घर में यदि कमाने वाले को शराब की लत लग जाए, तो पूरे परिवार का जीवन असंतुलित हो जाता है। इससे पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक हर स्तर पर गंभीर संकट उत्पन्न होता है। लेकिन, सही प्रयासों और उचित मार्गदर्शन से इस समस्या से उबरा भी जा सकता है।
शराब की लत का परिवार पर प्रभाव
जब परिवार के मुखिया या कमाऊ सदस्य को शराब की लत लग जाती है, तो उनके व्यवहार में नकारात्मक परिवर्तन आ जाते हैं। इससे परिवार के अन्य सदस्य असुरक्षा, भय और भावनात्मक आघात महसूस करते हैं।
घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है क्योंकि आय का बड़ा हिस्सा शराब पर खर्च हो जाता है।
बच्चों के मनोविज्ञान पर बुरा असर पड़ता है; वे उपेक्षा, हिंसा, अस्थिरता और असहायता का अनुभव करते हैं, जिससे उनमें भी आत्मविश्वास की कमी, अवसाद, चिंता या व्यवहार समस्याएं आ सकती हैं।
परिवार में झगड़े, अलगाव, तलाक, घरेलू हिंसा जैसी स्थितियाँ पैदा हो जाती हैं और परिवार टूटने की कगार पर आ जाता है।
समाज में भी ऐसे परिवारों की छवि खराब हो जाती है, जिससे सामाजिक बहिष्कार या तिरस्कार भी झेलना पड़ता है।
विशेषज्ञों के विचार
मनोचिकित्सक और नशीली पदार्थ नियंत्रण विशेषज्ञ शराब की लत को एक रोग मानते हैं और इसका उपचार संभव बताते हैं, बशर्ते परिवार सहयोग करे।
उपचार में व्यावसायिक सहायता (जैसे थेरेपी, परामर्श, नशा मुक्ति केंद्र), समूह-आधारित गतिविधियाँ और परिवार का नैतिक-संवेगात्मक साथ अहम भूमिका निभाता है।
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि किसी प्रियजन को शराब छोड़ने के लिए प्रेरित करने के दौरान उन्हें सहयोग, विश्वास और धैर्य के साथ मार्गदर्शन मिलना चाहिए।
साथ ही, यह भी समझाया जाना चाहिए कि उनकी लत परिवार और स्वयं उनके लिए कितनी नुकसानदायक है, ताकि उनके भीतर बदलने की वास्तविक प्रेरणा पैदा हो।
शराब की लत से उबरने के उपाय
घरेलू स्तर पर कुछ पारंपरिक उपाय, जैसे सौंफ-अजवाइन, लौंग-अजवाइन आदि के मिश्रण का सेवन, कई लोग सहायक मानते हैं; हालांकि इन्हें चिकित्सा सलाह के साथ ही अपनाना चाहिए।
चिकित्सीय एवं व्यावसायिक मदद जैसे परामर्श, मनोचिकित्सा, होम्योपैथिक/आयुर्वेदिक उपचार तथा डिटॉक्सिफिकेशन शराब की शारीरिक व मानसिक निर्भरता से निकलने में महत्वपूर्ण होते हैं।
ध्यान, योग, प्राणायाम एवं व्यक्तित्व विकास पर जोर देकर व्यक्ति की सोच, इच्छाशक्ति और निर्णय क्षमता को मजबूत किया जा सकता है, जिससे relapse की संभावना कम होती है।
सोशल और सपोर्ट ग्रुप, जैसे नशा छोड़ने वाले समूह या स्वयं-सहायता संगठन, व्यक्ति और परिवार दोनों का मनोबल बढ़ाने में कारगर सिद्ध होते हैं।
जीवन में नया उद्देश्य, जिम्मेदारी और उदात्त लक्ष्य विकसित करना, जैसे सेवा, अध्यात्म, रचनात्मक कार्य आदि, व्यक्ति को शराब से दूर रखने में सहायक होते हैं।
प्रेमानंद महाराज जी के विचार
वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज जी शराब को शरीर, मन और आत्मा – तीनों के लिए घातक मानते हैं। उनके अनुसार, शराब पीना पाप है और इससे व्यक्ति अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य, अर्थात भगवत-प्राप्ति और आत्मिक उन्नति, से भटक जाता है।
उनका मत है कि शराब परिवार, संबंध और समाज सभी के लिए विनाशकारी है, क्योंकि यह व्यक्ति के भीतर राक्षसी प्रवृत्ति, क्रोध और असंयम को बढ़ाती है, जिससे वह अपने माता-पिता और बड़ों का भी अपमान कर बैठता है।
प्रेमानंद महाराज जी समझाते हैं कि जो आनंद लोग शराब या किसी भी नशे में खोजते हैं, वह केवल बुद्धि की शिथिलता है, वास्तविक सुख नहीं; असली आनंद तो ईश्वर की शरण, भक्ति और सत्संग में है।
उनके अनुसार, नशा छोड़ने के लिए सबसे पहले मन में उसमें घृणा उत्पन्न करनी होगी; जब तक कोई व्यक्ति शराब को दोष और पापकर्म नहीं मानेगा, तब तक वह उसे छोड़ नहीं पाएगा।
वे यह भी बताते हैं कि जब कोई सच्चे मन से चाहता है कि वह नशे से मुक्त हो, तब भगवान किसी न किसी रूप में उसकी सहायता अवश्य करते हैं – जैसे सत्संग, सद्गुरु, या प्रेरणादायक संगति के रूप में।
प्रेमानंद महाराज जी बार‑बार सत्संग और नाम-स्मरण पर बल देते हैं, क्योंकि उनके अनुभव में ईश्वर का नाम और संतों का संग ही वह शक्ति देता है जिससे व्यक्ति वर्षों पुरानी शराब की लत भी छोड़ सकता है।
समाधान की दिशा
शराबी व्यक्ति को यह स्पष्ट रूप से समझना होगा कि उसकी मुक्ति की कुंजी उसकी अपनी इच्छाशक्ति और निर्णय में है; कोई भी बाहरी मदद तभी कारगर होगी जब वह भीतर से बदलना चाहे।
परिवारजनों को भी संतुलित और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए—सिर्फ डांटने, धमकाने या अपमानित करने से बात नहीं बनती; प्रेम, संवाद और सकारात्मक प्रोत्साहन के साथ सीमाएँ तय करना अधिक प्रभावी होता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से, ईश्वर-अर्पण की भावना, सत्संग, नाम-जप और अच्छे संग की तलाश व्यक्ति के जीवन में नई रोशनी ला सकती है, जिससे वह नशे जैसी अंधेरी आदतों से बाहर निकल सके।
छोटी-छोटी प्रगति, जैसे शराब की मात्रा कम होना, कुछ दिन पूरी तरह न पीना, या नशे की जगह किसी शुभ कार्य में समय लगाना—इन सबको परिवार मिलकर सराहे तो आत्मविश्वास बढ़ता है और घर में फिर से शांति तथा खुशहाली लौटने लगती है।








