सबसे बड़ी मूर्खता, सबसे बड़ा मोह यह है कि हम विषयोंसे सुखकी आशा करते हैं
६९ सबसे बड़ी मूर्खता, सबसे बड़ा मोह यह है कि हम विषयोंसे सुखकी आशा करते हैं। इस मूर्खता, इस मोहको मिटानेके लिये भी भगवान्का नाम ही लेना चाहिये।
७०-‘तुलसिदास हरिनाम सुधा तजि, सठ हठि पियत बिषय बिष माँगी।’ यही दशा हो रही है।
७१-भगवान्ने कहा है-
ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते। आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः ॥
(गीता ५।२२)
‘जितने भी इन्द्रियोंके द्वारा प्राप्त होनेवाले भोग हैं-सब-के-सब दुःखकी उत्पत्ति करनेवाले और अनित्य हैं। बुद्धिमान् पुरुष उनमें कभी प्रीति नहीं करता।’ यह त्रिकाल सत्य है। विश्वास करो – विषय सदा रहते नहीं, उनमें दुःख-ही-दुःख भरा है।
७२-भगवान्ने संसारको ‘दुःखालय’ बतलाया है। विश्वास करो कि भगवान्से विरहित संसार सर्वथा सब ओरसे दुःखमय है। इसमें पड़े रहकर सुख चाहना तो वैसा ही है कि पड़े रहें आगमें और चाहें शीतलता।
७३-जगत्में लड़ाइयाँ क्यों होती हैं? इसलिये कि विषयोंसे सुखकी आशा है। मनमें यह मोह है कि लड़कर मनमाना विषय प्राप्त करेंगे और फिर सुखी हो जायँगे।
७४-जब विषयोंमें सुखकी आशाका मोह भंग होता है, तभी वैराग्य उत्पन्न होता है और फिर सच्चा सुख मिलता है।
७५-विषयोंसे विरक्ति हुए बिना सुख मिलता ही नहीं।
७६-विषयानुराग और वैराग्य एक साथ कैसे रह सकते हैं। ७७-जहाँ विषयानुराग है वहाँ भगवान् भी नहीं हैं-
‘जहाँ काम तहँ राम नहिं।
७८-जहाँ भोगोंके प्रति प्रेम है, वहाँ भगवत्प्रेम नहीं है।