यहां प्रस्तुत है विस्तार से हिंदी लेख, जो बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा एक आयकर नोटिस को रद्द करने के मामले पर आधारित है, जिसमें कथित तौर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) द्वारा ड्राफ्ट किए गए नोटिस में गैर-मौजूद निर्णयों का हवाला दिया गया था:
बॉम्बे हाई कोर्ट ने एआई द्वारा तैयार आयकर नोटिस को क्यों रद्द किया: न्याय, प्रक्रिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का टकराव
भूमिका
हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने आयकर विभाग द्वारा जारी किए गए एक ऐसे कर नोटिस को रद्द कर दिया, जिसे तैयार करते समय विभाग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से तीन ऐसे न्यायिक फैसलों का हवाला दिया जो वास्तव में अस्तित्व में ही नहीं थे। कोर्ट ने इस प्रक्रिया को करदाता के लिए अन्यायपूर्ण और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करार दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले की शुरुआत तब हुई जब एक टैक्सपेयर को असैसमेंट वर्ष 2023-24 के लिए आयकर विभाग ने धारा 143(3) पढ़ी गई धारा 144बी के तहत एक अस्सेसमेंट ऑर्डर जारी किया। इसमें करदाता की घोषित आय ₹3.09 करोड़ थी, जिसे विभाग ने बढ़ाकर ₹27.91 करोड़ कर दिया और साथ ही टैक्स डिमांड के लिए धारा 156 के तहत नोटिस एवं धारा 274/271AAC के तहत पेनल्टी के लिए शो-कॉज नोटिस भी जारी किया गया।
टैक्सपेयर ने इस आदेश के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की।
आयकर विभाग द्वारा किए गए मुख्य जुड़ाव
कोर्ट के अनुसार, कर-विभाग द्वारा दो मुख्य जोड़ (additions) किए गए –
- ₹2.16 करोड़ का खरीद मूल्य (Purchases का Disallowance): यह Dhanlaxmi Metal Industries से की गई खरीद के संदर्भ में था, जहां आयकर विभाग का दावा था कि सप्लायर ने धारा 133(6) के नोटिस का जवाब नहीं दिया।
- ₹22.66 करोड़ डायरेक्टर्स से अवेधृत ऋण (Peak Balance के आधार पर): यहां आकलन अधिकारी ने डायरेक्टर्स के ऋण में ‘पीक बैलेंस’ के हिसाब से जुड़ाव किया तथा तीन कथित न्यायिक निर्णयों का हवाला दिया।
सप्लायर का उत्तर और प्रशासन का लचर रवैया
कोर्ट में कारगर तथ्य यह सामने आया कि 4 मार्च 2025 को सप्लायर को विभाग द्वारा 133(6) नोटिस भेजा गया, जिसमें कई दस्तावेज़ मांगे गए। सप्लायर ने 8 मार्च 2025 को वाजिब उत्तर दिया था, जिसमें ट्रांजैक्शन से जुड़े इंवॉइस, ई-वे बिल, ट्रांजिट रिसिप्ट, जीएसटी रिटर्न्स आदि सौंपे गए थे। इस उत्तर के साथ 100 से अधिक पन्नों की प्रमाणिकता संलग्न थी।
इसके बावजूद विभाग के आदेश में लिखा गया कि ‘कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ’। बाद के हलफनामे में विभाग ने इस भूल के लिए माफी मांगी, परंतु कोर्ट ने इसे प्राकृतिक न्याय का सीधा उल्लंघन माना।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा उत्पन्न गलत निर्णय
असल विवाद की जड़ यह निकली कि विभाग ने अपने आदेश में तीन ऐसे न्यायिक निर्णयों का संदर्भ दिया, जो दरअसल अस्तित्व में ही नहीं थे। कोर्ट ने पूछा कि आखिर ये निर्णय कहां से प्राप्त किए गए। जांच में पाया गया कि शायद ये निष्कर्ष किसी एआई-संचालित सिस्टम से लिए गए, पर वास्तविकता में कोर्ट के ऐसे कोई भी आदेश या उदाहरण मौजूदा न्यायिक बैंचमार्क में नहीं मिले।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “एआई के इस युग में, जब कोई व्यक्ति अर्ध-न्यायिक कार्य कर रहा है, तो उसे सिस्टम/एआई द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी पर अंधा विश्वास नहीं करना चाहिए। उन ‘निष्कर्षों’ की पड़ताल और क्रॉस-वेरिफिकेशन आवश्यक है। अन्यथा, ऐसे ही घातक परिणाम निकल सकते हैं”।
जोड़ के लिए आधार और गणना का अभाव
कोर्ट ने यह भी पाया कि ‘पीक बैलेंस’ के तहत जो डायरेक्टर्स लोन का जोड़ किया गया, उसकी कोई कार्यशैली या गणना का विवरण करदाता को नहीं दिया गया, और न ही उसके लिए कोई शो-कॉज नोटिस जारी किया गया। यह करदाता के लिए पूरी तरह से अस्पष्ट और अन्यायपूर्ण स्थिति थी।
प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन
बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्पष्टीकरण दिया कि विभाग ने न केवल प्रमाणिक जवाब की उपेक्षा की, बल्कि गढ़े हुए कानून/फैसलों के आधार पर निर्णय लिया, और करदाता को न योग्य अवसर मिला, न उनकी बात का संज्ञान लिया गया। न्यायालय ने इसे प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांत – “सुनवाई का अवसर देना” – का गंभीर उल्लंघन करार दिया।
संविधान के तहत संरक्षण और कोर्ट का हस्तक्षेप
कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत दखल देते हुए अस्सेसमेंट ऑर्डर, डिमांड नोटिस और संबंधित पेनल्टी नोटिस सभी को रद्द कर दिया तथा आदेश दिया कि–
- आकलन अधिकारी नया, स्पष्ट शो-कॉज नोटिस दे;
- सभी प्रासंगिक तथ्यों को स्पष्ट करे;
- करदाता को जवाब देने के लिए पर्याप्त अवसर व व्यक्तिगत सुनवाई दे;
- सभी कानूनी निर्णयों की जानकारी कम-से-कम 7 दिन पहले दे ताकि करदाता प्रत्युत्तर दे सके;
- और अंतिम आदेश 31 दिसम्बर 2025 तक पारित करे।
एआई का कानून के क्षेत्र में उपयोग: सबक
यह मामला दिखाता है कि एआई और तकनीक, भले ही कितना भी एडवांस्ड क्यों न हो, यदि उसकी मदद से जनता को न्याय या निर्णय देने का काम किया जाए तो अतिरिक्त सतर्कता व सत्यापन बहुत जरूरी है। विशेषकर जब ‘जनरेटिव एआई’ या बड़े भाषा मॉडल (एलएलएम) जैसे सिस्टम कभी-कभी ‘हॉलूसिनेशन’ के चलते गैर-मौजूद जानकारी, तथ्य या उदाहरण प्रस्तुत कर देते हैं।
कोर्ट ने एआई द्वारा प्रस्तुत किसी भी जानकारी पर ब्लाइंड डिपेंडेंसी को खतरनाक बताया और कहा कि अधिकारियों को, खासकर अर्ध-न्यायिक दायित्व वाले केस में, खुद स्वतंत्र पड़ताल करनी चाहिए।
कर प्रशासन, पारदर्शिता और जवाबदेही
यह घटना न केवल एआई की संभावनाओं और सीमाओं का उदाहरण है, बल्कि कर प्रशासन की प्रक्रियात्मक जवाबदेही की आवश्यकता पर भी बल देती है। करदाता को कैसी भी एआई पैदा हुई जानकारी, गणना या न्यायिक संदर्भ मिलें, वे स्वच्छ, सत्यापित और स्थापित संवैधानिक प्रक्रिया के अनुरूप होने चाहिए।
- सभी सहायक दस्तावेज़ों और व्यापारी जवाबों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
- गंभीर वित्तीय मुद्दों में ऐतिहासिक या वर्तमान कानून का झूठा हवाला देना सर्वथा अनुचित है।
- औपचारिक, तर्कसंगत और पारदर्शी प्रक्रिया न्याय का मूल आधार है।
भविष्य में प्रशासनिक निर्णय और कानून
यह केस एक बेंचमार्क बन सकता है कि भविष्य में जब भी सरकारी संस्थाएं, खासकर कर विभाग, एआई या अन्य डिजिटल टूल्स का इस्तेमाल करे, तो वे यह सुनिश्चित करें कि:
- सभी डेटा व संदर्भ क्रॉस-वेरिफाई हों;
- एआई-सिस्टम द्वारा सुझाए गए कानूनी निर्णय या फैसले मान्य स्रोतों से जुटाए गए हों;
- निर्णय लेने की प्रक्रिया में करदाता को सुनवाई का वास्तविक अवसर मिले।
करदाताओं के लिए संदेश
इस आदेश से करदाताओं को यह अधिकार और सुरक्षा मिली है कि किसी भी सरकारी आदेश या मांग का स्रोत, गणना और कानूनी आधार स्पष्ट रूप से सार्वजनिक किया जाए। यदि कोई आदेश अस्पष्ट, गलत तथ्यों या गैर-मौजूद कानूनों के आधार पर जारी हुआ है, तो संविधान व न्यायालय की शरण ली जा सकती है।
निष्कर्ष
बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले से महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित हुए हैं –
- एआई की मदद से तैयार आदेशों में अतिरिक सतर्कता व स्वतंत्र जांच जरूरी है;
- कर अधिकारियों को किसी भी निर्णय से पहले सभी उत्तर, दस्तावेज़ और कानूनी संदर्भ की पुष्टि करनी चाहिए;
- प्राकृतिक न्याय का पालन अनिवार्य है, जिसमें हर करदाता को सुनवाई, विवरण और अपील का उचित अवसर मिले।
आखिर में अदालत ने स्पष्ट किया कि आदेश के गुण-दोष पर कोई राय नहीं दी गई है, सभी पक्षों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे और विभाग को प्रक्रिया का पुनर्पालन करना होगा।
इस मामले ने एक ऐसे भविष्य का संकेत दिया, जहां टेक्नोलॉजी का प्रयोग बढ़ेगा, लेकिन न्यायपालिका की भूमिका सबूतों की पुष्टि और नागरिक अधिकारों की रक्षा में लगातार अहम रहेगी। सरकारी फैसलों में पारदर्शिता, जवाबदेही और कानूनी जाँच-परख के बिना न तो टैक्स प्रशासन टिक पाएगा और न ही एआई पर अंधा भरोसा समाज में स्वीकार्य होगा।







