आईपीओ के लॉलीपॉप से बच के रहे, अपनी अक्ल लगाए
इन्वेस्टर्स जल्दी जल्दी पैसा कमाने के चक्कर में आईपीओ में जमकर पैसा लगा रहे है. लोग आईपीओ के मुकाबले म्यूच्यूअल फण्ड के सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानि SIP में कम पैसा लगा रहे है. पिछले साल लांच 10 आईपीओ में इन्वेस्टर्स ने 5.41 लाख करोड़ रुपए झोंक दिए. वहीं 23 और 24 नवम्बर 2023 को एक साथ लांच हुए IREDA, टाटा टेक, गंधार आयल, FEDBANK फाइनेंसियल और फ्लेयर के आईपीओ में निवेशको ने 3.6 लाख करोड़ रुपए की रकम लगाई. जबकि दूसरी तरफ पिछले 23 अक्टूबर तक पिछले 6 महीनो में सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानि SIP में निवेशकों ने 15,525 करोड़ रुपए लगाए. इन आंकड़ो से साबित होता है कि लोग प्लानिंग और सेफेली तरीके से अच्छा लाभ कमाना नहीं चाहते, वे तुरंत मोटा लाभ कमाना चाहते है. अब इसके चक्कर में भले उनकी लगाईं गई रकम ही डूब जाए, इसका वे पैसा लगाने से पहले रत्ती भर भी नहीं सोचते.
आईपीओ या जुआ
अब यही देख लो, लोगों ने सिर्फ पांच आईपीओ में इतना पैसा लगाया, जितना SIP में पिछले दो सालों में कुल लगा है. यह साफ़ जाहिर करता है की लोग आईपीओ के जरिये जल्दी जल्दी पैसा कमाना चाहते है. उनकी दिलचस्पी प्लानिंग से निवेश करने की नहीं है. कई आईपीओ अपनी शुरूआती कीमत से ऊपर के दाम पर बाजार में खुले है. इस वजह से लोग तुरंत पैसा कमाने के लिए आईपीओ में पैसे झोंक रहे है. जबकि जयादातर लोगों को मायूसी झेलनी पड़ती है, क्योंकि शेयर्स की संख्या कम और आवेदन ज्यादा होने की वजह से कुछ ही को लिमिटेड संख्या में शेयर्स मिल पाते हैं. ऐसे में अपने पैसे को कुछ समय को ब्लाक करने का क्या फायदा है.
एक और गलत बात है कि निवेशक आईपीओ लाने वाली कंपनी का रिकॉर्ड भी पता नहीं करते, वे सिर्फ यह मानकर चलते है कि आईपीओ तो अपनी तय कीमत से ऊपर ही खुलेगा, इसलिए कम्पनी के बारे में जानकारी लेकर क्या टाइम वेस्ट करना, बस दांव खेल लो. यानी निवेशक जुआ खेलना पसंद करते है. और जब किसी बेकार कंपनी के चक्कर में फंस जाते है, तो सरकार, सेबी और कंपनी को गालियाँ देते है. अरे भाई पैसा लगाने से पहले तुम्हारी अक्ल कहाँ गई थी.
आईपीओ में जल्दी पैसा कमाने के चक्कर में ज्यादातर जुआरी टाइप के लोग इसमें पैसा लगा देते है, जिससे और जोखिम पैदा हो जाता है. निवेशक लिस्टिड कंपनी की फाइनेंसियल स्टेटमेंट, बैलेंस शीट, बिज़नस देखने के बजाय जुआ खेलना ज्यादा पसंद करते हैं.
आईपीओ से लोग नहीं कंपनिया मुनाफे में
आईपीओ भी थोक के भाव पर आ रहे हैं. जब कुछ आईपीओ सफल हो जाते हैं, तो और प्रोमोटर्स भी अपनी कंपनी का आईपीओ लाना शुरू कर देते हैं, इससे एक ऐसा चक्र शुरू हो जाता है, जिसमे कई ख़राब कारोबार वाली कंपनी भी पैसा कमाने के चक्कर में आईपीओ लेकर आती हैं, जिससे बाजार में लिस्टेड होने के बाद उनके दाम कम हो जाते है और आम निवेशको को नुकसान उठाना पड़ता है. छोटे निवेशक को जब तक कम्पनी का बिज़नेस मजबूत नहीं लगता, उनको इससे दूरी बनाई रखनी चाहिए. आईपीओ लाते समय कंपनी का फाइनेंसियल रिकॉर्ड के बारे में ज्यादा डाटा भी नहीं होता. इसकी वजह से भी छोटे निवेशकों के लिया कंपनी की सटीक जानकारी जुटाना मुश्किल होता है. आईपीओ लाने से पहले कंपनी के प्रमोटर इसकी बहुत खुबसूरत तस्वीर पेश करते है, ताकि जनता को पैसा लगाने के लिए लुभाया जा सके. प्रमोटर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए शेयर का ज्यादा से ज्यादा प्राइस तय कर देते है, जबकि हकीकत में कई कंपनियों की इतनी वैल्यूएशन नहीं होती. वैसे तो आईपीओ आम निवेशकों को लाभ पहुँचाने के लिए जारी होते है, लेकिन ये आम जनता को कम कंपनी के मालिकों को ज्यादा लाभ पहुंचाते दिखते हैं. मार्किट रेगुलेटर आम निवेशकों की भलाई में कई कदम उठा रहा है, लेकिन अभी भी आम लोग के लिए ये घाटे का ही सौदा है.
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