समस्या आने पर पूर्व कर्म समझ कर भोग लें या कानूनी कार्रवाई भी करे In case of problem, accept it considering it as past karma or take legal action as well

पूज्य महाराज जी का सुन्दर उत्तर Beautiful answer of Pujya Maharaj ji

SPRITUALITY

Dheeraj Kanojia

8/27/20233 min read

अगर आपके सामने ऐसी कोई परिस्थिति आती है, तो आप पूज्य महाराज जी के इस सुन्दर उत्तर के अनुसार आप अपना निर्णेय ले सकते है.

महाराज जी से सवाल था.

जय श्री राधे महाराज जी। आपके चरणों में कोटि कोटि नमन.

महाराज जी ईश्वर की कृपा एवं आशीर्वाद से तथा आपके प्रवचन सुनकर धर्मानुसार आचरण के लिए निरंतर प्रयास है।

अगर कोई संसारिक समस्या सामने आती है, तो क्या हम उसे पूर्व कर्मो का फल समझ कर भोग लेनी चाहिए या कानूनी कार्रवाई भी करनी चाहिए.

पूज्य महाराज जी का सुन्दर उत्तर

हाँ कर सकते है. ये कर्तव्य है.

ऐसी परिस्थिति को हटाने का प्रयास भी करना चाहिए।

कायर बन के नहीं बैठने के लिए कहा गया है।

आप प्रयासरत रह सकते है.

जब कंश को आकाशवाणी हुई।

जिस बहन को आप (कंश) बड़े प्यार दुलार से रथ में बैठा कर विदा करने के लिए ले जा रहे हो इसी के गर्भ से जो आठवी संतान प्रगट होगी वो तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।

कंश ने आकाशवाणी सुनी।

वह क्रूरकर्मा था.

कंश ने सोचा, जब देवकी नहीं रहेगी तो संतान कैसे होगी।

जिस बहिन का अभी इतना प्यार दुलार से बैठा कर विदाई करने के लिए ले जा रहा था. कंश ने उसके केश पकड़ लिए और तलवार खींची।

वसुदेव हाथ जोड़कर बोले, आपको ऐसा नहीं करना चाहिए

आपकी प्यारी बहन है अभी तो देखो मेहंदी लगाये हुए सुहाग के चिन्ह से युक्त है आपको ऐसा नहीं करना चाहिए. आप वीर पुरुष हैं. स्त्री की हत्या करना वीर पुरुषों के लिए शोभा नहीं देता.

जहाँ तक मृत्यु की बात तो जिसका जन्म हुआ उसकी मृत्यु होती ही है

आपको अगर ये लगता है की इनके पुत्र से आपकी मृत्यु लिखी है, तो मैं वचन देता हूँ, जो जो पुत्र होगा। मैं वो आपके पास खुद लेकर आऊंगा.

वसुदेव जी सत्यनिष्ठ थे, सत्यवादी थे.

कंश को विश्वास था। वसुदेव जी कभी झूठ नहीं बोलेंगे। उसने छोड़ दिया।

तब उस प्रसंग में कहा है कि आई हुई मृत्यु से बचने और टालने का पूरा उपाय करना चाहिए। जब नहीं बच पाये तो बात अलग है.

आई हुई विपत्ति का, आये हुए संकट का। जो हमें ज्ञान है, जितनी हमारी बुद्धि है, जितना हमारे पास बल है, उससे हम निवृत होने का पूरा उपाय करेंगे।

प्रारब्ध को लेकर नहीं बैठ जायेंगे।

अगर असफल हो गए। अब विचार से हम उसका समन करेंगे कि हमने प्रयास पूरा किया। पर विधान ऐसा था मुझे हारना था। मुझे दुःख भोगना था या अमुक घटना होनी थी. मैंने तो पूरा प्रयास किया था.

प्रयास के लिए कहीं निषेध नहीं किया गया.

पुरुषार्थ करने पर भी यदि हमारी पराजय हो रही है तो फिर देव बलवान हो गया. देव माने पूर्व प्रारब्ध बलवान हो गया।

अब ऐसा नहीं कि कोई हमारे साथ अभद्र व्यवहार कर रहा है. तो हम चुपचाप सहन कर रहे हैं.

नहीं उसके लिए कानून एक विधान बनाया गया है। हम उसकी रिपोर्ट करेंगे।

इसके बाद वो दंडित नहीं किया जा रहा। छोड़ दिया जा रहा है. तो हम सहन करेंगे। शायद हमारा प्रारब्ध ऐसा है। पर हम उसका विधान करेंगे। अब कोई हमारे मरने के लिए आया तो गर्दन थोड़ी झुका देंगे।

हम ग्रहस्ती में है, व्यवहार में है। हम लड़ेंगे। जब नहीं जीत पायेंगे, वो गर्दन उतार दे तो बात अलग है। सिद्धांत को समझना होगा।

नहीं, तो चूक हो जाएगी। कायरता आ जाएगी। कायरता नहीं आनी है.

हमें परिणाम पर ध्यान देना है। हमें परिणाम में सुख दुःख में लाभ, हानि में जय, पराजय में समान रहना है। लेकिन कर्तव्य में हमें उदासीन नहीं हो जाना।

हमें कर्तव्य में कायरता रूपी दोष युक्त नहीं हो जाना है।

हमारे सामने कर्तव्य आया है. हमारी बुद्धि में भगवान् जो प्रकाश दे रहे है, उसके अनुसार हम प्रयास करेंगे सफल हो जाते है तो हर्ष नहीं, क्यूँकि भगवान का बल था.

हार जाते है, तो शोक नहीं, क्योंकि प्रभु का विधान था. ऐसा हम विचार करके सुख

दुःख से ऊपर उठ सकते हैं.

यह शास्त्रीय विचार है. यह अध्यात्म कहता है.

यह सांसारिक लोग नहीं समझेंगे। उसमे उनकी अलग बुद्धि रहती है।

परमार्थ के पतिक को ऐसा ही करना चाहिए।

महाराज जी के प्रवचन पढ़ने में आपको अगर कोई दिक्कत हो रही है, तो आप वीडियो क्लिक करके उनके प्रवचन को सुन कर लाभ ले सकते है.

Maharaj ji Video. https://youtu.be/1mMfUn1xeu4?si=QYNA5hrAtgLNxon0

If any such situation comes in front of you, then you can take your decision according to this beautiful answer of Pujya Maharaj ji.

There was a question from Maharaj ji.

Jai Shri Radhe Maharaj ji. Millions of salutations at your feet.

Maharaj ji, by the grace and blessings of God and listening to your sermons, there is a continuous effort to conduct oneself according to Dharma.

If any worldly problem comes, should we suffer it considering it as the result of past deeds or should we take legal action as well.

Beautiful answer of Pujya Maharaj ji

yes can do. This is duty.

Efforts should also be made to remove such a situation.

It has been told not to sit like a coward.

You can keep trying.

When Kansh heard the message from sky.

The eighth child that will emerge from the womb of the sister whom you (Kansh) are taking to bid farewell by sitting in the chariot with great affection will become the cause of your death.

Kansh heard Akashvani.

He was cruel.

Kansh thought, when Devki will not be there then how will there be a child.

The sister for whom he had so much love just now, he was taking her to bid farewell by sitting with caress. Kansa caught hold of her hair and drew his sword.

Vasudev said with folded hands, you should not do this

Now look at your lovely sister, she is wearing mehndi with the sign of Suhaag, you should not do this. You are a brave man. Killing a woman does not suit brave men.

As far as death is concerned, the one who is born has to die.

If you feel that your death is written by her son, then I promise, whatever the son will be. I will bring it to you myself.

Vasudev ji was truthful.

Kansh had faith. Vasudev ji will never lie. He left.

Then it has been said in that context that all measures should be taken to avoid and avert the impending death. When you can't survive then it's a different matter.

Of the calamity that has come, of the crisis that has come. With the knowledge we have, as much intelligence as we have, as much strength as we have, we will do all we can to retire.

Won't sit with destiny.

If failed Now we can think with the thought that we have completed the effort. But the law was such that I had to lose. I had to suffer or a certain incident had to happen. I tried my best.

There is no prohibition anywhere for effort.

If we are getting defeated even after making effort, then Dev has become strong. Dev means the former destiny has become strong.

Now it is not that someone is misbehaving with us. So we are silently tolerating.

No, a law has been made for that. We'll report it.

After this he is not being punished. being abandoned. So we will tolerate. Maybe our destiny is like this. But we will fix it.

We are in family, we are in behavior. We will fight When he will not be able to win, if he bares our neck then it is a different matter. The theory has to be understood.

Otherwise, there will be a mistake. Cowardice will come. Cowardice should not come.

We have to focus on the result. We have to remain equal in happiness and sorrow, victory or loss or defeat. But let us not become indifferent in our duty.

We should not become guilty of cowardice in our duty.

Duty has come before us. We will try according to the light that God is giving in our intellect, if we succeed then there is no joy, because it was the power of God.

If we lose, then there is no sorrow, because it was the law of the Lord. we are happy to think that

You can rise above sorrow.

This is a Shastriya idea. This is called spirituality.

Worldly people will not understand this. They has a different intellect in that.