एक लड़के को लग गई मोबाइल में रील देखने की लत, महाराज जी ने कर दी प्रॉब्लम दूर (EN)

मोबाइल की लत, मन का नियंत्रण और संतों की सीख: प्रासंगिक समाधान

परिचय

आज के डिजिटल युग में मोबाइल और सोशल मीडिया का उपयोग अत्यधिक बढ़ गया है। विशेषकर युवाओं और बच्चों में रील्स, शॉर्ट वीडियो और गेम्स की लत एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। सत्संगों में भी अक्सर यह प्रश्न उठता है कि मोबाइल की लत कैसे छोड़ी जाए और मन को कैसे नियंत्रित किया जाए। इस लेख में हम विख्यात संत श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के प्रवचन के आधार पर जानेंगे कि मोबाइल की लत से कैसे बचा जाए, मन को कैसे साधा जाए और भक्ति मार्ग पर कैसे अग्रसर हुआ जाए।

मोबाइल की लत: समस्या और समाधान

मोबाइल आज के समय में एक अत्यंत आवश्यक उपकरण बन चुका है। इसके माध्यम से हम सत्संग, ज्ञान, सूचना, आपातकालीन सेवाएं आदि का लाभ उठा सकते हैं। लेकिन जब मोबाइल का उपयोग आवश्यकता से अधिक और अनियंत्रित हो जाता है, तो यह हमारे मन, बुद्धि और समय के लिए घातक सिद्ध होता है। महाराज जी के अनुसार, “मोबाइल बहुत लाभदायक है, परंतु उनके लिए बहुत हानिकारक है जो अपने मन को कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं।”1

मोबाइल में इतनी विविधता और आकर्षण है कि कोई भी व्यक्ति उसमें घंटों व्यस्त रह सकता है। रील्स, शॉर्ट वीडियो, गेम्स, सोशल मीडिया—ये सब हमारे समय और ऊर्जा को चूस लेते हैं। महाराज जी ने चेतावनी दी कि मोबाइल में अच्छी चीजें देखने के साथ-साथ गलत चीजें भी आ जाती हैं, जिससे बुद्धि और चरित्र पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

संतों की दृष्टि: गुण ग्रहण, दोष त्याग

संतों ने संसार को गुण और दोष से युक्त बताया है। जैसे हंस दूध और पानी को अलग कर सिर्फ दूध पी जाता है, वैसे ही हमें भी मोबाइल और जीवन में से सिर्फ गुणों को अपनाना चाहिए और दोषों को त्यागना चाहिए। महाराज जी ने कहा, “मोबाइल से भी गुण लें—सत्संग सुनो, संतों की वाणी सुनो, आवश्यक कार्य करो। परंतु रील्स देखना, गेम खेलना, यह ठीक नहीं है।”1

मन का नियंत्रण: नियम और अनुशासन

मन को नियंत्रित करने के लिए सबसे जरूरी है—नियम और अनुशासन। मोबाइल का उपयोग सीमित और उद्देश्यपूर्ण रखें। सत्संग, भजन, ज्ञानवर्धक वीडियो के लिए मोबाइल का उपयोग करें, लेकिन मनोरंजन, रील्स, अनावश्यक वीडियो से दूरी बनाएं। महाराज जी ने स्पष्ट कहा, “हमारा घर है सत्संग, एकांतिक वार्तालाप, संतों की वाणी। बाकी जो अलग बातें आ रही हैं, वो हमारे घर की बात नहीं, हमें नहीं सुनना है।”1

रुचि और आकर्षण: झूठे आकर्षणों से बचाव

रील्स, शॉर्ट वीडियो, मनोरंजन—ये सब क्षणिक आकर्षण हैं। महाराज जी ने कहा, “क्या रखा है इन झूठी बातों में? नौटंकी, नाटक, सिनेमाबाजी, इधर-उधर की खबरें—इनसे क्या करोगे?” उन्होंने युवाओं को सलाह दी कि वे अपना समय पढ़ाई, नाम जप और अच्छे आचरण में लगाएं। जीवन में जो भी समय और ऊर्जा है, उसे सत्संग, भजन और आत्मविकास में लगाना चाहिए।

नाम जप और भक्ति: सर्वोत्तम उपाय

महाराज जी ने समाधान देते हुए कहा, “हम चिल्ला रहे हैं—राधा राधा राधा राधा—तो चिल्ला रहे हैं ना, खूब पकड़ लो बस, राधा राधा।” अर्थात, जब भी मन विचलित हो, मोबाइल की लत सताए, तो नाम जप में लग जाएं। नाम जप से मन शुद्ध होता है, विकार दूर होते हैं और आत्मा को शांति मिलती है।

नियमित अभ्यास: सफलता की कुंजी

मोबाइल की लत छोड़ना और मन को नियंत्रित करना एक दिन का कार्य नहीं है। इसके लिए निरंतर अभ्यास, नियम और दृढ़ संकल्प आवश्यक है। जैसे-जैसे आप सत्संग, नाम जप और अच्छे विचारों में समय लगाते जाएंगे, वैसे-वैसे मोबाइल की लत स्वतः कम होती जाएगी और मन में शांति, स्थिरता का अनुभव होगा।

सकारात्मक वातावरण का निर्माण

अपने आसपास का वातावरण भी बहुत मायने रखता है। यदि आपके मित्र, परिवारजन भी मोबाइल का सीमित और सकारात्मक उपयोग करते हैं, तो आप भी प्रेरित होंगे। सत्संग, भजन, सामूहिक नाम जप आदि से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, जो मोबाइल की लत को रोकने में सहायक है।

आत्मनिरीक्षण और जागरूकता

समय-समय पर आत्मनिरीक्षण करें कि आपका समय कहां व्यतीत हो रहा है। क्या मोबाइल का उपयोग आपके जीवन को बेहतर बना रहा है या आपको समय, स्वास्थ्य और मन की शांति से दूर कर रहा है? यदि उत्तर नकारात्मक है, तो तुरंत सुधार की दिशा में कदम उठाएं।

सारांश

मोबाइल की लत आज के समय की एक गंभीर समस्या है, लेकिन सत्संग, नाम जप, नियम, अनुशासन और सकारात्मक वातावरण से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। संतों की वाणी से प्रेरणा लेकर हम जीवन को सार्थक बना सकते हैं। महाराज जी का संदेश स्पष्ट है—”मोबाइल का लाभ लो, लेकिन उसके दोषों से बचो। नाम जप में मन लगाओ, जीवन को सफल बनाओ।”

2:34 से 5:39 तक TRANSCRIPT (हिंदी)

प्रश्न:“महाराज जी, मेरा प्रश्न ये है कि मन पर काबू नहीं हो पाता, जिसके कारण ज्यादातर समय रील आदि देखने में चला जाता है। रील देखने की ऐसी लत लग गई है कि महाराज जी, मन बहुत परेशान हो गया। एक बार लगते हैं तो चार-पांच घंटे निकल जाते हैं।”उत्तर (महाराज जी):
“हाँ, ये तो बहुत खतरनाक चीज है। मान लो कभी अच्छी रील देखोगे तो कभी गलत रील भी देखोगे। इसमें तो बुद्धि खराब ही हो जाएगी बच्चा, इसको तो रोकना चाहिए। वैसे मोबाइल बहुत लाभदायक है—सत्संग आप सुन सकते हैं, इमरजेंसी में सूचना दे सकते हैं—पर मोबाइल बहुत हानिकारक है उनके लिए जो अपने मन को कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं। बहुत हानिकारक है। इतना प्रपंच भरा है मोबाइल में कि आप 24 घंटे उसी में लगा सकते हो। सब एक से एक बातें, दुनिया की नौटंकी, नाटक, सब भरा पड़ा है।
तो हमें लगता है आवश्यक उसका लाभ ले लेना चाहिए।
भगवान ने सारे संसार को गुण और दोष से रचा है।
तो संत जैसे हंस—पानी और दूध मिला के रख दो, तो दूध पी जाएगा, पानी छोड़ देगा—ऐसे हमें चाहिए कि सबसे गुण लें।
तो मोबाइल से भी गुण लें। मोबाइल से एकांतिक वार्ता सुनो, सत्संग सुनो, संतों की वाणी सुनो। मोबाइल आवश्यक कार्यों के लिए है।
ब्रेक में गेम खेलना या रील देखना, हमें लगता है ये तो ठीक नहीं है। इस पर सुधार कीजिए, आज से मत देखिएगा।
प्रश्नकर्ता-महाराज जी, जैसे एक मतलब आप फोन में जैसे आपका सत्संग चलाते हैं तो ऐसा मन हो जाता है, जैसे वीडियो आ जाती हैं, फिर उसको ओपन करते हैं, फिर ऐसे ही टाइम निकल जाता है…
महाराज जी नहीं, ऐसे ओपन नहीं करना। कोई आ जाए तो ओपन करोगे तुम? मान लो रास्ते में चल रहे हो तो हमारा रास्ता है सत्संग का और उसके साइड में अन्य वीडियो है, तो वो अन्य है हमारे लिए, थोड़ी है। हम सबको थोड़ी क्लिक कर देंगे? यही तो सावधानी रखनी है।यही अगर भगवान नाम, भगवत भक्ति करना है तो पड़ोस में ही सब गलत काम हो रहे हैं, हमको उधर नहीं देखना।
हमको अपने मार्ग में देखना है।
अपने घर से निकलो, जैसे सीधे अपने मार्ग में चलते हैं, ऐसे मोबाइल में हमारा घर है सत्संग, हमारा घर एकांतिक वार्तालाप सुन लिया और संतों की वाणी सुन ली।
और जो अलग बातें आ रही, वो हमारे घर की बात नहीं, हमें नहीं सुनना है।
जब नियम रखोगे तो रुचि क्यों रखो? क्या रखा है? सब झूठी बातें हैं।
झूठी बातों में जैसे नौटंकी, नाटक, सिनेमाबाजी, ये सब इधर-उधर की खबरें, क्या करोगे इनसे?
तुम कोई नेता तो हो नहीं कि तुम्हें राष्ट्र का भार है, कुछ अभी तो बच्चे हो, अभी तो खूब पढ़ो-लिखो, अच्छे नाम जप करो, अच्छे आचरण करो।
ठीक है महाराज, बस एक बार…
आप नाम दे दीजिए जिससे बुद्धि सुख…
अरे हम चिल्ला रहे हैं—राधा राधा राधा राधा—तो चिल्ला रहे हैं ना, खूब पकड़ लो बस, राधा राधा।
ठीक है।”

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