
यह लेख छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले और एक विधवा महिला के संघर्ष की कहानी को उजागर करता है, जिसमें उसने अपने दिवंगत पति की पेंशन और ग्रैच्युटी संबंधित सरकारी घूसखोरी और धोखाधड़ी के विरुद्ध आवाज़ उठाई। नीचे प्रस्तुत है इस घटना, अदालती निर्णय और इससे संबंधित कानूनी पहलुओं पर आधारित विस्तृत हिंदी लेख
विधवा महिला के संघर्ष की शुरुआत
एक विधवा महिला, जिनके पति छत्तीसगढ़ के एक सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक थे, उस समय गहरे संकट में आ गईं जब पति की मृत्यु के बाद उनकी पेंशन और ग्रैच्युटी के भुगतान में सरकारी कार्यालय में अड़ंगे लगने लगे। पति की मृत्यु 8 फरवरी, 2021 को दिल का दौरा पड़ने से हुई थी।
पति की मृत्यु के पश्चात्, महिला ने अपने पति की सेवा के बदले मिलने वाली पेंशन, ग्रैच्युटी और अन्य सेवानिवृत्ति संबंधी लाभों की प्रक्रिया शुरू करने के लिए ब्लॉक शिक्षा कार्यालय (BEO) का रुख किया। यहाँ पर उन्होंने दो वरिष्ठ क्लर्कों से भेंट की, जिन्होंने उन्हें स्पष्ट रूप से बताया कि किसी भी प्रकार की पेंशन-सम्बन्धी कार्यवाही और लाभ जारी करने के लिए उन्हें ₹2 लाख रुपए देने होंगे।
धोखाधड़ी की साजिश और रकम की निकासी
महिला पर दबाव डालते हुए, क्लर्कों ने उनसे एक खाली चेक पर हस्ताक्षर करवा लिए। लेकिन जब राशि निकासी की गई तो पता चला कि ₹2 लाख की जगह ₹2.8 लाख की निकासी की गई थी। इसके बावजूद, महिला को उनके पति की पेंशन और ग्रैच्युटी की राशि नहीं मिली। महिला ने कई बार कार्यालय में संपर्क किया, लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ा।
क्लर्कों ने बताया कि उनके काम के लिए पैसा देना नियमानुसार आवश्यक था, और बिना भुगतान के उनका केस आगे नहीं बढ़ेगा। लेकिन जब महिला ने बैठी-बैठाई रकम दी और काम फिर भी नहीं हुआ तो उनके संदेह को बल मिला।
पुलिस शिकायत और एफआईआर दर्ज
महिला ने अंततः पुलिस स्टेशन पहुंचकर मामला दर्ज कराया। 20 जून, 2025 को संबंधित क्लर्कों के खिलाफ FIR (क्राइम नंबर 181/2025) भरी गई। FIR में भारतीय न्याया संहिता (BNSS) की धाराओं 61(2), 318(4) और 3(5) के तहत आरोप लगाए गए। इसमें सरकारी पद का दुरूपयोग, धोखाधड़ी और अवैध घूस लेने की बात दर्ज की गई।
अदालत में समझौता और हाई कोर्ट की भूमिका
इस मामले की जांच के दौरान, महिला ने बाहर ही क्लर्कों से समझौता कर लिया, जिसके बाद अभियुक्तों के वकील ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में FIR रद्द करने की अपील दायर कर दी। लेकिन हाई कोर्ट ने FIR को रद्द करने से इंकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि जब कोई FIR संज्ञेय अपराध का संकेत देती है, तो जांच अपने निष्कर्ष तक पहुँचे, इससे पहले मामले को समझौते के आधार पर रोका नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार स्पष्ट किया है कि ऐसे संवेदनशील मामलों, जहाँ भ्रष्टाचार, सरकारी पद का दुरुपयोग और नैतिक पतन शामिल हों, उनको समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।
सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णयों की मिसाल
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध मामलों का हवाला दिया, जैसे कि:
- State of Haryana vs. Bhajan Lal (AIR 1992 SC 604)
- Neharika Infrastructure Pvt. Ltd. vs. State of Maharashtra (2021 SCC OnLine SC 315)
- State of M.P. vs. Laxmi Narayan ((2019) 5 SCC 688)
इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जहाँ FIR संज्ञेय अपराध की ओर संकेत करती है, वहाँ जांच पूरी होनी चाहिए, चाहे पार्टी के बीच समझौता क्यों न हो गया हो।
न्यायालय की गहनता
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कहा कि उक्त अधिकारियों पर आरोप हैं कि उन्होंने पेंशन और ग्रैच्युटी जैसे निजी लाभों के भुगतान के लिए अवैध पैसे मांगे, अपने पद का दुरुपयोग किया और धोखाधड़ी की। साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे अपराध केवल व्यक्तिगत नहीं होते; यह पूरे समाज को प्रभावित करते हैं और प्रशासन व न्याय व्यवस्था में आम जनमानस का विश्वास डगमगाता है।
कोर्ट ने आदेश में चाहे महिलाने क्लर्कों से समझौता कर लिया, लेकिन कोई लिखित समझौता प्रस्तुत नहीं किया गया था। ऐसे में केवल समझौते के आधार पर संज्ञेय अपराध की FIR को रद्द नहीं किया जा सकता।
पीठ ने यह भी देखा कि अभियुक्तों के जैसे ही एक अन्य सह-अभियुक्त की FIR रद्द करने की याचिका पहले ही खारिज की गई थी, जिससे कोर्ट को यह पक्का हुआ कि इस मामले में कोई विशेष अपवाद नहीं है।
अदालत का अंतिम आदेश
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा:
“कोई लिखित समझौता नहीं किया गया है और पिछले मामलों में ठीक इसी आधार पर दूसरे अभियुक्त की याचिका खारिज की जा चुकी है। ऐसे में अभियुक्त की याचिका रद्द करने का कोई आधार नहीं बनता। यह अपराध सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित करता है और समाज में प्रशासन के प्रति अविश्वास उत्पन्न करता है। समझौता, इस स्तर पर, अपराध की गंभीरता को कम नहीं करता।”
कोर्ट ने अभियुक्तों की FIR निरस्त करने की याचिका को खारिज कर दिया।
कानूनी और सामाजिक निहितार्थ
इस पूरे मामले ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं को उजागर किया:
- सरकारी अधिकारियों द्वारा धन की मांग महज गलत नहीं, बल्कि अपराध की श्रेणी में आती है, भले ही पीड़िता बाद में समझौते के लिए तैयार हो जाए।
- ऐसे अपराध व्यक्तिगत हितों तक सीमित नहीं होते; यह समाज और शासन के प्रति विश्वास पर सीधा असर डालते हैं।
- न्यायालय में व्यक्तिगत समझौता तब तक निर्विवाद नहीं माना जा सकता, जब तक संज्ञेय अपराध की जांच पूरी न हो जाए।
- सुप्रीम कोर्ट की परंपरागत व्याख्याओं के अनुसार, भ्रष्टाचार और सरकारी पद के दुरुपयोग जैसे अपराध समझौते के आधार पर रद्द नहीं किए जा सकते।
पीड़िता की सीख और प्रेरणा
इस घटना ने बड़ों का एक बड़ा संदेश पूरे समाज को दिया: अगर आपके साथ सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार या धोखाधड़ी हो, तो चुप न रहें। कानून आपके साथ है, और उच्च न्यायालयों ने ऐसे मामलों में पीड़ित का पक्ष लेने वाली दृढ़ भूमिका निभाई है।
पीड़िता ने अपने हक के लिए लड़ाई लड़ी, FIR दर्ज कराई, और अंततरू सरकार के भ्रष्ट कर्मचारियों की घृणित सर्कल को बाहर उजागर किया। अदालत के फैसले से समाज को यह संदेश गया कि भ्रष्टाचार और सरकारी पद के दुरुपयोग के खिलाफ कानूनी लड़ाई पूरी शिद्दत से लड़ी जा सकती है, और न्यायपालिका ऐसे मामलों में समझौते से सहमत नहीं होती।
निष्कर्ष
यह मामला न केवल विधवा महिला के न्याय के संघर्ष का प्रमाण है, बल्कि देश में चल रहे भ्रष्टाचार की समस्या और उसकी सामाजिक-न्यायिक प्रतिक्रियाओं को भी उजागर करता है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में इस निर्णय ने न्याय का पक्ष मजबूत किया, और साधारण नागरिकों को संदेश दिया कि डरें नहीं, अपनी लड़ाई लड़ें—कानून उनके साथ है।
अगर आपके साथ भी कभी ऐसी ही कोई घटना हो, तो समय पर उसकी रिपोर्टिंग करें, और उच्च न्यायालय तक अपनी बात पहुँचाने में घबरायें नहीं। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के हाल के निर्णयों ने न्यायिक तंत्र की पारदर्शिता और समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी को दृढ़ता से स्थापित किया है।economictimes.indiatimes
यह निर्णय भ्रष्टाचार और सरकारी कार्यालयों में हो रही धोखाधड़ी की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए न्यायापालिका की प्रतिबद्धता का प्रतीक है और भविष्य में ऐसे मामलों में पीड़ितों को पर्याप्त कानूनी सुरक्षा उपलब्ध करवाने की गारंटी देता है।economictimes.indiatimes