
श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का शब्दशः उत्तर नीचे प्रस्तुत है, विस्तारपूर्वक –
राधा राधा श्री राधा वल्लभ लाल की समस्त संत हरि भक्तन की श्री वृंदावन धाम की जय सदगुरुदेव भगवान की जय।
प्रश्न
राधे-राधे महाराज जी। महाराज जी, लंबे समय से नाम जप के टूटे-फूटे प्रयास कर रहा हूँ और मानसिक पीड़ाओं से लड़ते-लड़ते थक सा गया हूं। असल में हस्तमैथुन की लत छूट नहीं रही.
महाराज जी का उत्तर
हाँ, ये तभी होगा जब बार-बार लगातार चलने वाली नकारात्मक ऊर्जा हावी हो जाए; तभी ऐसा होता है…
नहीं, तो नाम जप में थक जाना कैसे संभव है। इसमें उत्साह होता है – पूरा जीवन लगा देने के बाद भी ऐसा लगता है कि काश! मुझे भजन करने की ऐसी विधि मालूम होती कि मैं एक श्वास में हजार बार नाम जपूं। इतना स्वास रोकूं कि हज़ार नाम जपूं।
मतलब… इतनी भूख बढ़ जाती है, इतना उत्साह बढ़ जाता है भजन करने का। आप कह रहे हो –‘थकान महसूस होती है, बोझा महसूस होता है’।
प्रश्नकर्ता- ये गलती हस्तमैथुन की है। वासना के प्रभाव से हार गए.
महाराज जी का उत्तर
हाँ, बिल्कुल।
जो बच्चे व्यभिचार और हस्तमैथुन आदि क्रियाओं में युक्त हैं, उनकी स्मृति शक्ति डाउन हो जाती है।
उनके अंदर उत्साह नहीं रह जाता।
एक प्रमाद, एक आलस्य, एक खिन्नता – ऐसा-ऐसा भाव बना रहता है।
इसलिए हम कहते हैं – हमारा समाज, जो नए बच्चों का, नई पीढ़ी का है – वह थोड़ा गलत मार्ग में जा रहा है।
अब देखो, कितनी अवस्था है तुम्हारी – 23? इस समय तो चमकना चाहिए। 18, 20, 22, 23 – ये उम्रधनी… उसका खिला हुआ कमल जैसा जीवन होता है।
अब ऐसे लग रहा है – वृद्ध हो।
अब ऐसे तुम अपने आपको नष्ट करोगे, तो कौन बचा पाएगा?
अच्छा, ये हस्तमैथुन एक ऐसी क्रिया है जिसको किसी दवा से नहीं रोका जा सकता।
अपने आपको स्वयं रोकना होगा।
कोई दूसरा रोक नहीं सकता।
अगर अपना मन – जब मन आया, तब ऐसे – तो बहुत हानि हो जाती है।
बहुत हानि… आपने एकदम अपने आपको खाली कर दिया।
अपने आपको कमजोर कर दिया।
अब रोको इस बात को।
सुधरना चाहते हो?
प्रश्नकर्ता -हां, सुधरना चाहता हूं।
महाराज जी – अब तो आपको सुधरना पड़ेगा। इसमें इसलिए कह रहा हूँ – इसमें न तो कोई वैद्य काम कर सकता है, न कोई डॉक्टर काम कर सकता है, न कोई गुरु काम कर सकता है।
भाई, अमुक चीज नहीं खानी है – वह आपको नहीं खानी है। अमुक क्रिया नहीं करनी है – वह आपको नहीं करनी है। लेकिन क्या होता है… छोटे-छोटे बच्चों को यह गलत आदत लग जाती है तो उनको सुख का साधन समझ में आता है और वह उस क्रिया को बहुत बार करते हैं, जिससे उनकी हड्डियों तक से पावर निकल जाता है।
शरीर में एक क्षमता है, और क्षमता से अधिक जब उसको आप करेंगे तो नष्ट हो जाएगा।
शरीर नष्ट होने लगता है, जैसे – नए बच्चे, अब आँखें धंस रही हैं, मस्तक धंस रहा है।
जैसे डिप्रेशन का आदमी, ऐसा चेहरा… उसका कारण हस्तमैथुन है।
उसको छोड़ना होगा, नहीं तो परेशान हो जाओगे।
प्रश्नकर्ता
अभी – क्या करूं ?
महाराज जी
कई बार हमने बताया है कि अगर हम प्रातःकालीन दो-तीन किलोमीटर दौड़ें, आधा घंटा व्यायाम करें, स्नान करके थोड़ा नाम जप करें और यह नियम लें कि ‘कभी भी हम हस्तमैथुन नहीं करेंगे’, तो हम उससे बच सकते हैं।
अगर नियम नहीं लेंगे – फिर ठीक नहीं रहेगा।
फिर तो आदत खराब हो गई, तो आप गंदी बात करते रहेंगे और पतन होता रहेगा।
प्रश्नकर्ता– मैं पूरा प्रयास करने को तैयार हूँ। गुरुजी, मैं पूरा…
महाराज जी
क्योंकि प्रयास करने का पावर ही नहीं रह गया, तो प्रयास क्या करोगे?
प्रयास करने का पावर ही नहीं रह गया है।
शाम तक नियम में रहोगे, रात्रि में फिर फेल हो जाओगे।
प्रश्नकर्ता
इसलिए आपके बल से आए हैं गुरुजी।
महाराज जी – अब हमारा बल तो तब काम करेगा जब राधा-राधा नाम रट।
हमारा बल तो राधा नाम है।
राधा-राधा रटो।
देखो, तुम्हारा जीवन परिवर्तन हो जाएगा
प्रश्नकर्ता
मरने के लिए तैयार हूँ.
महाराज जी – मरने के लिए तैयार नहीं, अमर होने के लिए तैयार हो।
मरने के लिए तो तैयार रहो, चाहे हो – मर ही जाओगे जब मरने का समय आ जाएगा।
लेकिन तैयार रहना है – अमर होने के लिए।
मनुष्य जन्म मिला है अमर होने के लिए… अविनाशी स्वरूप में स्थित होने के लिए।
राधा नाम जप करो, अच्छा भोजन करो, 2 किलोमीटर दौड़ लगाओ, सुबह ब्रह्ममुहूर्त में 4 बजे उठो, रोज नियम लो कि ‘कभी हस्तमैथुन नहीं करूंगा’।
प्रयास करके देखो, ठीक है।
यहाँ पर महाराज जी ने स्पष्ट किया कि―
- हस्तमैथुन वासना के प्रभाव में डालने वाली, कमजोर बना देने वाली बुरी आदत है।
- इससे स्मृति, उत्साह, बल – सब नष्ट होते हैं; व्यक्ति में प्रमाद, आलस्य, खिन्नता आ जाती है।
- कोई औषधि, डॉक्टर या गुरु छुड़वा नहीं सकता; स्वयं को संकल्प और अनुशासन से ही रोकना होगा।
- सुबह उठकर नियमित व्यायाम, दौड़, स्नान तथा नामजप का नियम लेना हितकारी है।
- खुद पर नियंत्रण रखना, नियोजन और श्रेष्ठ संगति सबसे प्रभावी उपाय हैं।
- गुरु के बल से नहीं, राधा नाम के बल से परिवर्तन होगा; आत्मनिर्भर बनना होगा।
- जीवन को अमरता के लक्ष्य की ओर ले जाना है, क्षणिक भोग नहीं।
यह जवाब श्रीहित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के 2:41 से 7:04 मिनट के संदेश का शब्दशः और भावनात्मक अनुवाद है, विस्तार में व सम्पूर्ण आवश्यक दिशानिर्देशों के साथ.