महाराज जी मेरे बेटे ने आत्महत्या कर ली मेरा परिवार परेशान है, मैं क्या करूँ ? Maharaj ji, my son committed suicide, my family is worried, what should I do?

Maharaj ji give the soultion

SPRITUALITY

Dheeraj Kanojia

9/11/20234 min read

प्रश्नः गुरुदेव कुछ दिन पूर्व मेरे शरीर के पुत्र ने आत्महत्या कर लिया था आपके सत्संग एवं कृपा के प्रभाव से घटना मुझ पर तो बहुत अधिक हावी नही हो पायी परन्तु घर की परीस्थिति विशेषकर शरीर की पत्नी और अन्य पुत्र अधिक विचलित है।

गुरुदेव मैंने आप से सुना है कि शरणागत के जीवन में जो कुछ भी अच्छा बुरा होता है परिणाम उसका मंगल ही होता है परन्तु अल्पमति होने के कारण यह भय होता है की कहीं मैं भटक न जाऊ महाराज जी।

आपसे करवत प्रार्थना है जिससे श्रीजी के चरणों में, गुरु चरणों में मेरी अगात भक्ति हो, ऐसी आज्ञा करके देखे।

उत्तरः कर्म विवश हो कर के आता है और कर्म विवश हो कर के ही जाता है हम लोग उसे अपने सम्बन्ध में देखने के कारण प्रियता लगा लेते हैं यह मेरा पुत्र है, मैं इसके बिना कैसे जी सकता था, यदि भगवान की शरण में था भगवान ने इसकी रक्षा क्यों नहीं की?

हम भगवान की शरण में तो कर्म बंधन भी मिटा सकते थे ऐसा 1 बार भागवत श्रीमद भागवत में, चित्रकेतु नाम के राजा थे बहुत सी रानियाँ थी और उनके कोई संतान नहीं थी और बड़े धर्म से चलते थे जब धर्मात्मा पुरुष किसी संकट में होता है तो उसे महात्मा का सान्धिय प्रदान किया जाता है यह सृष्टि का क्रम है। जब वास्तविक धर्म में चलने वाला होगा तो उसको किसी न किसी महात्मा का सानिध्य प्रदान कर दिया जाता है

तो देव श्रीनारद जी और अंगिराज जी पधारे तो चित्र केतु उदास चित बैठे हुए थे तो उन्होंने कहा कि आप ऐसे उदास कैसे है जो धर्म का ज्ञान रखता है धर्म से चलता है उसके चेहरे पर उदासी ठीक नहीं होते

तो राजा ने कहा, महाराज इस समय मेरा मन पुत्र मोह से युक्त है

मुझे संतान चाहिए आपका ज्ञान उपदेश नहीं

संतान मिलेगी तो मेरे को शांति मिलेगी आपके उपदेश से नहीं तो वे मुस्करा दिए। ममता रत संज्ञान कहानी बरती जाती है? सिद्धांत हैं

नारद जी ने कहा, राजन आपके भाग्य में पुत्र सुख नहीं

पूर्व कर्मानुसार आपको पुत्र सुख नहीं है

उनका भाग्य की बात नहीं जानते आपको भगवान ने भेजा है आपको पुत्र देना ही होगा

सर्वसमरथ महात्मा है पर आपको हर शोक दोनों की प्राप्ति होगी इस शब्द को वे नहीं समझ पाए और राजी हो गए कुछ समय बाद बड़ी रानी की सुकीर्ति

से गर्भ हुआ।

पुत्र हुआ तो बड़ा आनंद बड़ा आनंद और रानियां थी उन्होंने देखा अब राजा सीधे उसी मेले में जाते है क्यूंकि पुत्र का उत्साह और बड़ी रानी तो हर समय जो समय राजकाज से वो बड़ी रानी के मेल में ईष्र्या ने वो रूप धारण किया और थी सब जल गए।

उन्होंने कहा की क्या उपाय किया जाए महाराज तो हमारी तरफ मुड़ते भी नहीं? हमारे महिलाओं की तरफ सीधे बोले। हम सबके बीच में। 1 ही बाधा है? बालक? जब से वो आया तब से अगर वो।

पर्सनल दासी को तैयार कर लिया और दुग्ध में जहर मिलाकर, रानी की अनुपस्थिति में पिला दिया। और नवजात से शिशु मर गया। रानी ने जब लौट के देखा। शरीर नीला हाहाकार मच गया। फिर राजा को जब खबर गई तो पछाड़ खा कर गिर गए। दौड़ते हुए वो विकल् है, मैं प्राण त्याग दूँगा।

उसी समय देवश्री नारदजी और अंगिराज जी फिर आ गए। उन्होंने कहा, आपको याद होगा, हमने कहा था, हर्ष और शोक, दोनों प्राप्त होंगे? हर्ष से पुत्र हुआ और शोक के जीव का इतना ही केवल संस्कार था। महाराज बोले हमें ज्ञान नहीं एक बार हमें पुत्र से मिला दो। फिर भले वो चला जाए

मंत्र बल से युक्त थे। आकर्षण किया। बेटा इस शरीर में आ जाओ। एक बार पिता को देखने दो। जीव आत्मा। सामने आई, बोली, ये पिता, जानते हो? कौन? है?

बोला अरे कई बार ये मेरी पत्नी बना, इसका बाप बना?

जीव ने पूरा प्रवचन शुरू किया। राजा ने कहा, हमें नहीं चाहिए, इसको जाने को बोल दो।

ये हम लोग। रहस्य नहीं जानते हैं न कर्म का इसलिए हम सब दुखी होते हैं।

एक दृष्टांत से ही समझ में आता है। 2 मित्र थे।

वो बम्बई गए।

व्यापार नौकरी करेंगे। पहले होटल में। नौकरी की। धीरे। धीरे। थोड़ा। धन आया। थोड़ा व्यापार करना शुरू किया ऐसा व्यापार चला। उन्होंने खुद होटल खोल लिया। बड़ा होटल लाखों रूपया कमाई की दोनो मित्र ने

एक मित्र ने विचार किया की एक को अगर मार देते? तो पूरे होटल का मालिक हो जाऊंगा। उसने जहर देकर मार दिया।

कुछ दिन बाद वो अपने घर आया।

तो गाँव वाले ने पूछा। वो लोग हमारे साथ थोड़ी रहे थे? हमारे साथ चले थे। पर वो अलग चले गए थे। हमें। पता नहीं वो कहाँ चले गए? कैसे रहे?

अब तो होटल में खूब पैसा, जमीन खरीदी, मकान, बनाया, सुन्दर ब्याह किया, कुछ समय बाद, लड़का पैदा हुआ।

उसको इतना ऐश्वर्य दिया। खूब पढ़ाया।

अमेरिका भेजा पढ़ाने के लिए।

अब वहाँ बीमारी शुरू। उसको हुई।

अब यहाँ से पैसा भेजा।

बीमारी इतनी बढ़ती चली गई।

होटल बिक गया, मकान बिक गया। निजी जमीन जो खरीदी थी? वो तो बिकी गयी। आभूषण बिक गए। स्थिति यह हो गई कि खाने को नहीं रहे,

अमेरिका से बेटे को बुलाया।

उसे गोद में रख के रो रहे थे, क्या प्राण के सिवा हमारे पास कुछ नहीं बचा

तो उसने कहा, पिताजी मैं आप से बात कर चाहता, हूँ, माताजी सबको अलग कर दीजिये

अलग किए बोले? पहचाना

भगवद स्मृति से उसको पहचाना। मैं तुम्हारा वही दोस्त हूँ जिसे कोई नहीं जानता और जहर दिया था हमारी ही संपति हिस्से से। आज सर्वनाश करके जा रहा हूँ मेरा वियोग और संपत्ति का तुम्हारे किसी काम के नही रह गया।

कर्म अवश्य मे भोगतब्यमकतमकर्म। अभी हम आप तिलक लगाए बैठे हैं लेकिन कल हमने जो किया है,

जो फसल बोई है, वो तो काटना पड़ेगा न, तो हमें धैर्य पूर्वक रहना चाहिए उस जीव का। इतने ही समय तक ऐसी ही गति होनी थी और मुझे उसे दुख भोगना था

राधा राधा राधा करो आगे बढ़ो यह भगवत मार्ग है आगे बढ़ो, उसकी चिंता मत करो।

Question: Gurudev, a few days ago my son had committed suicide. Due to the influence of your satsang and grace, the incident did not affect me too much, but the situation at home, especially my wife and other sons, is more disturbing.

Gurudev, I have heard from you that whatever good or bad happens in the life of a devotee, the outcome is auspicious, but due to being a minority, there is a fear that I might go astray, Maharaj Ji.

I request you to please order me so that I have unwavering devotion at the feet of Shriji and at the feet of Guru.

Answer: Karma comes with compulsion and Karma goes with compulsion. We love him because we see him in our relationship. He is my son. How could I live without him, if I was in the shelter of God. Why didn't he protect it?

By taking refuge in God, we could even remove the bondage of karma. This happened once in Bhagwat Shrimad Bhagwat, there was a king named Chitraketu, he had many queens and he had no children and used to follow great religion. When a virtuous man is in trouble, He is given the Sanidhya of Mahatma, this is the order of creation. When a person follows real religion, he is given the company of some Mahatma.

So when Dev Shree Narad ji and Angiraj ji came, Chitra Ketu was sitting sad, then they said that how are you so sad, a person who has knowledge of religion and follows religion, sadness does not look good on his face.

So the king said, Maharaj, at this time my mind is full of love for my son.

I want children, not your knowledge, but your teachings.

If I get a child, I will get peace, otherwise he smiled. Mamta night cognizance story is used? principles are

Narad ji said, King, you are not destined to have a son.

You don't have the happiness of a son as per your past karma.

Don't know about their fate, God has sent you, you have to give a son.

He is an all-powerful Mahatma, Narad ji said,you will get joy and sorrow both. King could not understand this word and agreed. After some time, Badi Rani became pregnant.

There was great joy when a son was born, but there were other queens. They saw that now the king goes straight to the Badi rani palace because of the son. Jealousy took that form.

They discussed what solution should be taken.

A personal maid was prepared and she mixed poison in the milk of King son and made him drink it in the queen's absence. And the newborn baby died. When the queen returned and saw. The body turned blue. Then when the king got the news, he fell down. That option while running is, I will sacrifice my life.

At the same time Devashree Naradji and Angiraj ji came again. He said, do you remember that we said that we will receive both joy and sorrow? Joy gave birth to a son and this was the only sanskar for the creature of sorrow. Maharaj said, we have no knowledge, please reunite us with our son once. even if he goes away

The mantras were full of power. Charmed. Son, come into this body. Let father see it once. Living soul. He came forward and said, do you know this father? Who? Is?

Said, hey he became my wife many times, became her father?

Jeeva started the entire sermon. The king said, we don't want it, ask him to leave.

These are us. We all feel sad because we do not know the secret of karma.

It can be understood only with an example. There were 2 friends.

He went to Bombay.

Will do business job. In the first hotel. Did the job. Slow. Slow. Little. Money came. Started doing some business and this business continued. He opened the hotel himself. Big hotel, both friends earned lakhs of rupees

A friend thought what if we had killed one? Then I will become the owner of the entire hotel. He killed by poisoning.

After a few days he came to his home.

So the villager asked. They stayed with us for a while? Came with us. But they had gone separately. Us. Don't know where he went? How were you?

Now I have a lot of money in the hotel, bought land, built a house, got married beautifully and after some time, a boy was born.

Gave him so much opulence. Taught a lot.

Sent to America to teach.

Now the disease started there. It happened to him.

Now sent money from here.

The disease continued to progress so much.

The hotel was sold, the house was sold. Private land that was purchased? It was sold. The jewelery was sold. The situation has become such that there is no more to eat.

Called son from America.

We were crying while keeping him in our lap, do we have nothing left except life?

So he said, Dad I want to talk to you, Mom please separate everyone.

Did you say separated? Identified

Recognized him by remembering God. I am the same friend of yours whom no one knows and who was poisoned with our own share of property. Today I am leaving after annihilation, my separation and property are of no use to you.

Karma abhi bhogatabyamaktamkarma. Right now we are sitting wearing tilak, but whatever we did yesterday,

The crop that has been sown will have to be reaped, so we should be patient with that creature. This pace was to last for such a long time and I was to suffer it.

Radha Radha Radha, move ahead, this is the path of God, move ahead, don't worry about it.