450 मिमी चौड़ी गलियारा जगह होनी चाहिए, लेकिन कई कनवर्टेड बसों में यह सब कागज़ पर ही रहता है।
- कई बसों में अतिरिक्त बर्थ लगा कर बीच का रास्ता तक बहुत पतला कर दिया जाता है, जिससे भगदड़ में निकलना लगभग नामुमकिन हो जाता है।
संचालन और लापरवाही से जुड़ी वजहें
- सामान्य बस को वर्कशॉप में स्लीपर में बदल देना
- कई ऑपरेटर रजिस्टर्ड स्लीपर बस खरीदने की बजाय साधारण सेटर बस को लोकल वर्कशॉप में काट‑छांट कर स्लीपर बना लेते हैं।
- इस प्रक्रिया में न तो सही इंजीनियरिंग होती है, न ही AIS‑119 जैसे सुरक्षा मानकों का पालन।
- माल भरना और छत पर लोड
- कई जगह बसों में यात्रियों के साथ भारी माल, गैस सिलेंडर, केमिकल या पेट्रोलियम प्रोडक्ट जैसी चीजें भी भर दी जाती हैं।
- राजस्थान में एक डबल‑डेकर स्लीपर बस में छत पर रखा सामान हाई‑टेंशन लाइन से छू गया और बस में आग लग गई, जिसमें यात्रियों की जान चली गई।
- खराब मेंटेनेंस और ट्रैफिक नियमों की अनदेखी
- कई बसों पर ओवरस्पीड, ओवरलोड, फिटनेस न होने जैसे दर्जनों चालान लंबित रहते हैं, फिर भी वे सड़कों पर दौड़ती रहती हैं।
- वायरिंग, ब्रेक, इंजन, टायर की टाइम पर सर्विस न होने से हादसों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
स्लीपर बसें इतनी लोकप्रिय क्यों हैं?
इतने खतरे के बावजूद स्लीपर बसों की मांग लगातार बढ़ रही है।
- रात में यात्रा, दिन में काम
- लोग रात में सोते‑सोते सफर कर लेते हैं और सुबह सीधे काम या मीटिंग पर पहुंच जाते हैं, इससे होटल का खर्च भी बचता है।
- लंबी दूरी (400–800 किमी) के लिए यह विकल्प ट्रेन में वेटिंग/भीड़ से आसान लगता है।
- आराम और दिखावटी लक्ज़री
- एयर‑कंडीशन, मुलायम बर्थ, मोबाइल चार्जिंग, पर्दे, प्राइवेसी जैसी सुविधाएं युवा और परिवारों को आकर्षित करती हैं।
- ऑनलाइन टिकट ऐप्स पर “AC स्लीपर” टैग और तस्वीरें देखकर लोग इसे अधिक आरामदायक और सुरक्षित मान लेते हैं, जबकि सुरक्षा का असली हाल अक्सर अलग होता है।
- सस्ती और आसानी से उपलब्ध
- कई रूट पर रात वाली ट्रेनें कम, लेकिन स्लीपर बसें ज्यादा और लगातार चलती हैं, इसलिए सीट जल्दी मिल जाती है।
- कुछ रूट पर हवाई यात्रा के मुकाबले किराया काफी कम होता है, इसलिए मिडिल क्लास और स्टूडेंट्स के लिए यह लोकप्रिय विकल्प बन गया है।
नियम क्या कहते हैं और कहां चूक है?
भारत में बसों की सुरक्षा के लिए कई नियम बनाए गए हैं, लेकिन उनका सही पालन नहीं हो रहा है।
मुख्य कानून और मानक
- सेंट्रल मोटर व्हीकल रूल्स (CMVR)
- यह देश भर में वाहनों की रजिस्ट्रेशन, फिटनेस, ओवरलोडिंग, संशोधन आदि के नियम तय करते हैं।
- ऑटोमोटिव इंडस्ट्री स्टैंडर्ड (AIS)
- AIS‑052: बस बॉडी कोड – बस की बॉडी, गेट, गलियारा, सीटिंग आदि के मानक।
- AIS‑119: खास तौर पर स्लीपर कोच के लिए – बर्थ की साइज़, ऊंचाई, रास्ता, इमरजेंसी एग्जिट और सुरक्षा प्रावधान।
- AIS‑135 और AIS‑153: फायर डिटेक्शन, अलार्म और ऑटोमैटिक फायर सप्रेशन (आग बुझाने की) सिस्टम के लिए मानक।
- सरकार द्वारा हाल के कदम
- 1 अप्रैल 2019 से 22+ सीट वाली नई बसों के लिए फायर डिटेक्शन और सप्रेशन सिस्टम अनिवार्य किया गया है।
- स्कूल बस और कुछ अन्य कैटेगरी में यात्री डिब्बे तक फायर प्रोटेक्शन बढ़ाया गया है।
- स्लीपर कोच मानक AIS‑119 को संशोधित किया गया, पहला चरण 1 दिसंबर 2023 से लागू, दूसरा चरण 1 जुलाई 2025 से लागू होगा।
जमीन पर कहां गड़बड़ी है?
- मानकों का पालन न करना
- कई प्राइवेट ऑपरेटर बिना मानक के बने या पुराने बसों को स्लीपर में बदलकर चला रहे हैं।
- इमरजेंसी एग्जिट पर माल, पर्दा, ताला या अतिरिक्त बर्थ लगा दी जाती है, जिससे जरूरत पड़ने पर दरवाज़ा ही नहीं खुलता।
- निरीक्षण और प्रवर्तन कमजोर
- फिटनेस सर्टिफिकेट और परमिट मिलने के बाद कई साल तक गाड़ी की गंभीर जांच ढंग से नहीं होती, जबकि नियमों के अनुसार नियमित निरीक्षण जरूरी है।
- NHRC ने हाल की घटनाओं पर कड़ी आपत्ति जताते हुए राज्यों को निर्देश दिया है कि जो स्लीपर बसें नियम तोड़ रही हैं, उन्हें तुरंत जब्त या बंद किया जाए।
क्या आम यात्री को स्लीपर बस से बचना चाहिए?
पूरी तरह “कभी भी न जाएं” कहना व्यावहारिक नहीं, लेकिन हालात को देखते हुए सावधानी बहुत जरूरी है।
- जहां विकल्प हो, वहां प्राथमिकता
- अगर सुरक्षित विकल्प जैसे अच्छी ट्रेन, भरोसेमंद वोल्वो/सेटर सरकारी या नामी ऑपरेटर की बस उपलब्ध हो, तो उसे प्राथमिकता देना बेहतर है।
- बहुत लंबे रूट पर, खासकर जहां बार‑बार स्लीपर बस हादसों की खबर आती रही हो, वहां स्लीपर लेने से पहले दो बार सोचें।
- कब विशेष सावधानी रखें
- डबल‑डेकर, बहुत तंग गलियारे वाली, बहुत पुरानी या बहुत सस्ती लगने वाली अनब्रांडेड स्लीपर बसों से जितना हो सके बचें।
- अगर बस का इंटीरियर बहुत ज्वलनशील (फोम, पतली प्लाई, प्लास्टिक) लगे, बहुत बदबूदार या वायरिंग उलझी हुई दिखे, तो ऐसी बस से बचना ही ठीक है।
सफर से पहले: बस चुनते समय क्या‑क्या देखें?
सही बस चुनना ही सुरक्षा की पहली सीढ़ी है।
1. ऑपरेटर और रेटिंग देखें
- ऑनलाइन टिकट ऐप पर
- बस ऑपरेटर का नाम देखें – पुरानी, जानी‑मानी कंपनियां आमतौर पर नियमों का ज्यादा ध्यान रखती हैं।
- रेटिंग, रिव्यू और खासकर “सेफ्टी”, “ड्राइवर”, “आग”, “दुर्घटना” जैसे शब्दों वाले कॉमेंट जरूर पढ़ें।
- स्थानीय जानकारी
- जिस रूट पर जा रहे हैं, वहां के लोगों/ड्राइवरों/दुकानदारों से पूछें कि कौन‑सी बस विश्वसनीय मानी जाती है।
2. बस की हालत और डिज़ाइन देखें
- चढ़ने से पहले एक नजर
- बस बहुत पुरानी, टूटी‑फूटी, धुएं से भरी, बदबूदार या कहीं से तेल/फ्यूल टपकता दिखे तो तुरंत अलर्ट हो जाएं.
- देखें कि गलियारा (मध्य का रास्ता) पर्याप्त खुला है या कहीं बर्थ/सामान से ब्लॉक तो नहीं।
- इमरजेंसी एग्जिट और हैमर
- देखें कि आपातकालीन खिड़की/छत की हैच कहां है, उस पर लिखा हो, और उस पर ताला/वेल्डिंग न हो।
- कांच तोड़ने वाले हैमर या किसी मजबूत चीज़ की लोकेशन समझ लें; कई मानक बसों में इसे सीट के पास लगाया जाता है.
सफर के दौरान: आम यात्री क्या‑क्या करे?
सफर के बीच थोड़ी सी समझदारी हादसे में जान बचा सकती है।
1. बैठने/लेटने से पहले
- अपना “एग्जिट प्लान” बना लें
- अपनी बर्थ से निकटतम सामान्य दरवाज़ा, इमरजेंसी खिड़की और छत वाला हैच कहां है, इसे ध्यान से देख लें।n
- परिवार के बाकी लोगों (खासकर बच्चों और बुजुर्गों) को भी साफ‑साफ बता दें कि अगर कुछ हो जाए तो किस दिशा में भागना है।
- खतरे वाली जगहें न चुनें
- इंजन के बिलकुल ऊपर/पास, फ्यूल टैंक के पास या पीछे के कोने में जहां निकलने का रास्ता बहुत दूर हो, वहां की बर्थ अवॉइड करें अगर विकल्प हो
- बहुत अंदर वाली बर्थ या ऐसी जगह जहां ऊपर‑नीचे दोनों तरफ से निकलना मुश्किल हो, वहां जाने से पहले दो बार सोचें।
2. सफर के समय सावधानियां
- मोबाइल चार्जिंग और तार
- सस्ती/लोकल चार्जिंग केबल और मल्टी‑प्लग से स्पार्क और शॉर्ट सर्किट का खतरा बढ़ता है, इन्हें कम से कम उपयोग करें।
- अगर चार्जिंग प्वाइंट गर्म लगे, बदबू आए या स्पार्क दिखे तो तुरंत प्लग निकाल दें और ड्राइवर को बताएं।
- धूम्रपान और ज्वलनशील सामान
- बस में सिगरेट, बीड़ी, वेप, अगरबत्ती आदि बिल्कुल न जलाएं; किसी और को करते देखें तो रोकें या स्टाफ को बताएं।
- अपने बैग में पेट्रोल, डीज़ल, thinner, पटाखे, गैस कैन आदि लेकर कभी न चढ़ें; यह नियमों के भी खिलाफ है।
- जागरूक रहें
- पूरी रात 100% जागना जरूरी नहीं, लेकिन गहरी नींद में इतने न डूबें कि ब्रेक, धुआं या शोर भी महसूस न हो।
- ड्राइवर अगर बहुत तेज, लापरवाही से चला रहा हो, फोन पर बात कर रहा हो या ओवरटेकिंग कर रहा हो तो तुरंत विरोध दर्ज करें।
आग लग जाए तो क्या करें?
बस में आग लगने पर हर सेकंड कीमती होता है, इसलिए पहले से मानसिक तैयारी रखना जरूरी है।
1. शुरुआती पल (पहले 30–60 सेकंड)
- घबराएं नहीं, तुरंत उठें
- जैसे ही जलने की बदबू, धुआं या लोग चिल्लाते दिखें, तुरंत उठें, जूते पहनें और मोबाइल/पर्स जैसी जरूरी चीजें उठाकर रास्ते की ओर बढ़ें।
- बर्थ पर वापस कुछ लेने के लिए देर तक मत रुकें; जान से बढ़कर कुछ नहीं।
- एग्जिट की ओर बढ़ें
- आपने पहले जो एग्जिट प्लान बनाया था, उसी दिशा में तेज लेकिन संयमित तरीके से चलें।
- अगर मुख्य गेट पर भीड़ हो तो इमरजेंसी खिड़की या छत वाले हैच की ओर बढ़ें।
2. धुआं भरने लगे तो
- नीचे झुककर चलें
- जहरीला धुआं ऊपर इकट्ठा होता है, इसलिए झुककर या घुटनों पर चलने से सांस लेने के लिए थोड़ा साफ हवा मिलती है।
- नाक और मुंह को कपड़े या रुमाल से ढक लें, अगर संभव हो तो इसे हल्का गीला कर लें।
- रास्ता बंद हो तो
- इमरजेंसी खिड़की या कांच पर लगे हैमर से जोर का वार करके कांच तोड़ें, या कोई भारी चीज (फायर एक्सटिंग्विशर, रॉड, जैक) से मारें।
- बच्चों और बुजुर्गों को पहले धक्का देकर बाहर निकालें, फिर खुद बाहर आएं।
3. बाहर निकलने के बाद
- बस से दूर जाएं
- बस से कम से कम 50–100 मीटर दूर चले जाएं, क्योंकि टायर या टैंक फटने का खतरा रहता है।
- तुरंत 112 / स्थानीय पुलिस / एम्बुलेंस को कॉल करें और लोकेशन साफ‑साफ बताएं।
- वीडियो से पहले मदद
- हादसे की तस्वीर/वीडियो बनाने की जगह पहले घायल लोगों को निकालने, आग बुझाने की कोशिश और मदद बुलाने पर ध्यान दें
सरकार और बस ऑपरेटरों की क्या जिम्मेदारी है?
आम यात्री सिर्फ अपने स्तर पर बचाव कर सकता है, असली जिम्मेदारी सरकार और ऑपरेटरों की है।
- सरकार/प्रशासन
- नियम तोड़ने वाली स्लीपर बसों पर सख्त कार्रवाई, फिटनेस जांच और समय‑समय पर विशेष अभियान चलाना।
- नई बसों की मंजूरी तभी देना जब वे AIS‑052, AIS‑119, AIS‑135, AIS‑153 जैसे मानकों पर खरी उतरें।
- बस ऑपरेटर
- नियमित मेंटेनेंस, वायरिंग और फ्यूल सिस्टम की जांच, प्रशिक्षित ड्राइवर और हेल्पर रखना, और स्टाफ को फायर सेफ्टी ट्रेनिंग देना।
- यात्रियों को चढ़ते समय ही इमरजेंसी एग्जिट, फायर एक्सटिंग्विशर और सेफ्टी नियमों की जानकारी देना।
निष्कर्ष की जगह सीधी सलाह
- जहां बेहतर विकल्प हो, वहां स्लीपर बस से बचें, खासकर अनजान या छोटी ऑपरेटर कंपनियों की बसों से।
- अगर स्लीपर बस ही लेना पड़े, तो अच्छी कंपनी, अच्छी रेटिंग, साफ‑सुथरी और नियमों का पालन करने वाली बस चुनें और ऊपर दिए गए सभी सेफ्टी टिप्स याद रखें।
- अपनी और परिवार की जान के मामले में “चलेगा” या “कुछ नहीं होगा” जैसा रवैया छोड़कर सजग और जागरूक यात्री बनना ही सबसे बड़ा बचाव है।






