माता पिता को भगवान् मानने से क्या भगवत प्राप्ति होगी ?

प्रश्न- मनुष्य माता-पिताकी सेवाको भगवत्प्राप्तिका साधन मानता है, साध्य नहीं मानता। अगर वह माता-पिताकी सेवा को ही साध्य मानेगा, अपने प्राणों का आधार मानेगा तो उसका माता-पिता के चरणों में ही प्रेम होगा, फिर उसको भगवत्प्रेम, भगवत्प्राप्ति कैसे होगी?

उत्तर- इसमें तीन बातें हैं- (१) जो माता-पिताकी सेवाको ष्टिसे ही साधन और साध्य मानकर उनकी सेवा करता है, उनकी सेवाको अपने प्राणोंका आधार मानता है, उसकी माता-पिताके चरणोंमें प्रेम एवं भक्ति हो जाती है और अन्तमें उसको र्तव्य पितृलोककी प्राप्ति होती है। (२) जो परमात्मप्राप्तिका उद्देश्य रखते हुए माता-पिताकी सेवाको अपना कर्तव्य समझकर करता है, उसको माता-पितासे सम्बन्ध विच्छेद होकर परमात्माकी प्राप्ति हो जाती है। (३) जो माता-पिताको साक्षात् भगवत्स्वरूप मानकर उनकी सेवा करता है, उसको भगवत्प्राप्ति हो जाती है। इन तीनोंमेंसे जिसमें जिसका भाव बैठे, वही करना चाहिये।

जैसे पतिव्रता स्त्री भगवान्की, शास्त्रोंकी, महापुरुषोंकी आज्ञाके अनुसार तन-मनसे पतिकी सेवा करती है, उसको पतिलोककी प्राप्ति होती है अर्थात् जो लोक पतिका है, वही लोक पतिव्रताका होता है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि अगर दुराचारी होनेके कारण पतिका लोक नरक है तो पतिव्रताका लोक भी नरक होगा! जिस स्त्रीने पतिसेवाको अपना धर्म (कर्तव्य) समझकर पातिव्रत धारण किया है, वह नरकोंमें कैसे जा सकती है? नहीं जा सकती। उसने पातिव्रत धारण किया है; अतः उसका जो लोक होगा, वही लोक पतिका भी होगा। तात्पर्य है कि पातिव्रतके तपोबलसे उसका और पतिका दोनोंका कल्याण हो जायगा। ऐसे ही जो माता-पिताकी सेवाको ही साधन और साध्य मानकर उनकी सेवा करता है, उसको और उसके माता-पिताको भगवान्‌की प्राप्ति हो जाती है; क्योंकि जो लोक पुत्रका होगा, वही लोक माता-पिताका (पितृलोक) होगा।

यह लेख गीता प्रेस की मशहूर पुस्तक “गृहस्थ कैसे रहे ?” से लिया गया है. पुस्तक में विचार स्वामी रामसुख जी के है. एक गृहस्थ के लिए यह पुस्तक बहुत मददगार है, गीता प्रेस की वेबसाइट से यह पुस्तक ली जा सकती है. अमेजन और फ्लिप्कार्ट ऑनलाइन साईट पर भी चेक कर सकते है.

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